Saturday, December 5, 2015


विश्व •ी सबसे बड़ी औद्योगि• त्रासदी •ी 31वीं बरसी
प्रदूषित भू-जल से तीसरी पीढ़ी •े ढाई हजार बच्चे जन्मजात वि•ृत
रूबी सर•ार
23 दिसम्बर 1984 •ी रात •ो  भोपाल स्थित यूनियन •ार्बाइड इंडिया लिमिटेड •ी •ीटनाश• •ारखाने •ी टं•ी से रिसी 40 टन मिथाइल आयसोसायनेट (एमआईसी) गैस (जो ए• गम्भीर रूप से घात• ज़हरीली गैस है) •े •ारण ए• भयावह हादसा हुआ। •ारखाने •े प्रबंधन •ी लापरवाही और सुरक्षा •े उपायों •े प्रति गैर.जि़म्मेदाराना रवैये •े •ारण एमआईसी •ी ए• टं•ी में पानी और दूसरी अशुद्धियां घुस गईं जिन•े साथ एमआईसी •ी प्रचंड प्रति•्रिया हुई और एमण्आईण्सीण् तथा दूसरी गैसें वातावरण में रिस गईं। ये जहरीली गैसें हवा से भारी थीं और भोपाल शहर •े •रीब 40 •िमी इला•े में फैली 56 वार्डों में (सर•ार •े मुताबि• 36 वार्डों)छा गईं। इन•े असर से (•ई सालों में) 20 हजार से ज़्यादा लोग मारे गए और लगभग साढ़े 5 लाख लोगों पर अलग-अलग स्तर •े असर हुए। उस समय भोपाल •ी आबादी लगभग 9 लाख थी। यूनियन •ार्बाइड •ारखाने •े आस-पास •े इला•े में पेड़.पौधों और पशु-पक्षियों पर हुआ असर भी उतना ही गम्भीर था। यूनियन •ार्बाइड इंडिया लिमिटेड उस समय यूनियन •ार्बाइड •ॉरपोरेशन •े नियंत्रण में था, जो अमरी•ा •ी ए• बहुराष्ट्रीय •म्पनी है औऱ अब डाओ •ेमि•ल •म्पनीए (यूएसए) •े अधीन है।

हादसे •े 3 दश• बाद भी न तो राज्य सर•ार ने और न ही •ेन्द्र सर•ार ने इस•े नतीजों और प्रभावों •ा •ोई समग्र आ•लन •रने •ी •ोशिश •ी है, न ही उस•े लिए •ोई उपचारात्म• •दम उठाए हैं। 14-15 फरवरी 1989 •ो •ेन्द्र सर•ार और •म्पनी •े बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था और उस•े तहत मिली र•म •ा हरे• गैस प्रभावित •ो पांचवें हिस्से से भी •म मिल पाया है। नतीजतन गैस प्रभावितों •ो स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास, मुआवज़ा, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और न्याय सभी •े लिए लगातार लड़ाई लडऩी पड़ी है। साल 2015 में गैस प्रभावितों •े सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहुत •म प्रगति होना गम्भीर चिन्ता •ा विषय रहा है।
अगर पीडि़तों •े स्वास्थ्य, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति,  मुआवजा और मु•दमों •ी स्थिति •ो देखें, तो हालिया स्थिति •ुछ इस तरह  है:

    स्वास्थ्य: गैस प्रभावितों •ी स्वास्थ्य ज़रूरतों •े प्रति राज्य और •ेन्द्र सर•ार •ा •ी लापरवाही पहले •ी तरह ही चिन्ताजन• बनी हुई है। प्रभावितों •े ह• में लड़ रही संगठनों •े दबाव •े •ारण स्वास्थ्य सुविधाओं •े नाम पर •ई इमारतों और बड़ी संख्या •ी बिस्तरों वाले अस्पताल तो खोल दिए गए हैं, परन्तु जांच, निदान, शोध और जान•ारी मेनटेन •रने जैसे मामलों में स्वास्थ्य सुविधाओं •ी गुणवत्ता बहुत ही खराब है। भोपाल •े गैस पीडि़तों •ी स्वास्थ्य स्थिति •ी निगरानी में आईसीएमआर (इण्डियन •ौंसिल ऑफ मेडि•ल रिसर्च)और मध्यप्रदेश सर•ार •ी हद दर्जे •ी उदासीनता चौं•ा देने वाली है। ये अस्पतालों और क्लिनि• •े मेडि•ल रि•ॉर्ड •ो मेनटेन •रने और गैस प्रभावितों •ी मेडि•ल जान•ारी •ो •म्प्यूटरी•ृत •रने में और प्रत्ये• गैस प्रभावित •ो उस•ी मेडि•ल रि•ॉर्ड वाली पुस्ति•ा देने में भी असफल रहे हैं। 31 साल बाद भी गैस से संबंधित शि•ायतों •े इलाज •ा •ोई निश्चित तरी•ा नहीं खोजा गया है। महज़ लक्षण.आधारित इलाज, निगरानी और जान•ारी •ी •मी •े •ारण ज़रूरत से ज़्यादा दवाएं दिए जाने और गलत या न•ली दवाओं •े •ारण प्रभावितों में •िडनी फेल होने •ी घटनाएं बहुत बढ़ गई हैं। आईसीएमआर ने भोपाल सम्बंधी मेडि•ल जांच •ो 1994 में बंद •र दिया था, जिसे उसे 2010 में फिर से शुरू •रना पड़ा। परन्तु इसमें ज़रूरी गहराई और •ड़ाई •ा पालन अब भी नहीं हो रहा है। तथ्य यह है •ि न तो आईसीएमआर •ो और न ही राज्य सर•ार •ो यह मालूम है, •ि सांस •ी, आँखों •ी, पेट और आंत •ी, तंत्रि•ा-तंत्र •ी, मनोचि•ित्स•ीय व अन्य समस्याओं में से •िस विभाग •े •ितने मरीज़ हैं। उतनी ही चौं•ाने वाली बात यह है •ि 31 साल बाद भी इलाज •े लिए आने वाले अधि•तर गैस प्रभावितों •ो अस्थाई क्षति •े दर्जे में रखा जाता है । जिससे उन्हें स्थाई क्षति •े लिए मुआवज़ा न देना पड़े।

    भारत सर•ार और  राज्य सर•ार •ी इस असंवेदनशीलता •े चलते भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन, भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉरमेशन एंड एक्शन और बीजीपीएसएसएस ने आवेद• •्रमां• 1, 2 व 3 •े रूप में उच्चतम न्यायालय में 14 जनवरी,1998 •ो ए• याचि•ा (1998 •ा •्रमां• 50) दर्ज •िया। आवेद•ों ने हादसे से संबंधित मेडि•ल शोध •ो दोबारा शुरू •रने, प्रत्ये• गैस पीडि़त •े स्वास्थ्य •ी स्थिति •ा रि•ॉर्ड रखने और उस•ी निगरानी •रने, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार लाने, हादसे से संबंधित हर त•लीफ  •े लिए उपयुक्त व्यवस्था •िए जाने आदि •े लिए गुहार लगाई। 14 साल •ी सुनवाई और •ई अंतरिम आदेशों •े बाद उच्चतम न्यायालय ने आखिर 9 अगस्त, 2012 •ो समुचित आदेश पारित •िया, जिसमें इस याचि•ा •ी सभी बातें मानते हुए भारत सर•ार,  राज्य सर•ार और संबंधित संस्थानों •ो इस संबंध में ज़रूरी निर्देश भी जारी •िए। आगे आवेद•ों से मामले •ो मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय •े समक्ष ले जाने •ो •हा गया । (2012 •ा याचि•ा •्रमां• 15658) जिसमें भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने स•्रियता से आगे बढ़ाया है। संगठन •े अब्दुल जब्बार बताते हैं, •ि 'हाल यह है, •ि उच्चतम न्यायलय द्वारा 9अगस्त, 2012 •ो आदेश पारित •रने •े 39 माह बाद भी भारत सर•ार और राज्य सर•ार ने •ोर्ट •े आदेशों •े समुचित पालन •े लिए ज़रूरी •दम नहींं उठाए हैं। शर्मना• बात यह है •ि हादसे •े 31 साल बाद भी पीडिय़ों •े सही मेडि•ल रि•ॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। दावे तो इससे उलट •िए जा रहे हैं, परंतु ह•ी•त यह है, •ि गैस पीडि़तों •े पास उन•े समूचे मेडि•ल •ेस •ा •ोई भौति• रि•ॉर्ड ही नहीं हैÓ।
    प्रतिवादी द्वारा उच्चतम न्यायलय •े 9 अगस्त, 2012 •े उपरोक्त आदेश •ा पालन नहीं •िए जाने •े •ारण भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने मजबूर हो•र 15 मई, 2015 •ो •ेंद्र , मध्यप्रदेश राज्य और अन्य संस्थानों जैसे आईसीएमआर, एनआईआईएच व बीएमएचआरसी •े खिलाफ अवमानना याचि•ा (2015 •ा •्रमां• 832) दायर •िया। अवमानना याचि•ा स्वी•ार •रते हुए उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी •ो नोटिस जारी •िए। इसी बीच प्रमुख सचिव, मध्यप्रदेश सर•ार और सचिव, भोपाल गैस •ांड राहत और पुनर्वास विभाग, जो प्रतिवादी •्रमां• 3 व 4 हैं , ने इस अवमानना याचि•ा पर अपने जवाब 16 सितम्बर, 2015 •ो दाखिल •िए। अत: •ोर्ट ने भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति •ो इस पर अपने प्रत्युत्तर दाखिल •रने •ो •हा। चूँ•ि प्रतिवादी •े जवाब अधि•तर झूठे और भ्रमित •रने वाले थे, इसलिए  भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने अपने प्रत्युत्तर •े साथ ही ए• आवेदन लगा•र न्यायालय से अपील •ी, •ि वह संविधान •ी धारा 266 •े तहत प्रतिवादी •्रमां• 3 और 4 पर भारतीय दंड संहिता •ी धारा 191 और 193 •े आधार पर न्यायालय •ो गुमराह •रने •े लिए सूओ मोटो •ार्यवाही •रे।
वर्ष 2008 •ो ए• चौं•ाने वाली और शर्मना• घटना सामने आई •ि 2004 से 2008 •े बीच बीएमएचआरसी में गैस पीडि़तों पर बिना जान•ारी •े दवाओं •े प्रयोग •िए गए। मामला सामने आने •े बाद से बीएमएचआरसी प्राधि•रण गुनहगारों •ो बचाने •ी हर सम्भव •ोशिश में लगी हुई है। भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने न्यायालय से मांग •ी है •ि गैस पीडि़तों •ा इस तरह प्रयोग •े चूहों •ी तरह इस्तेमाल •रने •ी इस घटना •ी बारी•ी से जांच •ी जाए और दोषियों •ो •ड़ी से •ड़ी सज़ा दी जाए। इस मामले •ो आगे ले जाने •े लिए भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति 2012 •े याचि•ा •्रमां• 33 में भागीदार बना हैं , जो देश में बिना •िसी निगरानी •े दवा प्रयोगों  खास•र बहुराष्ट्रीय •म्पनियों द्वारा   •े विरोध में दर्ज •ी गई थी और जो उच्चतम न्यायालय •े समक्ष विचाराधीन है।

    मुआवज़ा: 14.15 फरवरी 1989 •े 21 साल बाद भारतीय गणराज्य ने उच्चतम न्यायालय •े समक्ष ए• उपचारात्म• याचि•ा 2010 में दायर •र•े समझौते •ी शर्तों पर सवाल उठाया और यह •हा, •ि समझौता मृत और प्रभावितों •ी बहुत •म आं•ी गई संख्याओँ पर आधारित थी। भारतीय गणराज्य ने मुआवज़ो में अतिरिक्त 7728 •रोड़ रुपए •ी बढ़ोतरी •ी मांग •ी है। जब•ि 1989 •ी समझौता राशि मात्र 705 •रोड़ रुपए •ी थी। याचि•ा स्वी•ृत हो गई है पर सुनवाई शुरू नहीं हुई है। भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति सैद्धांति• स्तर पर •ुल प्रभावित संख्या (मृत और बीमार मिला•र 5 लाख ,73हजार ,586 प्रभावित) और मुआवज़ा बढ़ाने •े तरी•ों (यानी यह •ि समझौता राशि उस समय •े डॉलर-रुपया •ी दर पर आधारित होना चाहिए) से सहमत हैं। परन्तु भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति •ा मृत•ों •ी संख्या (उपचारात्म• पेटिशन •े अनुसार मात्र 5295), गंभीर रूप से बीमारों •ी संख्या (उपचारात्म• पेटिशन •े अनुसार मात्र 4944) और राहत और पुनर्वास तथा पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति •े लिए बहुत •म मंागों पर भारतीय गणराज्य से घोर असहमति है। मृत•ों •ी संख्या ;20 हजार से ऊपर और गम्भीर रूप से बीमार प्रभावितों •ी संख्या ए• लाख 50 हजार से अधि• •े बारे में उच्चतम न्यायालय •े समक्ष लम्बित विशेष अव•ाश याचि•ा •्रमां• एसपीएल (सी) नं. 12893 दिनां• 2010 में पहले ही बताया जा चु•ा है। इस•ी सुनवाई  पेटिशन •े पूरे हो जाने •े बाद ही शुरू होगी। 24 अक्टूबर, 2015 •ो भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने भारतीय गणराज्य •े उपचारात्म•  आवेदन •े माध्यम से  उसमें मौजूद गड़बडिय़ों •ी ओर ध्यान दिलाया है और उपयुक्त राहत •ी माँग •ी है। गौरतलब है •ि भारतीय गणराज्य ने आईसीएमआर •े प्रासंगि• रपटों •ो दावा अदालतों •े समक्ष पेश •रने •ी •ोई •ोशिश ही नहीं •ी, जिससे वह भोपाल गैस पीडि़त बीमारों •ो हुए नु•सान •े प्र•ारों और गम्भीरता •ा अन्दाज़ा लगा पाते। स्वास्थ्य पुस्ति•ा •े अभाव में  जो आईसीएमआर और राज्य सर•ार लोगों •ो मुहैया •राने में असफल रही है , उपरोक्त परिस्थिति.जनित साक्ष्य प्रभावितों •ो हुए नु•सान •ी गम्भीरता •ा पता लगाने में बहुत मददगार हो स•ती थी। संगठनों •ो उम्मीद है •ि उच्चतम न्यायालय •े पास पिछले 5 साल से लम्बित इस उपचारात्म• आवेदन प्रत्ये• गैस प्रभावित •ो स्वास्थ्य पुस्ति•ा दिए जाने •े बाद, जल्द से जल्द निपटारा •िया जाएगा।

    फौजदारी मु•दमा:  आरोपियों •े खिलाफ  फौजदारी मु•दमा दो स्तरों पर चल रहे हैं। पहला तीन भगोड़े आरोपियों •े खिलाफ और दूसरा उन 8 आऱोपियों •े खिलाफ  , जो भोपाल •े मुख्य न्यायि• मजिस्ट्रेट (सीजेएम) •े समक्ष हाजिऱ हुए थे। दि. 7 जून, 2010 •े आदेश और फैसले •े तहत सीजेएम ने इन आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता •ी धारा 304.एए 336ए 337 व 338 •े तहत •ार्यवाही •ी। सीबीआई मध्यप्रदेश राज्य सर•ार एवं भोपाल गैस पीडि़त  संगठनों ने भोपाल •े सत्र न्यायालय में उक्त फैसले •े विरोध में फौजदारी संशोधन याचि•ा लगाया है। अभियोजन पक्ष •े आवेदन •ो पूरी तरह नजऱअन्दाज़ •र•े और आरोपियों •े मुद्दों •ो पूरी तरह से मान्यता देते हुए 28 अगस्त, 2012 •ो सत्र न्यायालय ने सीबीआई •े फौजदारी संशोधन याचि•ा •्रमां• 2012 •ा 632 •ो यह •हते हुए खारिज •र दिया था, •ि वह वहनीय नहीं है और उन•ा पहले •ा फैसला •िसी सीमा से बंधा हुआ नहीं है । सीबीआई ने सीजेएम  •े समक्ष पहले से ही मौजूद सबूतों •े आधार पर मुख्य आरोपी •ेशुब महिन्द्रा और 7 अन्य आरोपियों •े खिलाफ  धाराओं •ो भारतीय दंड संहिता •ी धारा 304.ए से बढ़ा•र 304 भाग 2 •रने •ी अपील •ी थी। इस तरह उपचारात्म• आवेदन •े मामले में उच्चतम न्यायालय •े 11 मई, 2011 •े आदेश से मिलने वाली उम्मीद •ी •िरण फिर धुंधली हो गई है। उपरोक्त आदेश में उच्चतम न्यायालय ने •हा था, •ि फौजदारी अपील •्रमां• 2010 •ा 39-42 •े मामले में उस•े 13 सितम्बर,1996 •े आदेश •ी गलत व्याख्या •ो अपील या रिविजऩ अदालत द्वारा सुधारा जा स•ता है । इसी तरह मध्यप्रदेश राज्य और भोपाल गैस पीडि़त संगठनों द्वारा लगाई गई अन्य संशोधन पेटीशन •े बारे में हमारी उम्मीदों पर भी तब पानी फिर गया, जब सत्र न्यायालय ने उन्हें तीन साल त• लट•ा•र रखने •े बाद सिरे से खारिज •र दिया। भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन व भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने न्याय प्र•्रिया •ी बेहद धीमी चाल •ा पहले ही विरोध दर्ज •रते हुए विशेष न्यायालय •ी मांग •ी थी, जिस पर राज्य सर•ार ने •ोई •ार्यवाही नहीं •ी है। सीबीआई भी इन मामलों •ो गति देने में •ोई रुचि नहीं लेता है।
    हालिया स्थिति •े बारे में  भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन •े अब्दुल जब्बार •हते हैं, •ि  जिन्होंने 14-15 फरवरी 1989 •े अन्यायपूर्ण समझौते •े खिलाफ अपील और रिट याचि•ा लगा•र 1991 में आरोपियों •े खिलाफ फौजदारी मामले फिर शुरू •रवाए, वे ही सत्र न्यायालय में भारतीय आरोपियों •े खिलाफ  जारी फौजदारी मामले से बाहर •र दिए गए हैं। सज़ा •े नाम पर अभी त• 7 आरोपी (•्रमां• 2 से 9) •ेवल 1984 में 10 से 14 दिन •ा •ारावास ही भुगते हैं और आरोपी •्रमां• 4 तो इतना भी नहीं। ऐसी स्थिति में आरोपी अपने जीवन•ाल में फिर •ोई सज़ा न भुगतने •े बारे में निश्चिंत हैं, जब•ि जि़न्दा और मरे हुए प्रभावितों •े रिश्ते-नातेदारों •ो 31 सालों से भुगत रहे बीमारी और हानियों •े एवज़ में अपने जीवन•ाल में न्याय पाने •ी हल्•ी सी उम्मीद भी नहीं दिखाई देती है। यह सच्चाई हमारी न्यायि• प्र•्रिया •े बारे में बहुत •ुछ •हती है जो चुन-चुन•र न्याय देती है।
    भोपाल •े सीजेएम •े समक्ष  3 भगोड़े आरोपियों (•्रमां• 1, 10 व 11) •े खिलाफ फौजदारी मामला चल रहा है, परन्तु इस•ी गति भी बेहद धीमी है। संगठनों •ी ओर से 7 सितम्बर,2001 •ा आवेदन स्वी•ार •रने •े बाद सीजेएम ने 6 जनवरी, 2005 •ो डाव •ेमी•ल •म्पनी •ो 6 जनवरी, 2005 •ो नोटिस जारी •िया •ि वह आरोपी •्रमां• 10 (यूनियन •ार्बाइड •ॉरपोरेशन •े भगोड़े आरोपी) •ी ओर से हाजिऱ हों ,क्यों•ि उस •म्पनी •ो डाव ने 2001

में खरीद लिया था। परन्तु मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय •ी जबलपुर खंडपीठ ने इस आदेश पर ए• असंबंधित •ी अपील पर 17 मार्च, 2005 •ो स्थगन जारी •र दिया। यह स्थगनादेश 7 साल बाद 19 अक्टूबर, 2012 में खारिज हुआ जब उच्च न्यायालय ने आखिर•ार सीजेएम •े 6 जनवरी, 2005 •े आदेश •ो मान्य घोषित •िया। जब भोपाल गैस पीडि़त संगठनों ने 30 जनवरी, 2012 •ो ए• आवेदन •े ज़रिए उच्च न्यायालय •े आदेश •ो सीजेएम •ी नजऱ में लाए तब सीजेएम ने डाव •म्पनी •ो फिर से 24 जुलाई, 2013 और 12 जनवरी, 2014 •ो नोटिस जारी •िए। परन्तु डाव •ी तरफ से नोटिस •ी अवमानना लगातार जारी है। दूसरी ओर आरोपी •्रमां• 1  वॉरेन एंडरसन, •े खिलाफ •ार्यवाही 29 सितम्बर, 2014 •ो हुए उन•े देहावसान •े बाद रद्द हो गई है। सीजेएम  •े समक्ष अगली सुनवाई 19 दिसम्बर, 2015 •ो है। श्री जब्बार •े अनुसार पिछले 31 सालों से जिस धीमी और लापरवाही से भोपाल •ांड •े आरोपियों •े खिलाफ  मु•दमा चला है, वह हमारी न्याय प्र•्रिया •ा मज़ा• ही बनाती है। न तो •ेन्द्र सर•ार और न ही राज्य सर•ार इस मामले में गम्भार नजऱ आती है जिससे गैस पीडि़तों •े प्रति उन•ी लापरवाही •ा ही पता चलता है।

    पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति: भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉरमेशन एंड एक्शन •े सतीनाथ षडंगी बताते हैं, •ि 1969 से 1984 त• चले यूनियन •ार्बाइड •े •ामों •े •ारण •ारखाने •े अहाते में और आस-पास ज़हरीला •चरा जमा होता रहा था, जिससे यहां •ी ज़मीन और पानी बहुत दूषित हो गया है। आज त• राज्य या •ेन्द्र सर•ार ने इस•े •ारण होने वाली क्षति •े आ•लन •े लिए •ोई समग्र अध्ययन नहीं •रवाया है। इस•े उलट इस समस्या •ो •म आं•ते हुए यह दिखाया जा रहा है •ि मामला •ेवल •ारखाने में जमा 345 टन ठोस •चरे •ा निपटारा •ा ही है। यह मामला उच्चतम न्यायलय •े सामने  लम्बित है ,जो उपचारात्म• पेटीशन  •े तहत है। इन्दौर •े पास इस •चरे •ो गाड़ देने या जला देने •ा मौजूदा प्रस्ताव ए•दम गलत है और इससे तो समस्या •ो भोपाल से हटा•र इंदौर ले जाने •ा ही •ाम होगा। इस•े विपरीत 2009-10 में नेशनल इंवायरनमेंटल इंजीमियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूटए नागपुर (नीरी )और नेशनल जियोफिजिक़ल रिसर्च इंस्टिट्यूटए हैदराबाद (एनजीआरआई)द्वारा •िए गए ए• अध्ययन से यह पता चला था, •ि जहरीले •चरे से प्रभावित •ुल ज़मीन 11 हजार मीट्रि• टन है ।
 चूँ•ि भारत सर•ार ने यह हलफनामा पेश •िया •ि पीथमपुर (इंदौर) •ी निजी भट्टी •ा आधुनि•ी•रण हो चु•ा है और वह जहरीला धुआं नहीं छोड़ता है, तो न्यायालय ने भोपाल •ारखाने •े •चरे •े टेस्ट जलावन •ी अनुमति दी है। इस टेस्ट •े नतीजों •ा इंतज़ार है।
दूषित •रने वाला ही हरजाना भरेगा , इस सिद्धांत •े आधार पर डाव •म्पनी •ी जि़म्मेदारी है •ि वह यूनियन •ार्बाइड •े आस पास प्रभावित पर्यावरण •ी आधुनि• टेक्नोलॉजी •ी मदद से क्षतिपूर्ति •ा खर्च उठाए। इसी तरह •ारखाने •े आस पास रहने वाले प्रभावित लोगों •ो साफ पीने •ा पानी मुहैया •राने •ा खर्च भी डाव •ो उठाना पड़ेगा। हालाँ•ि लोगों त• साफ  पीने •ा पानी पहुंचाने •ी जि़म्मेदारी पूरी तरह से राज्य सर•ार •ी है। राज्य सर•ार अब भी अपने इस दायित्व •ो निभाने में अक्षम है। दूसरी ओर दूषित पाने •े •ारण बीमार हो रहे प्रभावितों •ो मुफ्त चि•ित्सा सुविधा त• नहीं मिल पा रही है।
    अनुमानित 11 हजार मीट्रि• टन दूषित ज़मीन या मिट्टी •ो ठी• •रना ही सबसे •ठिन •ार्य है। सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट, दिस्सी •ी अगुवाई में अप्रैल 2013 में हित-धार•ों और विशेषज्ञों •ो ए• मंच पर ला•र ए• •ार्ययोजना बनाने •ी •ोशिश •ी गई थी। इस एक्शन.प्लान •ा ए• मसौदा तो बनाया गया है, परन्तु इसमें मध्यप्रदेश सर•ार सहित अन्य हितधार•ों और विशेषज्ञों •ो जोडऩे •ी आवश्य•ता है। इस विशाल •ाम •े प्रति राज्य सर•ार •ी उदासीनता चिताजन• है। यूएन पर्यावरण •ार्य•्रम •ी मदद से भोपाल •े दूषित इला•ों •ी सफाई •ा •ाम सम्भव है। परन्तु इस सफाई •ा पूरा खर्च डाव •ेमी•ल •म्पनी •ो उठाना चाहिए।

    राहत और पुनर्वास: लम्बे अरसे से बीमार लोगों, बुज़ुर्गों, निशक्त लोगों, विधवाओं और समाज •े अन्य अतिसंवेदनशील तब•ों द्वारा सामना •ी जा रही तमाम सामाजि•-आर्थि• समस्याओं •ा समुचित निदान •रने में राज्य सर•ार ना•ाम रही है। मुआवज़ा •े नाम पर इन्हें जो थोड़ा पैसा मिला था, वो इन•ी रोज़मर्रा •ी ज़रूरतों •ो पूरा •रने •े लिए भी •ाफी नहीं है। •ाम •रने •ी क्षमता में आई •मी •े साथ इन•े लिए उपयोगी •ाम मिलना और सम्मानजन• जीवन-यापन •रना भी ए• चुनौती बन गई है। राज्य सर•ार •ो इन अतिसंवेदनशील गैस प्रभावितों •ी ओर पहले •ी तुलना में और अधि• ध्यान व और सहायता मुहैया •राने •ी सख्त ज़रूरत है।


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Wednesday, October 14, 2015

Birth Place of Bollywood Legend Kishore Kumar& Smarak












Kishore Kumar, is one personality who continues to be a shining icon in the world of Bollywood music.
Kishore Kumar was born in a Bengali Ganguly family in Khandwa, Central Provinces and Berar (now in Madhya Pradesh) as Abhas Kumar Ganguly.This is kishore kumar's house.bed and pooja Ghar.

Tuesday, October 6, 2015

स्वच्छता मिशन के अंतर्गत बनने थे 18 लाख शौचालय, बने मात्र 2 लाख


स्वच्छता मिशन के अंतर्गत बनने थे 18 लाख शौचालय, बने मात्र 2 लाख
 गायब व अधूरे शौचालय भी लक्ष्य हासिल में बड़ी बाधा
रूबी सरकार
 स्वच्छता के अधिकार पर दक्षिण एशियाई अभियान के अनुसार भारत के संदर्भ में सबसे कड़वी सचाई यह है, कि एक ओर इसकी पहचान उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में है और यह दुनिया के 10 आर्थिक शक्तियों में अपनी जगह बना चुका है, पर दूसरी ओर मानव विकास सूचकांक में यह 134 पायदान पर जा पहुंचा है। यह स्थिति इस बात को दर्शाता है कि भारत में अभी भी मानव विकास को लेकर युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है, जिससे कि सही मायने में यह विकसित राष्ट्र बन सके।
भारत में 62 करोड़ से अधिक लोग (राष्ट्रीय औसत 49.2 फीसदी) खुले में शौच करते हैं, जिसकी वजह से इसे विश्व का खुले में शौच करने की राजधानी की संज्ञा दी जाती है। खुले में शौच करने वाले देशों में यह संख्या भारत के बाद के 18 देशों की संयुक्त संख्या के बराबर है। दक्षिण एशियाई देशों में 69.2 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं, जिसमें से भारत के लगभग 90 फीसदी हैं। इसी तरह विश्व में एक अरब 10 लाख लोग खुले में शौच करते हैं, जिसमें से भारत के लगभग 59 फीसदी हैं। भारत की लगभग आधी आबादी के घरों में शौचालय नहीं है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में यह स्थिति ज्यादा बदतर है। देश में अनुसूचित जाति के 77 फीसदी घरों में एवं अनुसूचित जनजाति के लगभग 84 फीसदी घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है। भारत के विभिन्न राज्यों की स्थिति देखें, तो झारखंड में 77 फीसदी , उड़ीसा में 76.6 फीसदी और बिहार में 75.8 फीसदी घरों में शौचालय नहीं है। ये तीनों राज्य देश के गरीब राज्यों में शुमार है एवं जनगणना 2011 के अनुसार यहां की बड़ी आबादी 50 रुपए प्रतिदिन की आय से भी कम में जीवनयापन करती है।
जनगणना 2011 के अनुसार मध्यप्रदेश के 86.42 फीसदी ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है एवं प्रदेश की कुल 69.99 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है।
इसी तरह    भारत के 6 लाख गांवों में से सिर्फ 25 हजार गांव ही खुले में शौच की प्रथा से मुक्त हो पाए हैं। जनगणना 2011 के अनुसार मध्यप्रदेश में 13.6 फीसदी ग्रामीण आबादी, राजस्थान में 20 फीसदी ग्रामीण, बिहार में 18.6 फीसदी ग्रामीण आबादी एवं उत्तरप्रदेश में 22 फीसदी ग्रामीण आबादी ही शौचालय का उपयोग करती है। इस संदर्भ में कई राज्यों के आंकड़ें उपलब्ध नहीं है, जिसमें महाराष्ट्र भी शामिल है।
स्वच्छता एवं सफाई का अर्थशास्त्र
    स्वच्छता का अभाव भारत की एक बड़ी समस्या है। विश्व बैंक के पानी एवं स्वच्छता कार्यक्रम पर फरवरी 2011 में जारी रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छता के अभाव से स्वास्थ्य लागत में बढ़ोतरी होती है, उत्पादकता गिर जाती है और अपर्याप्त स्वच्छता एवं घटिया सफाई के कारण पर्यटन राजस्व भी घट जाता है। इससे भारत को प्रति साल लगभग 29 हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है, जो  2006 के भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 फीसदी से भी ज्यादा है।
    पानी एवं स्वच्छता पर भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का महज 0.2 फीसदी ही खर्च करता है, जबकि पाकिस्तान 0.4 फीसदी, बंगलादेश 0.4 फीसदी एवं नेपाल 0.8 फीसदी खर्च करते हैं।

शुष्क शौचालय एवं मैला ढोने की कुप्रथा
    जनगणना 2011 के अनुसार यह बात स्थापित होती है कि भारत में मैला ढोने की अमानवीय कुप्रथा अभी भी जारी है। जनगणना के आंकड़ें के अनुसार देश में अभी भी 7 लाख, 94 हजार,390 शुष्क शौचालय हैं, जहां से शौच की सफाई हाथों से की जाती है। इस अमानवीय काम में पारपंरिक रूप से महिलाएं लगी हुई हैं। 73 फीसदी ग्रामीण इलाकों में एवं 27 फीसदी शहरी इलाकों में यह अति अमानवीय कुप्रथा चल रही है। इसके अलावा 13लाख, 14 हजार, 652 ऐसे शौचालय हैं, जहां से मानव मल को खुले में बहाया जाता है। कुल मिलाकर देश में 26 लाख देश में 26 लाख शुष्क शौचालय हैं, जहां मैला ढोने की कुप्रथा जारी है।

बच्चे
    भारत में प्रतिदिन लगभग एक हजार बच्चे दस्त से मर जाते हैं, जो  एक विश्व रिकॉर्ड है। ये वो बच्चे हैं, जिन्हें बचाया जा सकता है।
    दूषित जल, अपर्याप्त स्वच्छता एवं सफाई के अभाव में 14 साल तक के बच्चों में से 20 फीसदी से अधिक या तो मर जाते हैं या फिर वे जलजनित बीमारियों के साथ जीने को मजबूर होते हैं।
ऽ    जनगणना 2011 के अनुसार शालाओं में शौचालय बना दिए जाने की उत्साहवद्र्धक बढ़ोतरी (84 फीसदी) के बावजूद उसके उपयोग, रखरखाव एवं संचालन में भारी समस्या बनी हुई है, जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयीन बच्चे खुले में शौच करने को मजबूर हैं।

महिलाएं
    अपर्याप्त सफाई के कारण महिलाएं प्रजनन अंगों में संक्रमण हो जाने की समस्या से ग्रस्त रहती हैं। इसके अलावा सांस्कृतिक एवं सामाजिक वर्जनाओं के कारण महिलाओं का खुले में मल-मूत्र त्याग करना मुश्किल होता है, जिसकी वजह से वे दिन में शौच के लिए बाहर नहीं जा सकती हैं। शौचालय के अभाव में अल सुबह या देर शाम के समय लाखों महिलाएं खुले में शौच जाने के लिए मजबूर रहती हैं।
पुरुषों की नजर से बचकर शौच करने के लिए महिलाएं एकांत में शौच करने के लिए जाती हैं। ऐसी स्थिति में छेड़छाड़ या बलात्कार जैसी घटनाएं होने का खतरा बढ़ जाता है।
अपने यौवन में महिलाएं एवं लड़कियां लगभग 3 हजार दिन रजस्वला (मासिक धर्म) रहती हैं, जो कि उनके जीवन के लगभग 10 साल होता है। हाल के अध्ययन के अनुसार लगभग 35.5 करोड़ महिलाएं माहवारी से गुजरती हैं। इस तरह से उन्हें अपनी माहवारी के दिनों में रजोनिवृत्ति की उम्र तक लगभग 7 हजार सेनेटरी पैड की जरूरत होती है।
सिर्फ 12 फीसदी महिलाओं एवं लड़कियों को ही सेनेटरी नैपकिन तक पहुंच है, जो  उसका इस्तेमाल कर पाती हैं। यद्यपि इसके बावजूद शालाओं में, महाविद्यालयों में या फिर सामुदायिक शौचालयों में सैनेटरी नैपकिन के सुरक्षित निष्पादन की व्यवस्था नहीं है।
20 करोड़ महिलाओं एवं लड़कियों को माहवारी के समय की साफ-सफाई के बारे में अच्छी समझ नहीं है एवं वे उसे अपने स्वास्थ्य के साथ जोड़कर नहीं देख पाती।
रजस्वला की उम्र में पहुंच जाने के बाद 23 फीसदी भारतीय बालिकाएं शाला त्याग देती हैं।

विकलांग एवं बुजुर्ग
देश में लगभग 7 करोड़ लोग विकलांग हैं। 20 से 30 फीसदी लोग पर्यावरणीय रूप से चुनौतिपूर्ण स्थिति में.हैं। इनमें से कुछ अस्थाई रूप से विकलांग एवं बुजुर्ग भी हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2020 में 7 करोड़ लोग विकलांग होंगे एवं 17.7 करोड़ लोग बुजुर्ग होंगे और इनमें से बड़ी संख्या में लोग बहुविकलांगता की स्थिति में होंगे।
शारीरिक अक्षमता के कारण विकलांग व्यक्ति को स्वच्छता के लिए उपलब्ध सामान्य मूलभूत सुविधाओं का उपयोग कर पाना संभव नहीं हो पाता एवं वे खुले में शौच जाने में भी असमर्थ होते हैं।
यह साबित तथ्य है कि भारत में कोई ऐसा सार्वजनिक शौचालय नहीं है, जो विकलांग व्यक्तियों के उपयोग के लिए उपयुक्त हो। यहां तक कि शालाओं में भी इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है। विकलांगों के लिए उपयुक्त शौचालय के लिए केंद्र या राज्यों की किसी भी नीति में कोई मानक तय नहीं किया गया है।

सफ ाई
पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अनुसार सिर्फ 53 फीसदी भारतीय ही शौच के बाद साबुन से हाथ धोते हैं, सिर्फ 38 फीसदी खाने से पहले साबुन से हाथ धोते हैं एवं सिर्फ 30 फीसदी ही खाना बनाने से पहले साबुन से हाथ धोते हैं। (यूनीसेफ)
सिर्फ 11 फीसदी ग्रामीण भारतीय परिवार अपने बच्चे के मल का सुरक्षित निष्पादन करते हैं। 80 फीसदी परिवार इसे या तो खुले में फेंक देते हैं या फिर कचरे में फेंकते हैं। (यूनीसेफ)
साबुन से हाथ धोने से, खासतौर से मल के संपर्क में आने के बाद, डायरिया एवं अन्य जल जनित बीमारियों को 40 फीसदी कम किया जा सकता है एवं श्वास संबंधी संक्रमण में 30 फीसदी की कमी लाई जा सकती है। (यूनीसेफ)
यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छता, सफाई एवं सुरक्षित पेयजल का राष्ट्रीय औसत 34 फीसदी है, इसमें शहरी आबादी 58 फीसदी है एवं ग्रामीण आबादी मात्र 23 फीसदी है।


(संदर्भ: स्वच्छता के अधिकार पर दक्षिण एशियाई अभियान, नई दिल्ली का फोल्डर।)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना है, कि महात्मा गांधी की 150वीं जन्म वर्ष गांठ अर्थात 2 अक्टूबर 2019 तक देश सम्पूर्ण स्वच्छता को प्राप्त करें। इसके लिए उन्होंने विगत 2 अक्टूबर 2014 को  स्वच्छ भारत मिशन अभियान की शुरुआत की थी, जिसका कार्य ग्रामीणों ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियों के जरिये स्वच्छता के स्तरों का उन्नत बनाना तथा ग्राम पंचायतों को खुले में शौच प्रथा से मुक्त, स्वच्छ एवं साफ  सुथरा बनाना है।
 इसी परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश में इसके कार्यान्वयन को लेकर विगत एक वर्षो के अनुभव पर कुछ महत्वपूर्ण चिंताएं उभर कर आयी है। निश्चित ही  शौचालय की आवश्यकता प्रत्येक समुदाय और परिवार को है और खुले में शौच की प्रथा से मुक्ति के लिए व्यवहार परिवर्तन तथा शौचालय का होना जरूरी है । लेकिन इसके प्रभावी ढंग से क्रियन्वयन के लिए संस्थागत, निगरानी, मानव संसाधन और प्रक्रियाओं के अतंर्गत कुछ और भी कार्य करने की जरूरत है। मसलन - वर्तमान में शौचालय निर्माण की जो प्रगति है, वह काफी धीमी है, इस वित्तिय वर्ष में 18 लाख, 17 हजार 114 (अठारह लाख सत्रह हजार एक सौ चौदह) शौचालय निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, किंतु 6 माह के आंकलन के  बाद पाया गया , कि मात्र 2 लाख, 24 हजार, 92 (दो लाख चौबीस हजार बानबे) ही शौचालय का निर्माण हो पाया, जो मात्र 12.33 फीसदी है।  2012 में किये गये बेस लाइन सर्वे के मुताबिक प्रदेश में 90 लाख, 39 हजार, 497 (नब्बे लाख उनतालीस हजार चार सौ सत्तानबे) परिवारों के पास शौचालय नही थे। इसके बाद 13 लाख, 16 हजार, 714 (तेरह लाख सोलह हजार सात सौ चौदह) ही बन सके हैं। इस प्रकार यदि देखा जाये, तो जिस गति से प्रदेश में शौचालय निर्माण किये जा रहे है,  2019 तक प्रत्येक घरों में शौचालय उपलब्धता की बात बेमानी होगी।
दूसरी बात स्वच्छता और पानी एक दूसरे के पर्याय है। इसलिए शौचालय के उपयोग के लिए पानी उपलब्ध होना आवश्यक है। जहां भी शौचालय का निर्माण किया जा रहा है, वहां पर पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है, अन्यथा शौचालय का केवल ढांचा ही उपलब्ध हो सकेगा और बाद में परिवार उसका उपयोग अन्य प्रायोजन के लिए करना शुरू कर देंगे। इसके अलावा ख्ुाले में शौच करने की प्रथा से मुक्ति के लिए  पहली प्राथमिकता व्यवहार परिवर्तन को देना होगा। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत राज्य में मिशन के व्यापक प्रचार -प्रसार के लिए जिन संचार, शिक्षा और संवाद की सामग्रियों जैसे- होर्डिग्स, पम्पलेट या अन्य सामग्री का प्रकाशन केन्द्रीयकृत रूप में किया जाता है, जिससे इस प्रकार के प्रचार प्रसार की सामग्री में स्थानीय भाषा और संदेश शामिल नहीं हो पाते हैं। पूर्व में बनाये गये शौचालय, जो जर्जर स्थिति में हैं या जहां शौचालय बनाया ही नहीं गया और ग्रामीणों का नाम बतौर हितग्राहियों के रूप में जोड़ दिया गया है,  वहां शौचालय निर्माण को लेकर स्वच्छ भारत मिशन के दिशा निर्देश में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है, जबकि पूर्व में इस तरह के निर्माण कार्यो में की गई लापरवाही के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे भी हितग्राही मिल जाते हैं, जिनके घरों में शौचालय होना बताया जाता है , जबकि उन घरों में शौचालय है ही नहीं।  इसलिए गुम  शौचालयों  अत्यधिक गरीब परिवारों में ध्वस्त हो गये शौचालयों के स्थान पर नये शौचालय के निर्माण कार्य को भी इस मिशन के अंतर्गत जोडऩा होगा।
उमरिया जिले के चंदनिया गांव में शौचालय निर्माण का जो  डाटा वेबसाइट पर दर्शाया गया है , उसके अनुसार 22 घरों में शौचालय निर्माण हुआ है, जबकि वास्तविकता यह है कि  77 घरों में शौचालय का निर्माण तो किया गया है, ंिकतु सभी शौचालय अपूर्ण हैं, लिच पिट नहीं बनाये गये है, इस आधार पर वहां के पूर्व सरंपच व सचिव के उपर आपराधिक प्रकरण दर्ज किये गये हैं।
जलाधिकार अभियान के रनसिंह परमार के अनुसार     स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय निर्माण में जिन तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है, उससे और भी गंभीर समस्यायें उभरने वाली है। मुरैना जिले में दो लिच पिट की जगह पर कई गावों में सेप्टिक टेंक बनाया जा रहा है, जिससे आने वाले दिनों पुन: मैला ढोने जैसी अमानवाीय प्रथा को प्रोत्साहन मिलेगा। इसलिए निर्माण कार्य में उपयोग की जाने वाली तकनीकी पर व्यापक रूप से स्थानीय स्तर पर राजमिस्त्रियों का क्षमता वद्र्धन किये जाने की आवश्यकता है।
    स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति और कार्यांवयन में ग्राम, पंचायत, विकास खण्ड, जिला और राज्य स्तर पर स्वयं सेवी संस्थाओं, बुद्विजीवियों अथवा  तीसरे वर्ग की भूमिका को प्रभावी करने की भी जरूरत है क्योंकि सरकार के पास मिशन के कार्यान्वयन में मानव संसाधन के पर्याप्त उपलब्धता नहीं है, इसलिए समर्पित रूप से काम करने वाले लोगों, निजी संस्थाओं की पहचान कर उनको इसमें शामिल करना होगा। मिशन के अंतर्गत निर्माण कार्य के ठेकेदारों को भुगतान की बात करें, भुगतान में पंचायत की भूमिका को गौण कर दिया गया है, जबकि इस मिशन के कार्यान्वयन में सबसे महत्वपूर्ण इकाई पंचायत ही है । इसलिए पंचायत को इस कार्य के लिए व्यापक अधिकार दिये जाने की आवश्यकता है। साथ ही पंचायत के अंतर्गत ग्राम सभाओं  द्वारा शौचालय निर्माण की मांग और प्रस्ताव को प्राथमिकता देकर  मिशन द्वारा कोटे के अंतर्गत शौचालय निर्माण के आबंटन पर रोक लगाया जाना चाहिए।
    व्यक्तिगत रूप से स्वच्छता को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी है कि संस्थागत शौचालयों को भी प्रोत्साहित किया जाये । सार्वजनिक स्थलों और शासकीय भवनों में स्वच्छ और सुरक्षित सामुदायिक शौचालयों की व्यवस्था हो। स्कूल में नौनिहालों को स्वच्छता व्यवहार के प्रोत्साहन तथा बाल अधिकार सरंक्षण कानून के अनुपालन के लिए शौचालयों और उसका उपयोग होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। सरकारी दावे में प्रदेश के सभी स्कूलों में शौचालय तथा विशेषकर बालिकाओं के लिए पृथक शौचालय की उपलब्धता का दावा तो किया जा रहा है, किंतु स्थिति इसके बिल्कुल भिन्न है। पूरे प्रदेश में अभियान के माध्यम से स्कूलों में शौचालय तथा इसके उपयोग का भौतिक सत्यापन कराया जाना चाहिए और ध्वस्त पडे अथवा अनुपयोगी शौचालयों का मरम्मत कर उसका उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
इसी सिलसिले में श्योपुर जिले के  कराहल विकास खण्ड के परिणाम बहुत ही चौकाने वाला है। यहां  264 विद्यालयों (प्राथमिक, माध्यमिक, छात्रावास तथा हाईस्कूल) में से 83 विद्यालयों (31 फीसदी) में पृथक तथा 136 विद्यालयों (51 फीसदी) में एकल शौचालय तथा 45 विद्यालय (17 फीसदी) शौचालय विहीन है। जो प्रधानमंत्री के इस बात को झुठलाते है, कि सभी विद्यालयों में बालिकाओं के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था कर दी गई है।  जिन विद्यालयों में शौचालय उपलब्ध होना बताया जा रहा है उसमें मात्र 77 विद्यालयों के शौचालय उपयोगी हैं शेष 173 विद्यालयों के शौचालय अनुपयोगी है। 77 विद्यालयों में जहां शौचालय उपयोगी हैं , वहां पर 31 विद्यालयों में पानी की सुविधा नहीं है। जबकि सरकारी आंकडों के अनुसार विद्यालयों में स्वच्छता कवरेज 103 फीसदी  है। ग्राम पंचायतों में  सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक जो मुख्य प्रेरणा के केन्द्र है, यहां भी शौचालय नहीं है यदि है भी तो उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। लगभग 80 फीसदी पंचायत प्रतिनिधियों के पास शौचालय नहीं है। 

Friday, September 18, 2015

Khilchipur kila

                                                            fखलचीपुर का किला
रियासत की स्थापना  के साथ ही 1544 में खलचीपुर राजमहल की नींव रखी गई थी।  खिलचीपुर का यह ऐतिहासिक राजमहल महाराज उग्रसेन द्वारा शुरू करवाया गया था। आज भी यह राजमहल नगर के रहवासियों के साथ-साथ देश भर के पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र है। अद्भुत                            
नक्काशी एवं  निर्माणकला की सौंदर्य लिये हुए खिलचीपुर का यह किला अंग्रेजों के समय से राजघराने के ऐतिहासि गौरव एवं विपरीत  परिस्थितियों में स्वाभिमान की ऐतिहासिक गाथा सुनाता है।
  किले की मजबूती एवं महल के भीतरी कक्षों में की गई नक्काशी दर्शनीय है। की हस्त शिल्पकारी की दक्षता को दर्शाता है। किले में मौजूद राघवजी का प्राचीन मंदिर नगरवासियों व भक्तों के श्रद्धा का केन्द्र है। प्रत्येक उत्सव में आम जनता के लिए किले का द्वार खोल दिया जाता है।
खिलचीपुर रियासत की स्थापना और किले की नींव 1544 बसंत पंचमी के दिन रखी गई थी। उग्रसेन गागरोन के खींची वंश के महान योद्धा व राजा अचलदास खींची व प्रसिद्ध भक्तिकालीन संत प्रतापराव (पीपाजी महाराज) के वंशज थे। 1423 में हुए गागरोन के जोहर के बाद खींची राजवंश ने अपनी राजधानी महुमैदाना (बोरदा राजस्थान) में स्थापित की, जहां अचलदास के प्रथम पुत्र धीरदेव ने राज्य संभाला। वहां से सुरक्षित स्थान खिलचीपुर को राज्य में शामिल करने के बाद खींची यहां आ बसे।  1787 में दीवान दीपसिंह के शासनकाल में दीपगढ़ का निर्माण हुआ, जो सोमवार हाट बाजार के कारण वर्तमान में सोमवारिया के नाम से जाना जाता है। लगभग 707 किलोमीटर में फैली खिलचीपुर रियासत में कभी 283 गांव शामिल थे। सन् 1901 में  रियासत की आबादी  मात्र  31 हजार 143 थी।  महल व नगर निर्माण में दीवान शेरसिंह और राव बहादुर अमरसिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रहीं।  महल के बड़े भाग का निर्माण  दीवान शेरसिंह , द्वारा और उनकी पत्नी द्वारा कल्याण रायजी के मंदिर का निर्माण करवाया गया, जबकि अमरसिंह द्वारा  महल के भीतर अमरेशवर महादेव की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त रघुनाथजी का मंदिर, गंगा तट पर अमरनिवास, माता रातादेवी मंदिर, उकारनाथ मंदिर, शहरकोट, तोपखाना गेट के पास सरायभवन आदि का निर्माण राव बहादुर अमर सिंह के शासनकाल में हुए।  विजयगढ़ कोठी (वर्तमान में तहसील भवन) श्रीनाथजी का मंदिर और नरसिंह मंदिर राव बहादुर भवानीसिंह के कार्यकाल में बने। वर्तमान में खिलचीपुर राजपरिवार यहां निवास करता है।


Thursday, September 17, 2015

Rajgarh kila

राजगढ़ किला
                                             एक अन्य हिस्सा सहकारी बैंक की मील्कियत है


 राजगढ़ का प्राचीन नाम झंझनीपुर  या झंझेपुर था। जब रावत-उमट परमारों ने सन् १६४० ईसवी में भीलों को परास्त कर इसे बसाया था, तब यह एक छोटा सा गांव था।
 राजा छतरसिंह के तीन पुत्र थे, मोहन सिंह, जगन्नाथ और प्रेम सिंह। छतरसिंह के बाद रावत मोहन सिंह  सिंहासनारूढ़ हुए , तब वे मात्र १५ साल के थे। इसलिए राज्य का संचालन दीवान अजब सिंह के हाथों में रहा। मोहन सिंह ने १६३८ से १६९७ तक राजगद्दी संभाली। उनकी माता कुशाग्र एवं दूरदर्शी थीं। वे शाही मुगल  सेना के लगातार आवागमन के कारण रतनपुर छोड़कर डूंगरपुर रहने लगीं। अजब सिंह ने झंझेपुर की पहाड़ी पर १६४५ ई़स्वी में किले और राजमहल का निर्माण करवाया। एक और किला दो मील की दूरी पाटन में बनवाया। राजमाता रावत मोहन सिंह के साथ यहां रहने लगीं। राजगढ़ किला दो हिस्सों में है। बड़ामहल और राजमहल।
बड़ामहल  १६४५ में बनना शुरू हुआ जबकि राजमहल १९३१ में रावत वीरेन्द्र सिंह के समय निर्मित हुआ, जैसा कि महल के विशाल प्रवेश द्वार पर अंकित है। राजा रावत सर वीरेन्द्र सिंह को नई इमारतें बनाने तथा प्राचीन इमारतों की रक्षा करने का बहुत शौक था। उनके कार्यकाल में बनवाये हुए महल व अन्य भवन वास्तु शिल्प का उत्कृष्ट नमूना है।
 २६ अक्टूबर, १९३६ को वीरेन्द्र सिंह का स्वर्गवास हो गया। १४ जनवरी, १९३७ को उनके एक वर्षीय पुत्र विक्रमादित्य सिंह राज्य उत्तराधिकारी घोषित किया गया। और शासन प्रबंध एक कौंसिल को सौंपा गया, जो पॉलिटिकल एजेंट की देखरेख में कार्यरत थी। विक्रमादित्य के वयस्क होने के साथ-साथ सारी रियासत भारतीय गणराज्य में मिल गई और राजगढ़ एक जिले के रूप में स्थापित हुआ।
राजगढ़ महल में अब मध्यप्रदेश शासन के अनेक कार्यालय हैं, लेकिन इसका राजमहल का एक हिस्सा अभी भी राज परिवार के पास है।  एक अन्य हिस्सा सहकारी बैंक की मील्कियत है।