खजुराहो चंदेल साम्राज्य की सांस्कृतिक राजधानी था। पर्यटन, ज्ञानअर्जन तथा अध्यात्मिक दृष्टि से यह दुनियां के श्रेष्ठतम नगरों में से एक है। चंदेल राजाओं द्वारा बनवाये गये मंदिरों में मतंगेश्वर पहला मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण हर्षवर्मन ने 920 ई. के लगभग करवाया था। खजुराहो के पुरातत्व मंदिरों में यह ही एक मात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें आज भी पूजा-पाठ होता है तथा लोकमत के अनुसार निर्माण काल से निरंतर होता आया है। यह खजुराहो का पवित्रतम मंदिर है । मंदिर के बारे में मान्यता है, कि इसमें सबसे पहले महाराजा हर्षवर्मन ने मरकतमणी नामक मणि की स्थापना की थी, इस मणि को भगवान शिव ने खुद सुधिष्ठिर को दिया था और युधिष्ठिर से ही चलकर यह मणि हर्षवर्मन तक पहुंची थी इस मणि की स्थापना के बाद ही वृहत जंघा तथा लिंग की स्थापना की गई थी। जंघा का व्यास 7.2 है एवं इसमें स्थित लिंग 2.5 मीटर ऊंचा तथा 1.1 मीटर व्यास का लिंग है, जो अपने तरह का एक ही है।
बालू पत्थर का बना हुआ यह मंदिर शिल्पकारी की दृष्टि से बहुत ही साधारण है, रचना की दृष्टि से ब्रह्मा मंदिर का ही विशाल रूप है। ऊंची जगती के ऊपर सामने सीढिय़ों से सुसज्जित गर्भगृह का द्वार है। गर्भगृह में जंघा एवं शिवलिंग की स्थापना है। मंदिर की छत वर्गाकार सुंदर तथा विशाल है। गर्भगृह के तीन और अहातेदार झरोखे हैं, जिनमें से उत्तरी झरोखे से होकर नीचे की ओर सीढिय़ां बनी है। मंदिर का एक ही शिखर सूच्याकार या पिरामिड शैली का है। प्रवेश द्वार के ऊपर शिखर पर गड़े हुए मुकुट से शिखर का सौन्दर्य द्विगुणित हो जाता है। मंदिर के चबूतरे के दक्षिण ओर 1880 में बना हुआ संग्रहालय दिखाई देता है, जो अब पुरातत्व विभाग का अवशेष भण्डार है।
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