Wednesday, June 30, 2010


सिंहासन पर पहली सन्यासिन उमा भारती
जिन चतुर चालाक राजनीतिज्ञ दिग्विजय सिंह को और कोई नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विराट व्यक्तित्व ने ही ‘सव्यसाची’ की उपमा दी हो, जिन दिग्विजय सिंह की तुलना %योति बसु जैसे नेता से की जाती रही हो, उन्हीं दिग्विजय सिंह को बुंदेलखण्ड जैसे निहायत ही पिछड़े इलाके के एक गांव से ताल्लुक रखने वाली कोई भगवाधारी सन्यासिन स?ाा%युत कर देगी, इसकी कल्पना राजनीति के बड़े-बड़े पण्डितों ने भी नहीं की होगी। दरअसल, मध्यप्रदेश में लगातार 10 साल राज कर चुकी दिग्विजय सिंह की कांगे्रसी सरकार को बिजली, पानी और सड़क के मुद्दे पर बाहर का रास्ता दिखाने का श्रेय उमा भारती को ही जाता है। हालांकि कतिपय विशेषज्ञ कांगे्रस के तत्कालीन नेतृत्व के अंहकार और सरकार की नाकामियों को इसके लिए जिम्मेदार बताते हैं।

3 मई,1959 अक्षय तृतीया के दिन टीकमगढ़ जिले के डूण्डा गांव के एक लोधी किसान परिवार में जन्मी उमा भारती बचपन से ही गीता-रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ करती थीं। किशोरवय की होते-होते उन्होंने इन ग्रंथों पर प्रवचन देना भी शुरू कर दिया। उमा की लोकप्रियता ने विजयाराजे सिंधिया का ध्यान आकर्षित किया और 1980 में वे उन्हें राजनीति में ले आई।

उमा भारती ने 1984 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की ओर से खजुराहो से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उस समय इंदिरा गांधी के असामयिक निधन के कारण जनता की सहानुभूति कांग्रेस के साथ थी, इसलिए सुश्री भारती जीत नहीं पाईं। 1988 में वे पार्टी की राष्टÑीय उपाध्यक्ष चुनी गईं। उन्होंने दूसरा चुनाव फिर खजुराहो से लड़ा और जीता भी। यह सिलसिला 1991,1996 और 1998 के लोकसभा चुनावों में भी जारी रहा। इतना ही नहीं, 1999 में भोपाल लोकसभा क्षेत्र से लड़े गये चुनाव में भी जीत का सेहरा उमा भारती के सिर ही बंधा।

सुश्री भारती, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मानव संसाधन विकास रा%यमंत्री (1998-99), पर्यटन मंत्री (1999-2000), युवा एवं खेल मंत्री (2000-2002) तथा कोयला एवं खान मंत्री (2002-2003) रह चुकी हैं। 2003 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया। उनके नेतृत्व में पार्टी को पहली बार अप्रत्याशित बहुमत मिला। वे स्वयं बड़ा मलहरा से विधायक चुनी गईं और 8 दिसम्बर,2003 को वह प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं गर्इं। लेकिन वे %यादा दिनों तक इस कुर्सी पर काबिज नहीं रह सकीं। 1994 में हुबली (कर्नाटक)में हुई एक साम्प्रदायिक घटना में उन्हें आरोपी बनाया गया था। अपने खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने के कारण नैतिकता के आधार पर 23 अगस्त,2004 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया और पार्टी के वरिष्ठतम विधायक बाबूलाल गौर को स?ाा सौंप दी । उन्हें उम्मीद थी, कि कर्नाटक से लौटने पर उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। लेकिन पार्टी ने श्री गौर को हटाकर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बना दिया। इससे आहत उमा भारती भोपाल से अयोध्या तक की पदयात्रा पर निकल पड़ीं। इस यात्रा को उन्होंने राम रोटी यात्रा का नाम दिया। नवम्बर,2004 में पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक में टीवी कैमरों के सामने ही उन्होेंने पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी को ही भला-बुरा कह डाला और बैठक छोड़कर चली गर्इं। उनके इस अप्रत्याशित और अपमान जनक व्यवहार का खामियाजा उन्हें पार्टी से निलंबन के रुप में भुगतना पड़ा। राष्टÑीय स्वयं सेवक के दबाव में मई 2005 में उमाजी का निलंबन वापस लेकर उन्हें फिर भाजपा कार्यकारिणी में शामिल कर लिया गया। लेकिन वे चाहती थीं, कि उन्हें या उनके किसी समर्थक को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाये या फिर पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष। लेकिन यह मांग न माने जाने पर उन्होंने फिर एक बार पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया। उन्हें गोविन्दाचार्य, प्रहलाद पटेल, मदनलाल खुराना और संघप्रिय गौतम जैसे नेताओं से सहयोग मिला। भाजपा छोड़ने के साथ ही उमा ने विधानसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। लेकिन इस कारण हुए उपचुनाव में वे अपनी समर्थक रेखा यादव को जिता नहीं पाई। इतना ही नहीं, 2008 के चुनाव में टीकमगढ़ विधानसभा क्षेत्र से खुद उमा भारती को कांगे्रसी उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा। सुश्री भारती का भाजपा से मोह भंग भले ही हुआ हो, राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों से उनका लगाव बना रहा। उ?ारप्रदेश के विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल के कहने पर भाजपा के पक्ष में अपने प्रत्याशी वापस ले लिये। इसी तरह गुजरात का विधानसभा चुनाव लड़ने की अपनी घोषणा के बावजूद सुश्री भारती ने वहां से कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। 2009 के लोकसभा चुनाव में तो उन्होंने मध्यप्रदेश छोड़ अन्य रा%यों में उन्होंने भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार भी किया। सुश्री भारती के ऐसे फैसलों के कारण उनके भाजपा में लौटने की अटकलें बार- बार पैदा होती रहीं। ऐसा तब और हुआ, जब उन्होंने अपनी ही पार्टी भारतीय जनशक्ति के अध्यक्ष पद से 25 मार्च 2010 को त्याग पत्र दे दिया।

विवादों और उमा भारती का चोली-दामन का साथ रहा है। माना जाता है, कि अयोध्या में विवादस्पद ढांचे को गिराने के लिए उन्होंने भी कारसेवकों को उकसाया था, इसलिए इस मामले में वे संघ-भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ सह-आरोपी बनाई गई हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कभी किसी मीडियाकर्मी, तो कभी अपने ही किसी समर्थक को चांटा मारने या फिर वक्त-बेवक्त नर्मदा स्रान के लिए चल पड़ने के कारण भी वे सुर्खियों में रहीं। चिंतक-विचारक गोविन्दाचार्य से उनके संबंधों की चर्चा भी दबी जÞबान में होती रही। हालांकि गोविन्दाचार्य ने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया है, कि किसी समय वे और सुश्री भारती एक दूसरे के जीवन साथी बनना चाहते थे।

औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाने के बाद भी सुश्री भारती की पढ़ने में गहरी रुचि है और वे धारा प्रवाह अंगे्रजी में वार्तालाप कर सकती हैं। 55 देशों की उनकी यात्रा भी उनके बौद्धिक क्षितिज का विस्तार करने में सहायक हुई है।

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