Saturday, December 8, 2018
Thursday, December 6, 2018
Press Council of India to honour winners of Excellence in Journalism today
On the occasion of National Press Day today, the Press Council of India will honor winners of the National Awards for Excellence in Journalism.
Among the winners, N Ram, eminent journalist and Chairman the Hindu Publishing Group, has been selected under the prestigious award category of ‘Raja Ram Mohan Roy award’. Ruby Sarkar, Chief Correspondent, Deshbandhu, Bhopal, and Rajesh Parshuram Joshte of Daily Pudhari, Ratnagiri, will be jointly awarded in the category of ‘Rural Journalism’.
V.S Rajesh, Deputy Editor, Kerala Kaumudi, has been selected under the award category of ‘Developmental Reporting’ while Subhash Paul of Rashtriya Sahara, will be awarded in the category of ‘Photo Journalism-Single News Picture’.
Mihir Singh, Photo Journalsit, Punjab Kesari, Delhi, has been selected in the category of “Photo Journalsim-Photo Feature’. P. Narasimha, Cartoon Editor, Nava Telangana, Hyderabad, has been selected for the award category of “Best Newspaper Art: covering cartoons, caricature and illustrations’.
The Press Council of India, as the only statutory authority entrusted with the responsibility of encouraging the media to pursue its duties following the dictum of “freedom with responsibility”, instituted these awards in the year 2012 to encourage journalists, photojournalists, freelancers to excel in print journalism.
Excellence in Journalism for 2018. Ruby Sarkar
Veteran journalist and The Hindu Publishing Group Chairman N. Ram has been chosen for the prestigious Raja Ram Mohan Roy Award, presented by the Press Council of India (PCI), for his outstanding contribution towards journalism.
In a statement, the PCI also announced National Awards for Excellence in Journalism for 2018. Ruby Sarkar, chief correspondent of Deshbandhu, Bhopal, and Rajesh Parshuram Joshte of Daily Pudhari, Ratnagiri, have been named joint winners for ‘Rural Journalism’.
PCI awards: Ruby Sarkar, Rajesh Joshte to get rural journalism award
PCI awards: Ruby Sarkar, Rajesh Joshte to get rural journalism award
V.S. Rajesh, Deputy Editor of Kerala Kaumudi, will receive the award in the category of "Development Journalism" for his articles published in the newspaper during January 23-29, 2017.
- Among the winners are N. Ram, Chairman of the Hindu Publishing Group, who has been selected for the prestigious "Raja Ram Mohan Roy Award", the Council said on Monday. (Image Credit: Twitter)
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The Press Council of India (PCI) has announced its "National Awards for Excellence in Journalism" for 2018, which it will give away on November 16 on the occasion of National Press Day.
Among the winners are N. Ram, Chairman of the Hindu Publishing Group, who has been selected for the prestigious "Raja Ram Mohan Roy Award", the Council said on Monday.
Ruby Sarkar, Chief Correspondent, Deshbandhu newspaper in Bhopal, and Rajesh Parshuram Joshte of Daily Pudhari, Marathi newspaper in Ratnagiri, have been jointly selected for the award in "Rural Journalism" category.
V.S. Rajesh, Deputy Editor of Kerala Kaumudi, will receive the award in the category of "Development Journalism" for his articles published in the newspaper during January 23-29, 2017.
Subhash Pau of Rashtriya Sahara will get the award for "Photo Journalism - Single News Picture", while the award in "Photo Feature" category will be given to Mihir Singh of Punjab Kesari.
The award for the category of "Best Newspaper Art: covering cartoons, caricature and illustrations" will be given to P. Narasimha, Cartoon Editor, Nava Telangana, Hyderabad.
No entry could qualify in the newly introduced award category of "Sports Reporting", the PCI said.
"The Press Council of India, as the only statutory authority entrusted with the responsibility of encouraging the media to pursue its duties following its dictum of 'freedom with responsibility' instituted these awards in 2012 to encourage journalists, photojournalists, freelancers excelling in print journalism," it said in its statement.
The awardees were selected by a jury comprising eminent working journalists and senior editors.
(With inputs from agencies.)
Tuesday, October 2, 2018
Greetings from Population First!
The 9th edition of the Laadli Media and Advertising Awards 2017 was a grand success and we thank you and your commitment towards this cause.
With
over 1500 entries received from all over the country, our esteemed jury
selected over 90 winners. The event was graced by our Chief Guest Mr.
P. Sainath, Ramon Magsaysay awardee felicitated the winners of Laadli. A
kathak dance recital was performed by Padmashri Shovana Narayan.
Wednesday, September 26, 2018
Friday, May 25, 2018
केवल चूल्हा नहीं संभालती , एक प्रगतिशील किसान भी है कोचेवाडा (बालाघाट) की महिलाएं
सिर्फ चूल्हा नहीं संभालती, बल्कि प्रगतिशील किसान भी हैं कोचेवाडा गांव की महिलाएं
रूबी सरकार
बालाघाट जिले से 52 किलोमीटर दूरी पर स्थित कोचेवाडा गांव बेहतर लिंगानुपात के लिए मशहूर है। यहां एक हजार बालकों में एक हजार,10 बालिकाएं हैं। आदिवासी बाहुल्य इस गांव की आबादी लगभग एक हजार, 600 हैं, जिसमें कुल 254 परिवार रहते हैं, इसमें से मात्र 20 परिवार अनुसूचित जाति के हैं। वर्तमान में बेहतर लिंगानुपात के अलावा यह गांव जैविक खेती के लिए भी मशहूर है। लगभग 235 हेक्टेयर भूमि वाले इस गांव की सिंचित भूमि 220 हेक्टेयर है, जिसमें गांव की महिलाएं समूह या एकल चना, धान, मक्का, अलसी, सरसो, तिल के अलावा धान आदि की खेती करती हैं। कोचेवाडा की इन्द्राणी वडकडे बताती हैं, कि पहले यहां पर्याप्त अनाज नहीं होता था, इसलिए लोग पलायन करते थे, लेििकन वर्ष 2008 में तेजस्विनी के अंतर्गत गांव में महिलाओं का समूह बना और महिलाएं समूह से जुड़कर कृषि विभाग के सहयोग से श्रीविधि (एसआरआई), मिश्रित खेती, मचान खेती आदि का प्रशिक्षण लिया । इन्द्राणी ने बताया, श्रीविधि से तो एक एकड़ भूमि के लिए मात्र 3 किलोग्राम बीज ही पर्याप्त होता है। इसमें 10-10 इंच की दूरी पर लगने से मेहनत कम लगता है। 8-10 दिन के पौधों को 10 इंच की दूरी में लगाया जाता है, जिसमें पौधों को हवा एवं रोशनी उचित अनुपात में मिल पाती है। इसमें खार खोदने, पेंडी डालने के लिए अतिरिक्त मजदूर तथा खेत में पानी भरकर रखने की आवश्यकता भी नहीं होती और उत्पादन भी बढ़ता है। प्रशिक्षण के बाद पोषण के प्रति महिलाओं की जागरूकता बढ़ी और वे स्वयं समूह के साथ मिलकर खेती करने लगीं । धीरे-धीरे पैदावार बढ़ी। गांव की स्थिति बदली। आज हालत यह है, कि अनाज, फल, सब्जी आदि स्वयं के उपयोग के अलावा बाजार में बेच देती हैं। इन्द्राणी बताती है, कि 7 हजार क्विंंटल धान होता है। सब्जियों में बैगन, टमाटर, हरी सब्जी और मुंगाफली प्रचुर मात्रा में होता है। फलों में सीताफल और जामुन बहुत होता है, जिसे अधिकतर महिलाएं बाजार में बेच देती है । जामुन मधुमेह के मरीजों के लिए उपयोगी है, इसलिए वह हाथों-हाथ बिक जाती है। इन्द्राणी इस समय गांव की मास्टर ट्रेनर हैं।
शांति तेकाम बताती हैं, कि गांव की कुल सिंचित भूमि में कुल धान का उत्पादन 15 हजार क्विंटल हैं, जिसमें साढ़े 4 हजार गांववाले उपयोग में लेते हैं और साढ़े 10 हजार धान बाजार में बेच देते हैं । इसी तरह गेहूं का पैदावार 7 हजार,800 क्विंटल है। गेहूं आदिवासी कम खाते हें , केवल 800 क्वींटल का उपयोग कर 7 हजार क्विंटल बाजार में बेच देते हैं। दलहन का उत्पादन एक हजार, 350, जिसमें से 350 क्वींटल उपयोग कर एक हजार बाजार में बेच देते हैं और तिलहन का पैदावार 200 क्विंटल , जिसमें से डेढ़ सौ उपयोग कर 50 क्विंटल बेचते हैं। इसी तरह सब्जी, फल, दूध भी प्रचूर मात्रा में उपयोग के बाद , बचा हुआ बाजार में बेच देते हैं, इससे हमलोगों को पोषण के साथ-साथ मोटी आमदानी भी हो जाती है।
शांति ने बताया, कि कम लागत में हमलोग घर में खाद तैयार करते हैं। यह खाद हर मौसम में तैयार किया जाता है। यह ज़मीन की उर्वरा शक्ति एवं नमी को बढ़ाता है। उसने कहा, कि हमलोगों का रसायनिक खाद जैसे डीएपी, यूरिया एवं पोटास पर निर्भरता कम है। खाद के उपयोग के साथ-साथ केंचुआ भी अच्छी कीमत में बेच देते हैं, इससे छोटा किसान आवश्यकतानुसार अपने ही घर में जैविक खाद तैयार कर सकता है।
गौरतलब है, कि इन्द्राणी को जैविक कृषि के लिए टाईम्स ऑफ इण्डिया एवं जिंदल समूह की ओर से राष्ट्रीय अर्थ केयर अवार्ड 2015 और शांति राष्ट्रीय महिला किसान दिवस पर उन्नत कृषि के लिए 2017 में सम्मानित हो चुकी हैं।
Friday, May 18, 2018
Saturday, March 17, 2018
दलित संरपंच की जानकारी के बगैर गांव के दबंग निकाल रहे पैसे
अजब-गजब मध्यप्रदेश दलित संरपंच की जानकारी के बगैर गांव के दबंग निकाल रहे पैसे
सरपंच पहुंचीं विधानसभा ,परिसर में लगाई दबंगों से जान बचाने की गुहार
रूबी सरकार
मध्यप्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत यह है, कि मुरैना जिले की छिनवरा पंचायत की सरपंच शीला जाटव विधानसभा परिसर में घूम-घूमकर अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ न्याय की गुहार लगा रही थी। उसका कहना है, कि वह विधवा है, उसके 3 बेटे हैं। 10 साल पहले उसके पति का स्वर्गवास हो गया। जब छिनवारा पंचायत दलित महिला के लिए आरक्षित कर दी गई, तो परिवार वालों ने उसे चुनावी मैदान में खड़ा किया। उसने अपने प्रतिद्वंदी से मात्र एक मत से जीत दर्ज की। तब उसे पता नहीं था, कि गांव में सरपंची इतना आसान नहीं है। सरपंच बनने बाद से ही पंचायत सचिव भूपेन्द्र सिंह तोमर और गांव का दबंग रामलखन सिंह सिकरवार उसे प्रताडि़त लगे, वे शीला को रबर स्टेम्प बनाकर रखना चाहते थे, शीला ने कहा, कि दोनों उसे जाति सूचक गालियां देकर, डरा -धमका कर पैसा आहरण करते रहे और इसकी शिकायत शासन ने न करने का दबाव बनाते रहे। जिसके चलते वह पिछले 3 सालों से चुप थी, दबंगों द्वारा उसके बेटे को जान से मारने तथा उसे गांव से बेदखल करने की धमकी दिये जाने से वह काफी भयभीत थी, लेकिन जब उसे पता चला, कि वित्तीय अनियमितताएं व भ्रष्टाचार का खामियाजा उसे भुगतना पड़ेगा, इसके लिए उसे जेल भी जाना पड़ सकता है और शासन द्वारा उससे वसूली भी की जा सकती है, तो वह डर गई और मुरैना कलेक्टर और मुख्य कार्यपालन अधिकारी को 27 फरवरी को शपथ-पत्र के साथ शिकायत की। इसके बाद वह गांव से जान बचाकर अपने रिश्तेदार के यहां आकर रहने लगी। कलेक्टर और मुख्य कार्यपालन अधिकारी को लिखे पत्र में उसने आत्महत्या कर लेने तक की बात की, लेकिन कोई सुनवाई न होते देख वह विधानसभा पहुंचकर मंत्री गोपाल भार्गव के पास दबंगों द्वारा किये गये वित्तीय अनियमितताओं की जांच और अपने जान की सुरक्षा की गुहार लगाई।
शीला ने कहा, कि आज तक पंचायत में उसने न तो जरूरी कागजात पर और न ही बिल-वाउचर्स पर हस्ताक्ष्र किये है। पंचायत की वेबसाइट पर उसका मोबाइल नम्बर भी अपलोड नहीं है, जबकि पंच परमेश्वर की राशि के भुगतान के लिए मोबाइल पर ओटीपी सिस्टम चालू है, जिससे अब सरपंच/सचिव के हस्ताक्षर के बजाय मोबाइल ओटीपी के माध्यम से राशि के भुगतान की प्रक्रिया शुरू हो गई है। पंचायत पोर्टल पर दबंग सिकरवार का मोबाइल नम्बर अंकित है, जबकि पंचायत से उनका कोई लेना-देना नहीं है। यह बहुत बड़ी वित्तीय अनियमितता है।
उसने यह भी कहा, कि मनरेगा योजना एवं पंच परमेश्वर की राशि धोखाधड़ी से निकाल ली जाती है, जबकि कई निर्माण कार्य मौके पर नहीं पाये गये। साथ ही कई निर्माण कार्य पूर्व के ही थे, उस पर साफ-सफाई के नाम पर इनलोगों ने बड़ी र$कम आहरण कर ली है। उसने कहा, कि सीसी रोड, वृक्षारोपण, खेत-तालाब आदि कार्यों की जांच माप पुस्तिका से मिलान कर मौके पर की जानी चाहिए। सरपंच ने बताया, वत्तीय वर्ष 2015 से 2017 तक जिन कार्यों पर राशि खर्च की गई है, उन सभी का भौतिक सत्यापन किया जाना चाहिए। शीला अपनी पीड़ा सुना ही रही थी, कि ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री गोपाल भार्गव सदन से बाहर आये । उन्हें देखते ही वह पैर पकड़कर दबंगों से जान बचाने की गुहार लगाने लगी । हालांकि श्री भार्गव ने दलित महिला सरपंच को उसका ह$क दिलाने की बात कही है। उन्होंने कहा है, कि शिकायत की पूरी जांच की जाएगी और जांच के बाद अगर यह पाया गया, कि किसी ने अनाधिकृत रूप से राशि निकाली है, तो उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई और वसूली भी होगी।
इस घटना को राज्य मानवाधिकार आयोग ने गंभीरता से लिया और मुरैना कलेक्टर तथा मुख्य कार्यपालन अधिकारी के साथ ही जिला पंचायत से भी जवाब-तलब किया है।
Women Driver
पारंपरिक रोजगार से हटकर नई छबि वाले व्यवसाय अपना रही महिलाएं
रूबी सरकार
इंदौर की रंजीता लोधी की शादी 20 साल की उम्र में हुई थी। लेकिन पति की ओर से भरण-पोषण का बेहतर इंतजाम न होने के कारण उसे दूसरों के घर खाना पकाने जाना पड़ता था, जिससे गुजारे के लिए सीमित आय होती थी। उसकी अपने पति से प्राय: आजीविका को लेकर कहा-सुनी होती थी। एक दिन अचानक दोनों ने अलग होने का फैसला ले लिया और वह अपने दोनों बेटों के साथ मां के घर वापस आ गई।
इस बीच उसकी मुलाकात समान संस्था के एक साथी से हुई, जिसने उसे आय के पारम्परिक रोज़गार से हटकर, अधिक आय और नई छबि देने वाले व्यवसाय को अपनाने की सलाह दी।
रंजीता समान संस्था गई और वहां महिलाओं को ड्राईवर का प्रशिक्षण लेते देख स्वयं पेशेवर ड्राईवर बनने का साहसिक फैसला ले लिया। इससे पहले उसने साईकिल चलाना तक नहीं जानती थी। रंजीता के इस निर्णय से उसकी मां डर लगने लगा, कि अगर कोई अनहोनी हो जाये, तो दोनों बच्चों को कौन संभालेगा। लेकिन रंजीता निर्णय पर अडिग रही। प्रशिक्षण के दौरान वह सुबह-शाम दूसरों के घरों में खाना-पकाने का काम करती रही और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद अब वह पेशेवर ड्राईवर बन गई। रंजीता अभी लगभग 30 साल की है। वह लोगों के बुलावे पर गाड़ी चलाने जाती हैं। वह बीएमडब्ल्यू, इनोवा से लेकर सभी बड़ी गाडिय़ा बेहिचक ड्राईव करती है। महीने में 9 से 10 हजार कमाने वाली रंजीता ने अब अपनी स्वयं की गाड़ी भी किश्तों पर खरीद ली है। आज वह इतना कमा लेती है, कि 4 हजार प्रतिमाह गाड़ी की किश्त के अलावा, बच्चों की पढ़ाई और परिवार का पूरा खर्चा उड़ा लेती है। अब पति भी उसके पास लौट गाया है।
रंजीता की ही तरह 40 से अधिक महिलाएं यहां से ड्राईवर का प्रशिक्षण प्राप्त कर विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी कर रही हैं, इनमें से 2 नगर निगम में, 5 होटल कोटियार्ट मेरिएट में, एक महिला ड्राइवर मारूति ड्राईविंग स्कूल में ड्र्राविंग सिखाती है। कई महिला ड्राईवर पीथमपुर में कंपनियों में हैं तथा कई महिला ड्राईवर विभिन्न घरों में महिलाओं की ड्राईवर के रूप में नौकरी कर रही हैं।
संस्था द्वारा महिलाओं को ड्राईवर प्रशिक्षण के अलावा तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया जाता है। यह ड्राईविंग एवं कार संबंधी प्रशिक्षण कहलाता हैं, जो लगातार 5-6 माह तक चलता है, इनमें अस्थाई लाईसेंस, स्थाई ड्राईविंग लाईसेंस बनाने के बाद सड़कों पर चलाने का अभयास के साथ ही स्वयं अकेले गाड़ी चालाने का अभ्यास शामिल है। इस दौरान महिलाओं से पहिया बदलने का भी अभ्यास करवाय जाता है। इसके अलावा नक्शा पढऩा और रास्ता तलाशना, फस्र्ट एड के प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं।
इस दौरान महिलाओं को व्यक्तित्व विकास, जिससे वे अपने जीवन को ज्यादा उत्साहपूर्ण एवं बेहतर बना सके, इनमें संवाद कौशल एवं रोजगार की तैयारी जैसे प्रशिक्षण भी दिया जाता है। कार्यक्रम के अंतर्गत महिलाओं को ऐसे प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं, जिससे प्रशिक्षार्थी स्वयं को सशक्त महसूस करें और उनमें नई ऊर्जा का संचार हो। इनमें आत्मरक्षा, कानूनी जानकारी, जेण्डर और हिंसा की समझ, अंग्रेजी बोलने आदि के प्रशिक्षण दिए जाते हैं।
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हर औरत को है प्रतिष्ठा से जीवन जीने का अधिकार
हर स्त्री, जीवन में चाहे उसकी कोई भी स्थिति हो, उसे प्रतिष्ठा से जीवन जीने का जन्मजात अधिकार है। समान संस्था का मुख्य लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों एवं महिलाओं की न्याय और समानता के अधिकार तक पहुंच बनाना है। इस दिशा में जेण्डर समानता एक महत्वपूर्ण पहलू है। संस्था द्वारा हिंसा से पीडि़त महिलाओं को कानूनी सहायता दी जाती है। साथ ही सशक्तीकरण के जरिये उन्हें न्याय पाने की दिशा में सक्षम बनाया जाता है। महिलाओं को गैरपरंपरागत आजीविका के साधनों से जोड़कर सामाजिक न्याय तक पहुंच बनाई जा सकती है।
इसी उद्देश्य के साथ इन्दौर में एक कुशल ड्राईवर के रूप में प्रशिक्षित करने में ''समानÓÓ संस्था की टीम पूरी सक्रियता और कर्मठता से काम कर रही है। ''मोबिलाईजेशन टीमÓÓ द्वारा शहर की युवतियों को इस कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। इसके बाद ''प्रशिक्षण टीमÓÓ 6 महीने तक प्रशिक्षण में जुटी रहती और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद ''प्लेसमेंट टीमÓÓ इनके लिए नौकरी की तलाश करती है। इस तरह एक कुशल ड्राईवर बनाने का काम पूरी टीम का है और इस टीमवर्क के कारण ही इन्दौर की सड़कों पर कुशल ड्राईवर के रूप में कार चलाती हुई महिलाएं नजर आ रही हैं।
राजेन्द्र बंधु
संचालक, समान सोसाइटी
Wednesday, January 10, 2018
गांधीजी के 150वीं जन्मशताब्दी पर आकर्षक कैलेन्डर
सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 150वीं जन्मशताब्दी वर्ष पर गांधी भवन न्यास, ग्राम सेवा समिति और गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति राजघाट , नई दिल्ली की ओर से एक कैलेन्डर का प्रकाशन संयुक्त रूप से किया गया है, जिसमें महात्मा गांधी के विचारों और उनके आदर्शों को विशेष स्थान दिया गया है। इस कैलेन्डर का लोकार्पण गांधी भवन न्यास परिसर में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रनसिंह परमार, गांधी भवन न्यासी सचिव नामदेव, पत्रकारों एवं युवाओं के हाथों हुआ। कैलेन्डर में वर्ष 2018 और 2019 की तिथियों के साथ-साथ युवाओं को प्रेरित करने वाले गांधीजी के संदेशों को भी अंकित किया गया हैं।
Friday, January 5, 2018
स्कूलों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम(Right to Education Act (RTE) की धारा 21 का उल्लंघन
स्कूलों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 21 का उल्लंघन
रूबी सरकार
शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 21 में शासकीय और शासन से अनुदान प्राप्त प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में शाला प्रबंधन समिति (एसएमसी) का गठन अनिवार्य किय गया है, जिसमें शाला में अध्ययनरत बच्चों के माता-पिता या संरक्षक और शिक्षकों तथा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को सदस्य बनाने की बात कही गई हैं।
समय-समय पर मध्यप्रदेश शासन ने इस अधिनियम में कई संशोधन किये। 26 मई 2014 को मध्यप्रदेश शासन ने इस अधिनियम में पुन: संशोधन करते हुए 16 जून 2017 को शासकीय एवं अनुदान प्राप्त प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं के आगामी दो सत्रों के लिए 1 से 3 जुलाई तक शाला प्रबंधन समिति गठन किये जाने का सरकुलर जारी किया। साथ ही नवगठित समिति की पहली बैठक 15 जुलाई को होनी तय की गई। इसके पीछे मूल भावना यह रही, कि स्थानीय स्तर पर शालाओं के संचालन में समुदाय की भागीदारी हो सके, जिससे इस कानून को प्रभावी रूप से जनसहभागिता के साथ लागू किया जा सके और बच्चों की शिक्षा के प्रति अभिभावक सजग रहें।
लेकिन जब मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच ने प्रदेश के 8 जिलों के 85 शालाओं में इसकी ह$कीकत जानने की कोशिश की, तो पाया, कि शाला प्रबंध समिति की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद अभी तक कई शालाओं में इसका गठन नहीं किया गया है और अगर गठन हुआ भी है, तो अनेक कारणों से वे अपनी भूमिका नहीं निभा रहे हैं। महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट 2017 में भी कहा गया है, कि मध्यप्रदेश के 12 फीसदी शालाओं में शाला प्रबंधन समिति का गठन ही नहीं हुआ है और 77 फीसदी शालाओं में विद्यालय विकास योजना तैयार ही नहीं की गई है। 13 शाला ऐसे हैं, जिसमें समिति के चयनित सदस्य शिक्षक स्वयं हैं।
साझा मंच के संयोजक जावेद अनीष ने बताया, कि शालाओं ने समिति के गठन में प्राथमिक शाला के समिति में कुल 18 सदस्यों में, 14 उस शाला में पढऩे वाले बच्चों के पालक-अभिभावक होंगे, जिसमें वंचित, कमजोर वर्ग के पालकों-अभिभावकों का भी प्रतिनिधित्व अनिवार्य होगा तथा 14 पालक-अभिभावक के सदस्यों में से 6 सदस्य वंचित वर्ग, 3 कमजोर वर्ग, 5 अन्य वर्ग के साथ ही पूरे सदस्यों में 50 फीसदी महिलाएं सदस्य होंगीं। जबकि मौके पर इन नियमों का उल्लंघन पाया गया । कुल 85 शालाओं में से 37 शालाओं ने प्रक्रियाओं का पालन न करते हुए वंचित, कमजोर वर्ग के पालकों अभिभावकों के प्रतिनिधित्व की संख्या की गणना नोटिस बोर्ड में नहीं प्रदर्शित की । वहीं 48 शालाओं में वंचित, कमजोर वर्ग के पालकों-अभिभावकों के प्रतिनिधित्व की संख्या की गणना कर नोटिस बोर्ड में प्रदर्शित किये गये थे। साथ ही 85 शालाओं में से 72 शालाओं में शाला प्रबंधन समिति का गठन अभिभावक, शिक्षक और समुदाय के समक्ष हुआ, जबकि 13 शालाओं में शाला प्रबंधन समिति में चयनित सदस्यों को शिक्षकों द्वारा होना पाया गया ।
साझा मंच के उपासना बेहार बताया, कि अध्ययन के दौरान यह देखा गया, कि लगभग 70 शालाओं में जिन पालकों-अभिभावकों का चयन शाला प्रबंधन समिति के लिए हुआ है, वे समिति के गठन के दौरान उपस्थित थे, जबकि 15 शालाओं में सभी चयनित सदस्यों में से कुछ सदस्य अनुपस्थित थे। अध्ययनरत 85 शालाओं में से 56 शालाओं में नवनिर्मित शाला प्रबंधन समिति की बैठक होना पाया गया, जिसमें 49 शालाओं में 15 जुलाई, 3 शालाओं में 17 जुलाई और 4 शालाओं में क्रमश: 4 जुलाई, 10 जुलाई, 12 जुलाई को शाला प्रबंधन समिति की बैठक हुई थी, जबकि 29 शालाओं की नवनिर्मित शाला प्रबंधन समिति की बैठक ही नहीं हुई।
मंच ने शासन से सिफारिश की है, कि प्रदेश के सभी शालाओं में शाला प्रबंधन समिति के गठन के साथ-साथ नियमित बैंठकें हों। सभी शालाओं में शाला प्रबंधन समिति के नवनिर्वाचित सदस्यों के नाम और संपर्क नोटिस बोर्ड में प्रदर्शित किया जाये और सघन संपर्क अभियान और प्रचार- प्रसार द्वारा शाला प्रबंधन समिति के सदस्यों को उनके अधिकार, भूमिकाएं, कार्य और जिम्मेदारियों के प्रति प्रेरित किया जाए, जिससे वे समिति में सक्रिय भागीदारी करें। इसके अलावा वंचित और गरीब परिवारों के सदस्यों को शाला प्रबंधन समिति के बैठक में आने में दिक्कत होती है, क्योंकि उनकी उस दिन की दिहाड़ी मारी जाती है इसलिए इनकी भागीदारी बढऩे के लिए सदस्यों को न्यूनतम दैनिक मजदूरी के बराबर विशेष मानदेय दिया जाए, जिससे वो इन बैठकों में भागीदारी कर सकें।
प्रदेश के सभी शाला प्रबंधन समिति के नवनिर्वाचित सदस्यों को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण दिया जाए, जिससे वे शिक्षा अधिकार कानून, शाला प्रबंधन समिति, उनके कार्य व जिम्मेदारियों आदि को समझ सकेगें और शाला के विकास में बेहतर तरीके से अपना योगदान दे पायेगें।
गौरतलब है, कि साझा मंच ने यह अध्ययन रीवा, सतना, शहडोल, जबलपुर, छतरपुर, दमोह, मंडला, शिवपुरी के कुल 85 शालाओं में किया है। अध्ययन किये गए शालाओं में 64 प्राथमिक शाला और 21 माध्यमिक शाला हैं।
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पोषण आहार की नई नीति पर सरकार की चुप्पी ?
पोषण आहार की नई नीति पर सरकार की चुप्पी ?
रूबी सरकार
कुपोषण खत्म करने को लम्बे अर्से से सक्रिय एक साथी ने सवाल उठाया है, कि मध्यप्रदेश में बच्चों के पोषण आहार अनुबंध खत्म हो जाने के बाद भी मुनाफाखोर कंपनियों को काम जारी रखने का अवसर देने का मतलब ! उच्च न्यायालय की अवमानना के साथ क्या चुनावी फंडिंग भी है इसकी एक वजह । अब तक पोषण नीति क्यों नहीं बनी।
आंगनवाडिय़ों में पोषण आहार व्यवस्था में विकेन्द्रीकरण की नीति को उच्च न्यायालय के आदेश के बाद इस व्यवस्था को स्थानीय स्तर पर स्व. सहायता समूहों को सौंपना होगा, लेकिन अब तक सिर्फ महिला समूहों को काम सौंपने की झूठी घोषणा ही हो रही है। पोषण नीति क्यों नहीं बनी। इससे बच्चों को बेहतर और उनकी पसंद का पोषण आहार मिल सकेगा। इस संबंध में 11 बिंदुओं पर सुझाव भी हैं। उच्च न्यायालय ने इन तर्कों का संज्ञान लिया, कि सर्वोच्च न्यायालय ने 7 अक्टूबर 2004 को निर्देश दिए थे, कि एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस)में ठेकेदार उपयोग में नहीं लाये जायेंगे, आईसीडीएस की राशि का उपयोग ग्राम समितियों, स्वयं सहायता समूहों और महिला मण्डलों के जरिये क्रियान्वयन के लिए किया जाएगा । इससे पहले 13 दिसंबर 2006 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था, कि सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को यह शपथ पत्र दाखिल करना होगा, कि आंगनवाड़ी पोषण आहार की आपूर्ति में ठेकेदारों को शामिल न करने के निर्देश पर उन्होंने क्या कदम उठाये।
इधर, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने पीयूसीएल के इस तर्क का संज्ञान लिया है, कि मध्यप्रदेश में स्वयं सहायता समूह पोषण आहार बनाए और वितरण का काम कर रहे हैं, ऐसे में टेक होम राशन बनाने और उसके वितरण का काम भी उन्हें की सौंपा जाये।
फिलहाल उच्चतम न्यायालय की गाइडलाइन का पालन करते हुए प्रदेश सरकार ने पोषाहार आपूर्ति के लिए नई नीति के अंतर्गत निविदा दस्तावेज को अंतिम रूप दिया जा रहा है। लेकिन इसमें पेंच न्यायालय की गाइडलाइन के पात्रता शर्तों के मुताबिक स्व. सहायता समूहों की कमजोरी से कंपनियां घुसपैट कर सकती हैं।
समूहों के पात्रता में सबसे बड़ी दिक्कत उनका निर्माता एजेंंसी नहीं होना है। गाइडलाइन के मुताबिक संबंधित एजेंसी को निर्माता होना चाहिए। प्रदेश में जो स्व सहायता समूह हैं, वह इतने बड़े पैमाने पर मध्यान्ह भोजन के निर्माण व आपूर्ति का अनुभव ही नहीं रखते ।
नई नीति में यह प्रावधान किया गया है, कि यदि पात्र स्व सहायता समूह नहीं मिलता है, तो वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकेगी। इसमें कंपनियों के लिए राह निकल सकती है। इसमें स्व सहायता समूह को पैरेंट एजेंसी तथा कंपनी को सब ऐजेंसी के रूप में काम देने का प्रावधान निविदा दस्तावेज में शामिल कर सकते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय बताते हैं, कि सरकार को नीति बनाने की प्रक्रिया में संस्थाओं, बाल अधिकार समूहों, पोषण-खाद्य सुरक्षा के अधिकार पर काम कर रही संस्थाओं और संगठनों से संवाद करना चाहिए। श्री मालवीय ने कहा, ऐसी व्यवस्था बने, जिससे वास्तविक महिला समूहों को काम मिले और
समूहों के चुनाव की प्रक्रिया पारदर्शी हो तथा हर समूह की विश्वसनीयता समुदाय के स्तर पर भी जाँची जाए।
नई नीति में हितों के टकराव को खत्म किया जाना चाहिए। समूहों का किसी व्यापारिक संस्थान, राजनीतिक दल, प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से सम्बन्ध न हो। साथ ही महिला समूहों की क्षमता वृद्धि, बिना ब्याज का लम्बी अवधि का ऋण, अधोसंरचना स्थापित करने, तकनीक को समझने और पोषण की गुणवत्ता के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। विकासखण्ड स्तर पर पोषणाहार उत्पादन की व्यवस्था बनायी जाए और पोषण आहार में स्थानीय खाद्य सामग्रियों, पारंपरिक अनाजों, दालों, वनों से मिलने वाले उत्पादों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। आंगनवाड़ी में उपलब्ध होने वाले गरम पके हुए भोजन में भी स्थानीय सामग्रियों को शामिल किये जाने के साथ ही नई व्यवस्था में सशक्त सामाजिक अंकेक्षण और सशक्त सामुदायिक निगरानी का प्रावधान होना अनिवार्य हो । इसके अलावा टेक होम राशन का उत्पादन पकाने वाली महिलाओं को कुशल श्रम की मजदूरी का प्रावधान भी होना चाहिए।
गौरतलब है, कि न्यायालय के जवाब में सरकार ने पोषण आहार व्यवस्था स्व सहायता समूहों केा देने के फैसले के साथ ही नई व्यवस्था में ग्लोबल टेंडरिंग का हवाला दिया है।
मध्यप्रदेश में आंगनवाडिय़ों के जरिए 6 साल तक के बच्चों और गर्भवती तथा धात्री माताओं को पोषणआहार दिया जाता है। यह काम अब तक तीन बड़ी कंपनियां करती आई हैं। इस पोषण आहार का लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा हैए इसकी गुणवत्ता पर भी सवाल होते रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने आदेश में गरम पका हुआ भोजन वितरित करने को कहा है। सरकार ने इस पर यह निर्णय लिया था, कि इस व्यवस्था का विकेन्द्रीकरण किया जाएगा, लेकिन एक संस्था की जनहित याचिका पर इस निर्णय पर स्थगन ले लिया गया था। 13 सितम्बर को कोर्ट ने इस स्थगन को खारिज करते हुए विकेन्द्रित व्यवस्था अपनाने का आदेश देकर एक माह में नई नीति बनाने को कहा है।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने पीयूसीएल के इस तर्क का संज्ञान लिया है, कि चूंकि वैसे की मध्यप्रदेश में स्वयं सहायता समूह पोषण आहार बनाए और वितरण का काम कर रहे हैं, ऐसे में टेक होम राशन बनाने और उसके वितरण का काम भी उन्हें की सौंपा जा सकता है, यह काम एम पी एग्रो या इसके संयुक्त उपक्रमों के जरिये किये जाने की जरूरत नहीं है।
चूंकि मौजूदा ठेकेदार व्यवस्था का अनुबंध 31 मार्च 2017 को खत्म हो चुका है, तो मध्यप्रदेश सरकार उसे बनाए रखने के लिए बाध्य नहीं है और वह कोई भी नीतिगत निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। पोषण आहार में विकेन्द्रीकरण इसलिए जरूरी है, क्योंकि स्थानीय स्तर पर स्व. सहायता समूहों के हाथ में काम होने पर समुदाय और महिलाएं स्थानीय स्तर पर अपने बच्चों के लिए बनाये जा रहे भोजन की गुणवत्ता और व्यवस्था की निगरानी कर पाएंगी। स्वयं सहायता समूह वे समूह हैं, जो महिलाएं आपस में जुड़ कर अपने सशक्तीकरण के लिए बनाती हैं।
आदेश के बिंदु
क- मध्यप्रदेश सरकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पीयूसीएल बनाम भारत सरकार के केस (196/2001) में दिए गए निर्देशों, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून और भारत सरकार के निर्देशों के तारतम्य में पोषण आहार की नीति बनाए।
ख- पूर्व में जो आपूर्तिकर्ता और उत्पादक टेक होम राशन की आपूर्ति कर रहे थे, उनका अनुबंध 31 मार्च 2017 को पूरा हो चुका है, अत: मौजूदा प्लांट, उत्पादन, वितरण और आपूर्ति को जारी रखने का आदेश देने के लिए दाखिल की गई याचिका को निराकृत किया जाता है।
ग-मध्यप्रदेश सरकार पोषण आहार पर नीतिगत निर्णय लें और 30 दिन में नई व्यवस्था बनायें।
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