रूबी सरकार
भारत में पच्चीस फीसदी लोग गरीब हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में 37 रुपए और शहरी क्षेत्रों में 47 रुपए प्रतिदिन कमाते हैं। इनमें से अधिकांश बिगड़े पर्यावरण वाले प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध क्षेत्रों में रहते हैं। सन 2019 तक भारत में गरीबों की संख्या में हो रही कमी सबसे तेज थी, लेकिन कोविड महामारी ने इस तेजी को कम कर दिया है। भारत में गरीबी के कारण मुख्य रूप से पारिस्थितिक इकोलॉजिकल हैं और इस प्रकार गरीबी को कम करने की चाबी पर्यावरणीय क्षरण को रोकने और प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रबंधन में निहित है।
विख्यात पर्यावरणविद् और पत्रिका डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा पिछले दिनों “21 वीं सदी में पारिस्थितिक विपन्नता भारत के कुछ क्षेत्रों में हमेशा क्यों?” विषय पर भोपाल में महेश बुच स्मरण व्याख्यान देने भोपाल आए। उन्होंने कहा कि भारत में नब्बे करोड़ लोग पर्यावरण क्षरण का दंश झेल रहे हैं। ज्यादातर गरीब, बिगड़े पर्यावरणीय क्षेत्रों में रहते हैं जिसमे 30 फीसदी मरुस्थलीकरण जैसे क्षेत्रों में फैले हैं और देश के एक तिहाई जिले सूखा प्रवृत हैं । सूखा पर अध्ययन का हवाला देते हुए रिचर्ड कहते हैं कि हर दो साल में एक बार देश को सूखा आता है। जिससे 20 करोड़ लोग गरीब हो जाते हैं। इसलिए देश में खेत मजदूरों की संख्या बढ़ी है। यहां लगभग 68 फीसदी भूमि वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर है, इस प्रकार खेती पूरी तरह प्राकृतिक अनियमितता के अधीन हैं। यही वजह है कि दुनिया से तुलना की जाए तो भारत के किसान सबसे गरीब हैं। इसके अलावा सबसे गरीब जिलों में वन क्षरण भी सबसे अधिक है, यही कारण है कि गरीब जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। महापात्र ने चेतावनी दी कि अगर हम अभी भी न चेते तो 2030 तक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण भारत को प्रति वर्ष 700 करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है। रिचर्ड यह भी बताते हैं कि इन सबके बीच रालेगांव सिद्धि जैसे ग्रामीणों का उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां सामूहिक प्रयास से ग्रामीणों ने अपनी आय में वृद्धि की। यहां तक वहां भारतीय स्टेट बैंक की शाखा खोलनी पड़ी। वहां के किसान आयकर दाता हैं।
वे बताते हैं कि 13 करोड़ गरीबों में से 60 फीसदी मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, यूपी, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों में रहते हैं । मध्य प्रदेश का अलीराजपुर देश का सबसे गरीब जिला है, जहां 76 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। देश में वन आवरण और गरीबी का सीधा रिश्ता है, जितना अधिक वन आवरण उतना अधिक गरीबी। इसका कारण वन क्षेत्रों का क्रमिक रूप से बिगड़ते जाना है । 2019 तक भारत सबसे तेजी से गरीबी कम करने वाला देश था और एसडीजी लक्ष्य से बहुत पहले 2022 तक गरीबी समाप्त होने की उम्मीद थी। लेकिन कोविड महामारी के कारण ऐसा नहीं हुआ जिसने भारत को पीछे की ओर धकेल दिया। कोविड महामारी से पहले सन 2019 में देश में गरीबों की संख्या 6 करोड़ थी लेकिन कोविड महामारी के दौरान अकेले एक वर्ष में 7.4 करोड़ गरीब और बढ़ गए।
रिचर्ड बताते हैं कि विभिन्न प्रोत्साहनों और योजनाओं के बावजूद, भारत में हर दूसरा किसान गरीब है। आश्चर्य की बात है कि विकास योजनाओं में वृद्धि के बावजूद देश के सबसे गरीब जिले गरीब ही रहे। पहले इन जिलों को गरीबी रेखा के नीचे वाले जिलों में शुमार किया जाता था, अब केंद्र सरकार ने इन जिलों को अति पिछड़ा कहकर इन्हें प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के उद्देश्य से महत्वाकांक्षी आकांक्षी जिला कहना प्रारंभ किया, इसके तहत विकास के मापदंड में पिछड़ चुके इन जिलों को कृषि , स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय समावेशन और बुनियादी सुविधाओं के स्तर पर ऊंचा करने के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
रिचर्ड अपने शोध अध्ययनों का हवाला देते हुए कहते हैं कि, भारत में गरीबी चिरकालिक है, यह पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती रहती है। उन्होंने काला हांडी का पनस पूंजी का उदाहरण देते हुए बताया कि देश की गरीबी का सिंबल है । आज से 30 साल पहले जिसने भूख मिटाने के लिए अपनी ननद को 40 रुपए में बेचा था। आज भी उनका छह लोगों का परिवार 100 रुपए में प्रतिदिन गुजारा करते है। जबकि इनमें से अधिकांश गरीब प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध क्षेत्रों में रहते हैं। देश के 22 करोड़ लोग सिर्फ जंगल पर निर्भर है और देष का हर दूसरा रुपया प्राकृतिक संसाधन से आता है। यह भी आश्चर्य की बात है कि भारत में गरीबी न केवल अर्थव्यवस्था का विषय है बल्कि पारिस्थितिकी से भी जुड़ी हुई है।
राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान मध्यप्रदेश के संस्थापक निदेशक प्रो धीरज कुमार उनकी बातों का समर्थन करते हुए कहते हैं कि यह हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है कि जो समस्याएं हमारे सामने हैं उनके समाधान सभी के प्रयासों से निकाले जाए। इसके लिए शैक्षणिक संस्थानों में इस विषय पर गंभीरता से विचार-विमर्श होना चाहिए ताकि विद्यार्थी इससे संबंधित समस्याओं को समझकर भविष्य में इस विषयों के प्रोजेक्ट्स पर काम कर सकें। उन्होंने कहा कि रालेगांव सिद्धि के ग्रामीण जब आयकर दे सकते हैं तो हमें इस तरह के मॉडल्स का विस्तार देना चाहिए और यह सामूहिक प्रयासों से ही संभव है।
11 June,2023 Amrit Sandesh