Monday, April 18, 2011

अभिनेत्री और स्वधीनता संग्राम सेनानी ‘वनमाला’
हिन्दी और मराठी फिल्मों की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री वनमाला दरअसल ग्वालियर की सुशीला देवी पवार थीं। बॉलीवुड में करिअर शुरू करते समय उन्होंने अपना नाम वनमाला रख लिया। उनका जन्म सन् 1911 में उज्जैन में हुआ। उनके पिता बाबू राव पवार ग्वालियर रियासत में मंत्री रहे। वनमाला विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर की पहली महिला स्रातक विद्यार्थी थी। आगरा विश्वविद्यालय से उन्होंने स्रातक की उपाधि हासिल की। इसके बाद वनमाला मुंबई चली गर्इं और पुणे से सन् 1938 में बीटी की उपाधि हासिल कर वहींं अध्यापिका बन गई। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह मुंबई के पीके सावंत से हो गया। लेकिन दुर्भाग्य से कुछ समय बाद ही दोनों अलग रहने लगे। उनकी स्वप्निल आंखें उन्हें बॉलीवुड ले आर्इं। 21 वर्ष की आयु में फिल्मी करिअर शुरू करने वाली वनमाला की पहली ब्लॉक बस्टर ऐतिहासिक फिल्म सिकन्दर (1941) थी। मिनर्वा मूवीटोन के बैनर तले बनी इस फिल्म में उनके साथ सोहराब मोदी और पृवीराज कपूर थे। रूख्साना की भूमिका में उन्होंने जबरदस्त अभिनय किया था। वनमाला ने फिल्मी करिअर में 30 हिन्दी और पांच मराठी फिल्मों में काम किया। वे सन् 1940 से सन् 1950 तक वे बॉलीवुड में सक्रिय रहीं।
हिन्दी और मराठी दोनों भाषाओं में समान अधिकार रखने वाली वनमाला को मराठी फिल्म श्याम ची आई (1953) में अविस्मरणीय भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्टÑपति स्वर्ण कमल पुरस्कार मिला। उन्हें यह पुरस्कार भारत के प्रथम राष्टÑपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने प्रदान किया था। फिल्म का निर्देशन आचार्य प्रह्लाद के शव आत्रे ने किया था, जिसकी कहानी स्वतंत्रता सेनानी और प्रसिद्ध मराठी रचनाकार साने गुरुजी के आत्मकथात्मक उपन्यास पर आधारित है। उनकी यादगार फिल्मों में रामचंद्र ठाकुर निर्देशित शरबती आंखें (1945), बैचलर हसबेंड (1950) , आजादी की राह पर (1948), बीते दिन (1947), चन्द्रहास (1947), खानदानी (1947), आरती (1945), चरणों की दासी (1941), वसंतसेना (1942), दिल की बात (1944), हातिमताई (1947), बीते दिन (1947), श्रीराम भारत मिलाप (1965), पयाची दासी और मोरूची मावशी मराठी आदि है। एक फिल्म का शीर्षक शरबती आंखें, उनकी आंखों को देखते हुए बिल्कुल सटीक था। अनेक प्रमुख निर्माता-निर्देशकों के साथ उन्होंने काम किया। इनमें आचार्य प्रह्लाद के शव आत्रे, रामचंद्र ठाकुर के नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने मराठी फिल्म पयाची दासी और मोरूची मावशी में उत्कृष्ट अभिनय किया।
उन्होंने परंपरा और देश की संस्कृति को बढ़ावा देने वृन्दावन में शास्त्रीय नृत्य एवं गायन के लिए हरिदास कला संस्थान नाम से विद्या केंद्र स्थापित किया। उनकी रुचि घुड़सवारी, टेनिस जैसे खेलों में भी रही। वनमाला कई सामाजिक गतिविधियों से गहराई से जुड़ी थीं। वे छत्रपति शिवाजी नेशनल मेमोरियल कमेटी की सदस्य थी। प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अरूणा आसफ अली और अच्युत पटवर्धन के साथ वे आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहीं। उन्होंने कृष्ण भक्ति में अपना आखिरी जीवन बिताया।
लम्बे समय तक केंसर से पीड़ित वनमाला का निधन 92 वर्ष की आयु में 29 मई, 2007 को ग्वालियर में हो गया। उनकी चार बहनें और दो भाइयों में छोटे भाई ब्रिगेडियर एनआर पवार ग्वालियर में और बहन सुप्रसिद्ध मराठी लेखिका सुमति देवी धनवटे नागपुर में रहती हैं।
उपलब्धि : मराठी फिल्म श्याम ची आई के लिए राष्ठÑीय पुरस्कार- 1953

No comments:

Post a Comment