Friday, May 25, 2018

केवल चूल्हा नहीं संभालती , एक प्रगतिशील किसान भी है कोचेवाडा (बालाघाट) की महिलाएं


सिर्फ चूल्हा नहीं संभालती, बल्कि प्रगतिशील किसान भी हैं कोचेवाडा गांव की महिलाएं
रूबी सरकार
बालाघाट जिले से 52 किलोमीटर दूरी पर स्थित कोचेवाडा गांव बेहतर लिंगानुपात के लिए मशहूर है। यहां एक हजार बालकों में एक हजार,10 बालिकाएं हैं। आदिवासी बाहुल्य इस गांव की आबादी लगभग एक हजार, 600 हैं, जिसमें कुल 254 परिवार रहते हैं, इसमें से मात्र 20 परिवार अनुसूचित जाति के हैं। वर्तमान में  बेहतर लिंगानुपात के अलावा यह गांव जैविक खेती के लिए भी मशहूर है। लगभग 235 हेक्टेयर भूमि वाले इस गांव की  सिंचित भूमि 220 हेक्टेयर है, जिसमें गांव की महिलाएं समूह या एकल चना, धान, मक्का, अलसी, सरसो, तिल के अलावा धान आदि की खेती करती हैं। कोचेवाडा की इन्द्राणी वडकडे बताती हैं, कि पहले यहां पर्याप्त अनाज नहीं होता था, इसलिए लोग पलायन करते थे, लेििकन वर्ष 2008 में तेजस्विनी के अंतर्गत गांव में महिलाओं का समूह बना और महिलाएं समूह से जुड़कर कृषि विभाग के सहयोग से श्रीविधि (एसआरआई), मिश्रित खेती, मचान खेती आदि का प्रशिक्षण लिया । इन्द्राणी ने बताया, श्रीविधि से तो एक एकड़ भूमि के लिए मात्र 3 किलोग्राम बीज ही पर्याप्त होता है। इसमें 10-10 इंच की दूरी पर लगने से मेहनत कम लगता है। 8-10 दिन के पौधों को 10 इंच की दूरी में लगाया जाता है, जिसमें पौधों को हवा एवं रोशनी उचित  अनुपात में मिल पाती है। इसमें खार खोदने, पेंडी डालने के लिए अतिरिक्त मजदूर तथा खेत में पानी भरकर रखने की आवश्यकता भी नहीं होती और उत्पादन भी बढ़ता है। प्रशिक्षण के बाद पोषण के प्रति महिलाओं की जागरूकता बढ़ी और वे स्वयं समूह के साथ मिलकर खेती करने लगीं । धीरे-धीरे पैदावार बढ़ी। गांव की स्थिति बदली। आज हालत यह है, कि अनाज, फल, सब्जी आदि स्वयं के उपयोग के अलावा बाजार में बेच देती हैं।  इन्द्राणी बताती है, कि 7 हजार क्विंंटल धान होता है। सब्जियों में बैगन, टमाटर, हरी सब्जी और मुंगाफली प्रचुर मात्रा में होता है। फलों में सीताफल और जामुन बहुत होता है, जिसे अधिकतर महिलाएं बाजार में बेच देती है । जामुन मधुमेह के मरीजों के लिए उपयोगी है, इसलिए वह हाथों-हाथ बिक जाती है। इन्द्राणी इस समय गांव की मास्टर ट्रेनर हैं।

शांति तेकाम बताती हैं, कि गांव की कुल सिंचित भूमि में कुल धान का उत्पादन 15 हजार क्विंटल हैं, जिसमें साढ़े 4 हजार गांववाले उपयोग में लेते हैं और साढ़े 10 हजार धान बाजार में बेच देते हैं । इसी तरह गेहूं का पैदावार  7 हजार,800 क्विंटल  है। गेहूं आदिवासी कम खाते हें , केवल 800 क्वींटल का उपयोग कर 7 हजार क्विंटल  बाजार में बेच देते हैं। दलहन का उत्पादन एक हजार, 350, जिसमें से 350 क्वींटल उपयोग कर एक हजार बाजार में बेच देते हैं और तिलहन का पैदावार 200 क्विंटल , जिसमें से डेढ़ सौ उपयोग कर 50 क्विंटल बेचते हैं। इसी तरह सब्जी, फल, दूध भी प्रचूर मात्रा में उपयोग के बाद , बचा हुआ बाजार में बेच देते हैं, इससे हमलोगों को पोषण के साथ-साथ मोटी आमदानी भी हो जाती है।
शांति ने बताया, कि कम लागत में हमलोग घर में खाद तैयार करते हैं। यह खाद हर मौसम में तैयार किया जाता है। यह ज़मीन की उर्वरा शक्ति एवं नमी को बढ़ाता है। उसने कहा, कि हमलोगों का रसायनिक खाद जैसे डीएपी, यूरिया एवं पोटास पर निर्भरता कम है। खाद के उपयोग के साथ-साथ केंचुआ भी अच्छी कीमत में बेच देते हैं, इससे छोटा किसान आवश्यकतानुसार अपने ही घर में जैविक खाद तैयार कर सकता है।
गौरतलब है, कि इन्द्राणी को जैविक कृषि के लिए टाईम्स ऑफ इण्डिया एवं जिंदल समूह की ओर से राष्ट्रीय अर्थ केयर अवार्ड 2015 और शांति  राष्ट्रीय महिला किसान दिवस पर उन्नत कृषि के लिए 2017 में सम्मानित हो चुकी हैं।


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