विश्व •ी सबसे बड़ी औद्योगि• त्रासदी •ी 31वीं बरसी
प्रदूषित भू-जल से तीसरी पीढ़ी •े ढाई हजार बच्चे जन्मजात वि•ृत
रूबी सर•ार
23 दिसम्बर 1984 •ी रात •ो भोपाल स्थित यूनियन •ार्बाइड इंडिया लिमिटेड •ी •ीटनाश• •ारखाने •ी टं•ी से रिसी 40 टन मिथाइल आयसोसायनेट (एमआईसी) गैस (जो ए• गम्भीर रूप से घात• ज़हरीली गैस है) •े •ारण ए• भयावह हादसा हुआ। •ारखाने •े प्रबंधन •ी लापरवाही और सुरक्षा •े उपायों •े प्रति गैर.जि़म्मेदाराना रवैये •े •ारण एमआईसी •ी ए• टं•ी में पानी और दूसरी अशुद्धियां घुस गईं जिन•े साथ एमआईसी •ी प्रचंड प्रति•्रिया हुई और एमण्आईण्सीण् तथा दूसरी गैसें वातावरण में रिस गईं। ये जहरीली गैसें हवा से भारी थीं और भोपाल शहर •े •रीब 40 •िमी इला•े में फैली 56 वार्डों में (सर•ार •े मुताबि• 36 वार्डों)छा गईं। इन•े असर से (•ई सालों में) 20 हजार से ज़्यादा लोग मारे गए और लगभग साढ़े 5 लाख लोगों पर अलग-अलग स्तर •े असर हुए। उस समय भोपाल •ी आबादी लगभग 9 लाख थी। यूनियन •ार्बाइड •ारखाने •े आस-पास •े इला•े में पेड़.पौधों और पशु-पक्षियों पर हुआ असर भी उतना ही गम्भीर था। यूनियन •ार्बाइड इंडिया लिमिटेड उस समय यूनियन •ार्बाइड •ॉरपोरेशन •े नियंत्रण में था, जो अमरी•ा •ी ए• बहुराष्ट्रीय •म्पनी है औऱ अब डाओ •ेमि•ल •म्पनीए (यूएसए) •े अधीन है।
हादसे •े 3 दश• बाद भी न तो राज्य सर•ार ने और न ही •ेन्द्र सर•ार ने इस•े नतीजों और प्रभावों •ा •ोई समग्र आ•लन •रने •ी •ोशिश •ी है, न ही उस•े लिए •ोई उपचारात्म• •दम उठाए हैं। 14-15 फरवरी 1989 •ो •ेन्द्र सर•ार और •म्पनी •े बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था और उस•े तहत मिली र•म •ा हरे• गैस प्रभावित •ो पांचवें हिस्से से भी •म मिल पाया है। नतीजतन गैस प्रभावितों •ो स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास, मुआवज़ा, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और न्याय सभी •े लिए लगातार लड़ाई लडऩी पड़ी है। साल 2015 में गैस प्रभावितों •े सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहुत •म प्रगति होना गम्भीर चिन्ता •ा विषय रहा है।
अगर पीडि़तों •े स्वास्थ्य, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति, मुआवजा और मु•दमों •ी स्थिति •ो देखें, तो हालिया स्थिति •ुछ इस तरह है:
स्वास्थ्य: गैस प्रभावितों •ी स्वास्थ्य ज़रूरतों •े प्रति राज्य और •ेन्द्र सर•ार •ा •ी लापरवाही पहले •ी तरह ही चिन्ताजन• बनी हुई है। प्रभावितों •े ह• में लड़ रही संगठनों •े दबाव •े •ारण स्वास्थ्य सुविधाओं •े नाम पर •ई इमारतों और बड़ी संख्या •ी बिस्तरों वाले अस्पताल तो खोल दिए गए हैं, परन्तु जांच, निदान, शोध और जान•ारी मेनटेन •रने जैसे मामलों में स्वास्थ्य सुविधाओं •ी गुणवत्ता बहुत ही खराब है। भोपाल •े गैस पीडि़तों •ी स्वास्थ्य स्थिति •ी निगरानी में आईसीएमआर (इण्डियन •ौंसिल ऑफ मेडि•ल रिसर्च)और मध्यप्रदेश सर•ार •ी हद दर्जे •ी उदासीनता चौं•ा देने वाली है। ये अस्पतालों और क्लिनि• •े मेडि•ल रि•ॉर्ड •ो मेनटेन •रने और गैस प्रभावितों •ी मेडि•ल जान•ारी •ो •म्प्यूटरी•ृत •रने में और प्रत्ये• गैस प्रभावित •ो उस•ी मेडि•ल रि•ॉर्ड वाली पुस्ति•ा देने में भी असफल रहे हैं। 31 साल बाद भी गैस से संबंधित शि•ायतों •े इलाज •ा •ोई निश्चित तरी•ा नहीं खोजा गया है। महज़ लक्षण.आधारित इलाज, निगरानी और जान•ारी •ी •मी •े •ारण ज़रूरत से ज़्यादा दवाएं दिए जाने और गलत या न•ली दवाओं •े •ारण प्रभावितों में •िडनी फेल होने •ी घटनाएं बहुत बढ़ गई हैं। आईसीएमआर ने भोपाल सम्बंधी मेडि•ल जांच •ो 1994 में बंद •र दिया था, जिसे उसे 2010 में फिर से शुरू •रना पड़ा। परन्तु इसमें ज़रूरी गहराई और •ड़ाई •ा पालन अब भी नहीं हो रहा है। तथ्य यह है •ि न तो आईसीएमआर •ो और न ही राज्य सर•ार •ो यह मालूम है, •ि सांस •ी, आँखों •ी, पेट और आंत •ी, तंत्रि•ा-तंत्र •ी, मनोचि•ित्स•ीय व अन्य समस्याओं में से •िस विभाग •े •ितने मरीज़ हैं। उतनी ही चौं•ाने वाली बात यह है •ि 31 साल बाद भी इलाज •े लिए आने वाले अधि•तर गैस प्रभावितों •ो अस्थाई क्षति •े दर्जे में रखा जाता है । जिससे उन्हें स्थाई क्षति •े लिए मुआवज़ा न देना पड़े।
भारत सर•ार और राज्य सर•ार •ी इस असंवेदनशीलता •े चलते भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन, भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉरमेशन एंड एक्शन और बीजीपीएसएसएस ने आवेद• •्रमां• 1, 2 व 3 •े रूप में उच्चतम न्यायालय में 14 जनवरी,1998 •ो ए• याचि•ा (1998 •ा •्रमां• 50) दर्ज •िया। आवेद•ों ने हादसे से संबंधित मेडि•ल शोध •ो दोबारा शुरू •रने, प्रत्ये• गैस पीडि़त •े स्वास्थ्य •ी स्थिति •ा रि•ॉर्ड रखने और उस•ी निगरानी •रने, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार लाने, हादसे से संबंधित हर त•लीफ •े लिए उपयुक्त व्यवस्था •िए जाने आदि •े लिए गुहार लगाई। 14 साल •ी सुनवाई और •ई अंतरिम आदेशों •े बाद उच्चतम न्यायालय ने आखिर 9 अगस्त, 2012 •ो समुचित आदेश पारित •िया, जिसमें इस याचि•ा •ी सभी बातें मानते हुए भारत सर•ार, राज्य सर•ार और संबंधित संस्थानों •ो इस संबंध में ज़रूरी निर्देश भी जारी •िए। आगे आवेद•ों से मामले •ो मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय •े समक्ष ले जाने •ो •हा गया । (2012 •ा याचि•ा •्रमां• 15658) जिसमें भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने स•्रियता से आगे बढ़ाया है। संगठन •े अब्दुल जब्बार बताते हैं, •ि 'हाल यह है, •ि उच्चतम न्यायलय द्वारा 9अगस्त, 2012 •ो आदेश पारित •रने •े 39 माह बाद भी भारत सर•ार और राज्य सर•ार ने •ोर्ट •े आदेशों •े समुचित पालन •े लिए ज़रूरी •दम नहींं उठाए हैं। शर्मना• बात यह है •ि हादसे •े 31 साल बाद भी पीडिय़ों •े सही मेडि•ल रि•ॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। दावे तो इससे उलट •िए जा रहे हैं, परंतु ह•ी•त यह है, •ि गैस पीडि़तों •े पास उन•े समूचे मेडि•ल •ेस •ा •ोई भौति• रि•ॉर्ड ही नहीं हैÓ।
प्रतिवादी द्वारा उच्चतम न्यायलय •े 9 अगस्त, 2012 •े उपरोक्त आदेश •ा पालन नहीं •िए जाने •े •ारण भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने मजबूर हो•र 15 मई, 2015 •ो •ेंद्र , मध्यप्रदेश राज्य और अन्य संस्थानों जैसे आईसीएमआर, एनआईआईएच व बीएमएचआरसी •े खिलाफ अवमानना याचि•ा (2015 •ा •्रमां• 832) दायर •िया। अवमानना याचि•ा स्वी•ार •रते हुए उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी •ो नोटिस जारी •िए। इसी बीच प्रमुख सचिव, मध्यप्रदेश सर•ार और सचिव, भोपाल गैस •ांड राहत और पुनर्वास विभाग, जो प्रतिवादी •्रमां• 3 व 4 हैं , ने इस अवमानना याचि•ा पर अपने जवाब 16 सितम्बर, 2015 •ो दाखिल •िए। अत: •ोर्ट ने भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति •ो इस पर अपने प्रत्युत्तर दाखिल •रने •ो •हा। चूँ•ि प्रतिवादी •े जवाब अधि•तर झूठे और भ्रमित •रने वाले थे, इसलिए भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने अपने प्रत्युत्तर •े साथ ही ए• आवेदन लगा•र न्यायालय से अपील •ी, •ि वह संविधान •ी धारा 266 •े तहत प्रतिवादी •्रमां• 3 और 4 पर भारतीय दंड संहिता •ी धारा 191 और 193 •े आधार पर न्यायालय •ो गुमराह •रने •े लिए सूओ मोटो •ार्यवाही •रे।
वर्ष 2008 •ो ए• चौं•ाने वाली और शर्मना• घटना सामने आई •ि 2004 से 2008 •े बीच बीएमएचआरसी में गैस पीडि़तों पर बिना जान•ारी •े दवाओं •े प्रयोग •िए गए। मामला सामने आने •े बाद से बीएमएचआरसी प्राधि•रण गुनहगारों •ो बचाने •ी हर सम्भव •ोशिश में लगी हुई है। भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने न्यायालय से मांग •ी है •ि गैस पीडि़तों •ा इस तरह प्रयोग •े चूहों •ी तरह इस्तेमाल •रने •ी इस घटना •ी बारी•ी से जांच •ी जाए और दोषियों •ो •ड़ी से •ड़ी सज़ा दी जाए। इस मामले •ो आगे ले जाने •े लिए भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति 2012 •े याचि•ा •्रमां• 33 में भागीदार बना हैं , जो देश में बिना •िसी निगरानी •े दवा प्रयोगों खास•र बहुराष्ट्रीय •म्पनियों द्वारा •े विरोध में दर्ज •ी गई थी और जो उच्चतम न्यायालय •े समक्ष विचाराधीन है।
मुआवज़ा: 14.15 फरवरी 1989 •े 21 साल बाद भारतीय गणराज्य ने उच्चतम न्यायालय •े समक्ष ए• उपचारात्म• याचि•ा 2010 में दायर •र•े समझौते •ी शर्तों पर सवाल उठाया और यह •हा, •ि समझौता मृत और प्रभावितों •ी बहुत •म आं•ी गई संख्याओँ पर आधारित थी। भारतीय गणराज्य ने मुआवज़ो में अतिरिक्त 7728 •रोड़ रुपए •ी बढ़ोतरी •ी मांग •ी है। जब•ि 1989 •ी समझौता राशि मात्र 705 •रोड़ रुपए •ी थी। याचि•ा स्वी•ृत हो गई है पर सुनवाई शुरू नहीं हुई है। भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति सैद्धांति• स्तर पर •ुल प्रभावित संख्या (मृत और बीमार मिला•र 5 लाख ,73हजार ,586 प्रभावित) और मुआवज़ा बढ़ाने •े तरी•ों (यानी यह •ि समझौता राशि उस समय •े डॉलर-रुपया •ी दर पर आधारित होना चाहिए) से सहमत हैं। परन्तु भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति •ा मृत•ों •ी संख्या (उपचारात्म• पेटिशन •े अनुसार मात्र 5295), गंभीर रूप से बीमारों •ी संख्या (उपचारात्म• पेटिशन •े अनुसार मात्र 4944) और राहत और पुनर्वास तथा पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति •े लिए बहुत •म मंागों पर भारतीय गणराज्य से घोर असहमति है। मृत•ों •ी संख्या ;20 हजार से ऊपर और गम्भीर रूप से बीमार प्रभावितों •ी संख्या ए• लाख 50 हजार से अधि• •े बारे में उच्चतम न्यायालय •े समक्ष लम्बित विशेष अव•ाश याचि•ा •्रमां• एसपीएल (सी) नं. 12893 दिनां• 2010 में पहले ही बताया जा चु•ा है। इस•ी सुनवाई पेटिशन •े पूरे हो जाने •े बाद ही शुरू होगी। 24 अक्टूबर, 2015 •ो भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने भारतीय गणराज्य •े उपचारात्म• आवेदन •े माध्यम से उसमें मौजूद गड़बडिय़ों •ी ओर ध्यान दिलाया है और उपयुक्त राहत •ी माँग •ी है। गौरतलब है •ि भारतीय गणराज्य ने आईसीएमआर •े प्रासंगि• रपटों •ो दावा अदालतों •े समक्ष पेश •रने •ी •ोई •ोशिश ही नहीं •ी, जिससे वह भोपाल गैस पीडि़त बीमारों •ो हुए नु•सान •े प्र•ारों और गम्भीरता •ा अन्दाज़ा लगा पाते। स्वास्थ्य पुस्ति•ा •े अभाव में जो आईसीएमआर और राज्य सर•ार लोगों •ो मुहैया •राने में असफल रही है , उपरोक्त परिस्थिति.जनित साक्ष्य प्रभावितों •ो हुए नु•सान •ी गम्भीरता •ा पता लगाने में बहुत मददगार हो स•ती थी। संगठनों •ो उम्मीद है •ि उच्चतम न्यायालय •े पास पिछले 5 साल से लम्बित इस उपचारात्म• आवेदन प्रत्ये• गैस प्रभावित •ो स्वास्थ्य पुस्ति•ा दिए जाने •े बाद, जल्द से जल्द निपटारा •िया जाएगा।
फौजदारी मु•दमा: आरोपियों •े खिलाफ फौजदारी मु•दमा दो स्तरों पर चल रहे हैं। पहला तीन भगोड़े आरोपियों •े खिलाफ और दूसरा उन 8 आऱोपियों •े खिलाफ , जो भोपाल •े मुख्य न्यायि• मजिस्ट्रेट (सीजेएम) •े समक्ष हाजिऱ हुए थे। दि. 7 जून, 2010 •े आदेश और फैसले •े तहत सीजेएम ने इन आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता •ी धारा 304.एए 336ए 337 व 338 •े तहत •ार्यवाही •ी। सीबीआई मध्यप्रदेश राज्य सर•ार एवं भोपाल गैस पीडि़त संगठनों ने भोपाल •े सत्र न्यायालय में उक्त फैसले •े विरोध में फौजदारी संशोधन याचि•ा लगाया है। अभियोजन पक्ष •े आवेदन •ो पूरी तरह नजऱअन्दाज़ •र•े और आरोपियों •े मुद्दों •ो पूरी तरह से मान्यता देते हुए 28 अगस्त, 2012 •ो सत्र न्यायालय ने सीबीआई •े फौजदारी संशोधन याचि•ा •्रमां• 2012 •ा 632 •ो यह •हते हुए खारिज •र दिया था, •ि वह वहनीय नहीं है और उन•ा पहले •ा फैसला •िसी सीमा से बंधा हुआ नहीं है । सीबीआई ने सीजेएम •े समक्ष पहले से ही मौजूद सबूतों •े आधार पर मुख्य आरोपी •ेशुब महिन्द्रा और 7 अन्य आरोपियों •े खिलाफ धाराओं •ो भारतीय दंड संहिता •ी धारा 304.ए से बढ़ा•र 304 भाग 2 •रने •ी अपील •ी थी। इस तरह उपचारात्म• आवेदन •े मामले में उच्चतम न्यायालय •े 11 मई, 2011 •े आदेश से मिलने वाली उम्मीद •ी •िरण फिर धुंधली हो गई है। उपरोक्त आदेश में उच्चतम न्यायालय ने •हा था, •ि फौजदारी अपील •्रमां• 2010 •ा 39-42 •े मामले में उस•े 13 सितम्बर,1996 •े आदेश •ी गलत व्याख्या •ो अपील या रिविजऩ अदालत द्वारा सुधारा जा स•ता है । इसी तरह मध्यप्रदेश राज्य और भोपाल गैस पीडि़त संगठनों द्वारा लगाई गई अन्य संशोधन पेटीशन •े बारे में हमारी उम्मीदों पर भी तब पानी फिर गया, जब सत्र न्यायालय ने उन्हें तीन साल त• लट•ा•र रखने •े बाद सिरे से खारिज •र दिया। भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन व भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने न्याय प्र•्रिया •ी बेहद धीमी चाल •ा पहले ही विरोध दर्ज •रते हुए विशेष न्यायालय •ी मांग •ी थी, जिस पर राज्य सर•ार ने •ोई •ार्यवाही नहीं •ी है। सीबीआई भी इन मामलों •ो गति देने में •ोई रुचि नहीं लेता है।
हालिया स्थिति •े बारे में भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन •े अब्दुल जब्बार •हते हैं, •ि जिन्होंने 14-15 फरवरी 1989 •े अन्यायपूर्ण समझौते •े खिलाफ अपील और रिट याचि•ा लगा•र 1991 में आरोपियों •े खिलाफ फौजदारी मामले फिर शुरू •रवाए, वे ही सत्र न्यायालय में भारतीय आरोपियों •े खिलाफ जारी फौजदारी मामले से बाहर •र दिए गए हैं। सज़ा •े नाम पर अभी त• 7 आरोपी (•्रमां• 2 से 9) •ेवल 1984 में 10 से 14 दिन •ा •ारावास ही भुगते हैं और आरोपी •्रमां• 4 तो इतना भी नहीं। ऐसी स्थिति में आरोपी अपने जीवन•ाल में फिर •ोई सज़ा न भुगतने •े बारे में निश्चिंत हैं, जब•ि जि़न्दा और मरे हुए प्रभावितों •े रिश्ते-नातेदारों •ो 31 सालों से भुगत रहे बीमारी और हानियों •े एवज़ में अपने जीवन•ाल में न्याय पाने •ी हल्•ी सी उम्मीद भी नहीं दिखाई देती है। यह सच्चाई हमारी न्यायि• प्र•्रिया •े बारे में बहुत •ुछ •हती है जो चुन-चुन•र न्याय देती है।
भोपाल •े सीजेएम •े समक्ष 3 भगोड़े आरोपियों (•्रमां• 1, 10 व 11) •े खिलाफ फौजदारी मामला चल रहा है, परन्तु इस•ी गति भी बेहद धीमी है। संगठनों •ी ओर से 7 सितम्बर,2001 •ा आवेदन स्वी•ार •रने •े बाद सीजेएम ने 6 जनवरी, 2005 •ो डाव •ेमी•ल •म्पनी •ो 6 जनवरी, 2005 •ो नोटिस जारी •िया •ि वह आरोपी •्रमां• 10 (यूनियन •ार्बाइड •ॉरपोरेशन •े भगोड़े आरोपी) •ी ओर से हाजिऱ हों ,क्यों•ि उस •म्पनी •ो डाव ने 2001
में खरीद लिया था। परन्तु मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय •ी जबलपुर खंडपीठ ने इस आदेश पर ए• असंबंधित •ी अपील पर 17 मार्च, 2005 •ो स्थगन जारी •र दिया। यह स्थगनादेश 7 साल बाद 19 अक्टूबर, 2012 में खारिज हुआ जब उच्च न्यायालय ने आखिर•ार सीजेएम •े 6 जनवरी, 2005 •े आदेश •ो मान्य घोषित •िया। जब भोपाल गैस पीडि़त संगठनों ने 30 जनवरी, 2012 •ो ए• आवेदन •े ज़रिए उच्च न्यायालय •े आदेश •ो सीजेएम •ी नजऱ में लाए तब सीजेएम ने डाव •म्पनी •ो फिर से 24 जुलाई, 2013 और 12 जनवरी, 2014 •ो नोटिस जारी •िए। परन्तु डाव •ी तरफ से नोटिस •ी अवमानना लगातार जारी है। दूसरी ओर आरोपी •्रमां• 1 वॉरेन एंडरसन, •े खिलाफ •ार्यवाही 29 सितम्बर, 2014 •ो हुए उन•े देहावसान •े बाद रद्द हो गई है। सीजेएम •े समक्ष अगली सुनवाई 19 दिसम्बर, 2015 •ो है। श्री जब्बार •े अनुसार पिछले 31 सालों से जिस धीमी और लापरवाही से भोपाल •ांड •े आरोपियों •े खिलाफ मु•दमा चला है, वह हमारी न्याय प्र•्रिया •ा मज़ा• ही बनाती है। न तो •ेन्द्र सर•ार और न ही राज्य सर•ार इस मामले में गम्भार नजऱ आती है जिससे गैस पीडि़तों •े प्रति उन•ी लापरवाही •ा ही पता चलता है।
पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति: भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉरमेशन एंड एक्शन •े सतीनाथ षडंगी बताते हैं, •ि 1969 से 1984 त• चले यूनियन •ार्बाइड •े •ामों •े •ारण •ारखाने •े अहाते में और आस-पास ज़हरीला •चरा जमा होता रहा था, जिससे यहां •ी ज़मीन और पानी बहुत दूषित हो गया है। आज त• राज्य या •ेन्द्र सर•ार ने इस•े •ारण होने वाली क्षति •े आ•लन •े लिए •ोई समग्र अध्ययन नहीं •रवाया है। इस•े उलट इस समस्या •ो •म आं•ते हुए यह दिखाया जा रहा है •ि मामला •ेवल •ारखाने में जमा 345 टन ठोस •चरे •ा निपटारा •ा ही है। यह मामला उच्चतम न्यायलय •े सामने लम्बित है ,जो उपचारात्म• पेटीशन •े तहत है। इन्दौर •े पास इस •चरे •ो गाड़ देने या जला देने •ा मौजूदा प्रस्ताव ए•दम गलत है और इससे तो समस्या •ो भोपाल से हटा•र इंदौर ले जाने •ा ही •ाम होगा। इस•े विपरीत 2009-10 में नेशनल इंवायरनमेंटल इंजीमियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूटए नागपुर (नीरी )और नेशनल जियोफिजिक़ल रिसर्च इंस्टिट्यूटए हैदराबाद (एनजीआरआई)द्वारा •िए गए ए• अध्ययन से यह पता चला था, •ि जहरीले •चरे से प्रभावित •ुल ज़मीन 11 हजार मीट्रि• टन है ।
चूँ•ि भारत सर•ार ने यह हलफनामा पेश •िया •ि पीथमपुर (इंदौर) •ी निजी भट्टी •ा आधुनि•ी•रण हो चु•ा है और वह जहरीला धुआं नहीं छोड़ता है, तो न्यायालय ने भोपाल •ारखाने •े •चरे •े टेस्ट जलावन •ी अनुमति दी है। इस टेस्ट •े नतीजों •ा इंतज़ार है।
दूषित •रने वाला ही हरजाना भरेगा , इस सिद्धांत •े आधार पर डाव •म्पनी •ी जि़म्मेदारी है •ि वह यूनियन •ार्बाइड •े आस पास प्रभावित पर्यावरण •ी आधुनि• टेक्नोलॉजी •ी मदद से क्षतिपूर्ति •ा खर्च उठाए। इसी तरह •ारखाने •े आस पास रहने वाले प्रभावित लोगों •ो साफ पीने •ा पानी मुहैया •राने •ा खर्च भी डाव •ो उठाना पड़ेगा। हालाँ•ि लोगों त• साफ पीने •ा पानी पहुंचाने •ी जि़म्मेदारी पूरी तरह से राज्य सर•ार •ी है। राज्य सर•ार अब भी अपने इस दायित्व •ो निभाने में अक्षम है। दूसरी ओर दूषित पाने •े •ारण बीमार हो रहे प्रभावितों •ो मुफ्त चि•ित्सा सुविधा त• नहीं मिल पा रही है।
अनुमानित 11 हजार मीट्रि• टन दूषित ज़मीन या मिट्टी •ो ठी• •रना ही सबसे •ठिन •ार्य है। सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट, दिस्सी •ी अगुवाई में अप्रैल 2013 में हित-धार•ों और विशेषज्ञों •ो ए• मंच पर ला•र ए• •ार्ययोजना बनाने •ी •ोशिश •ी गई थी। इस एक्शन.प्लान •ा ए• मसौदा तो बनाया गया है, परन्तु इसमें मध्यप्रदेश सर•ार सहित अन्य हितधार•ों और विशेषज्ञों •ो जोडऩे •ी आवश्य•ता है। इस विशाल •ाम •े प्रति राज्य सर•ार •ी उदासीनता चिताजन• है। यूएन पर्यावरण •ार्य•्रम •ी मदद से भोपाल •े दूषित इला•ों •ी सफाई •ा •ाम सम्भव है। परन्तु इस सफाई •ा पूरा खर्च डाव •ेमी•ल •म्पनी •ो उठाना चाहिए।
राहत और पुनर्वास: लम्बे अरसे से बीमार लोगों, बुज़ुर्गों, निशक्त लोगों, विधवाओं और समाज •े अन्य अतिसंवेदनशील तब•ों द्वारा सामना •ी जा रही तमाम सामाजि•-आर्थि• समस्याओं •ा समुचित निदान •रने में राज्य सर•ार ना•ाम रही है। मुआवज़ा •े नाम पर इन्हें जो थोड़ा पैसा मिला था, वो इन•ी रोज़मर्रा •ी ज़रूरतों •ो पूरा •रने •े लिए भी •ाफी नहीं है। •ाम •रने •ी क्षमता में आई •मी •े साथ इन•े लिए उपयोगी •ाम मिलना और सम्मानजन• जीवन-यापन •रना भी ए• चुनौती बन गई है। राज्य सर•ार •ो इन अतिसंवेदनशील गैस प्रभावितों •ी ओर पहले •ी तुलना में और अधि• ध्यान व और सहायता मुहैया •राने •ी सख्त ज़रूरत है।