Thursday, June 24, 2010

भोपाल आए सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आबिद सुरती ने कहा


खिड़की से आए पन्ने ने बदल दी जिंदगी

प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आबिद सुरती उन कलाकारों में से हैं, जो उंगलियों की दक्षता या कैनवास पर उभरी सूक्ष्मताओं को कला नहीं मानते, उनकी नजर में सच्ची कला वह है, जो कैनवास पर थोपे गए रंगों को कुछ ऐसा दर्शाए, जो कभी सोचा या देखा न गया हो। वे लोक कला को जीवन का अनिवार्य अंग मानते हैं। उनकी अदभुत दक्षता सपने से कुछ अच्छा कुछ फंतासी से भरा हुआ सच है। अनुसंधान उनकी यात्रा में साफ झलकता है।

कार्टून से आपका पहला परिचय ?
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब गोरे सैनिक मलेशिया और वर्मा जाने के लिए मुंबई के गेट-वे ऑफ इंडिया में पानी के जहाज से उतरते और फिर माथेराम के लिए धीमी रफ्तार से चलने वाली रेल गाड़ियों में सवार होकर कलकत्ता (अब कोलकाता) के लिए रवाना हो जाते थे, हम धीमी रफ्तार से चलने वाली रेलगाड़ियों का पीछा करते थे। उस वक्त मैं करीब आठ-दस वर्ष का था, तब हिन्दुस्तान में कॉमिक्स थी ही नहीं। बहुत गरीब और मुफलिसी के दिन थे, लेकिन गोरे सैनिक चुइंगगम और टॉफी चबाते हुए , कॉमिक्स पढ़ते हुए तथा कुछ हम पर लुटाते हुए वहां से गुजरते थे। एक बार एक गोरे सैनिक ने एक पन्ना खिड़की से फेंका और वह हमारे हाथ आई, तब मैंने पहली बार कॉमिक्स देखी और नकल करना शुरू किया। नकल करते-करते अक्ल आ गई।

कार्टून विधा से आपका वास्तविक संबंध कब और कैसे हुआ?
1952-53 की बात है, जब स्काउट में ‘खरी कमाई डे’ में मैंने पहली बार टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक को अपना कार्टून बेचा। उसकी राशि तो याद नहीं, लेकिन पहली बार धर्मयुग में ढब्बूजी 15 रुपए में बिके और तब से तीस बरस का साथ रहा। धर्मवीर भारती कहा करते थे कि आबिद ने हिन्दी धर्मयुग को उर्दू बना दिया क्योंकि पाठक उसे आखिरी पन्ने से पढ़ना शुरू करते थे। इससे पूर्व पराग में बच्चों के लिए कार्टून बनाया करता था।

आपके कार्टून पर कभी कोई विवाद?
जब एनबीडी ने मेरे सौ कार्टून्स का अलबम आर्ट पेपर में छापा तो भगवा वालों ने कहा कि यह महिलाओं के गरिमा पर चोट है। उन लोगों ने एनबीडी को पत्र लिखकर इसे बेन कराने की बात कही। एनबीडी ने मृणाल पाण्डेय को निर्णायक बनाया। मृणाल ने कड़ा रुख अपनाते हुए अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यदि यह महिलाओं की गरिमा पर चोट है, तो धर्मवीर भारती धर्मयुग के माध्यम से यह चोट लगातार 30 वर्ष तक करते रहे उस वक्त क्यों नहीं आपत्ति उठाई गई।

कलाकार के जीवन में स्पेस का महत्व?
स्पेस का महत्व तो है, लेकिन मेरे सारे आइडिया मेरी पत्नी के हैं, यदि वह मुझे सपोर्ट नहीं करती तो मेरे पास इतने आइडिया नहीं होते। ढब्बूजी की कथा ही पति-पत्नी के बीच नोक-झोंक है। यह मैं तर्जुबे से ही कर पाया।

समकालीन या बाद में किसका नाम लेना चाहेंगे?
मारियो मेरांडा, आरके लक्ष्मण जो राजनीतिक विषय पर कार्टून बनाते थे और मेरा विषय सामाजिक है। नए में मैं मंजुल का नाम लेना चाहूंगा। बहुत ही बौद्धिक है। मुझे रश्क होता है कि मैं क्यों नहीं उसके तरह सोच पाता। उसके कार्टून से मुझे उसे पत्र लिखने के लिए विवश किया।

नया क्या रच रहे हैं?
गीजू भाई की कहानियां 10 भागों में प्रकाशित हो रहा है। यह पुस्तक हिन्दी के अलावा सभी भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होगी। इसके अलावा बच्चों के लिए एक उपन्यास नवाब रंगीले हिन्दी में लिखा है। इसमें हंसते-हंसते बच्चे हिन्दुस्तान की राजनीति सीख जाएंगे।

(यहसाक्षात्कारभोपालसेप्रकाशितपीपुल्ससमाचारकेलिएरूबीसरकारनेलियाथा।)

1 comment:

  1. nice blog, keep it up, "tirumishi" sounds very beautiful word, pls tell me, what does it mean?

    ReplyDelete