Thursday, September 23, 2010


खामोशी से गायब होतीं बेटियां
- भारत में प्रति एक हजार बालकों में 933 बालिकाएं
- मध्यप्रदेश में प्रति एक हजार बालकों में 912 बालिकाएं
- छत्तीसगढ़ राज्य बेहतर एक हजार बालकों के पीछे 990 बालिकाएं


भोपाल। भारत में लड़कियों की जनसंख्या लड़कों के मुकाबले लगातार गिरता जा रहा है। विषम लिंग अनुपात से सामाजिक ढांचा बिगड़ने का खतरा मंडराने लगा है। 2005 में जहां लड़कियों की जन्मदर 33 फीसदी थी, वहीं 2005 में यह 31.9 फीसदी ही रह गयी है। मध्यप्रदेश में यह गिरावट लगातर जारी है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में अब एक हजार लड़कों के मुकाबले मात्र 912 लड़कियां ही रह गई हैं। भिंड, मुरैना, ग्वालियर और दतिया में यह स्थिति और भी भायावह है। मुरैना में 1000 लड़कों के पीछे 837 लड़कियां, भिंड में 832, ग्वालियर में 853 और
दतिया में यह मात्र 874 ही रह गई है। शहरी क्षेत्रों में यह गिरावट बहुत तेजी से बढ़ रही है। जबकि सुखद आश्चर्य यह है कि छत्तीसगढ़ पिछड़ा
राज्य होने के बावजूद यहां लिंगानुपात बहुत कम है। मध्यप्रदेश सरकार दावे के साथ कहती है कि लाडली लक्ष्मी योजना से लोगों के सोच में बदलाव आया है। सरकार के अनुसार अब समाज बेटियों को बोझ न मानकर इस योजना का लाभ ले रहे हैं, जिससे लिंगानुपात पहले के मुकाबले अब सुधारने लगा है।
24 सितम्बर को अंतर्राष्टÑीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाना है। लेकिन इसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा मंदिर-मस्जिद विवाद का फैसला सुनाया जाना है, जिस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। लिहाजा केंद्र और प्रदेश सरकारें कानून व्यवस्था बनाए रखने की जद्दोजहद में जुटी हुई हैं। नतीजा यह है कि कहीं बेटियों के पक्ष में कोई आयोजन होने पर संदेह जताया जा रहा है। इस दिन स्कूलों एवं अन्य संस्थाओं में बेटियों को बचाने के लिए भरवाए जाने वाले शपथ-पत्र भी कानून व्यवस्था के चपेटे में आ सकता है। रस्मी आयोजनों की अनुमति को लेकर भी सरकार भी दुविधा में हैं। जाहिर है कि बेटियां इस समय सरकार की राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा नहीं है। बेटियों को बचाने के लिए सरकार के पास कोई समग्र दृष्टिकोण नहीं है। जिससे परिणाममूलक ढांचा खड़ा किया जा सके। विडम्बना यह है कि केंद्र के पास भी लिंगानुपात को रोकने के लिए कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है। 1994 में बनी पीएनडीटी एक्ट भी कन्या भ्रूण को सुरक्षित रखने में सफल नहीं है।
उत्तर केंद्र सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दूत के रूप में नीता अंबानी, प्रियंका गांधी वाड्रा, सुप्रिया सुले और कानीमोझी को नियुक्त किया है। ये महिलाएं शक्तिशाली पुरुषों की बेटियां या बीवीयां हैं। बेहतर होता अगर सरकार इनका उपयोग बेटियों को बचाने के लिए करे।
उत्तर, यूनिसेफ के अनुसार दो दशकों में पांच वर्ष की उम्र से पहले ही बच्चों की मौत होने के मामले में कोई खास कमी नहीं आई है। संयुक्त राष्टÑ बाल कोष शाखा के मुताबिक 70 फीसदी बच्चों की मौत एक पहले साल में ही हो जाती है। अगर शिशु मृत्यु दर में कमी लाने की गति ऐसी ही रही, तो 2015 तक इसमें कमी लाने के लिए निर्धारित सहस्रादी विकास लक्ष्यों को हासिल कर पाना मुश्किल होगा।
रूबी सरकार

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