Thursday, July 1, 2010


भाजपा का एकमात्र नारी चेहरा सुषमा स्वराज
विदिशा जिले की सांसद श्रीमती सुषमा स्वराज 15वीं लोकसभा में प्रथम महिला नेता प्रतिपक्ष जैसे प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण पद पर आसीन हैं। सबसे कम आयु में मंत्री बनने का उनका रेकार्ड आज तक कायम है। विशेष दम्पति होने का रेकार्ड भी लिम्का बुक आॅफ रेकार्ड में उनके नाम दर्ज है। उनके पति श्री कौशल स्वराज भी राजनीति से जुड़े हैं। वे रा%यसभा सदस्य तथा मिजोरम के रा%यपाल रहे हैं।
सुरुचिपूर्ण पहनावा, बड़ी-बड़ी आंखें, माथे पर बड़ी गोल लाल रंग की बिंदी, शालीन चेहरा और वक्तृत्व कला में निपुण सुषमाजी गृहस्थी और राजनीति दोनों को समान रूप से साथ लेकर चलती हैं। पार्टी ने उनकी योग्यता का मूल्यांकन कर उन्हें कई अहम जिम्मेदारियां दी है। जहां बेल्लारी में श्रीमती सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए उन्हें चुना गया था, वहीं 18 दिसम्बर, 2009 से संसद में सरकार को घेरने की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंपी गई है।
सन् 2004 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के मसले पर सुषमा ने विरोध स्वरूप सिर मुड़ाने की घोषणा कर देश को चौंका दिया था। हालांकि अब वे संसद में महिला आरक्षण के मुद्दे पर सोनिया गांधी के साथ खड़ी हैं। श्रीमती सुषमा स्वराज भाजपा की पहली ऐसी नेता हैं, जो 21 मई,2010 को स्व. राजीव गांधी की 19वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वीरभूमि पहुंची थी और वे वहां श्रीमती गांधी, उपराष्टÑपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बैठीं भी। उनके इस अप्रत्याशित सौजन्य से सोनिया गांधी काफी प्रभावित हुर्इं।
14 फरवरी,1952 को अंबाला छावनी (हरियाणा) में सुषमा स्वराज का जन्म हुआ। अंबाला कैंट के एस डी कॉलेज से उन्होंने स्रातक की उपाधि प्राप्त की । 1973 में इसी कॉलेज से उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ वक्ता और एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट होने का गौरव प्राप्त हुआ। कानून की पढ़ाई उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से की। कुछ समय तक उन्होंने वकालत के पेशे में भी गुजारा ।
श्रीमती इंदिरा गांधी सरकार के नीतियों के विरोध के कारण1970 में छात्रनेता के रूप में उनकी पहचान बन चुकी थी। 1977 में वे पहली बार 80 वर्षीय देवराज आनंद के खिलाफ विधानसभा चुनाव जीतकर हरियाणा सरकार में श्रममंत्री बनीं। उस समय उनकी आयु मात्र 25 वर्ष थी। उनकी यह उपल?िध उनके लम्बे सियासी सफर का पहला पड़ाव थी। 1977-82 तक हरियाणा विधानसभा सदस्य रहीं। इसके बाद 1987-90 तक सुषमा जी ने जनता पार्टी की देवीलाल सरकार में श्रम एवं रोजगार की केबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। 1980 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और देवीलाल के नेतृत्व में संयुक्त लोकदल सरकार में शिक्षा, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री (1987-1990) बनीं। हरियाणा विधानसभा की अध्यक्ष की ओर से उन्हें लगातार तीन वर्षों तक विधानसभा में श्रेष्ठ वक्ता होने का गौरव प्राप्त हुआ।
करनाल (हरियाणा) चुनाव क्षेत्र से श्रीमती स्वराज लगातार 1980,1984 एवं 1989 में कांग्रेस प्रत्याशी चिरंजीलाल शर्मा के खिलाफ लोकसभा लड़ीं,
लेकिन तीनों ही बार वह चुनाव जीतने में असफल रहीं। 1990 और 1996 में वे रा%यसभा के लिए चुनी गईं। जल्द ही वे 11वीं लोकसभा का चुनाव दक्षिण दिल्ली से जीत कर 1996 में 13 दिन की वाजपेयी सरकार में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री बन गर्इं। इसी तरह 1998 में 12वीं लोकसभा चुनाव दोबारा जीतकर वह वाजपेयी सरकार में पुन: केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं। 19 मार्च से 12 अक्टूबर,1998 तक दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार भी उन्हें सौंपा गया था।
13 अक्टूबर, 1998 को दिल्ली विधानसभा चुनाव का नेतृत्व करने के लिए भाजपा आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि इस कुर्सी पर वे 3 दिसम्बर,1998 तक ही रह पार्इं।
1999 तक आते-आते श्रीमती स्वराज का राजनीतिक कद इतना बढ़ गया कि भाजपा ने उन्हें बेल्लारी (कर्नाटक) लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के खिलाफ प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में 44.7 फीसदी वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं, लेकिन अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज करवाने में वे सफल रहीं।
अप्रैल 2000 में श्रीमती स्वराज को उ?ाराखण्ड से रा%यसभा सदस्य बनाया गया। एक बार फिर राष्टÑीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में उन्हें बतौर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री शामिल किया गया। सितम्बर 2000 से जनवरी 2003 तक वह इस पद पर कायम रहीं। इस बार उन्हें स्वास्य एवं परिवार कल्याण तथा संसदीय कार्यमंत्री की जिम्मेदारी भी दी गई। मई 2004 में राष्टÑीय जनतांत्रिक गठबंधन के आम चुनाव हार जाने के दो साल बाद श्रीमती स्वराज को मध्यप्रदेश से न केवल रा%यसभा सदस्य बनाया गया, बल्कि उन्हें रा%यसभा में उपनेता भी बनाया । लेकिन पहले रा%यसभा, फिर लोकसभा मे जाने का अपना ही इतिहास दोहराते हुए वे 2009 का 15वीं लोकसभा चुनाव मध्यप्रदेश की विदिशा जिले से 3.89 लाख मतों से जीत गर्इं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा त्याग पत्र दिये जाने पर श्रीमती स्वराज को यह जिम्मेदारी सौंपी गई।
विश्लेषक मानते हैं, कि श्रीमती सुषमा स्वराज के राजनीतिक व्यक्तित्व को आकार अपने समय के युवा तुर्क और प्रखर समाजवादी नेता चन्द्रशेखर ने दिया। उनके इस स्वरूप को आगे बढ़ाने में जार्ज फर्नाडीज ने समर्थन दिया। हालांकि भारतीय जनता पार्टी में उन्हें अहम जिम्मेदारियां संभालने के लिए तैयार करने का श्रेय लालकृष्ण आडवाणी और राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ के के.सी. सुदर्शन को जाता है।
(मध्यप्रदेश महिला संदर्भ के लिए रूबी सरकार ने लिखा है)

2 comments:

  1. सच कहाँ आपने,लिखते रहिये,सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार


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  2. सुषमाजी का व्‍यक्तित्‍व तो एकदम से चुम्‍बकीय है। उनके गुण यदि राजनेताओं में आ जाएं तो इस देश की सूरत बदल जाए।

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