क्राई ने शुरू किया बाल श्रम रोकने हस्ताक्षर अभियान
रूबी सरकार
मध्य प्रदेश के सबसे बड़े और साफ-सुथरे मिनी मुंबई कहे जाने वाले इंदौर शहर में जब पता चलता है कि एक चॉकलेट फैक्ट्री में बड़ी संख्या में बाल मजदूर है, तब लोगों का चौकना लाजमी है, क्योंकि यह पढ़े-लिखे लोगों का शहर माना जाता है और यहां सभी को बाल मजदूरी कानून के बारे में मालूम है। फिर भी कोई बाल श्रम के खिलाफ आवाज नहीं उठाता। यह जिम्मेदारी सिर्फ स्वयंसेवी संस्थाओं की है।
दरअसल 30 मई को चाइल्ड राइट्स एंड यू की साथी संस्थान आस रिसोर्स सेंटर के बच्चों के मार्फत क्राई को यह जानकारी मिली कि लसूड़िया इलाके मे स्थित एक चॉकलेट फैक्ट्री में काफी बच्चे मजदूरी कर रहे हैं। क्राई के कार्यकर्ताओं ने दो दिनों तक निगरानी की । तब जाकर इस बात की पुष्टि हुईं।
1 जून को आस चाइल्डलाइन ने क्राई टीम के साथ मिलकर इंदौर में बाल श्रम में लिप्त बच्चों को छुड़ाने की पहल की। क्राई की टीम ने चाइल्ड लाइन और पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर चॉकलेट फैक्ट्री से 4 लड़के और 6 लड़कियों को काम करते हुए पाया। इनकी उम्र 10 से लेकर 17 वर्ष तक थी।
अगले दिन काउंसलिंग के दौरान बच्चों ने बताया कि वे शाम 7 से 11 बजे तक चॉकलेट बनाने व पैकिंग संबंधी काम करते है। इस काम के लिए उन्हें प्रतिदिन 100 रुपये मजदूरी मिलती है। रेस्क्यू किए गए बच्चों के माता-पिता को बाल कल्याण समिति के समक्ष बाल श्रम में बच्चों की संलिप्तता के बारे में जानने तथा बच्चों एवं चॉकलेट फैक्ट्री के मालिकों के साथ समिति ने चर्चा की । इसके बाद विभागीय टास्क फोर्स की ओर से गहन जांच के बाद, नियोक्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई। 4 जून 2023 को खाद्य विभाग के अधिकारियों ने चॉकलेट फैक्ट्री को सील कर दिया. बाल कल्याण समिति ने श्रम विभाग को पत्र के माध्यम से फैक्ट्री के नियोजक के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
यह कोई प्रदेश का एक अकेला मामला नहीं है। हर शहर में बाल मजदूर दिखाई देेते हैं, परंतु नियोक्ता को कोई रोकता नहीं। इसलिए उन्हें डर भी नहीं। इसी तरह का एक और मामला सामने आया। जहां 12 साल के किशोर को पिता की मृत्यु के बाद काम करना पडा। हालांकि अब वह 16 साल का हो चुका है। उसने बताया कि पिता की मृत्यु के बाद माँ ने दूसरी शादी कर ली। सौतेले पिता की कमाई ज्यादा नहीं थी और न ही वह बालक के पीछे खर्च करना चाहते थे। घर में खाने पीने का अभाव हमेशा बना रहता था। इस अभाव के चलते उसने एक होटल में काम करना शुरू किया । जब उसने काम शुरू किया , उस वक्त उसकी उम्र मात्र 13 साल थी। उसने चौथी तक की पढ़ाई भी की । उसके बाद होटल में काम करने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। मां ने दूसरी शादी कर तो ली, लेकिन वह अपने बड़े बेटे की कमाई से घर और छोटे भाई का भरण-पोषण करने लगी । परिस्थिति तब और बिगड़ गई, जब सौतेले पिता ने बेटे की कमाई पर हाथ मारना शुरू किया। नशे के लिए उसके साथ मारपीट कर उसका पैसा छीनने लगा। सौतेले पिता के इस दुर्व्यवहार से तंग आकर उसने घर छोड़कर भोपाल रेलवे स्टेशन के पास एक फैक्ट्री में बोतल में पानी भरने का काम करने लगा। इस बीच उसे काम करते समाज ने देखा, लेकिन किसी ने इसका विरोध नहीं किया। फिर वही स्वयं सेवी संस्था और श्रम विभाग ने छापेमारी कर उसे पकड़ा। उसके साथ और और नाबालिग भी काम करते हुए पाए गए।
क्राई की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा बताती हैं कि लोगों की उदासीनता के कारण ही समाज में बाल श्रम कम नहीं हो रहा है। मोइत्रा ने बाल श्रम के खिलाफ ‘डॉन्ट हेल्प चिल्ड्रन - बाय एमपलोइंग देम’षुरू किया है। जिससे लोगों की मानसिकता बदले। इस अभियान में बच्चों के साथ-साथ पुलिसकर्मी, आशा कार्यकर्ता एवं जनप्रतिनिधि भी भाग ले रहे हैं। भोपाल दक्षिण-पश्चिम से विधायक पी सी शर्मा एवं इंदौर के पलासिया स्थित महिला थाना के सभी पुलिस कर्मियों ने हस्ताक्षर अभियान में भाग लेकर बाल श्रम के खिलाफ खड़े होने का संकल्प लिया। सोमवार से शुरू हुए इस अभियान के अंतर्गत भोपाल सहित की अन्य जिलों में हस्ताक्षर अभियान एवं रैली निकाली गई एवं लोगों से इसके खिलाफ खड़े होने की अपील की है. यह कैंपेन एक महीने चलेगा।
मोइत्रा बताती है कि बच्चों का किसी भी प्रकार के कमर्शियल काम में शामिल होना उनका बचपन छीन लेता है. यह उन्हें वयस्कों की जिम्मेदारियां ढोने पर विवश करता है. जो उन्हें पढ़ाई के साथ खेलों से भी वंचित कर देता है.
उन्होंने अभियान के औचित्य स्पष्ठ करते हुए कहा कि ज्यादातर लोग यह सोचते है कि गरीब और वंचित परिवारों के बच्चों का काम करना सही है. वे भुखमरी और गरीबी से लड़ने में अपने परिवार की मदद कर रहे हैं। इस मानसिकता को बदलने के लिए ही यह अभियान शुरू किया गया है। लोगों से अपील है कि बच्चों को नौकरी देकर उनकी मदद न करें। इसकी बजाए उन्हें पढ़ने, खेलने और बचपन जीने में उनकी मदद करें।
उन्होंने कहा कि इससे पहले क्राई वालेंटियर्स द्वारा 2022 में एक रैपिड असेसमेंट सर्वे किया , जिसमें यह निकलकर आया कि 45 फीसदी लोग मानते हैं कि यदि स्कूली शिक्षा प्रभावित न हो तो बच्चों का परिवार को सहयोग करने के लिए काम करना सही है ।
क्राई का मकसद ही था कि बालश्रम पर लोगों की धारणाओं को समझना और जरूरत पड़े तो उसे बदलना। इस राष्ट्रीय सर्वे मे मध्य प्रदेश सहित 26 राज्यों के परिवार को शामिल किया गया था। लगभग 72 फीसदी का मानना है कि बाल श्रमिकों को बीमारियां होने का अधिक खतरा होता है जबकि 23 फीसदी अनिश्चित थे, और शायद इसमें शामिल विभिन्न जोखिमों से भी अनजान थे। सर्वे के अनुसार 31 फीसदी लोगों का कहना है कि उन्हें बाल श्रम पर रोक लगाने वाले किसी भी कानून की जानकारी नहीं है।
वहीं 79 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें कहीं बाल श्रम की जानकारी मिलती है तो वे अथॉरिटी या एनजीओ से संपर्क करते हैं। जबकि 17 फीसदी इस बात को लेकर अनिश्चित थे कि बाल श्रम का पता चलने पर क्या करना चाहिए। क्राई का उद्देश्य है कि अभियान के माध्यम से बाल श्रम की रिपोर्ट करने के लिए मौजूदा रिपोर्टिंग तंत्र के बारे में नागरिकों को संवेदनशील बनाना । रहवासी अपने आस-पास किसी भी बाल श्रम के मामलों की सूचना पीईएनसीआईएल या 1098 पर कॉल करके बाल श्रम के खिलाफ खड़े हों”।
अब क्राई ने अभियान के तहत आवासीय सोसायटियों तक पहुंचकर नागरिकों को बाल श्रम न कराने के लिए जागरूक करने का काम करेगा और बाल श्रम के मामलों की रिपोर्ट करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करेगा। क्राई इसके लिए देष भर में जागरूकता पोस्टर लगाने एवं राष्ट्रव्यापी प्रतिज्ञा अभियान भी चलायगा। जिसमें लोगों से बाल श्रम के खिलाफ प्रतिज्ञा लेने और हस्ताक्षर अभियान मे सम्मिलित होकर फोटो या स्क्रीनशॉट लेकर सोशल मीडिया में इसे टैग करने का अनुरोध किया जाएगा।
बाल श्रम के प्रति संस्थान के दृष्टिकोण के बारे में बताते हुए मोइत्रा ने कहा, “क्राई बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का पालन करता है, जो 0 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के प्रत्येक मनुष्य को एक बच्चे के रूप में परिभाषित करता है, जो शिक्षा, पोषण और संरक्षण के अधिकार का हकदार है। ये बच्चे न केवल गरीबी के कारण काम कर रहे हैं बल्कि इसलिए भी कि वे सस्ते श्रम प्रदान करते हैं। बाल श्रम कानून के प्रति हमारे समाज को जागरूक होने की जरूरत है। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि हमारे बच्चों और बाल श्रमिकों के रूप में काम करने वालों के बीच कोई अंतर नहीं है। इस प्रकार, हमारा मानना है कि यह अभियान इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी स्थापित करने में एक व्यापक भूमिका निभा सकता है।
25 June 2023 Amrit Sandesh
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