Sunday, July 11, 2010


पुरुषार्थ के बल पर कामयाब राजनीतिज्ञ जमुना देवी
आदिवासी समाज के स्थायी विकास व महिला समाज को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में जमुना देवी का संघर्ष सराहनीय है। समय को लांघकर सोचने वाली निडर, राजनीतिज्ञ, जुझारू, दृढ़ता और ईमानदार राजनीतिज्ञ, के रूप में उन्होंने अपने आप को स्थापित किया है। पुरुषार्थ के बल पर प्रदेश की राजनीति के शिखर तक पहुंचने वाली जमुना देवी का जन्म 19 नवम्बर,1929 को धार जिले के सरदारपुर में सदियों से उपेक्षित, धर्नुंविद्या में निपुण एकलव्य के वंशज माने जाने वाले भील समाज में हुआ। उनके पिता श्री सुखजी सिंधार को अपनी इकलौती पुत्री जमुना को दसवीं तक की शिक्षा दिलाने में विरोधों को सामना करना पड़ा था। उनकी शादी 1946 में एक शिक्षित एवं बड़वानी में शिक्षक के पद पर कार्यरत युवक से 17 वर्ष की उम्र में कर दी गई।
1950 में भारत का अपना संविधान लागू हुआ और मालवा के भील आदिवासी क्षेत्र में जब समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल दीक्षित लोगों को संविधान के अनुरूप उनके अधिकारों की जानकारी दे रहे थे, उन्हें मदद के लिए जमुना देवी की आवश्यकता महसूस हुई, क्योंकि जमुना देवी ही उस क्षेत्र में पढ़ी-लिखी और समाजकार्य में सक्रिय थीं। मामा बालेश्वर दयाल ने अपने मित्र खेमा सुबेदार के जरिए उनके दामाद सुखजी सिंधार को कहलवाया,कि वह अपनी पुत्री जमुना देवी को समाज को जगाने के काम में लगायें। इस तरह जमुना देवी का राजनीति में पदार्पण हुआ। 1950 से 1952 तक वह समाजकार्य में सक्रिय रहीं । उनकी सक्रियता देखकर मामा बालेश्वर दयाल ने उन्हें 1952 में विधान सभा चुनाव लड़ाने का फैसला लिया। चूंकि उस समय वह विवाहित थीं और उनकी ढाई साल की एक बेटी भी थी, इसलिए पति ने इसका विरोध किया, लेकिन वे नहीं मानी। उनका वैवाहिक जीवन तनावग्रस्त रहने लगा। जमुना देवी आदिवासी बाहुल्य और अत्यंत पिछड़े झाबुआ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर सबसे कम उम्र की विधायक निर्वाचित हुर्इं। 1957 में जमुना देवी धार जिले के कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ीं, लेकिन क्षेत्र बदलने के कारण उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। जमुना देवी ने महसूस किया, कि चुनाव क्षेत्र बदलना राजनीतिक जीवन के लिए ठीक नहीं, इसलिए उन्होंने झाबुआ को ही अपना स्थायी निवास बनाया। इस बीच तपेदिक की बीमारी के कारण उनके पेट में दर्द रहने लगा। 1957 में उनका आॅपरेशन हुआ। आॅपरेशन के बाद स्वास्थलाभ कर वे फिर जनसेवा में जुट गर्इं। 1960 में कांग्रेस अध्यक्ष मूलचंद देशलहरा ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया। 1962 में झाबुआ से कांग्रस प्रत्याशी की हैसियत से लोकसभा चुनाव लड़ी और विजयी हुर्इं। उन्हें तत्कालीन वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोरारजी भाई देसाई का अ%छा सहयोग मिला। लेकिन पति गुलाबचंद मकवाना को अब भी अपनी पत्नी का समाजसेवा और राजनीति में भाग लेना पसंद नहीं था। बात इतनी बढ़ गई, कि अंंतत: संबंध वि%छेद हो गया, जिसका असर उनके राजनैतिक जीवन पर भी पड़ा। 1967 के लोकसभा चुनाव में प्रतिद्वंद्वियों ने जमुना देवी का इतना विरोध किया,कि वे धार लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गर्इं। असफलताओं के बावजूद उन्होंने धैर्य नहीं खोया और उनका संघर्ष जारी रहा।
कांग्रेस विभाजन के बाद जमुना देवी, श्री मोरारजी भाई देसाई के साथ रहीं तथा उन्हीं की पार्टी से 1972 में चुनाव लड़ीं। लेकिन फिर चुनाव हार गर्इं। 1977 में जब श्री मोरारजी भाई देसाई प्रधानमंत्री बने,तो उन्हें रा%यसभा का टिकट मिला। वह विजयी रहीं। रा%यसभा सांसद रहते हुए, जब 1978 में श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार बनी, तो हरिजन-आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षण की
अवधि 10 साल बढ़ाने के प्रस्ताव के पक्ष में उन्होंने जनता पार्टी की विचारधारा से हटकर मतदान किया। बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया और उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का संयुक्त सचिव नियुक्त किया। सन् 1985 में वह कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुनी गईंं और तभी से लगातार इसी क्षेत्र से निर्वाचित हो रही हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। वे दिग्विजय सिंह की सरकार में आदिवासी, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण,समाज कल्याण के अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्री रही हैं। इसी दौरान श्री सिंह ने उन्हें बुआजी का संबोधन दिया और यही फिर उनकी पहचान बन गया। उन्होंने 1998 से 2003 तक उप मुख्यमंत्री का पद भी संभाला। 16 दिसम्बर,2003 से वे निरंतर मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी संभाल रही हैं।
श्रीमती जमुना देवी के खाते में ढेर सारी उपल?िधयां दर्ज हैं। आदिवासियों के उत्थान के लिए उनकी ईमानदार कोशिशों को देखते हुए 1963 में उन्हें आदिवासी केंद्रीय सलाहकार बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया। उल्लेखनीय कार्य के लिए 1997 में उन्हेें उत्कृष्ट मंत्री का पुरस्कार मिला। 2001 में महिला सशक्तीकरण वर्ष में इंटरनेशनल फ्रेंडशिप सोसाइटी ने उन्हें भारत %योति पुरस्कार से सम्मानित किया। 2003 में संसदीय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण करने पर संसदीय जीवन सम्मान उन्हें प्रदान किया गया।
जमुना देवी की दृष्टि में सफलता एवं विजय का मापदण्ड पुरुषार्थ एवं प्रयत्न ही है। बिना परिश्रम अथवा पुरुषार्थ के विरासत अथवा संयोग या प्रार?ध से मिलने वाली धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा को सफल व्यक्तियों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। आज जमुना देवी जिस मुकाम पर हैं, वह उनके संकल्प, साहस और संघर्ष का ही परिणाम है।
उपल?िययां एवं सम्मान :
‘उत्कृष्ट मंत्री पुरस्कार’- 1997
‘भारत %योति सम्मान’- 2001
संसदीय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण करने पर‘संसदीय जीवन सम्मान’- 2003
सम्प्रति- 7 जनवरी,2009 से नेता प्रतिपक्ष मध्यप्रदेश विधानसभा

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