Wednesday, July 7, 2010


भावनाओं की कथाकार मन्नू भंडारी
मन्नू भण्डारी हिन्दी की सुविख्यात बहुपठित अत्यंत महत्वपूर्णऔर बहुत सारी भाषाओं की रचनाकार हैं। जीवन जीने, उसे संभालने और संजोने की उनकी क्षमता और उनका बेहद निजी तौर तरीका आज की पीढ़ी के लिए एक मिसाल बन सकता है।
उनका जन्म 3 अप्रैल,1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा गांव जिला मंदसौर में हुआ । लेकिन कार्यक्षेत्र कलक?ाा और नई दिल्ली रहा। उनके बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था, लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया। 1949 में स्रातक की पढ़ाई कलक?ाा विश्वविद्यालय से करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह वाराणसी आ गर्इं और यहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1952 में एम. ए. की उपाधि हासिल की।
कलात्मकता उनके समूचे व्यक्तित्व से लेकर उनके लेखन तक में व्याप्त है। अजमेर के ठेठ मारवाड़ी और संबंधों में निष्ठा रखने वाले संयुक्त एकजुट परिवार जहां लड़कियों का नौकरी करना तौहीन समझी जाती थी, वहां मन्नूजी ने स्कूल में नौकरी कर पहली सीमा लांघी।
मन्नूजी अपनी हर रचनाओं में किसी न किसी रूप में उपस्थित रहती हैं। कभी विचारों, मान्यताओं और पक्षधरता के स्तर पर, तो कभी भावना और संवेदना के स्तर पर । ‘आपका बंटी’ उपन्यास में वह बताती है कि एक औरत जब अपनी अस्मिता का संधान करने लगती है, तो सक्षम भी हो जाती है और यही बात पुरुष के लिए चुनौती बन जाती है और तभी दाम्पत्य संबंधों में तनाव पैदा होता है, जो अलगाव तक पहुंच जाता है, इस तनाव और अलगाव की त्रासदी में पिसते हैं निर्दोष बच्चे।
‘एक इंच मुस्कान’ और ‘आपका बंटी’ जैसे संवेदनशील उपन्यास की लेखिका मन्नू भण्डारी न तो अपने जीवन में और न लेखन में कोई विशेष राजनीतिक रूझान रखती है, लेकिन शासन व्यवस्था के दोहरे चरित्र ने उन जैसी मानवीय सम्वेदना रखने वाली लेखिका को सृजनात्मक रूप से इतना विचलित किया कि उन्होंने इसी मन से ‘महाभोज’ जैसे उपन्यास की रचना कर डाली, जिसे राजनैतिक उपन्यास माना जाने लगा। मन्नूजी विजुअल मीडिया की भी गहरी समझ रखती हैं।

बालीगंज सदन, कोलकाता (1952-1961) से उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया। तत्पश्चात् रानी बिड़ला क ॉलेज, कोलकाता (1961-64) में अध्यापन कार्य के बाद सन् 1964 में वे मिरांडा कॉलेज,नई दिल्ली में हिन्दी की प्राध्यापक बनी और अवकाश प्राप्त करने (1991) तक कार्यरत रहीं। अवकाश प्राप्त करने के उपरांत 1992-94 तक वे उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की निदेशक रहीं।
संयोग से उनका राजेन्द यादव से प्रेम विवाह हुआ था। विवाह के पैतीस साल बाद 1994 में राजेन्द्र जी से अलग होने के बाद ही उन्होंने अपने लिए जीना सीखा। जिंदगी के कड़वे अनुभवों और अपने निर्णय पर डटे रहने की मिसाल मन्नू जी का अकेलापन उनका अपना चुनाव है। उनका कहना है, कि जब किसी के साथ रहते हुए भी अकेले ही जीना हो, तो उस साथ के होने का भरम टूट जाना ही अ%छा होता है।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी मन्नू भंडारी ने कहांनियां, उपन्यास, पटकथा, नाटक लिखे हैं। उनकी कहानियां कई भारतीय भाषाओं में अनुदित हुई। लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे। उनकी रचनाओं में ‘एक प्लेट सैलाब’ (1962),‘मैं हार गई’ (1957), ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’, ‘यही सच है’ (1966), ‘त्रिशंकु’ और ‘आंखों देखा झूठ’ उनके महत्वपूर्ण कहानी संगह हैं। विवाह वि%छेद की त्रासदी में पिस रहे एक बच्चों को केन्द्र में रखकर लिखा गया उनका उपन्यास ‘आपका बंटी’ (1971) हिन्दी के सफलतम उपन्यासों में गिना जाता है।
आपका बंटी धर्मयुग में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ था। लेखक राजेन्द्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ (1962) पढ़े लिखे आधुनिक लोगों की एक दुखांत प्रेमकथा है, जिसका एक-एक अध्याय लेखक-द्वय ने क्रमानुसार लिखा था। ‘बिना दीवारों का घर’ (1966) शीर्षक से एक नाटक भी लिखा है।
नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार दोहरे चरित्र वाली राजनीति के बीच आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उद्घाटित करने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ (1979) पर आधारित नाटक अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था । इसी प्रकार ‘यही सच है’ पर आधारित ‘रजनीगंधा’ नामक फिल्म अत्यंत लोकप्रिय हुई थी और इसे 1974 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।
उनकी रचनाधर्मिता का सम्मान करते हुए हिन्दी अकादमी, दिल्ली ने उन्हें शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से भवभूति अलंकरण, बिरला व्यास सम्मान (2008) और उ?ार-प्रदेश हिंदी संस्थान ने अलंकृत किया।
प्रकाशित कृतियाँ:
कहानी-संग्रह : एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, श्रेष्ठ कहानियाँ, आँखों देखा झूठ, नायक खलनायक विदूषक।
उपन्यास : आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा, फिल्म पटकथाएँ : रजनीगंधा, निर्मला, स्वामी, दर्पण।
नाटक : बिना दीवारों का घर(1966), महाभोज का नाट्य रूपान्तरण(1983)
आत्मकथा: कहानी यह भी (2007)
प्रौढ़ शिक्षा के लिए: सवा सेर गेहूं (1993) (प्रेमचन्द की कहानी का रूपान्तरण)

8 comments:

  1. खूबसूरत पोस्ट

    ReplyDelete
  2. आप की रचना 9 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
    http://charchamanch.blogspot.com
    आभार
    अनामिका

    ReplyDelete
  3. बहुत अच्छा लगा फिर से मन्नू भंडारी जी के बारे पढना |

    ReplyDelete
  4. Bahut pehle ki talaash poori hui,thanks,google

    ReplyDelete
  5. Kishoravastha se man chhahta tha,Mannu ji darshan karoon,kiya,bhale hi chitra mei hi sahi,thanks google.

    ReplyDelete
  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 03 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  7. बहुत ही ज्ञान वर्धक लेख है।

    ReplyDelete
  8. मन्नु भंडारी जी से मेरी मुलाकात इंदौर के शासकीय नूतन कन्या महाविद्यालय में 2003 को चंद्रकांत देवताले व वहां के प्राचार्य सुंदरलाल गर्ग जी के माध्यम से हुआ था उस समय मैन उन्हें 2001 में प्रख्यात कवि-चित्रकार जगदीश गुप्त पर "आजकल साहित्यिक पत्रिका विशेषांक"उन्हें भेंट किया था जिस के आवरण पर मेरे द्वारा बनाया गया जगदीश गुप्त का पोर्ट्रेट प्रकाशित था। यह मेरे कला उच्च अध्ययन के दौरान एक बड़ी उपलब्धि थी मन्नु भंडारी का महाभोज व आपका बनती में जगदीश गुप्त के सान्निध्य में रहते हुए इलाहाबाद में ही पढ़ चुके था।
    आज वह हमें छोड़कर साहित्यिक जगत को वीरान कर गयी सचमुच कहानी उपन्यास व नाटकों के लिए जानी जाने वाली मन्नो भंडारी के भीतर वात्सल्य का भाव जो भरा था वह उनसे मिलकर मैंने अनुभव किया था।
    उनके 21 कहानियों की श्रृंखला "तिरुमिशी" में उनके सभी पसंदीदा कहानियां संग्रहित हैं जो बहुत ही रोचक व पठनीय है।
    ●धनंजय सिंह ठाकुर
    132/117,नागबसुकि मंदिर मार्ग, दारागंज, इलाहाबाद(प्रयागराज)-211006.
    मोबाईल:७९९९४१३०७३.

    ReplyDelete