Wednesday, July 14, 2010


स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर
भारतरत्न लता मंगेशकर के बिना भारतीय फिल्म संगीत की चर्चा अधूरी है। बुलबुले हिन्द लता जी का जन्म 28 सितम्बर,1929 को इंदौर के सिख मोहल्ले में हुआ। उनके पिता पं. दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक के साथ-साथ मुंबई में एक थिएटर कंपनी के मालिक थे। मधुबाला से लेकर हिन्दी सिनेमा के स्क्रीन पर शायद ही ऐसी कोई बड़ी नायिका रही हो जिसे लता मंगेशकर ने अपनी अत्यंत प्रभावशाली आवाज से न संवारा हो। लताजी आज भी संगीतप्रेमियों के दिलों में राज कर रही हैं।
बीस से अधिक भारतीय भाषाओं में लता ने 30 हजार से अधिक गाने गाए। 1991 में ही गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिर्कार्ड्स ने माना था कि लताजी दुनिया भर में सबसे अधिक रिकार्ड की गई गायिका हैं। भजन, गजल, कव्वाली , शास्त्रीय संगीत हो या फिर आम फिल्मी गाने, लता जी ने सबको एक जैसी महारत के साथ गाया।
मूल रूप में कोंकणी भाषी लता जी का पुश्तैनी शहर मंगेशी था और मंगेशी से ही इनके परिवार की पहचान थी, इसलिए पं दीनानाथ मंगेशकर ने अपने अंतिम नाम हार्डिकर के स्थान पर मंगेशकर लिखना शुरू किया। लताजी की मां सौदामिनी, पंडित दीनानाथ की दूसरी पत्नी थी और लताजी इनकी पहली संतान है। इसके बाद क्रमश: हृदयनाथ, आशा, ऊषा और मीना। लताजी की पहली संगीत शिक्षा पांच साल की उम्र में पिता की शार्गिदी में शुरू हुई । स्कूल में उनकी औपचारिक शिक्षा मात्र एक दिन की ही रही। 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था, तब लता जी के पिता दिल की बीमारी से इस दुनिया से चल बसे। लताजी के कंधों पर पूरे परिवार का बोझ आ गया। 1942 में 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक मराठी फिल्म ‘किली हासिल’ में गाना गाकर अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन बाद में यह गाना फिल्म से हटा दिया गया। लताजी बचपन में पिता के ड्रामा कंपनी में छोटे बच्चों के रोल किया करती थी। पिताजी के जीवित रहने तक यह शौक था। पिता के न रहने पर नवयुग फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड के लिए एक मराठी फिल्म ‘पहली मंगला गौड़’ में लता हीरोइन की बहन बनी थी। इसके बाद उन्होंने कभी फिल्मों में अभिनय नहीं किया। इस फिल्म के बाद वह कोल्हापुर आ गयी और यहां मराठी फिल्मों में एक प्रतिष्ठित नाम मास्टर विनायक की कंपनी में दौ सौ रुपए पर नौकरी कर ली। उस समय भाई हृदयनाथ मंगेशकर बहुत बीमार था। उस्ताद अमान अली खान और अमानत खान से संगीत की शिक्षा लेने वाली लताजी को रोजी-रोटी चलाने के लिए संघर्ष शुरू करना पड़ा। लताजी को शोहरत 1949 में मिली, जब उनकी चार फिल्में इसी वर्ष रिलीज हुईं। श्रोताओं ने पहली बार उनकी जादुई आवाज में बरसात, दुलारी , महल और अंदाज के गाने सुने। शुरुआती दिनों में शोहरत हासिल करने में लता जी को काफी कठिनाई हुई। प्रोड्यूसरों और संगीत निर्देशकों ने यह कहकर उनकी आवाज को खारिज कर दिया था कि उनकी आवाज बहुत महीन है। यह वह दौर था जब हिन्दी सिनेमा में शमशाद बेगम, नूरजहां और जोहराबाई अंबालेवाली जैसी वजनदार आवाज वाली गायिकाओं का राज चलता था। फिर भी गुप्त अंत: प्रेरणा से वह बिना रूके, बिना थके गाती रहीं और आत्मा से उनका संवाद जारी रहा। उनकी आवाज में मदनमोहन की गजलें और सी. रामचंद्र के भजन लोगों के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ चुके हैं। पहली बार 1958 में उन्हें हिन्दी सुपरहिट फिल्म मधुमती में ‘आजा रे परदेसी’ गाने के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। बेमिसाल और सदा शीर्ष पर रहने के बावजूद लताजी ने बेहतरीन गायन के लिए रियाज के नियम का हमेशा पालन किया। उन्हें फिल्म जगत का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहेब फाल्के अवार्ड और देश का सबसे बड़ा सम्मान भारतरत्न मिल चुका है। आज करोड़ों प्रशंसकों के बीच उनका दर्जा एक पूजनीय व्यक्ति का है।
शुरू में लताजी उस समय की सर्वाधिक लोकप्रिय गायिका नूरजहां की नकल किया करती थी । लेकिन बाद में उन्होंने स्वयं अपनी शैली विकसित कर ली। उर्दू शब्दों के सही उच्चारण के लिए उन्होंने शफी साहब से उर्दू का सबक लिया। अपने अस्तित्व के लिए दृढ़ संकल्पित लताजी 1960 के दशक में हिन्दी सिनेमा में निर्विवाद प्रमुख महिला पार्श्व गायक बन गईं। 1999 में भारत के महामहिम राष्टÑपति ने उन्हें राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया। सदन में नियमित रूप से उपस्थित न हो पाने के कारण उन्होंने सरकार से वेतन और भत्ता स्वीकार नहीं किया, केवल दिल्ली में एक आवास स्वीकार किया। इसी वर्ष स्वर कोकिला लता के ब्रांड नाम से 1999 में एक परफ्यूम बाजार में पेश किया गया। भारत सरकार ने 2001 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से उन्हें सम्मानित किया । उनके परिवार की ओर से लता मंगेशकर मेडिकल फाउण्डेशन ने 1989 में मास्टर दीनानाथ मंगेशकर के नाम से पुणे में एक अस्पताल स्थापित किया है। 2005 में एक भारतीय हीरा निर्यात कंपनी ने उनके नाम पर एक आभूषण संग्रह ‘स्वरांजलि’ तैयार किया । निर्माता के रूप में उनकी फिल्म ‘लेकिन’ को समीक्षकों ने काफी सराहा। कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए लता मंगेशकर को 250 से अधिक सम्मान मिले। ई एम आई लंदन ने भी उन्हें सम्मानित किया। मध्यप्रदेश सरकार ने उनकी असाधारण प्रतिभा और सेवाओं को मान्यता देते हुए उनके नाम से राष्टÑीय सुगम संगीत पुरस्कार की स्थापना 1984 में की । इसमें सम्मान स्वरूप चयनित कलाकार को एक लाख रुपए नकद राशि एवं प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाता है। अब तक यह पुरस्कार किशोर कुमार, जयदेव, मन्ना डे, खय्याम, आशा भोंसले, भूपेन हजारिका, महेन्द्र कपूर, संध्या मुखर्जी, संगीतकार ओपी नैयर को मिल चुका है। महाराष्टÑ सरकार ने भी उनके नाम से 1992 से एक पुरस्कार की घोषणा की है।

पुरस्कार एवं सम्मान
1- देश का सर्वोच्च
नागरिक सम्मान भारतरत्न- 2001
2- दादा साहेब फाल्के अवार्ड- 1989
3- नूरजहां पुरस्कार- 2001
4- महाराष्टÑ रत्न - 2001
5- संगीत और फिल्म उद्योग में योगदान के लिए सीआईआई द्वारा सम्मानित- 2002
6- महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन की ओर से हाकिम खान राष्टÑीय एकता पुरस्कार- 2002
7- खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की ओर से डॉक्टरेट की उपाधि
फिल्म फेयर पुरस्कार
1- आजा रे परदेसी- फिल्म मधुमती - 1958
2- कहीं दीप जले कहीं दिल- फिल्म बीस साल बाद-1962
3- तुम्ही मेरे मंदिर- फिल्म खानदान- 1965
4- आप मुझे अ%छे लगने लगे- फिल्म‘जीने की राह- 1969
5- लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड- 1993
6- फिल्मफेयर 50 वर्ष पूर्ण होने पर सम्मानित-1993
7- दीदी तेरा देवर दीवाना- फिल्म हम आपके है कौन के लिए विशेष राष्टÑीय पुरस्कार - 1994
राष्टÑीय पुरस्कार: सर्वश्रेष्ठ स्त्री पार्श्वगायक
१- फिल्म कोरा कागज- 1975
3- फिल्म लेकिन - 1990
महाराष्टÑ राज्य : सर्वश्रेष्ठ स्त्री पार्श्वगायक
1- फिल्म साधी मनसा- 1966
2- फिल्म जयति पुन: जयति- 1967
बंगाल फिल्म पत्रकार संघ: सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक
1-वो कौन थी -1964
2-मिलन - 1967
3-राजा और रंक- 1968
4-सरस्वतीचंद्र- 1969
5-दो रास्ते- 1970
6-तेरे मेरे सपने- 1971
7- बांगला फिल्म - मरजिना-अबदुल्ला, अभिमान - 1973
8-कोरा कागज- 1975
9- एक दूजे के लिए - 1981
फिल्म निर्माण
1- 1953- बादल (मराठी)
2- 1953- झांझर (हिन्दी) (सी रामचंद्रजी के साथ सह निर्माता)
3- 1955- कंचन (हिन्दी)
4- 1990- लेकिन (हिन्दी)

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