Saturday, July 11, 2020

आत्मनिर्भर भारत में कराहते ग्रामीण

रूबी सरकार
बड़ा़ मलहरा विकास खण्ड (जिला. छतरपुर) का छोटा सा गांव बरेठी । वंशकार और अहिरवार समुदाय के लगभग तीन सौ परिवार यहां रहते हैं।  इस गांव में सौ फीसदी पलायन है, जो हरियाणा, पंजाब और दिल्ली शहर में जाकर चौकीदारी, निर्माण कार्य आदि में लगे थे।  ये सभी कोविड-19 की वैश्विक महावारी के कठिन वक्त में तीन-तीन दिन पैदल चलकर या  ट ªªक,  बस आदि पर लदकर अपने गांव पहुंचे। अब बाघ की तरह घात लगाये इनके दरवाजे पर भूख खड़ी है। सरकार के प्रबंध विहीन नीति से इनका पेट नहीं भर रहा है।
 इसी गांव का रहने वाला कालीचरण चिलचिलाती धूप में दरवाजे पर बैठकर सूपा बना रहा था। परिवार का कोई सदस्य इनका साथ नहीं दे रहे थे। कालीचरण ने बताया,  िक इस बस्ती में अधिकांष वंशकार हैं और इस समय किसी के पास कोई काम नहीं है। यहां लोगों के पास खेती भी नहीं है।  क्या करें, कैसे जीये, हमें यह बताने वाला भी कोई नहीं है। उसने बताया, कि वंषकारों के पास बांस से कलाकृति बनाने का जो हुनर था, वह सब पलायन के चलते खत्म हो चुका हैं। हमारे जैसे एक-आध बुजुर्ग ही होंगे, जो अभी तक इस हुनर को जिंदा रखे हैं। शाम को इसे बाजार में बेचकर दस-बीस रूपये कमा लेते हैं। कालीचरण किसानों से महंगे दामों पर बांस खरीद कर लाता हैं, फिर उससे सूपा, टोकरी आदि बनाता है। इसे बेचने के बाद वह किसान को बांस का पैसा वापस करता है।
  50 वर्षीय सुम्माबाई कहती है, कि कभी इतने सारे लोग गांव में इकट्ठा नहीं हुए। सब दिनभर इकट्ठे होकर पेड़ के नीचे बैठे रहते हैं। सामाजिक दूरी का यहां कोई मायने नहीं है। पानी के लिए यहां लोग तरस रहे हैं। तीन सौ परिवारों के लिए एक हैण्डपम्प है। वह भी गांव की जल सहेलियों के प्रयास से संभव हो पाया है। जरूरत पड़ने पर जल सहेलियां स्वयं इसकी मरम्मत भी कर लेती हैं। चूंकि पलायन करने वाले सभी सदस्य इस समय गांव में है। इसलिए पानी का संकट और गहरा गया है। ऐसे में बार-बार हाथ धोने की बात इनसे कौन करे, जब इनके पास पीने के लिए पानी नहीं है ।

लीला अहिरवार पति और 5 बच्चों के साथ हरियाणा से गांव लौटी हैं। वह वहां पति के साथ टाइल्स का काम कर रही थी। वह कहती है, चलते-चलते रास्ते में उसका चप्पल टूट गया था। उसे नंगे पांव चलना पड़ा। पैर में छाले पड़ गये। रास्ते में उसके पैसे भी खत्म हो गये। गांव पहुंचे तो खाली हाथ। वह बताती है, सरकार ने दावे बहुत किये थे, लेकिन गांव में काम अभी तक नहीं मिला। उल्टे जो राषन मिला, उसमें कर्मचारी कटौती कर लेते हैं। जबकि सरकार की ओर से दावा किया गया था, कि अपने-अपने गांव लौटे सभी प्रवासी मजदूरों का उनके हुनर के हिसाब से पंजीयन होगा। उन्हें सरकार की ओर से प्रशिक्षण दिया जायेगां । जिससे वे स्वयं और गांव को आत्मनिर्भर बनायेे। यह भी कहा गया, कि  पलायन रोकने के लिए  महात्मा गांधी राष्ट्रªªªीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदुरों को  काम मिलेगा। काम तो दूर, अभी तक गांव में किसी का श्रमिक पंजीयन ही नहीं हुआ है । पहले पंजीयन होगा, फिर कौषल के अनुरूप काम मिलेगा। हालांकि पंजीयन न होने वालों में केवल बरेठी के मजदूर नहीं है, बल्कि बड़ा मलहरा के भगुवां, चौधरीखेड़ा और सपलपट्टी जैसे असंख्य गांव है, जहां मजदूरों का पंजीयन नहीं हुआ है। इधर सरकार दावा कर रही है, कि मध्यप्रदेश ने कुल 17 लाख 10 हजार ,186 मजदूरों को सर्वे में चिन्हित किया है। सरकार का दावा है, कि मध्यप्रदेश पहला राज्य हैं, जिसने प्रवासी मजदूरों का प्रामाणिक सर्वे पूरा किया है। बरेठी में अधिकतर लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं है। 40 वर्षीय बलदेव ने बताया, कि गांव के सभी लोगों का जॉब कार्ड सरपंच ने अपने पास रखवा लिया है । कई साल पहले उन्होंने हमसे जॉब कार्ड ले लिया था, फिर वापस नहीं किया। 28 वर्षीय रमेश ने बताया, वह हरियाणा में चौकीदारी करता है और हालात सुधरने के बाद वह वापस जाना चाहता है।  वजह गिनाते हुए उसने कहा, यहां सामंती प्रथा आज भी जिंदा है। सामंतों के सामने न हम बैठ सकते हैं, न चप्पल पहनकर उनके सामने से गुजर सकते हैं। अगर उनकी बात नहीं मानी, तो वे सबके सामने बुरी तरह मारते हैं। हमें सबके सामने दबंगों ने बहुत मारा । समुदाय में किसी के पास इतनी हिम्मत नहीं है,  िकवे आगे आकर हमें पीटने से रोक सके। इससे तो अच्छा है, कि शहर में पन्नी का घर बनाकर रहे। इसके अलावा यहां काम भी नहीं है। गुजारा कैसे होगा।

परमार्थ समाज सेवी संगठन के सचिव संजय सिंह बताते हैं, कि किसी तरह मजदूर गांव तो पहुंच गये, लेकिन अब इन्हें गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए काम की आवश्यकता है। ताकि वे अपना पेट भर सकें। वर्तमान में निहायत ही खराब परिस्थितियों में ये अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अभी सरकार को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को किसी तरह पुनर्जीवित करना होगा।  
आंकड़ों के मुताबिक बुंदेलखण्ड के जिलों से जितना पलायन है। उनमें सबसे ज्यादा छतरपुर जिले से है। लगभग 80 फीसदी ग्रामीण परिवारों कां कम से कम एक सदस्य पलायन पर जाता है।  
                                                                                  
कोविड-19- संकटकाल में महिला समूहों ने बनाई नई पहचान  





रूबी सरकार
मध्य प्रदेश में खाद्य और पोषण सुरक्षा में लचीलापन लाने के उद्देश्य से गैर-लाभकारी संगठनों के साथ मिलकर सामुदायिक पोषण वाटिका कार्यक्रम शुरू किया गया ।  कार्यक्रम के अनुसार ग्रामसभा की खाली पड़ी भूमि चिन्हित कर उसे ग्रामीण महिलाओं को लीज पर दे दी जाती है और महिलाएं स्वयं सेवी संगठनों की मदद से उस पर सब्जियां और फल उगाती है। इसके बाद तैयार सब्जी -फलों  को बाजार में बेचती हैं,। इसके लाभंाष का  2 फीसदी हिस्सा ग्रामसभा के पास जाता हैं। चूंकि बुंदेलखण्ड का छतरपुर जिला बहुत पिछड़ा है और यहां के लगभग 42 फीसदी बच्चे कुपाेिषत है तथा 6 से 59 माह तक के 66 फीसदी बच्चे एनिमिक है। इसलिए सरकार ने इस कार्यक्रम की शुरूआत इसी जिले से की है। यहां लगभग 70 फीसदी पलायन है। इस कार्यक्रम से जुड़ने के लिए महिलाओं ने सबसे पहले 12-12 की संख्या में एक-एक समूह बनाया। रगोली गांव की कुराबाई बताती हैं, कि ग्रामसभा की चिन्हित एक हेक्टेअर भूमि उनके समूह ने लीज पर ली। बंजर और  ऊबड़-खाबड़ भूमि को समूह ने अपने श्रम से समतल किया, उसे उपजाऊ बनाया। इस काम में समूह की मदद स्वयं सेवी संगठन परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने किया।  संस्थान ने पोषण वाटिका बनाने के लिए सर्वप्रथम महिलाओं के साथ गांव में बैठक की। उन्हें पोषण वाटिका क्या है, क्यों आवश्यक है तथा इसे कैसे बनाया जा सकता है और इससे क्या लाभ हैं इन पर उनके साथ चर्चा की और उन्हें निःशुल्क तौरई, लौकी, कद्दू, भिंडी, सेम, पालक, करेला व टमाटर, आलू,  प्याज, मेथी, बथुआ, चौलाई, मूली, गाजर, शलजम, शिमला मिर्च, बैंगन, मिर्च तथा काशीफल आदि का जैविक बीज उपलब्ध कराया । साथ ही उन्हें नींबू,आंवला,अनार,पपीता,फालसा,जामुन, अमरुद,सहजन के वृक्ष लगाने की सलाह दी। मात्र 6 महीने में ही इनके खेत फल और सब्जियों से लहलहाने लगे। इससे एक ओर तो यहां की महिलाएं पोषण विविधता के महत्व कोे जान पायी,, दूसरी तरफ वे अपने परिवार को स्वस्थ रखने के प्रति भी जागरूक हुईं।
परिवार के साथ पलायन करने वाली इसी गांव की मनीषा कुश्वाहा बताती हैं, कि हमें यह मालूम था, कि पररदेस- हमेशा परदेस ही होता है, वह कभी अपनी भूमि, अपनी माटी का सुकून नहीं दे सकता । इसलिए जब मध्यप्रदेश सरकार ने इस कार्यक्रम की घोषण की, तो  हमलोग आगे आये। सरकार ने बतौर पायलट प्रोजेक्ट  छतरपुर जिले के  रगोली, रतनपुर, विजयपुर, डारगुंआ, अमरपुर और नारायणपुरा गांव को चुना  और सभी समूहों को लगभग एक हेक्टेअर भूमि उपलब्ध कराया।  रामकुंवर कहती हैं, कि पहले इन गांवों में कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक था।  हरी और ताजी सब्जी के सेवन से इनकी संख्या घटी है। साथ ही गर्भवती और धात्री महिलाओं को हरी सब्जी उनके आहार के लिए कारगर सिद्ध हुई। समूह की महिलाएं अब जैविक का महत्व समझ चुकी हैं। सरोज साहू बताती हैं, कि अपने घर के लोगों को स्वस्थ रखने के लिए पोषण वाटिका की जैविक सब्जी खिला रही हैं।
पुष्पा मिश्रा कहती हैं, कि इससे हमें आमदनी भी हो जाती है, साथ ही एक हफ्ते में तीन से चार सौ रुपए घर में सब्जियों में खर्च हो जाते थे, वो भी बचत हो जाती है। हम जैविक तरीके से ही खेती करते हैं, जिससे बीमारियां भी नहीं होती हैं। पोषण वाटिका से प्रत्येक परिवार को एक हजार से डेढ़ हजार रूपए की मासिक बचत हो रही है। महिलाओं के आहार में सभी प्रकार के विटामिन मिल रहा है और उनके हीमोग्लोबिन में भी अपेक्षाकृत बढ़ोत्तरी हुई है।


इस वक्त इनका जिक्र इसलिए हो रहा है, क्योंकि कोविड-19 संक्रमण में इन महिला समूहों ने उल्लेखनीय कार्य कर अपनी नई पहचान बनाई है। इन महिलाओं को पहली बार एहसास हुआ, कि वे आत्मनिर्भर हैं।  अचानक लॉकडाउन हो जाने से लाखों की संख्या में मजदूर शहर से गांव वापस आये । गाइडलाइन के अनुसार उन्हें सीधे गांव में प्रवेष न देते हुए गांव की सीमा पर ही स्थित एक स्कूल में कोरंटाइन किया गया। तब समूह की महिलाएं अपना मुनाफा त्याग करआगे आईं और अपने परिवार की चिंता किये बगैर उनके लिए भोजन का प्रबंध करने लगी। पार्वती बताती हैं, कि संकट काल में परिवार पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पायी । स्कूल में कोरंटाइन में रखे गये सौ मजदूरों की देखभाल ज्यादा जरूरी समझकर उनकी सेवा की। ये सब हमारे अपने ही तो हैं।  समूह ने उनके लिए अपने खेत की सब्जी -फलों के साथ-साथ उनके लिए 15 दिनों तक सामुदायिक रसोई का इंतजाम किया। इसके साथ ही लॉकडाउन के दौरान जब सारा देष सब्जी-फलों के लिए तरसते रहे, तब समूह की महिलाओं ने गांव के वृद्ध, विकलांग,अस्वस्थ्य और जरूरतमंदों  के घरों तक ताजी सब्जी-फल पहुंचाने का काम किया। ग्राम पंचायत के सचिव जाहर सिंह ने बताया, कि खेत के चारों ओर कटीले तार लगवाने , पानी के लिए बोर जैसे काम मनरेगा के फण्ड से किया जाता है।
वर्तमान में समूह की महिलाएं गांव में जनहित की आवश्यकताओं की पहचान कर उनकी पूर्ति के लिए शासन के जिम्मेदार विभागों एवं उनसे संबंधित हेल्प लाइन नम्बरों पर बात करती हैं। रबी की कटाई के पष्चात जन सहभागिता सुनिश्चित करते हुये जल संरचनाओं की मरम्मत एवं बरसात के बाद नालों के बह रहे पानी केा बोरी बंधान कर संरक्षित करती हैं।