Wednesday, October 14, 2015

Birth Place of Bollywood Legend Kishore Kumar& Smarak












Kishore Kumar, is one personality who continues to be a shining icon in the world of Bollywood music.
Kishore Kumar was born in a Bengali Ganguly family in Khandwa, Central Provinces and Berar (now in Madhya Pradesh) as Abhas Kumar Ganguly.This is kishore kumar's house.bed and pooja Ghar.

Tuesday, October 6, 2015

स्वच्छता मिशन के अंतर्गत बनने थे 18 लाख शौचालय, बने मात्र 2 लाख


स्वच्छता मिशन के अंतर्गत बनने थे 18 लाख शौचालय, बने मात्र 2 लाख
 गायब व अधूरे शौचालय भी लक्ष्य हासिल में बड़ी बाधा
रूबी सरकार
 स्वच्छता के अधिकार पर दक्षिण एशियाई अभियान के अनुसार भारत के संदर्भ में सबसे कड़वी सचाई यह है, कि एक ओर इसकी पहचान उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में है और यह दुनिया के 10 आर्थिक शक्तियों में अपनी जगह बना चुका है, पर दूसरी ओर मानव विकास सूचकांक में यह 134 पायदान पर जा पहुंचा है। यह स्थिति इस बात को दर्शाता है कि भारत में अभी भी मानव विकास को लेकर युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है, जिससे कि सही मायने में यह विकसित राष्ट्र बन सके।
भारत में 62 करोड़ से अधिक लोग (राष्ट्रीय औसत 49.2 फीसदी) खुले में शौच करते हैं, जिसकी वजह से इसे विश्व का खुले में शौच करने की राजधानी की संज्ञा दी जाती है। खुले में शौच करने वाले देशों में यह संख्या भारत के बाद के 18 देशों की संयुक्त संख्या के बराबर है। दक्षिण एशियाई देशों में 69.2 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं, जिसमें से भारत के लगभग 90 फीसदी हैं। इसी तरह विश्व में एक अरब 10 लाख लोग खुले में शौच करते हैं, जिसमें से भारत के लगभग 59 फीसदी हैं। भारत की लगभग आधी आबादी के घरों में शौचालय नहीं है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में यह स्थिति ज्यादा बदतर है। देश में अनुसूचित जाति के 77 फीसदी घरों में एवं अनुसूचित जनजाति के लगभग 84 फीसदी घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है। भारत के विभिन्न राज्यों की स्थिति देखें, तो झारखंड में 77 फीसदी , उड़ीसा में 76.6 फीसदी और बिहार में 75.8 फीसदी घरों में शौचालय नहीं है। ये तीनों राज्य देश के गरीब राज्यों में शुमार है एवं जनगणना 2011 के अनुसार यहां की बड़ी आबादी 50 रुपए प्रतिदिन की आय से भी कम में जीवनयापन करती है।
जनगणना 2011 के अनुसार मध्यप्रदेश के 86.42 फीसदी ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है एवं प्रदेश की कुल 69.99 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है।
इसी तरह    भारत के 6 लाख गांवों में से सिर्फ 25 हजार गांव ही खुले में शौच की प्रथा से मुक्त हो पाए हैं। जनगणना 2011 के अनुसार मध्यप्रदेश में 13.6 फीसदी ग्रामीण आबादी, राजस्थान में 20 फीसदी ग्रामीण, बिहार में 18.6 फीसदी ग्रामीण आबादी एवं उत्तरप्रदेश में 22 फीसदी ग्रामीण आबादी ही शौचालय का उपयोग करती है। इस संदर्भ में कई राज्यों के आंकड़ें उपलब्ध नहीं है, जिसमें महाराष्ट्र भी शामिल है।
स्वच्छता एवं सफाई का अर्थशास्त्र
    स्वच्छता का अभाव भारत की एक बड़ी समस्या है। विश्व बैंक के पानी एवं स्वच्छता कार्यक्रम पर फरवरी 2011 में जारी रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छता के अभाव से स्वास्थ्य लागत में बढ़ोतरी होती है, उत्पादकता गिर जाती है और अपर्याप्त स्वच्छता एवं घटिया सफाई के कारण पर्यटन राजस्व भी घट जाता है। इससे भारत को प्रति साल लगभग 29 हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है, जो  2006 के भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 फीसदी से भी ज्यादा है।
    पानी एवं स्वच्छता पर भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का महज 0.2 फीसदी ही खर्च करता है, जबकि पाकिस्तान 0.4 फीसदी, बंगलादेश 0.4 फीसदी एवं नेपाल 0.8 फीसदी खर्च करते हैं।

शुष्क शौचालय एवं मैला ढोने की कुप्रथा
    जनगणना 2011 के अनुसार यह बात स्थापित होती है कि भारत में मैला ढोने की अमानवीय कुप्रथा अभी भी जारी है। जनगणना के आंकड़ें के अनुसार देश में अभी भी 7 लाख, 94 हजार,390 शुष्क शौचालय हैं, जहां से शौच की सफाई हाथों से की जाती है। इस अमानवीय काम में पारपंरिक रूप से महिलाएं लगी हुई हैं। 73 फीसदी ग्रामीण इलाकों में एवं 27 फीसदी शहरी इलाकों में यह अति अमानवीय कुप्रथा चल रही है। इसके अलावा 13लाख, 14 हजार, 652 ऐसे शौचालय हैं, जहां से मानव मल को खुले में बहाया जाता है। कुल मिलाकर देश में 26 लाख देश में 26 लाख शुष्क शौचालय हैं, जहां मैला ढोने की कुप्रथा जारी है।

बच्चे
    भारत में प्रतिदिन लगभग एक हजार बच्चे दस्त से मर जाते हैं, जो  एक विश्व रिकॉर्ड है। ये वो बच्चे हैं, जिन्हें बचाया जा सकता है।
    दूषित जल, अपर्याप्त स्वच्छता एवं सफाई के अभाव में 14 साल तक के बच्चों में से 20 फीसदी से अधिक या तो मर जाते हैं या फिर वे जलजनित बीमारियों के साथ जीने को मजबूर होते हैं।
ऽ    जनगणना 2011 के अनुसार शालाओं में शौचालय बना दिए जाने की उत्साहवद्र्धक बढ़ोतरी (84 फीसदी) के बावजूद उसके उपयोग, रखरखाव एवं संचालन में भारी समस्या बनी हुई है, जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयीन बच्चे खुले में शौच करने को मजबूर हैं।

महिलाएं
    अपर्याप्त सफाई के कारण महिलाएं प्रजनन अंगों में संक्रमण हो जाने की समस्या से ग्रस्त रहती हैं। इसके अलावा सांस्कृतिक एवं सामाजिक वर्जनाओं के कारण महिलाओं का खुले में मल-मूत्र त्याग करना मुश्किल होता है, जिसकी वजह से वे दिन में शौच के लिए बाहर नहीं जा सकती हैं। शौचालय के अभाव में अल सुबह या देर शाम के समय लाखों महिलाएं खुले में शौच जाने के लिए मजबूर रहती हैं।
पुरुषों की नजर से बचकर शौच करने के लिए महिलाएं एकांत में शौच करने के लिए जाती हैं। ऐसी स्थिति में छेड़छाड़ या बलात्कार जैसी घटनाएं होने का खतरा बढ़ जाता है।
अपने यौवन में महिलाएं एवं लड़कियां लगभग 3 हजार दिन रजस्वला (मासिक धर्म) रहती हैं, जो कि उनके जीवन के लगभग 10 साल होता है। हाल के अध्ययन के अनुसार लगभग 35.5 करोड़ महिलाएं माहवारी से गुजरती हैं। इस तरह से उन्हें अपनी माहवारी के दिनों में रजोनिवृत्ति की उम्र तक लगभग 7 हजार सेनेटरी पैड की जरूरत होती है।
सिर्फ 12 फीसदी महिलाओं एवं लड़कियों को ही सेनेटरी नैपकिन तक पहुंच है, जो  उसका इस्तेमाल कर पाती हैं। यद्यपि इसके बावजूद शालाओं में, महाविद्यालयों में या फिर सामुदायिक शौचालयों में सैनेटरी नैपकिन के सुरक्षित निष्पादन की व्यवस्था नहीं है।
20 करोड़ महिलाओं एवं लड़कियों को माहवारी के समय की साफ-सफाई के बारे में अच्छी समझ नहीं है एवं वे उसे अपने स्वास्थ्य के साथ जोड़कर नहीं देख पाती।
रजस्वला की उम्र में पहुंच जाने के बाद 23 फीसदी भारतीय बालिकाएं शाला त्याग देती हैं।

विकलांग एवं बुजुर्ग
देश में लगभग 7 करोड़ लोग विकलांग हैं। 20 से 30 फीसदी लोग पर्यावरणीय रूप से चुनौतिपूर्ण स्थिति में.हैं। इनमें से कुछ अस्थाई रूप से विकलांग एवं बुजुर्ग भी हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2020 में 7 करोड़ लोग विकलांग होंगे एवं 17.7 करोड़ लोग बुजुर्ग होंगे और इनमें से बड़ी संख्या में लोग बहुविकलांगता की स्थिति में होंगे।
शारीरिक अक्षमता के कारण विकलांग व्यक्ति को स्वच्छता के लिए उपलब्ध सामान्य मूलभूत सुविधाओं का उपयोग कर पाना संभव नहीं हो पाता एवं वे खुले में शौच जाने में भी असमर्थ होते हैं।
यह साबित तथ्य है कि भारत में कोई ऐसा सार्वजनिक शौचालय नहीं है, जो विकलांग व्यक्तियों के उपयोग के लिए उपयुक्त हो। यहां तक कि शालाओं में भी इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है। विकलांगों के लिए उपयुक्त शौचालय के लिए केंद्र या राज्यों की किसी भी नीति में कोई मानक तय नहीं किया गया है।

सफ ाई
पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अनुसार सिर्फ 53 फीसदी भारतीय ही शौच के बाद साबुन से हाथ धोते हैं, सिर्फ 38 फीसदी खाने से पहले साबुन से हाथ धोते हैं एवं सिर्फ 30 फीसदी ही खाना बनाने से पहले साबुन से हाथ धोते हैं। (यूनीसेफ)
सिर्फ 11 फीसदी ग्रामीण भारतीय परिवार अपने बच्चे के मल का सुरक्षित निष्पादन करते हैं। 80 फीसदी परिवार इसे या तो खुले में फेंक देते हैं या फिर कचरे में फेंकते हैं। (यूनीसेफ)
साबुन से हाथ धोने से, खासतौर से मल के संपर्क में आने के बाद, डायरिया एवं अन्य जल जनित बीमारियों को 40 फीसदी कम किया जा सकता है एवं श्वास संबंधी संक्रमण में 30 फीसदी की कमी लाई जा सकती है। (यूनीसेफ)
यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छता, सफाई एवं सुरक्षित पेयजल का राष्ट्रीय औसत 34 फीसदी है, इसमें शहरी आबादी 58 फीसदी है एवं ग्रामीण आबादी मात्र 23 फीसदी है।


(संदर्भ: स्वच्छता के अधिकार पर दक्षिण एशियाई अभियान, नई दिल्ली का फोल्डर।)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना है, कि महात्मा गांधी की 150वीं जन्म वर्ष गांठ अर्थात 2 अक्टूबर 2019 तक देश सम्पूर्ण स्वच्छता को प्राप्त करें। इसके लिए उन्होंने विगत 2 अक्टूबर 2014 को  स्वच्छ भारत मिशन अभियान की शुरुआत की थी, जिसका कार्य ग्रामीणों ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों के जरिये स्वच्छता के स्तरों का उन्नत बनाना तथा ग्राम पंचायतों को खुले में शौच प्रथा से मुक्त, स्वच्छ एवं साफ  सुथरा बनाना है।
 इसी परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश में इसके कार्यान्वयन को लेकर विगत एक वर्षो के अनुभव पर कुछ महत्वपूर्ण चिंताएं उभर कर आयी है। निश्चित ही  शौचालय की आवश्यकता प्रत्येक समुदाय और परिवार को है और खुले में शौच की प्रथा से मुक्ति के लिए व्यवहार परिवर्तन तथा शौचालय का होना जरूरी है । लेकिन इसके प्रभावी ढंग से क्रियन्वयन के लिए संस्थागत, निगरानी, मानव संसाधन और प्रक्रियाओं के अतंर्गत कुछ और भी कार्य करने की जरूरत है। मसलन - वर्तमान में शौचालय निर्माण की जो प्रगति है, वह काफी धीमी है, इस वित्तिय वर्ष में 18 लाख, 17 हजार 114 (अठारह लाख सत्रह हजार एक सौ चौदह) शौचालय निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, किंतु 6 माह के आंकलन के  बाद पाया गया , कि मात्र 2 लाख, 24 हजार, 92 (दो लाख चौबीस हजार बानबे) ही शौचालय का निर्माण हो पाया, जो मात्र 12.33 फीसदी है।  2012 में किये गये बेस लाइन सर्वे के मुताबिक प्रदेश में 90 लाख, 39 हजार, 497 (नब्बे लाख उनतालीस हजार चार सौ सत्तानबे) परिवारों के पास शौचालय नही थे। इसके बाद 13 लाख, 16 हजार, 714 (तेरह लाख सोलह हजार सात सौ चौदह) ही बन सके हैं। इस प्रकार यदि देखा जाये, तो जिस गति से प्रदेश में शौचालय निर्माण किये जा रहे है,  2019 तक प्रत्येक घरों में शौचालय उपलब्धता की बात बेमानी होगी।
दूसरी बात स्वच्छता और पानी एक दूसरे के पर्याय है। इसलिए शौचालय के उपयोग के लिए पानी उपलब्ध होना आवश्यक है। जहां भी शौचालय का निर्माण किया जा रहा है, वहां पर पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है, अन्यथा शौचालय का केवल ढांचा ही उपलब्ध हो सकेगा और बाद में परिवार उसका उपयोग अन्य प्रायोजन के लिए करना शुरू कर देंगे। इसके अलावा ख्ुाले में शौच करने की प्रथा से मुक्ति के लिए  पहली प्राथमिकता व्यवहार परिवर्तन को देना होगा। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत राज्य में मिशन के व्यापक प्रचार -प्रसार के लिए जिन संचार, शिक्षा और संवाद की सामग्रियों जैसे- होर्डिग्स, पम्पलेट या अन्य सामग्री का प्रकाशन केन्द्रीयकृत रूप में किया जाता है, जिससे इस प्रकार के प्रचार प्रसार की सामग्री में स्थानीय भाषा और संदेश शामिल नहीं हो पाते हैं। पूर्व में बनाये गये शौचालय, जो जर्जर स्थिति में हैं या जहां शौचालय बनाया ही नहीं गया और ग्रामीणों का नाम बतौर हितग्राहियों के रूप में जोड़ दिया गया है,  वहां शौचालय निर्माण को लेकर स्वच्छ भारत मिशन के दिशा निर्देश में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है, जबकि पूर्व में इस तरह के निर्माण कार्यो में की गई लापरवाही के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे भी हितग्राही मिल जाते हैं, जिनके घरों में शौचालय होना बताया जाता है , जबकि उन घरों में शौचालय है ही नहीं।  इसलिए गुम  शौचालयों  अत्यधिक गरीब परिवारों में ध्वस्त हो गये शौचालयों के स्थान पर नये शौचालय के निर्माण कार्य को भी इस मिशन के अंतर्गत जोडऩा होगा।
उमरिया जिले के चंदनिया गांव में शौचालय निर्माण का जो  डाटा वेबसाइट पर दर्शाया गया है , उसके अनुसार 22 घरों में शौचालय निर्माण हुआ है, जबकि वास्तविकता यह है कि  77 घरों में शौचालय का निर्माण तो किया गया है, ंिकतु सभी शौचालय अपूर्ण हैं, लिच पिट नहीं बनाये गये है, इस आधार पर वहां के पूर्व सरंपच व सचिव के उपर आपराधिक प्रकरण दर्ज किये गये हैं।
जलाधिकार अभियान के रनसिंह परमार के अनुसार     स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय निर्माण में जिन तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है, उससे और भी गंभीर समस्यायें उभरने वाली है। मुरैना जिले में दो लिच पिट की जगह पर कई गावों में सेप्टिक टेंक बनाया जा रहा है, जिससे आने वाले दिनों पुन: मैला ढोने जैसी अमानवाीय प्रथा को प्रोत्साहन मिलेगा। इसलिए निर्माण कार्य में उपयोग की जाने वाली तकनीकी पर व्यापक रूप से स्थानीय स्तर पर राजमिस्त्रियों का क्षमता वद्र्धन किये जाने की आवश्यकता है।
    स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति और कार्यांवयन में ग्राम, पंचायत, विकास खण्ड, जिला और राज्य स्तर पर स्वयं सेवी संस्थाओं, बुद्विजीवियों अथवा  तीसरे वर्ग की भूमिका को प्रभावी करने की भी जरूरत है क्योंकि सरकार के पास मिशन के कार्यान्वयन में मानव संसाधन के पर्याप्त उपलब्धता नहीं है, इसलिए समर्पित रूप से काम करने वाले लोगों, निजी संस्थाओं की पहचान कर उनको इसमें शामिल करना होगा। मिशन के अंतर्गत निर्माण कार्य के ठेकेदारों को भुगतान की बात करें, भुगतान में पंचायत की भूमिका को गौण कर दिया गया है, जबकि इस मिशन के कार्यान्वयन में सबसे महत्वपूर्ण इकाई पंचायत ही है । इसलिए पंचायत को इस कार्य के लिए व्यापक अधिकार दिये जाने की आवश्यकता है। साथ ही पंचायत के अंतर्गत ग्राम सभाओं  द्वारा शौचालय निर्माण की मांग और प्रस्ताव को प्राथमिकता देकर  मिशन द्वारा कोटे के अंतर्गत शौचालय निर्माण के आबंटन पर रोक लगाया जाना चाहिए।
    व्यक्तिगत रूप से स्वच्छता को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी है कि संस्थागत शौचालयों को भी प्रोत्साहित किया जाये । सार्वजनिक स्थलों और शासकीय भवनों में स्वच्छ और सुरक्षित सामुदायिक शौचालयों की व्यवस्था हो। स्कूल में नौनिहालों को स्वच्छता व्यवहार के प्रोत्साहन तथा बाल अधिकार सरंक्षण कानून के अनुपालन के लिए शौचालयों और उसका उपयोग होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। सरकारी दावे में प्रदेश के सभी स्कूलों में शौचालय तथा विशेषकर बालिकाओं के लिए पृथक शौचालय की उपलब्धता का दावा तो किया जा रहा है, किंतु स्थिति इसके बिल्कुल भिन्न है। पूरे प्रदेश में अभियान के माध्यम से स्कूलों में शौचालय तथा इसके उपयोग का भौतिक सत्यापन कराया जाना चाहिए और ध्वस्त पडे अथवा अनुपयोगी शौचालयों का मरम्मत कर उसका उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
इसी सिलसिले में श्योपुर जिले के  कराहल विकास खण्ड के परिणाम बहुत ही चौकाने वाला है। यहां  264 विद्यालयों (प्राथमिक, माध्यमिक, छात्रावास तथा हाईस्कूल) में से 83 विद्यालयों (31 फीसदी) में पृथक तथा 136 विद्यालयों (51 फीसदी) में एकल शौचालय तथा 45 विद्यालय (17 फीसदी) शौचालय विहीन है। जो प्रधानमंत्री के इस बात को झुठलाते है, कि सभी विद्यालयों में बालिकाओं के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था कर दी गई है।  जिन विद्यालयों में शौचालय उपलब्ध होना बताया जा रहा है उसमें मात्र 77 विद्यालयों के शौचालय उपयोगी हैं शेष 173 विद्यालयों के शौचालय अनुपयोगी है। 77 विद्यालयों में जहां शौचालय उपयोगी हैं , वहां पर 31 विद्यालयों में पानी की सुविधा नहीं है। जबकि सरकारी आंकडों के अनुसार विद्यालयों में स्वच्छता कवरेज 103 फीसदी  है। ग्राम पंचायतों में  सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक जो मुख्य प्रेरणा के केन्द्र है, यहां भी शौचालय नहीं है यदि है भी तो उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। लगभग 80 फीसदी पंचायत प्रतिनिधियों के पास शौचालय नहीं है।