Tuesday, October 22, 2013

खुले में शौच से मुक्ति अभी संभव नहीं
 2015 तक पूरा नहीं होगा 'निर्मल प्रदेश Óका सपना
रूबी सरकार
मध्यप्रदेश के 240 विकासखण्डों में आज भी 75 फीसदी लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। वहीं 40 फीसदी शहरी परिवार खुले में शौच के लिए मजबूर बताये जा रहे हैं। जबकि 2001 की जनगणना के मुकाबले 2011 की जनगणना पर गौर करें, तो प्रदेश में करीब 20 लाख  नये शौचालयों के निर्माण हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में 12.2 फीसदी परिवारों ने नये शौचालयों का निर्माण करवाया है। बावजूद इसके प्रदेश में 24 लाख लोग बाहर शौच के लिए जा रहे हैं।
    यूनिसेफ ने प्रदेश में पानी और शौचालय की स्थिति पर अध्ययन के बाद यह रिपोर्ट जारी की है।  शहरों और गांवों दोनों में 64 फीसदी शौचालय का अभाव है। 33 जिलों में अध्ययन में यह पाया गया , कि  सिर्फ चार जिलों इ्रदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में स्थिति कुछ बेहतर है। इंदौर में जहां 78 फीसदी घरों में शौचालय का निर्माण हुआ है, वहीं भोपाल में 71 फीसदी, ग्वालियर में 59 फीसदी और जबलपुर में 53 फीसदी घरों में शौचालय हैं। बाकी जिलों में शौचालय निर्माण काम बहुत धीमी गति से चल रहा है।  19 जिलों की हालत तो बदतर है। प्रदेश के कुछ जिले जैसे- शिवपुर, श्योपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, मण्डला, डिंडौरी, उमरिया, सीधी, सिंगरौली, अलीराजपुर और झाबुआ में तो 15 फीसदी घरों में ही शौचालय है। वहीं मंदसौर, बड़वानी, पश्चिमी निमाड़, पूर्व निमाड़, बैतूल, छिन्दवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, शाजापुर, राजगढ़, विदिशा, सागर, गुना, अशोकनगर, छतरपुर, कटनी अनूपपुर, शहडोल,रीवा, मुऱैना, दतिया और भिण्ड 25 फीसदी घरों में शौचालय है। इसी तरह नीमच, रतलाम, उज्जैन, धार, बुरहानपुर, देवास, हरदा, होशंगाबाद, सीहोर, रायसेन, नरसिंहपुर और सतना में करीब 50 फीसदी घरों में शौचालय है। आश्चर्य इस बात की है, कि इन्हीं में कुछ जिले ऐसे हैं, जहां घरों में शौचालय होते हुए भी आदतन खुले में शौच के लिए जाते है। यह स्थिति गांव में अधिक है। जबकि  सहस्राब्दि विकास लक्ष्य में सरकार ने खुले में शौच से मुक्ति का आश्वासन दिया है।
 

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