Thursday, September 17, 2015

Rajgarh kila

राजगढ़ किला
                                             एक अन्य हिस्सा सहकारी बैंक की मील्कियत है


 राजगढ़ का प्राचीन नाम झंझनीपुर  या झंझेपुर था। जब रावत-उमट परमारों ने सन् १६४० ईसवी में भीलों को परास्त कर इसे बसाया था, तब यह एक छोटा सा गांव था।
 राजा छतरसिंह के तीन पुत्र थे, मोहन सिंह, जगन्नाथ और प्रेम सिंह। छतरसिंह के बाद रावत मोहन सिंह  सिंहासनारूढ़ हुए , तब वे मात्र १५ साल के थे। इसलिए राज्य का संचालन दीवान अजब सिंह के हाथों में रहा। मोहन सिंह ने १६३८ से १६९७ तक राजगद्दी संभाली। उनकी माता कुशाग्र एवं दूरदर्शी थीं। वे शाही मुगल  सेना के लगातार आवागमन के कारण रतनपुर छोड़कर डूंगरपुर रहने लगीं। अजब सिंह ने झंझेपुर की पहाड़ी पर १६४५ ई़स्वी में किले और राजमहल का निर्माण करवाया। एक और किला दो मील की दूरी पाटन में बनवाया। राजमाता रावत मोहन सिंह के साथ यहां रहने लगीं। राजगढ़ किला दो हिस्सों में है। बड़ामहल और राजमहल।
बड़ामहल  १६४५ में बनना शुरू हुआ जबकि राजमहल १९३१ में रावत वीरेन्द्र सिंह के समय निर्मित हुआ, जैसा कि महल के विशाल प्रवेश द्वार पर अंकित है। राजा रावत सर वीरेन्द्र सिंह को नई इमारतें बनाने तथा प्राचीन इमारतों की रक्षा करने का बहुत शौक था। उनके कार्यकाल में बनवाये हुए महल व अन्य भवन वास्तु शिल्प का उत्कृष्ट नमूना है।
 २६ अक्टूबर, १९३६ को वीरेन्द्र सिंह का स्वर्गवास हो गया। १४ जनवरी, १९३७ को उनके एक वर्षीय पुत्र विक्रमादित्य सिंह राज्य उत्तराधिकारी घोषित किया गया। और शासन प्रबंध एक कौंसिल को सौंपा गया, जो पॉलिटिकल एजेंट की देखरेख में कार्यरत थी। विक्रमादित्य के वयस्क होने के साथ-साथ सारी रियासत भारतीय गणराज्य में मिल गई और राजगढ़ एक जिले के रूप में स्थापित हुआ।
राजगढ़ महल में अब मध्यप्रदेश शासन के अनेक कार्यालय हैं, लेकिन इसका राजमहल का एक हिस्सा अभी भी राज परिवार के पास है।  एक अन्य हिस्सा सहकारी बैंक की मील्कियत है।

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