Saturday, September 16, 2023

पति बॉर्डर पर तो पत्नी मध्यप्रदेश में बढ़ा रहीं महिलाओं का हौसला

 





पति बॉर्डर पर तो पत्नी मध्यप्रदेश में बढ़ा रहीं महिलाओं का हौसला

रूबी सरकार  

परवरिश  संभ्रांत परिवार मे, शादी हुई वह भी बड़े परिवार में, पति कर्नल राजा दीक्षित, एक बेटी, फिर भी भोपाल की दीपा दीक्षित को  लगता था कि उसके जीवन में कुछ छूट रहा है। उन्होंने सीलीगुड़ी के आर्मी स्कूल, हरियाणा में क्रिकेटर वीरेंद्र सहबाग द्वारा स्थापित  स्कूल के अलावा भोपाल में संस्कार बैली के साथ ही  15 सालों तक देश  के अनेक बड़े स्कूलों, यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्कूलों में भी शिक्षक और प्राचार्य तक रहीं , फिर भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिल रही थी। क्योंकि इन्हीं स्कूलों में काम करते हुए जब समुदाय के बीच जाती थी तो वहां एक ही कमरे में दो-तीन कक्षा के बच्चों को पढ़ते हुए देखती थीं। कई स्कूलों में  कमरे के उपर छत नहीं होता था। यह असमानता दीपा को खलने लगी और उनकी बेचैनी बढ़ती गई। जब दीपा की बच्ची बड़ी होकर स्कूल जाने लगी, तब उन्हें लगा कि अब समाज के लिए कुछ करना चाहिए।  जिससे असमानता, भेदभाव  कम हो और उनके जीवन में कुछ बदलाव आए। दीपा कहती हैं कि वे पति के साथ-साथ देश के जिस कोने में गई, वहां उन्होंने गरीबी-अमीरी, महिला-पुरुष के बीच असमानता व भेदभाव को देखा। जिससे उन्हें बहुत तकलीफ होती थी।

भोपाल वापस आई तो यहां भी करीब-करीब वही दृश्य देखने को मिला । उन्होंनें पति से इस पर चर्चा की । पति राजा दीक्षित की श्रीनगर बार्डर पर पोस्टिंग और बेटी दिल्ली में उच्च शिक्षा  के लिए जाने के बाद दीपा ने खाली समय में स्लम्स में जाकर बच्चों को पढ़ाने लगी। उन बच्चों को पढ़ाने के दौरान उनकी पहचान  स्लम्स में रह रहीं हुनरमंद महिलाओं से हुई।  कला पारखी दीपा ने देखा कि स्लम्स की महिलाओं में जबरदस्त हुनर हैं, वे घर पर बैठकर जरदोजी का काम करती हैं और बिचौलिए आकर उन्हें थोडे पैसे देकर उनका आर्ट ले जाते हैं और बाजार में उसे चे दामों में बेचते हैं।

डसने सोचा क्यों न इनकी कला को प्रोत्साहित किया जाए। जिससे उनकी आजीविका में सुधार आए। इन्हें इनके काम का ऊचित दाम मिले।  बाजार में इन कलाकारों केा कोई नहीं जानता।  पहले झिझक थी, फिर हिम्मत जुटाकर उनसे बात की, तो पता चला कि संसाधन की कमी के कारण वे बिचौलियों पर निर्भर हैं। दीपा ने अपनी जमापूंजी लगाकर उनके लिए कच्चा सामान खरीद कर उन्हें उपलब्ध कराया। इसके बाद उनके तैयार किए सामनों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए शो रूम्स और सरकारी विभागों से पहल की। इस तरह जरूरतमंद महिलाएं दीपा के साथ जुड़ती चली गईं और दीपा का रागिनी फाउंडेशन का आकार बढ़ता चला गया। महिलाओं को उनके काम का अच्छा दाम मिलने लगा। एक-एक आइटम पर दो सौ से तीन सौ रुपए का फायदा होने लगा। वह आत्मनिर्भर बन रही थी और दीपा की ख्याति फैल रही थी। अब दीपा भोपाल से बाहर भी उनके लिए बाजार ढूंढ़ने लगी। उन्होंने राज्य एवं भारत सरकार के साथ-साथ कई निजी कंपनियों से अनुबंध कर ग्वालियर-चंबल इलाके की महिलाओं के बाजार तैयार करने लगी। वह महिलाओं से बैग, फोल्डर, सोविनियर, कपड़े, गिफ्ट आइटम तैयार करने के लिए कार्यशालाएं की।

दीपा कहती हैं कि अब उसे खाली समय में सार्थक काम करने का बहुत बड़ा मकसद मिल गया। इन दिनों वह सिर्फ महिलाओं के हूनर को ही प्लेटफॉर्म नहीं देती, बल्कि किशोरियों का जीवन भी संवार रही हैं। दीपा ने सरकार के सहयोग से किशोरियों को आत्मनिर्भर बनाने के अलग-अलग प्रोफेशन के लिए उन्हें प्रशिक्षण दे रही हैं। इसके लिए उन्हें कई स्वयंसेवकों का साथ मिला। जो अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। दीपा एक साथ तीन परियोजना पर काम कर रही हैं। पर्यटन विभाग के साथ मिलकर वह ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा दे रही हैं। गांव में पर्यटकों के ठहरने के लिए ग्रामीणों को होम स्टे का प्रशिक्षण दे रही हैं। अब तक पर्यटकों के लिए मुरैना जैसे जिले में 15 होमस्टे तैयार हो चुका है। इसकेे अलावा फॉरेस्ट गार्ड के लिए किशोरियों का प्रषिक्षण जारी है। मध्यप्रदेष के माधव नेशनल पार्क में कुछ लड़कियों को गार्ड की नौकरी भी मिल चुकी है।

ग्वालियर-चंबल में काष्ठकला, पेंटिंग्स आदि कई विधाओं में उनका  प्रशिक्षण देने का काम अनवरत चल रहा है। कई किषोरियों का प्लेसमेंट भी हो चुका है। अब तक प्रशिक्षण प्राप्त कर करीब पांच सौ अधिक महिलाएं और किशोरियां आत्मनिर्भर बनी हैं। दीपा कहती है कि जब गांव की लड़कियां फॉरेस्ट गार्ड बनकर यूनिफॉम में मध्यप्रदेश के जंगल व जानवरों की सुरक्षा करती हैं या चंबल के मिलावती कस्बे में ग्रामीण परिवारों के घर पर आकर कनाडा के पर्यटक होम स्टे करते है और ग्रामीण परिवार अतिथि देव भवः की संकल्पना को ध्यान में रखकर उनकी सेवा करते हैं तब गर्भ  महसूस करती हूं। लगता है कि हमें जिस काम के लिए ईश्वर ने धरती पर भेजा , शायद मैं उसे कुछ हद तक पूरा कर पा रही हूं। यह सोच और सेवा सभी को नसीब नहीं होती।

इतना ही नहीं, दीपा का फाउंडेशन के प्रयास से ग्वालियर -चंबल में घरेलू हिंसा से लेकर महिलाओं से संबंधित कई अपराधों में कमी आई है। लोगों को काम मिलने लगा, तो अपराध में कमी आने लगी। किशोरियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाने के बाद उनके विरूद्ध छेड़छाड़ व अन्य अपराधों में कमी आई।

Amrit Sandesh 10 september 23




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