जिस मालगाड़ी से बंदेलखंड में कभी पानी आता था
अब उसी से चावल की हो रही सप्लाई
रूबी सरकार
चित्रकूट-बांदा जिला कभी डाकूओं और अपराधियों के लिए कुख्यात था। लेकिन अब चित्रकूट-बांदा ही नहीं, बल्कि पूरे बुंदेलखंड में अपराधियों की संख्या घटी है। इसमें बहुत बड़ी भूमिका सर्वोच्च लोक सम्मान से सम्मानित पद्मश्री उमाशंकर पाण्डेय का है, जिन्होंने कई दशकों तक इस क्षेत्र में जल संरक्षण का काम किया। उमाषशकर बांदा जिले का एक गांव जखनी, के रहने वाले हैं। पहले तो इन्होंने सूखे जखनी को खेत में मेड़़ बंधान कर जलग्राम बनाया। इसके बाद सूखे के लिए बुंदेलखंड के किसानों को प्रशिक्षण देकर न केवल वहां समुदायों की आजीविका में सुधार लाए, बल्कि अपराध और पलायन को भी रोकने में सफलता हासिल की। पाण्डेय को समुदाय के साथ जुड़कर काम करने की प्रेरणा अपनी मां सुमित्रा देवी से मिली। वे बताते हैं कि जिस मालगाड़ी से कभी बुंदेलखंड में पानी की सप्लाई की जाती थी। आज उसी मालगाड़ी से बासमती चावल की सप्लाई पूरे देश में हो रही है।
दरअसल स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में जन्मे उमाशंकर पाण्डेय को युवावस्था में मां ने किसी बात पर डांटते हुए कहा था, कि जीवन में कुछ नया करना चाहते हो, तो पहले अपना गांव घूम लो। यहां के लोगों से मिलने के बाद मां ने मशहूर बांदा जेल में अपराधियों से मिलने की सलाह दी थी। मां के कहने पर उमाशंकर गांव व जेल दोनों जगह गए । उन्होंने देखा कि गांव में 58 फीसदी घरों में ताले जड़े हुए थे और जेल के कैदियों जखनी वालों की संख्या अधिक थी। वापस आकर उन्होंने अपने मां से दोनों जगहों की बात साझा की और प्रश्न किया कि ऐसा क्यों है? मां ने इसके जो कारण बताए, उससे उमाशंकर की जीवन की दिशा ही बदल गई। उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि गांव में रहकर ग्रामीणों की जिंदगी में सुधार लाना है। उनकी आजीविका में सुधार लाने के लिए खेती-किसानी को बढ़ावा देने के अलावा उस समय दूसरा और कोई रास्ता नहीं था। कृषि ही एक मात्र उपाय है, जो इंसान का पेट भरता है। इससे पलायन और युवाओं को अभाव के चलते अपराधी बनने से रोका जा सकता है।
आजीविका सुधारने के लिए उस वक्त एक ही उपाय था कि गांव की जमीन को उपजाउ बनाया जाए। उन्होंने भमि सुधार के अंतर्गत ग्रामीणों को उबड़-खाबड़ जमीन को समतल करना सिखाया। इसके बाद खेतों में मेड़़ बंधान के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया। यह श्रमसाध्य काम था। हालांकि यह पुरखों की विधि है। लेकिन बड़े किसान ही कोल समुदाय के सहयोग से यह कर पाते थे। क्योंकि कोल समुदाय को इस काम में सिद्धहस्त प्राप्त था, जो बड़े किसानों के खेतों में मजदूरी करते थे। उमाषशंकर ने श्रमदान के जरिए किसानों को खेतों में मेड़ बनाना सिखाया, जिससे खेतों में नमी आने लगी। मिट्टी में सूक्ष्म जीव पलने लगे, इससे भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ गई । जब परिणाम सामने आने लगे, तब उन्होंने नारा दिया 'खेत में मेड़़ और मेड़़ में पेड़' , बस क्या था। धीरे-धीरे पूरे गांव में हरियाली लहलहाने लगी। भूमि के कटाव के कारण मृदा के पोषक तत्व खेत से बह जाते थे, अब वह रुकने लगा। पशुओं को चारा मिलने लगा। किसान मेड़़ पर बेल, सहजन, सागौन, करौदा, अमरूद,नींबू जैसे फलदार और छायादार औषधि के पेड़ लगाने लगे। खेतों में धान व गेहूं का उत्पादन इतना बढ़ गया कि भारत सरकार ने भी इस गांव को मॉडल गांव के रूप में स्वीकर किया और निर्णय लिया कि देश में मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीणों को मजदूरी देकर मेड़़ बंधान करवाया जाए। इससे ग्रामीणों को दोहरा लाभ मिलेगा।
उमाशंकर के प्रयास से बिना प्रचार-प्रसार के मेड़़बंदी विधि डेढ़ लाख से अधिक गांव तक पहुंच गई। जलशक्ति व ग्रामीण विकास मंत्रालय, नीति आयोग ने इस परंपरागत जल संरक्षण विधि को उपयुक्त माना । ग्रामीणों ने मनरेगा के अंतर्गत जल सहेजने के लिए कुंआ,तालाब, बांध, बड़े-बड़े जलाशय बनाना शुरू कर दिए । अब जखनी में पानी से लबालब भरे बड़ी दाई तालाब, रद्दू बाबा तालाब, रसिया तालाब, गड़रिया तालाब, नरसिंह तालाब, बड़ा तालाब और जखनिया तालाब अपने आप में बसंत सा मौसम बयां करते हैं। बढ़ता जलस्तर जखनी के किसानों की हिम्मत की कहानी है।
मंगल पाण्डेय फाउंडेशन के सचिव उमाषशंकर कहते हैं, कि जल सहेजने का एक ही सिद्धांत है कि जहां वर्षा की बूंदे गिरे उसे वहीं रोके। इस विधि से केवल भूजल स्तर ही नहीं बढ़ता, बल्कि लाखों खेत के जीव-जंतु को पेड़ पौधों को पीने के लिए पानी मिलता है। खेत से फसल लाने के लिए पुरखों की यह सबसे पुरातन जल संरक्षण विधि है, जो परंपरागत के साथ सामुदायिक है। सुलभ है, बगैर किसी तकनीकी मशीन , शिक्षण, प्रशिक्षण के कोई भी किसान नौजवान मजदूर खुद अपनी मेहनत से अपने खेत में इस विधि से जल संरक्षण कर सकता है। 'खेत में मेड़़, मेड़़ पर पेड़' इस विधि के कारण भारत वर्ष में जलग्राम जखनी को जाना जाने लगा है। यह मेड़़ बंधान केवल खेतों तक ही सीमित नहीं है, इसे बड़े-बड़े उद्योगिक घरानों ने भी अपनाया है। उमाषशंकर द्वारा शुरू किए गए इस परंपरागत प्रयास से बुंदेलखंड में रवि और खरीफ का रकबा बढ़ा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जिस गांव में कभी 200 बीघे में सामान्य धान होता था, वहां 1000 बीघे में धान होने लगा है। इसी तरह गेंहू की उपज में भी काफी वृद्धि हुई है।
समुदाय की आजीविका सुधारने के लिए समुदाय के साथ मिलकर अथक प्रयासों से उमाषशंकर पाण्डेय ने जो प्रयास किए, उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें देश का सर्वोच्च लोक सम्मान 'पद्मश्री' से सम्मानित किया है। पाण्डेयजी कहते हैं कि पानी, पेड़ और मिट्टी के लिए बिना थके, बिना रूके डटे रहना ही उनके जीवन का उद्देश्य है।
Amrit Sandesh 03 semtember 23
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