Saturday, March 17, 2018

दलित संरपंच की जानकारी के बगैर गांव के दबंग निकाल रहे पैसे


अजब-गजब मध्यप्रदेश दलित संरपंच की जानकारी के बगैर गांव के दबंग निकाल रहे पैसे
सरपंच  पहुंचीं  विधानसभा ,परिसर में  लगाई दबंगों से जान बचाने  की गुहार
रूबी सरकार
मध्यप्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत यह है, कि  मुरैना जिले की छिनवरा पंचायत की सरपंच शीला जाटव  विधानसभा परिसर में घूम-घूमकर अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ न्याय की गुहार लगा रही थी। उसका कहना है, कि वह विधवा है, उसके 3 बेटे हैं। 10 साल पहले उसके पति का स्वर्गवास हो गया। जब छिनवारा पंचायत दलित महिला के लिए आरक्षित  कर दी गई, तो परिवार वालों ने उसे चुनावी मैदान में खड़ा किया। उसने अपने प्रतिद्वंदी से मात्र एक मत से जीत दर्ज की। तब उसे पता नहीं था, कि गांव में सरपंची इतना आसान नहीं है। सरपंच बनने बाद से ही पंचायत सचिव भूपेन्द्र सिंह तोमर और गांव का दबंग रामलखन सिंह सिकरवार उसे प्रताडि़त लगे, वे शीला को रबर स्टेम्प बनाकर रखना चाहते थे, शीला ने कहा, कि दोनों उसे जाति सूचक गालियां देकर, डरा -धमका कर पैसा आहरण करते रहे और इसकी शिकायत शासन ने न करने का दबाव बनाते रहे। जिसके चलते वह पिछले 3 सालों से चुप थी, दबंगों द्वारा उसके बेटे को जान से मारने तथा उसे गांव से बेदखल करने की धमकी दिये जाने से वह काफी भयभीत थी, लेकिन जब उसे पता चला, कि  वित्तीय अनियमितताएं व भ्रष्टाचार का खामियाजा उसे भुगतना पड़ेगा, इसके लिए उसे जेल भी जाना पड़ सकता है और शासन द्वारा उससे वसूली भी की जा सकती है, तो वह डर गई और मुरैना कलेक्टर और मुख्य कार्यपालन अधिकारी को 27 फरवरी को शपथ-पत्र के साथ शिकायत की। इसके बाद वह गांव से जान बचाकर  अपने रिश्तेदार के यहां आकर रहने लगी। कलेक्टर और मुख्य कार्यपालन अधिकारी को लिखे पत्र में उसने आत्महत्या कर लेने तक की बात की, लेकिन कोई सुनवाई न होते देख वह विधानसभा पहुंचकर मंत्री गोपाल भार्गव के पास दबंगों द्वारा किये गये वित्तीय अनियमितताओं की जांच और अपने जान की सुरक्षा की गुहार लगाई।  
शीला ने कहा, कि आज तक पंचायत में उसने न तो जरूरी कागजात पर और न ही बिल-वाउचर्स पर  हस्ताक्ष्र किये है। पंचायत की वेबसाइट पर उसका मोबाइल नम्बर भी अपलोड नहीं है, जबकि पंच परमेश्वर की राशि के भुगतान के लिए मोबाइल पर ओटीपी सिस्टम चालू  है, जिससे अब सरपंच/सचिव के हस्ताक्षर के बजाय मोबाइल ओटीपी के माध्यम से राशि के भुगतान की प्रक्रिया शुरू हो गई है। पंचायत पोर्टल पर दबंग सिकरवार का मोबाइल नम्बर अंकित है, जबकि पंचायत से उनका कोई लेना-देना नहीं है। यह बहुत बड़ी वित्तीय अनियमितता है।
उसने यह भी कहा, कि मनरेगा योजना एवं पंच परमेश्वर की राशि धोखाधड़ी से निकाल ली जाती है, जबकि कई निर्माण कार्य मौके पर नहीं पाये गये। साथ ही कई निर्माण कार्य पूर्व के ही थे, उस पर साफ-सफाई के नाम पर  इनलोगों ने बड़ी र$कम आहरण कर ली है। उसने कहा, कि सीसी रोड, वृक्षारोपण, खेत-तालाब आदि कार्यों की जांच माप पुस्तिका से मिलान कर मौके पर की जानी चाहिए। सरपंच ने बताया, वत्तीय वर्ष 2015 से 2017 तक जिन कार्यों पर राशि खर्च की गई है, उन सभी का भौतिक सत्यापन किया जाना चाहिए।  शीला अपनी पीड़ा सुना ही रही थी, कि  ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री गोपाल भार्गव सदन से बाहर आये । उन्हें  देखते ही वह पैर पकड़कर दबंगों से जान बचाने की गुहार लगाने लगी । हालांकि श्री भार्गव ने दलित महिला सरपंच को उसका ह$क दिलाने की बात कही है। उन्होंने कहा है, कि शिकायत की पूरी जांच की जाएगी और जांच के बाद अगर यह पाया गया, कि किसी ने अनाधिकृत रूप से राशि निकाली है, तो उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई और वसूली भी होगी।
इस घटना को राज्य मानवाधिकार आयोग ने गंभीरता से लिया और मुरैना कलेक्टर तथा मुख्य कार्यपालन अधिकारी के साथ ही जिला पंचायत से भी जवाब-तलब किया है। 

Women Driver


पारंपरिक रोजगार से हटकर नई छबि वाले व्यवसाय अपना रही महिलाएं
रूबी सरकार
 इंदौर की रंजीता लोधी की शादी 20 साल की उम्र में हुई थी। लेकिन पति की ओर से भरण-पोषण का बेहतर इंतजाम न होने के कारण उसे दूसरों के घर खाना पकाने जाना पड़ता था, जिससे गुजारे के लिए सीमित आय होती थी। उसकी अपने पति से प्राय: आजीविका को लेकर कहा-सुनी होती थी। एक दिन अचानक दोनों ने अलग होने का फैसला ले लिया और वह अपने दोनों बेटों के साथ मां के घर वापस आ गई।
इस बीच उसकी मुलाकात समान संस्था के एक साथी से हुई, जिसने उसे आय के पारम्परिक रोज़गार से हटकर, अधिक आय और नई छबि देने वाले व्यवसाय को अपनाने की सलाह दी।
रंजीता समान संस्था गई और वहां महिलाओं को ड्राईवर का प्रशिक्षण लेते देख स्वयं पेशेवर ड्राईवर बनने का साहसिक फैसला ले लिया। इससे पहले उसने साईकिल चलाना तक नहीं जानती थी। रंजीता के इस निर्णय से उसकी मां डर लगने लगा, कि अगर कोई अनहोनी हो जाये, तो दोनों बच्चों को कौन संभालेगा। लेकिन रंजीता निर्णय पर अडिग रही। प्रशिक्षण के दौरान वह सुबह-शाम दूसरों के घरों में खाना-पकाने का काम करती रही और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद अब वह पेशेवर ड्राईवर बन गई। रंजीता अभी लगभग 30 साल की है। वह लोगों के बुलावे पर गाड़ी चलाने जाती हैं। वह बीएमडब्ल्यू, इनोवा से लेकर सभी बड़ी गाडिय़ा बेहिचक ड्राईव करती है। महीने में 9 से 10 हजार कमाने वाली रंजीता ने अब अपनी स्वयं की गाड़ी भी किश्तों पर खरीद ली है। आज वह इतना कमा लेती है, कि 4 हजार प्रतिमाह गाड़ी की किश्त के अलावा, बच्चों की पढ़ाई और परिवार का पूरा खर्चा उड़ा लेती है। अब पति भी उसके पास लौट गाया है।
रंजीता की ही तरह 40 से अधिक महिलाएं यहां से ड्राईवर का प्रशिक्षण प्राप्त कर विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी कर रही हैं, इनमें  से 2  नगर निगम में, 5 होटल कोटियार्ट मेरिएट में, एक महिला ड्राइवर मारूति ड्राईविंग स्कूल में ड्र्राविंग सिखाती है। कई महिला ड्राईवर पीथमपुर में कंपनियों में हैं तथा कई महिला ड्राईवर विभिन्न घरों में महिलाओं की ड्राईवर के रूप में नौकरी कर रही हैं।
संस्था द्वारा महिलाओं को ड्राईवर प्रशिक्षण के अलावा तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया जाता है। यह ड्राईविंग एवं कार संबंधी प्रशिक्षण कहलाता हैं, जो लगातार 5-6 माह तक चलता है, इनमें अस्थाई लाईसेंस, स्थाई ड्राईविंग लाईसेंस बनाने के बाद सड़कों पर चलाने का अभयास के साथ ही स्वयं अकेले गाड़ी चालाने का अभ्यास शामिल है। इस दौरान महिलाओं से पहिया बदलने का भी अभ्यास करवाय जाता है। इसके अलावा नक्शा पढऩा और रास्ता तलाशना, फस्र्ट एड के प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं।
इस दौरान महिलाओं को व्यक्तित्व विकास, जिससे वे अपने जीवन को ज्यादा उत्साहपूर्ण एवं बेहतर बना सके, इनमें संवाद कौशल एवं रोजगार की तैयारी जैसे प्रशिक्षण भी दिया जाता है। कार्यक्रम के अंतर्गत महिलाओं को ऐसे प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं, जिससे प्रशिक्षार्थी स्वयं को सशक्त महसूस करें और उनमें नई ऊर्जा का संचार हो। इनमें आत्मरक्षा, कानूनी जानकारी, जेण्डर और हिंसा की समझ, अंग्रेजी बोलने आदि के प्रशिक्षण दिए जाते हैं।


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हर औरत को है प्रतिष्ठा से जीवन जीने का अधिकार
 हर स्त्री, जीवन में चाहे उसकी कोई भी स्थिति हो, उसे प्रतिष्ठा से जीवन जीने का जन्मजात अधिकार है। समान संस्था का मुख्य लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों एवं महिलाओं की न्याय और समानता के अधिकार तक पहुंच बनाना है। इस दिशा में जेण्डर समानता एक महत्वपूर्ण पहलू है। संस्था द्वारा हिंसा से पीडि़त महिलाओं को कानूनी सहायता दी जाती है। साथ ही सशक्तीकरण के जरिये उन्हें न्याय पाने की दिशा में सक्षम बनाया जाता है। महिलाओं को गैरपरंपरागत आजीविका के साधनों से जोड़कर सामाजिक न्याय तक पहुंच बनाई जा सकती है।
इसी उद्देश्य के साथ इन्दौर में एक कुशल ड्राईवर के रूप में प्रशिक्षित करने में ''समानÓÓ संस्था की टीम पूरी सक्रियता और कर्मठता से काम कर रही है। ''मोबिलाईजेशन टीमÓÓ द्वारा शहर की युवतियों को इस कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। इसके बाद ''प्रशिक्षण टीमÓÓ 6 महीने तक प्रशिक्षण में जुटी रहती और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद ''प्लेसमेंट टीमÓÓ इनके लिए नौकरी की तलाश करती है। इस तरह एक कुशल ड्राईवर बनाने का काम पूरी टीम का है और इस टीमवर्क के कारण ही इन्दौर की सड़कों पर कुशल ड्राईवर के रूप में कार चलाती हुई महिलाएं नजर आ रही हैं।
राजेन्द्र बंधु
संचालक, समान सोसाइटी