Friday, January 5, 2018

स्कूलों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम(Right to Education Act (RTE) की धारा 21 का उल्लंघन



स्कूलों में  शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 21 का उल्लंघन
रूबी सरकार

 शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 21 में शासकीय और शासन से अनुदान प्राप्त प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में शाला प्रबंधन समिति (एसएमसी) का गठन अनिवार्य किय गया है, जिसमें शाला में अध्ययनरत बच्चों के माता-पिता या संरक्षक और शिक्षकों तथा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को  सदस्य बनाने की बात कही गई हैं।
समय-समय पर मध्यप्रदेश शासन ने इस अधिनियम में कई संशोधन किये। 26 मई 2014 को मध्यप्रदेश शासन ने इस अधिनियम में पुन: संशोधन करते हुए  16 जून 2017 को शासकीय एवं अनुदान प्राप्त प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं के आगामी दो सत्रों के लिए 1 से 3 जुलाई तक शाला प्रबंधन समिति गठन किये जाने का सरकुलर जारी किया।  साथ ही नवगठित समिति की पहली बैठक 15 जुलाई को होनी तय की गई। इसके पीछे मूल भावना यह रही, कि  स्थानीय स्तर पर शालाओं के संचालन में समुदाय की भागीदारी हो सके, जिससे इस कानून को प्रभावी रूप से जनसहभागिता के साथ लागू किया जा सके और बच्चों की शिक्षा के प्रति अभिभावक सजग रहें।
लेकिन जब मध्यप्रदेश  लोक सहभागी साझा मंच ने प्रदेश के 8 जिलों के 85 शालाओं में इसकी ह$कीकत जानने की कोशिश की, तो पाया, कि शाला प्रबंध समिति की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद अभी तक कई शालाओं में इसका गठन नहीं किया गया है और अगर गठन हुआ भी है, तो अनेक कारणों से वे अपनी भूमिका नहीं निभा रहे हैं। महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट 2017 में भी कहा गया है, कि  मध्यप्रदेश के 12 फीसदी शालाओं में शाला प्रबंधन समिति का गठन ही नहीं हुआ है और 77 फीसदी शालाओं में विद्यालय विकास योजना तैयार ही नहीं की गई है। 13 शाला ऐसे हैं, जिसमें समिति के चयनित सदस्य शिक्षक स्वयं हैं।
साझा मंच के संयोजक जावेद अनीष ने बताया, कि शालाओं ने समिति के गठन में प्राथमिक शाला के समिति में कुल 18 सदस्यों में, 14 उस शाला में पढऩे वाले बच्चों के पालक-अभिभावक होंगे, जिसमें वंचित, कमजोर वर्ग के पालकों-अभिभावकों का भी प्रतिनिधित्व अनिवार्य होगा तथा 14 पालक-अभिभावक के सदस्यों में से 6 सदस्य वंचित वर्ग, 3 कमजोर वर्ग, 5 अन्य वर्ग  के साथ ही पूरे सदस्यों में 50 फीसदी महिलाएं सदस्य होंगीं। जबकि मौके पर इन नियमों का  उल्लंघन पाया गया । कुल 85 शालाओं में से 37 शालाओं ने प्रक्रियाओं का पालन न करते हुए वंचित, कमजोर वर्ग के पालकों अभिभावकों के प्रतिनिधित्व की संख्या की गणना नोटिस बोर्ड में नहीं प्रदर्शित की । वहीं 48 शालाओं में वंचित, कमजोर वर्ग के पालकों-अभिभावकों के प्रतिनिधित्व की संख्या की गणना कर नोटिस बोर्ड में प्रदर्शित किये गये थे। साथ ही 85 शालाओं में से 72 शालाओं में शाला प्रबंधन समिति का गठन अभिभावक, शिक्षक और समुदाय के समक्ष हुआ, जबकि 13 शालाओं में शाला प्रबंधन समिति में चयनित सदस्यों को शिक्षकों द्वारा होना पाया गया ।

साझा मंच के उपासना बेहार बताया, कि अध्ययन के दौरान यह देखा गया, कि लगभग 70 शालाओं में जिन पालकों-अभिभावकों का चयन शाला प्रबंधन समिति के लिए हुआ है, वे समिति के गठन के दौरान उपस्थित थे, जबकि 15 शालाओं में सभी चयनित सदस्यों में से कुछ  सदस्य अनुपस्थित थे।  अध्ययनरत 85 शालाओं में से 56 शालाओं में नवनिर्मित शाला प्रबंधन समिति की बैठक होना पाया गया, जिसमें 49 शालाओं में 15 जुलाई, 3 शालाओं में 17 जुलाई और 4 शालाओं में क्रमश: 4 जुलाई, 10 जुलाई, 12 जुलाई को शाला प्रबंधन समिति की बैठक हुई थी, जबकि 29 शालाओं की नवनिर्मित शाला प्रबंधन समिति की बैठक ही नहीं हुई। 
मंच ने शासन से सिफारिश की है, कि प्रदेश के सभी शालाओं में शाला प्रबंधन समिति के गठन के साथ-साथ नियमित बैंठकें हों। सभी शालाओं में शाला प्रबंधन समिति के नवनिर्वाचित सदस्यों के नाम और संपर्क नोटिस बोर्ड में प्रदर्शित किया जाये और सघन संपर्क अभियान और प्रचार- प्रसार द्वारा शाला प्रबंधन समिति के सदस्यों को उनके अधिकार, भूमिकाएं, कार्य और जिम्मेदारियों के प्रति प्रेरित किया जाए, जिससे वे समिति में सक्रिय भागीदारी करें। इसके अलावा वंचित और गरीब परिवारों के सदस्यों को शाला प्रबंधन समिति के बैठक में आने में दिक्कत होती है, क्योंकि उनकी उस दिन की दिहाड़ी मारी जाती है इसलिए इनकी भागीदारी बढऩे के लिए सदस्यों को न्यूनतम दैनिक मजदूरी के बराबर विशेष मानदेय दिया जाए, जिससे वो इन बैठकों में भागीदारी कर सकें।
प्रदेश के सभी शाला प्रबंधन समिति के नवनिर्वाचित सदस्यों को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण दिया जाए, जिससे वे शिक्षा अधिकार कानून, शाला प्रबंधन समिति, उनके कार्य व जिम्मेदारियों आदि को समझ सकेगें और शाला के विकास में बेहतर तरीके से अपना योगदान दे पायेगें।
गौरतलब है, कि साझा मंच ने यह अध्ययन रीवा, सतना, शहडोल, जबलपुर, छतरपुर, दमोह, मंडला, शिवपुरी के कुल 85 शालाओं में किया है। अध्ययन किये गए शालाओं में 64 प्राथमिक शाला और 21 माध्यमिक शाला हैं।


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