Monday, September 21, 2015
Friday, September 18, 2015
Khilchipur kila
fखलचीपुर का किला
रियासत की स्थापना के साथ ही 1544 में खलचीपुर राजमहल की नींव रखी गई थी। खिलचीपुर का यह ऐतिहासिक राजमहल महाराज उग्रसेन द्वारा शुरू करवाया गया था। आज भी यह राजमहल नगर के रहवासियों के साथ-साथ देश भर के पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र है। अद्भुत
नक्काशी एवं निर्माणकला की सौंदर्य लिये हुए खिलचीपुर का यह किला अंग्रेजों के समय से राजघराने के ऐतिहासि गौरव एवं विपरीत परिस्थितियों में स्वाभिमान की ऐतिहासिक गाथा सुनाता है।
किले की मजबूती एवं महल के भीतरी कक्षों में की गई नक्काशी दर्शनीय है। की हस्त शिल्पकारी की दक्षता को दर्शाता है। किले में मौजूद राघवजी का प्राचीन मंदिर नगरवासियों व भक्तों के श्रद्धा का केन्द्र है। प्रत्येक उत्सव में आम जनता के लिए किले का द्वार खोल दिया जाता है।
खिलचीपुर रियासत की स्थापना और किले की नींव 1544 बसंत पंचमी के दिन रखी गई थी। उग्रसेन गागरोन के खींची वंश के महान योद्धा व राजा अचलदास खींची व प्रसिद्ध भक्तिकालीन संत प्रतापराव (पीपाजी महाराज) के वंशज थे। 1423 में हुए गागरोन के जोहर के बाद खींची राजवंश ने अपनी राजधानी महुमैदाना (बोरदा राजस्थान) में स्थापित की, जहां अचलदास के प्रथम पुत्र धीरदेव ने राज्य संभाला। वहां से सुरक्षित स्थान खिलचीपुर को राज्य में शामिल करने के बाद खींची यहां आ बसे। 1787 में दीवान दीपसिंह के शासनकाल में दीपगढ़ का निर्माण हुआ, जो सोमवार हाट बाजार के कारण वर्तमान में सोमवारिया के नाम से जाना जाता है। लगभग 707 किलोमीटर में फैली खिलचीपुर रियासत में कभी 283 गांव शामिल थे। सन् 1901 में रियासत की आबादी मात्र 31 हजार 143 थी। महल व नगर निर्माण में दीवान शेरसिंह और राव बहादुर अमरसिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रहीं। महल के बड़े भाग का निर्माण दीवान शेरसिंह , द्वारा और उनकी पत्नी द्वारा कल्याण रायजी के मंदिर का निर्माण करवाया गया, जबकि अमरसिंह द्वारा महल के भीतर अमरेशवर महादेव की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त रघुनाथजी का मंदिर, गंगा तट पर अमरनिवास, माता रातादेवी मंदिर, उकारनाथ मंदिर, शहरकोट, तोपखाना गेट के पास सरायभवन आदि का निर्माण राव बहादुर अमर सिंह के शासनकाल में हुए। विजयगढ़ कोठी (वर्तमान में तहसील भवन) श्रीनाथजी का मंदिर और नरसिंह मंदिर राव बहादुर भवानीसिंह के कार्यकाल में बने। वर्तमान में खिलचीपुर राजपरिवार यहां निवास करता है।
रियासत की स्थापना के साथ ही 1544 में खलचीपुर राजमहल की नींव रखी गई थी। खिलचीपुर का यह ऐतिहासिक राजमहल महाराज उग्रसेन द्वारा शुरू करवाया गया था। आज भी यह राजमहल नगर के रहवासियों के साथ-साथ देश भर के पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र है। अद्भुत
नक्काशी एवं निर्माणकला की सौंदर्य लिये हुए खिलचीपुर का यह किला अंग्रेजों के समय से राजघराने के ऐतिहासि गौरव एवं विपरीत परिस्थितियों में स्वाभिमान की ऐतिहासिक गाथा सुनाता है।
किले की मजबूती एवं महल के भीतरी कक्षों में की गई नक्काशी दर्शनीय है। की हस्त शिल्पकारी की दक्षता को दर्शाता है। किले में मौजूद राघवजी का प्राचीन मंदिर नगरवासियों व भक्तों के श्रद्धा का केन्द्र है। प्रत्येक उत्सव में आम जनता के लिए किले का द्वार खोल दिया जाता है।
खिलचीपुर रियासत की स्थापना और किले की नींव 1544 बसंत पंचमी के दिन रखी गई थी। उग्रसेन गागरोन के खींची वंश के महान योद्धा व राजा अचलदास खींची व प्रसिद्ध भक्तिकालीन संत प्रतापराव (पीपाजी महाराज) के वंशज थे। 1423 में हुए गागरोन के जोहर के बाद खींची राजवंश ने अपनी राजधानी महुमैदाना (बोरदा राजस्थान) में स्थापित की, जहां अचलदास के प्रथम पुत्र धीरदेव ने राज्य संभाला। वहां से सुरक्षित स्थान खिलचीपुर को राज्य में शामिल करने के बाद खींची यहां आ बसे। 1787 में दीवान दीपसिंह के शासनकाल में दीपगढ़ का निर्माण हुआ, जो सोमवार हाट बाजार के कारण वर्तमान में सोमवारिया के नाम से जाना जाता है। लगभग 707 किलोमीटर में फैली खिलचीपुर रियासत में कभी 283 गांव शामिल थे। सन् 1901 में रियासत की आबादी मात्र 31 हजार 143 थी। महल व नगर निर्माण में दीवान शेरसिंह और राव बहादुर अमरसिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रहीं। महल के बड़े भाग का निर्माण दीवान शेरसिंह , द्वारा और उनकी पत्नी द्वारा कल्याण रायजी के मंदिर का निर्माण करवाया गया, जबकि अमरसिंह द्वारा महल के भीतर अमरेशवर महादेव की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त रघुनाथजी का मंदिर, गंगा तट पर अमरनिवास, माता रातादेवी मंदिर, उकारनाथ मंदिर, शहरकोट, तोपखाना गेट के पास सरायभवन आदि का निर्माण राव बहादुर अमर सिंह के शासनकाल में हुए। विजयगढ़ कोठी (वर्तमान में तहसील भवन) श्रीनाथजी का मंदिर और नरसिंह मंदिर राव बहादुर भवानीसिंह के कार्यकाल में बने। वर्तमान में खिलचीपुर राजपरिवार यहां निवास करता है।
Thursday, September 17, 2015
Rajgarh kila
राजगढ़ किला
एक अन्य हिस्सा सहकारी बैंक की मील्कियत है
राजगढ़ का प्राचीन नाम झंझनीपुर या झंझेपुर था। जब रावत-उमट परमारों ने सन् १६४० ईसवी में भीलों को परास्त कर इसे बसाया था, तब यह एक छोटा सा गांव था।
राजा छतरसिंह के तीन पुत्र थे, मोहन सिंह, जगन्नाथ और प्रेम सिंह। छतरसिंह के बाद रावत मोहन सिंह सिंहासनारूढ़ हुए , तब वे मात्र १५ साल के थे। इसलिए राज्य का संचालन दीवान अजब सिंह के हाथों में रहा। मोहन सिंह ने १६३८ से १६९७ तक राजगद्दी संभाली। उनकी माता कुशाग्र एवं दूरदर्शी थीं। वे शाही मुगल सेना के लगातार आवागमन के कारण रतनपुर छोड़कर डूंगरपुर रहने लगीं। अजब सिंह ने झंझेपुर की पहाड़ी पर १६४५ ई़स्वी में किले और राजमहल का निर्माण करवाया। एक और किला दो मील की दूरी पाटन में बनवाया। राजमाता रावत मोहन सिंह के साथ यहां रहने लगीं। राजगढ़ किला दो हिस्सों में है। बड़ामहल और राजमहल।
बड़ामहल १६४५ में बनना शुरू हुआ जबकि राजमहल १९३१ में रावत वीरेन्द्र सिंह के समय निर्मित हुआ, जैसा कि महल के विशाल प्रवेश द्वार पर अंकित है। राजा रावत सर वीरेन्द्र सिंह को नई इमारतें बनाने तथा प्राचीन इमारतों की रक्षा करने का बहुत शौक था। उनके कार्यकाल में बनवाये हुए महल व अन्य भवन वास्तु शिल्प का उत्कृष्ट नमूना है।
२६ अक्टूबर, १९३६ को वीरेन्द्र सिंह का स्वर्गवास हो गया। १४ जनवरी, १९३७ को उनके एक वर्षीय पुत्र विक्रमादित्य सिंह राज्य उत्तराधिकारी घोषित किया गया। और शासन प्रबंध एक कौंसिल को सौंपा गया, जो पॉलिटिकल एजेंट की देखरेख में कार्यरत थी। विक्रमादित्य के वयस्क होने के साथ-साथ सारी रियासत भारतीय गणराज्य में मिल गई और राजगढ़ एक जिले के रूप में स्थापित हुआ।
राजगढ़ महल में अब मध्यप्रदेश शासन के अनेक कार्यालय हैं, लेकिन इसका राजमहल का एक हिस्सा अभी भी राज परिवार के पास है। एक अन्य हिस्सा सहकारी बैंक की मील्कियत है।
एक अन्य हिस्सा सहकारी बैंक की मील्कियत है
राजगढ़ का प्राचीन नाम झंझनीपुर या झंझेपुर था। जब रावत-उमट परमारों ने सन् १६४० ईसवी में भीलों को परास्त कर इसे बसाया था, तब यह एक छोटा सा गांव था।
राजा छतरसिंह के तीन पुत्र थे, मोहन सिंह, जगन्नाथ और प्रेम सिंह। छतरसिंह के बाद रावत मोहन सिंह सिंहासनारूढ़ हुए , तब वे मात्र १५ साल के थे। इसलिए राज्य का संचालन दीवान अजब सिंह के हाथों में रहा। मोहन सिंह ने १६३८ से १६९७ तक राजगद्दी संभाली। उनकी माता कुशाग्र एवं दूरदर्शी थीं। वे शाही मुगल सेना के लगातार आवागमन के कारण रतनपुर छोड़कर डूंगरपुर रहने लगीं। अजब सिंह ने झंझेपुर की पहाड़ी पर १६४५ ई़स्वी में किले और राजमहल का निर्माण करवाया। एक और किला दो मील की दूरी पाटन में बनवाया। राजमाता रावत मोहन सिंह के साथ यहां रहने लगीं। राजगढ़ किला दो हिस्सों में है। बड़ामहल और राजमहल।
बड़ामहल १६४५ में बनना शुरू हुआ जबकि राजमहल १९३१ में रावत वीरेन्द्र सिंह के समय निर्मित हुआ, जैसा कि महल के विशाल प्रवेश द्वार पर अंकित है। राजा रावत सर वीरेन्द्र सिंह को नई इमारतें बनाने तथा प्राचीन इमारतों की रक्षा करने का बहुत शौक था। उनके कार्यकाल में बनवाये हुए महल व अन्य भवन वास्तु शिल्प का उत्कृष्ट नमूना है।
२६ अक्टूबर, १९३६ को वीरेन्द्र सिंह का स्वर्गवास हो गया। १४ जनवरी, १९३७ को उनके एक वर्षीय पुत्र विक्रमादित्य सिंह राज्य उत्तराधिकारी घोषित किया गया। और शासन प्रबंध एक कौंसिल को सौंपा गया, जो पॉलिटिकल एजेंट की देखरेख में कार्यरत थी। विक्रमादित्य के वयस्क होने के साथ-साथ सारी रियासत भारतीय गणराज्य में मिल गई और राजगढ़ एक जिले के रूप में स्थापित हुआ।
राजगढ़ महल में अब मध्यप्रदेश शासन के अनेक कार्यालय हैं, लेकिन इसका राजमहल का एक हिस्सा अभी भी राज परिवार के पास है। एक अन्य हिस्सा सहकारी बैंक की मील्कियत है।
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