Thursday, July 8, 2010


मध्यप्रदेश की विशिष्ठ अवदान वाली महिलाएं, जिन्होंने
मान्य परंपरा में कुछ जोड़ते हुए नवाचारी दृष्टि विकसित की है।


चंचल चुलबुली गुड्डी से हजार चौरासी की मां तक का सफर

शुद्ध भारतीय सौंदर्य की प्रतिमूर्ति पद्मश्री जया भादुड़ी हिन्दी फिल्मों में नरगिस, मीना कुमारी की परंपरा को आगे बढ़ाने वाली अभिनेत्री हैं। जया भादुड़ी बच्चन का जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में 9 अप्रैल,1948 को हुआ। इंदिरा और लेखक-पत्रकार तरुण कुमार भादुड़ी की बेटी जया ने बॉलीवुड की चमक-दमक भरी दुनिया में बगैर शरीर प्रदर्शन के अपनी हैसियत बनाई और चोटी की अभिनेत्री बनी। उनकी सादगी और कला के क्षेत्र में विशिष्ठ पहचान के आधार पर समाजवादी पार्टी ने 2004 में उन्हें पार्टी की ओर से रा%ससभा में भेजा। लेकिन जया का राजनीतिक जीवन विवादों से परे नहीं रहा। हिन्दी- मराठी के मुद्दे पर राज ठाकरे से टकराव हो या नेहरू-गांधी परिवार के बारे में टिप्पणी, उनके पति अमिताभ को हर मामले में सफाई देने आगे आना पड़ा। दूसरी ओर बच्चन परिवार को समाजवादी पार्टी में लाने वाले अमर सिंह खुद पार्टी से अलग हो गए, लेकिन जया मुलायम सिंह के साथ बनी रहीं। इस बीच वे राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ के एक नेता द्वारा आयोजित नदी महोत्सव में भी विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुर्इं।

हिन्दी फिल्मों में आने के पहले जया ने तीन बंगला फिल्में की थी। सत्यजीत राय की फिल्म महानगर में जया ने पहली बार कैमरे का सामना किया। उस समय वह स्कूल में पढ़ती थी। स्कूली शिक्षा पूरी कर जया ने पुणे फिल्म संस्थान से अभिनय का प्रशिक्षण लिया और ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में गुड्डी में काम किया। गुड्डी 1971 में रिलीज हुई। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही जया की मुलाकात अमिताभ से हुई। 1973 में जंजीर की सफलता के बाद दोनों ने विवाह कर लिया। तब तक जया स्टार बन चुकी थी और अमिताभ संघर्ष कर रहे थे। दोनों ने अभिमान, मिली, चुपके-चुपके में साथ काम किया और जया ने अपनी अभिनय क्षमता का परचम लहरा दिया। शोले तो दोनों की बाद की फिल्म है। जया ने जीतेंद्र के साथ परिचय के अलावा संजीव कुमार के साथ कई फिल्में की और सभी सफल रही। नायिका के रूप में सिलसिला उनकी आखिरी फिल्म थी। जया ने चंचल चुलबुली लड़की का रोल किया तो कभी बेहद गंभीर भूमिका भी निभाई। लेकिन दो बच्चों अभिषेक और श्वेता की मां बनने के बाद अचानक उन्होंने फिल्मों को अलविदा कह दिया। बेटे और बेटी की बेहतर परवरिश के लिए उन्होंने यह निर्णय लिया। जब बच्चे बड़े हो गए तो उन्होंने फिल्मों में फिर से प्रवेश किया। 18 साल के अंतराल के बाद अपनी नई पारी में जया ने नक्सली पृष्ठभूमि पर आधारित हजार चौरासी की मां फिल्म में यादगार भूमिका की। यह फिल्म 1998 में रिलीज हुई । 2000 में फिल्म फिजा जो मिशन कश्मीर पर आधारित थी में ऋतिक रोशन की मां की भूमिका की । इस फिल्म में उत्कृष्ट अभिनय के लिए जया को सहायक अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था। जया अपने पति अमिताभ के साथ भी कभी खुशी कभी गम में काम किया । कल हो न हो,द्रोण और लागा चुनरी में दाग के रिलीज के बाद उनकी दूसरी पारी अभी चल रही है । बेहद साधारण चेहरा मोहरे, किंतु बेजोड़ भाव प्रदर्शन से जयाजी ने जो मुकाम हासिल किया, वह अपने आप में एक मिसाल है।
पुरस्कार, सम्मान:
1992 - भारत सरकार की ओर से चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री
1998- ओमेगा लाइफटाइम एचीवमेंट
2004-उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सर्वोच्च नागरिक सम्मान यश भारती
2004- सन्सुई लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
2004- उत्तर प्रदेश फिल्म डेवलप कौन्सिल की अध्यक्ष
2004- राज्यसभा सदस्य
1974- फिल्मफेयर : सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अभिमान के लिए
1975- फिल्मफेयर: सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री कोरा कागज के लिए
1980- फिल्मफेयर: सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री नौकर के लिए
1998- फिल्म फेयर: फिल्म उद्योग में विशेष योगदान के लिए
2001- फिल्मफेयर और जी सिने अवार्ड: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री फिजा के लिए
2002- फिल्मफेयर: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री कभी खुशी कभी गम के लिए
2004- फिल्मफेयर: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री कल हो न हो के लिए
2007- फिल्मफेयर: लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड
अन्तर्राष्टÑीय भारतीय फिल्म अकादमी
2001- आई आई एफ ए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री फिजा के लिए
2002- आई आई एफ ए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री कभी खुशी कभी गम के लिए
2004- आई आई एफ ए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री कल हो न हो के लिए
2010- लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड लंदन में जीभ पर आग फिल्म फेस्टिवल में
(मध्यप्रदेश महिला संदर्भ के लिए रूबी सरकार ने लिखा है)

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