Saturday, June 24, 2023

क्या मालवा-निमाड़ से भी चलेगी कैंसर एक्सप्रेस?

 

                                                                 Madanlal, Kasrawat

chandresh , kasrawat
Ishwar Patidar, Kasrawat

Sonu Jaysawal , Kasrawat


Vivek Rawal , Organization

Dr.Rakesh Patidar
16 Oct 2018

क्या मालवा-निमाड़ से भी चलेगी कैंसर एक्सप्रेस?
 रूबी सरकार 
पंजाब के बटिंडा से राजस्थान के बीकानेर तक चलने वाली अबोहर जोधपुर एक्सप्रेस यूं तो किसी भी सामान्य ट्रेन की तरह हो सकती थी, लेकिन पंजाब के हरे-भरे खेतों वाले इलाकों से जिस तादाद में लोग आचार्य तुलसी कैंसर संस्थान , बीकानेर  में अपनी जांच और इलाज करवाने के लिए इस ट्रेन से सफर करते हैं, उससे इस ट्रेन का नाम ही कैंसर एक्सप्रेस हो गया है। जी हां , मध्यप्रदेश का मालवा-निमाड़ क्षेत्र जो अपनी उपजाऊ ज़मीनों के लिए जाना जाता था, अब कैंसर का घर बन चुका है। यहां से गुजरात के कैंसर अस्पतालों को जाने वाली बसें इसकी गवाह है। 
इस सेवा के संचालकबताते हैं, कि पहले बस सीधे अहमदाबाद के लिए जाती थी, लेकिन सारे यात्री बड़ोदरा के बाघेडिया धीरज अस्पताल तक ही सफर करते थे और वहां पहुंचते ही पूरी बस खाली हो जाती थी, इसलिए पहली बार 2013 में एक विशेष बस खरगोन से सिर्फ धीरज कैंसर अस्पताल तक के लिए  शुरू की गई, लेकिन मरीजों की संख्या धीरे-धीरे इतनी बढ़ गई, कि दूसरी विशेष बस चलानी पड़ी। यात्रियों की सुविधा के लिए बस पर ही खरगोन से धीरज अस्पताल लिखवा दिया गया है। 
ऐसी ही एक बस में सफर कर रहे कुछ मरीजों से इस संवाददाता ने बातचीत की। भील गांव की राधा बहन ने बताया, कि वह खेतों में अपने पति के साथ काम करती है, लेकिन अब उसका शरीर साथ नहीं देता। 10 साल पहले उसकी आंखों और शरीर में जलन शुरू हुई, जिसका इलाज उसने पहले महेश्वर  और फिर बड़वानी के डॉक्टरों से  करवाया । जब आराम नहीं मिला, तो किसी  की सलाह पर वह धीरज कैंसर अस्पताल पहुंची । वहां के डॉक्टरों ने तमाम जांच के बाद बच्चेदानी में गठान  बताया। कुछ समय तक लगातार राधा खरगोन से बड़ौदा फॉलोअप के लिए जाती रही। थोड़ा आराम भी मिला, लेकिन पैसे खत्म हो गये, तो उसने इलाज के लिए जाना बंद कर दिया।  अब जब दोबारा तकलीफ बढ़ी, तो इलाज के लिए उसे जाना पड़ रहा है। इसी तरह ढाबा गांव के जगदीश मीणा को कीमो थैरेपी के लिए धीरज अस्पताल हर 21 दिन के बाद जाना पड़ता है। कसरावद के महेन्द्र वर्मा  का तो दो महीने पहले मुंह के कैंसर का ऑपरेशन हुआ है। इसी तरह 62 वर्षीय रमेश सिंह राठौर का 2011 में धीरज अस्पताल  में ही पेट के कैंसर का ऑपरेशन हुआ है। अधिकतर समय खेत में बिताने वाले भगवान सिंह राठौर तो अब लगभग बिस्तर पर ही हैं। उनका मर्ज तो ठीक-ठीक पकड़ में भी नहीं आ रहा है। 
बस में यात्रियों को बैठाने वाला सोनू जायसवाल बताता है, कि वर्ष 2013 से वह यह काम कर रहा है। उसने कहा, गनीमत यह है, कि मेरी मां धीरज अस्पताल से इलाज के बाद ठीक हो गई, जबकि कई मरीजों की तो इलाज के दौरान ही मौत हो गई। सोनू ने बताया, पिछले 5-6 सालों से वह यही काम कर रहा है। उसने कहा, धीरे-धीरे मरीजों की बढ़ती संख्या को देखकर ऐसा लगता है, कि पंजाब की तरह यहां भी कहीं ट्रेन न चलानी पड़े । उसने कहा, कि उसे दुख तो बहुत होता है, लेकिन उसे यह नहीं मालूम , कि आखिरी कैंसर होता क्यों है।  डॉक्टर इलाज तो करते है, पर यह नहीं बताते, कि आखिर मरीज बढ़ क्यों रहे हैं। 
द रिसर्च ट्रायल इन्टीट्यूट ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर (एफआईबीएल)के कृषि विशेषज्ञ ईश्वर पाटीदार ने बताया, कि दरअसल  खेतों में लगी फसलों को इल्लियों, कीड़ों-मकोड़ों या तना-छेदक और चूसक कीटों या नींदा  से बचाने के लिए किसान द्वारा कीटनाशक या नींदानाशक और यूरिया का जो इस्तेमाल हो 

रहा हैं, वह न केवल वातावरण को प्रदूषित कर रहा है, वरन् सांसों के जरिये इंसान के शरीर में जाकर उसे कैंसर की ओर धकेल रहा है। खेतों में रसायन  का  प्रयोग पूरे मालवा-निमाड़ में इतना बढ़ गया है, कि अब इससे बच पाना लोगों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। 
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कसरावद के डॉ. राकेश पाटीदार इस क्षेत्र में कैंसर के प्रभाव अधिक होने के बारे में बताते हैं, कि किसान अधिक उपज के लिए खेती में बेतहाशा विषैले रसायनों का प्रयोग करते हैं। दूसरी तरफ बीटी कपास क ी वजह से भी लोग आंखों और चर्म रोगों से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। चर्म रोग तो अब दवा से भी ठीक नहीं हो रहा है। ऊपर से स्थानीय लोगों के पुरज़ोर विरोध के बावजूद एक निजी खाद कंपनी को यहां कारखाना लगाने की  अनुमति देकर सरकार ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। फर्टीलाइजऱ कंपनी की वजह से ज़मीन का पानी  पूरी तरह दूषित हो चुका है। 
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. चंद्रेश बताते हैं, कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आने वाले 99 फीसदी मरीज फंगल इन्फेक्शन से पीडि़त होते हैं, जिन पर अब दवा भी असर नहीं करती। डॉ चंद्रेश कैंसर जैसी बीमारियों के पीछे रासायनिक खादों, कीटनाशक,नींदानाशक,अंकुरण-नाशक और फफूंद-नाशक दवाओं को ही जिम्मेदार मानते हैं। उन्होंने कहा, कि पहले कैंसर जैसी बीमारी गांवों की तुलना में शहरों में अधिक पाई जाती थी, क्योंकि शहर का हवा,पानी, भोजन, रहन-सहन को इसके  लिए जिम्मेदार माना जाता था, लेकिन अब शहर और गांव में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया है। शहरों में पहले से आई बीमारियां अब गांवों में भी उतनी ही मात्रा में व तेजी से फैल रही हैं।  
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 5 कृषि रसायनों को कैंसर का कारण माना
मेंरे  पास 600 हेक्टेयर जमीन हैं , जिसपर मैं जैविक खेती करता हूं। टीकरी विकास खण्ड (बड़वानी) के आस-पास के लगभग गांव पूरी तरह से बायो डायनेमिक और जैविक खेती करते हैं।  लोगों को कैंसर से बचाने के लिए सरकार को जैविक खेती पर ध्यान देना चाहिए और रासायनिक खेती को पूरी तरह बंद कर देना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विभीषिका की तरह फ़ैल रहे कैंसर रोग का दोषी कुल 5 कृषि रसायनों को माना है। ये सब रसायन सारे पश्चिमी देशों में प्रतिबंधित हो चुके हैं, लेकिन भारत में अभी भी धड़ल्ले से बिक रहे हैं।   किसान अधिक उपज की लालच में इसके चपेट में आ रहे हैं । जिसका दुष्परिणाम कैंसर के रूप में देखने को मिल रहा है। यहां तक कि वही रसायन पीकर किसान आत्महत्या तक कर रहे हैं। 
 दूसरी तरफ मिश्रित खेती के बंद होने से जो विविधता की हानि हुई है, उसकी पूर्ति नहीं हो सकती। कपास में पैसा आ गया, पर दालें ख़त्म हो गईं। गरज यह , कि प्रोटीन के अभाव में हमारी खाद्य सुरक्षा तो खतरे में आ गई। खरगोन ही नहीं बड़वानी के राजापुर से भी बस भरकर लोग कैंसर के इलाज के लिए बड़ौदा- अहमदाबाद जा रहे हैं। 

                                      मदनलाल
                                          अध्यक्ष
                                    बायो रि एसोसिएशन
                                         अजन्दी गांव
                                    टीकरी विकास खण्ड    
                                          बड़वानी
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आखिर हम किस दौर में जा रहे
जैविक कपास के उत्पादन में पूरी दुनिया में मध्यप्रदेश पहले नम्बर पर है। हालांकि इसका रकबा सरकार की उदासीनता के चलते लगातार कम होता जा रहा है। किसान क्वालिटी के बजाय क्वान्टिटी पर ज़ोर दे रहे हैं। वे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेना चाहते हैं। इस होड़ में हर किसान रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल करने लगे हैं। नतीजतन इस इलाके में लगभग 70 फीसदी से ज्यादा किसान कैंसर से पीडि़त हो गये हैं। बहुत दुखद और शर्म की बात है, कि खरगोन से धीरज अस्पताल के लिए दो-दो विशेष बस चलाई जा रही हैं।  
                                          विवेक रावल
                                      सीईओ और निदेशक
                                      बायो रि इण्डिया लिमिटेड 
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झूठ फैलाया जा रहा है
 रासायनिक और बीटी की खेती से किसान प्रभावित हो रहे हैं। यह सिर्फ कोरी कल्पना है, कि रासायनिक खाद और कीटनाशक से किसान बीमार नहीं हो रहे हैं, बल्कि बीमार होने के कई अन्य कारण है।  इसके बारे में अध्ययन होने चाहिए। रासायनिक और कीटनाशक से बीमार होने का भी कोई अध्ययन आज तक नहीं हुआ है और न ही इस तरह के कोई आंकड़े उपलब्ध हैं। 
                                       डॉ. राजेश राजौरा 
                                            प्रमुख सचिव 
                            किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग 





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