Friday, July 9, 2010


संघर्ष के बीच नित नए आयाम गढ़ने वाली गुलदी
कला-संस्कृति के क्षेत्र में गुल बर्धन का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं । ता-उम्र इस क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान के लिए वर्ष 2009 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा है। हालांकि यह सम्मान उन्हें बहुत पहले मिल जाना चाहिए था, लेकिन देर आयद-दुरुस्त आयद।
पद्मश्री गुल बर्धन और कला की दुनिया में श्रद्धा की पात्र गुल दी का जन्म 19 नवम्बर,1928 को मुंबई में गुजराती वैश्य परिवार में हुआ।
विवाह से पूर्व उनका कुलनाम झवेरी था। उनके पिता हंसराज शाह सौराष्टÑ से कारोबार के सिलसिले में मुंबई आकर बसे थे। गुल दी ने स्रातक की शिक्षा मुंबई से हासिल की। बचपन में चंचल स्वभाव की गुल झवेरी अंग्रेजों से नफरत करती थी। उनके मन में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश था। गुल झवेरी, इंदिरा गांधी की वानर सेना का नेतृत्व मुंबई में किया करती थी, जो हिन्दुस्तान को आजाद कराने के लिए दृढ़संकल्पित थी। यह सेना स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को खुफिया सूचनाएं पहुंचाया करती थी। 1947 में देश आजाद हुआ और गुल दी का अंग्रेजों के साथ लुका-छिपी का खेल खत्म हुआ । अब गुल झवेरी युवा अवस्था में पहुंच चुकी थी। मान्य परंपरा में नया जोड़ने की ललक उन्हें नित नए विचारों की दुनिया में ले आयी। शास्त्रीय नृत्य विद्या में कुछ नया करने के लिए वे इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) से जुड़ गर्इं और नाट्य गीतों एवं नाटकों में भाग लेने लगी। पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक डिस्कवरी आॅफ इण्डिया पर केंद्रित बैले नाटक की तैयारी के दौरान जो उदयशंकर जी के शिष्य शांति बर्धन के निर्देशन में चल रहा था तथा जिसका प्रदर्शन दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू के समक्ष किया जाना था, की रिहर्सल के दौरान गुल दी, शांति बर्धन के सान्निध्य में आई। उनके काम, विचार और धैर्य देखकर गुल दी इतनी प्रभावित हुर्इं कि तपेदिक से ग्रस्त शांति बर्धन से उन्होंने विवाह कर लिया। दोनों ने मिलकर लिटिल बैले ग्रुप की स्थापना की। कला के प्रति शांति बर्धन के अप्रतिम समर्पण से नाट्यशाला की ख्याति दुनिया में फैलने लगी। 1954 में शांति बर्धन का निधन हो गया। नाट्यशाला की सारी जिम्मेदारी गुल बर्धन पर आ गई। तब से कर्मठ गुल दी ने अपना जीवन रंग श्री लिटिल बैले ट्रूप को समर्पित कर दिया।
रंग श्री लिटिल बैले ग्रुप की स्थापना 1952 में मुंबई में हुई थी। उसके बाद क्रमश: यह ग्रुप माधवराव सिंधिया के पिता के अनुरोध पर 1964 में ग्वालियर आ गया। यहां इसे लिटिल बैले ट्रूप नाम दिया गया। ग्वालियर में कलाकारों के वर्चस्व की लड़ाई के बीच गुल दी इतनी आहत हुर्इं कि उन्होंने ग्वालियर छोड़ भोपाल को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। यहां पर भी कलाकारों द्वारा इसे तोड़ने की कोशिश की गई। लेकिन गुल दी की जीवटता इस बात का साक्ष्य है, कि आज भी दुनिया का सबसे उम्रदराज बैले ग्रुप उनके नेतृत्व में लोक परंपराओं से प्रेरणा ग्रहण करते हुए निरंतर प्रयोगशील है। यहां केरल, ओड़िसा, बंगाल और मणिपुर के कलाकार अपनी कला प्रतिभा का प्रदर्शन गुलबर्धन के नेतृत्व में कर रहे हैं। शांति बर्धन के कलाकर्म पर गुल दी ने एक पुस्तक ताल अवतार की रचना की है। यह पुस्तक नृत्यकला को समृद्ध करने की दिशा में मूल्यवान है। ताल अवतार में गुल दी लिटिल बैले ट्रूप की विशेषताओं के साथ-साथ नृत्य गुरु शांति बर्धन की अनोखी विशिष्टता का उल्लेख किया है। पुस्तक में रामायण जैसे नए नृत्य नाटकों की खोज ,जो देश का अद्वितीय श्रृंगार के रूप में जाना जाता है, का खूबसूरती से वर्णन है।
कला पर उनकी दृष्टि, नवीनता और प्रयोगधर्मिता का सम्मान करते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें 2001 में सर्वाेच्च शिखर सम्मान प्रदान किया । इसके अलावा फ्रेंच केबिनेट ने 1964 में उनकी विशिष्टताओं को रेखांकित करते हुए उन्हें सम्मानित किया। गुल दी अब तक अनेक राष्टÑीय अर्न्तराष्टÑीय पुरस्कारों ने नवाजी जा चुकी हैं। उन्हें संगीत नाटक अकादमी ने रचनात्मक नृत्य के लिए 2001 में, गुजरात संगीत नाटक अकादमी ने गौरव पुरस्कार 1979 में गुल बर्धन के नेतृत्व में रामायण बैले को यूएसएसआर का पुरस्कार 1975 में मिला। इसके अतिरिक्त गुल दी कर्इ्र फिल्मों में नृत्य प्रदर्शन कर चुकी हैं। इसमें राजकपूर निर्देशित अवारा, चेतन आनंद निर्देशित अंजलि, बलराज साहनी निर्देशित लालब?ाी, केए अ?बास निर्देशित धरती के लाल, विजय भट्ट निर्देशित समाज को बदल डालो और राम रा%य, फणी मजूमदार निर्देशित बंधन और बिमल राय निर्देशित सुजाता शामिल है। विश्व के कई देशों में लिटिल बैले ट्रूप के प्रदर्शन को प्रशंसा-पत्र प्राप्त हुए हैं। इनमें फ्रांस, हालैण्ड, मेक्सिको, चायना, नेपाल, बेल्जियम, मोरक्को, ट्यूनिसिया, ब्राजील, चिली, अरजेंटिना, यूनाईटेड किंगडम, लेबनान, बुलगारिया,जापान, थाईलैण्ड, हांगकांग, साऊथ कोरिया, पुर्तगाल, इटली तथा जर्मनी प्रमुख हैं।
राष्टÑीय,अन्तर्राष्टÑीय पुरस्कार:
1- पद्मश्री सम्मान- 2009
2- मध्यप्रदेश सरकार की ओर से शिखर सम्मान- 2001
3- संगीत नाटक अकादमी, गुजरात की ओर से गौरव पुरस्कार-1979
4- फ्रांस केबिनेट की ओर से व्यक्तिगत सम्मान- 1964
5- रामायण बैले के निर्देशक के रूप में जीआईटीआईएस,यूएसएसआर-1975
रंगश्री लिटिल बैले ट्रूप की उपल?िधयां:
अर्न्तराष्टÑीय फेस्टिवल अवार्ड
1- थिएटर नेशन- फ्रांस
2- एडिनबरो फेस्टिवल
3- हॉलैण्ड फेस्टिवल
4- मेक्सिको फेस्टिवल
टूअर अवार्ड:
1- चायना- 1955
2- नेपाल-1956
3- यूएसएसआर, जर्मनी- 1957
4- फ्रांस, बेल्जियम, हॉलैण्ड, मोरक्को, ट्यूनिसिया, ब्राजिल, चिली, अर्जेंटिना, यूनाईटेड किंगडम-1960
5- लेबनन, यूएसएसआर, बुलगारिया- 1964
6- मेक्सिको- 1968
7- इंडोनेशिया, बर्मा- 1971
8- जापान, थाईलैण्ड- 1975
9- साउथ कोरिया, थाईलैण्ड- 1975
10- बेल्जियम, ईस्ट जर्मनी, पुर्तगाल, इटली-1982
11- यूएसएसआर- 1988
12- मॉरीशस-1990
13- थाईलैण्ड- 1995
(मध्य प्रदेश महिला संदर्भ के लिए रूबी सरकार द्वारा लिखा गया है)

No comments:

Post a Comment