Thursday, July 29, 2010
उर्मिला सिंह: रियासत से राजभवन तक
अनुसूचित जाति- जनजाति की पूर्व राष्टÑीय अध्यक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता श्रीमती उर्मिला सिंह 25 जनवरी, 2010 को हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल का पदभार संभाला और इस तरह वे श्रीमती सिंह देश की प्रथम महिलाधिन आदिवासी राज्यपाल बन गर्इं।
सदियों से शोषण और उत्पीड़न झेलते आ रहे आदिवासी समाज को शिक्षा के साधन उपलब्ध करवाने और उन्हें मुख्यधारा में लाने के उर्मिला जी के प्रयास सराहनीय हैं। अपनी सरलता और मृदुभाषिता से वे मिलने वाले व्यक्ति को पहली मुलाकात में ही प्रभावित कर लेती हैं। कठिन से कठिन समय में भी उनके चेहरे पर मुस्कान बनी रहती है। वे जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंदजी की समर्पित शिष्या भी हैं।
भारत की आजादी के एक वर्ष पूर्व 6 अगस्त, 1946 को अपनी मौसी के घर फिंगेश्वर, रायपुर (छत्तीसगढ़) में उर्मिला जी का जन्म हुआ। प्राथमिक शिक्षा फिंगेश्वर से ग्रहण करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे रायपुर आ गर्इं और यहीं से उन्होंने बीए, एलएलबी की उपाधि प्राप्त की। उनका विवाह राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले सरायपाली (अब छत्तीसगढ़ में) के राजपरिवार में हुआ। उनकी सास श्याम कुमारी देवी सांसद थीं और पति वीरेन्द्र बहादुर सिंह अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक रहे। हालांकि उर्मिला जी को राजनीति विरासत में ही मिल गई थी। उनके दादा शहीद राजा नटवर सिंह उर्फ लल्ला को ब्रिटिश शासकों ने फांसी की सजा दी थी । परिवार के अन्य सदस्यों को भी कालापानी की सजा मिली थी।
सामाजिक न्याय एवं आदिवासी कल्याण मंत्री रहते हुए उर्मिला जी ने सुदूर ग्रामीण अंचलों में आदिवासी छात्रावास शुरू करवाने के लिए जो बीड़ा उठाया था, वह आगे चलकर मील का पत्थर साबित हुआ। आदिवासियों के प्रति उनकी संवेदना इस हद तक है, कि हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल का पद ग्रहण करते ही वे सबसे पहले शिमला स्थित आदिवासी छात्रावास देखने गर्इं, जहां अनियमितताओं और यौन शोषण का गंभीर मामला उनके सामने आया। उनके इस आकस्मिक निरीक्षण से हिमाचल प्रदेश में हलचल मच गई थी।
पहली बार उर्मिला जी 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर घंसौर से चुनाव लड़ी, लेकिन वे चुनाव जीतने में असफल रहीं। 1985 में वे पुन: घंसौर (सिवनी) से ही कांग्रेस पार्टी की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ीं और विधान सभा सदस्य बनीं। इसके बाद इसी क्षेत्र से वे 1990 में भाजपा के डालसिंह से चुनाव हार गर्इं। पुन: 1998 में वे इसी विधान सभा क्षेत्र से सदस्य चुनी गर्इं। प्रदेश सरकार के मंत्रिमण्डल में 1993 में उन्हें शामिल कर वित्त और दुग्ध विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई। उर्मिला जी पहली ऐसी महिला हैं, जो मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी में 1996-98 तक अध्यक्ष रहीं। उनके अध्यक्ष पद पर रहते हुए कांग्रेस पार्टी को विधान सभा चुनाव में प्रदेश की सभी आदिवासी क्षेत्र में विजय हासिल हुई थी। संभवत: इसलिए उन्हें 1998 में सामाजिक न्याय एवं आदिवासी कल्याण मंत्री का पदभार सौंपा गया। इस मंत्री पद पर वे 2003 तक रहीं। इस विभाग का दायित्व मिलने पर आदिवासियों के हित में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय- जिसमें आदिवासी क्षेत्रों में जल संरक्षण एवं प्रबंधन का कार्य उल्लेखनीय है, उन्होंने लिए। उनकी क्षमता को देखते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने उन्हें राष्टÑपति चुनाव के दौरान उड़ीसा का निर्वाचन अधिकारी बनाया था। श्रीमती उर्मिला सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी तथा अनुशासनात्मक कार्यवाही समिति में निर्विवाद सदस्य के रूप में भी जानी जाती हैं। 18 जून, 2007 से 24 जनवरी, 2010 तक वे अनुसूचित जाति एवं जनजाति राष्टÑीय आयोग की अध्यक्ष रही हैं।
श्रीमती सिंह मध्य प्रदेश में समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष (1988-89),
केन्द्र सरकार में समाज कल्याण बोर्ड की सदस्य (1978-90), सदस्य
मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण सलाहकार समिति (1978-80), सदस्य राष्टÑीय खाद्य एवं पोषण बोर्ड (1986-88), संस्थापक सदस्य उज्जैन सिटीजन फोरम (1988), अध्यक्ष मध्य प्रदेश आदिवासी महिला संगठन (1993) के साथ ही प्रदेश के अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़कर स्वैच्छिक सेवा प्रदान करती रही हैं। भारतीय संविधान समिति की सदस्य के रूप में वे प्राय: सभी यूरोपीय देशों का दौरा कर चुकी हैं।
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