Thursday, June 22, 2023

Single Women Rights -कानूनी ह$क पाने के लिए संघर्षरत एकल महिलाएं

 



Jul 12, 2019


कानूनी ह$क पाने के लिए संघर्षरत एकल महिलाएं

 रूबी सरकार 
मण्डला जिले की बिछिया विकास खण्ड की 68 वर्षीय नन्हूदास मृत्यु से पहले अपनी दोनों बेटियां क्रमश: 50 वर्षीय श्यामाबाई और 45 वर्षीय उदा बाई के वसीयत कर गये थे,  जिससे उनके मृत्यु के बाद सम्पत्ति को लेकर कोई विवाद न हो। नन्हूदास का कोई बेटा नहीं था। लेकिन जब वर्ष 2013 में नन्हूदास की मृत्यु हुई और बेटियां कृषि भूमि पर खेती करने गईं, तो विवाद खड़ा हो गया, क्योंकि सम्पत्ति पर दो बहनों के अलावा बहुत सारे रिश्तेदारों का नाम तहसील में दर्ज था। उनमें नन्हूदास की बहन और उनके 3 बच्चों के नाम सहित कई दावेदार हो गये थे। यह विवाद वर्ष 2013 से अब तक नहीं सुलझा, जबकि श्यामा और उदा के 30 हज़ार रुपये खर्च भी हो गये। श्यामा ने बताया, कि तहसील से केवल एक बार ही बुलावा आया था और हमलोगों ने वसीयत दिखा भी दी , लेकिन कु छ नहीं हुआ। समाज कहता है, कि शादी के बाद पिता की सम्पत्ति पर बेटियों का कोई अधिकार नहीं होता । मामला अब तहसील में विचाराधीन है। सामाजिक कार्यकर्ता विवेक पवार बताते हैं, यहां सालों तक मामला तहसीलदार के यहां पड़ा रहता है और ग्रामीण महिलाएं अपनी रोज़ी छोड़कर तहसील का चक्कर लगाती हैं , फिर किसी दिन थक-हार कर तहसील जाना ही छोड़ देती हैं। अब इन दोनों महिलाओं के पति जीवित नहीं है। परिवार की पूरी जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर है, ऐसे में तहसील में रोज जाना संभव ही नहीं है। दोनों बहन सरकारी पेंशन के अलावा मजदूरी कर गुजर-बसर कर रही हैं। इसी तरह मण्डला जिले की विकास खण्ड मवई ,मोतीनाला पंचायत की 27 वर्षाीय तिजिया बाई यादव की शादी 16 वर्ष की आयु में पिता छतर यादव ने गोलू यादव से कर दी थी। शादी के 2 साल बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया। तिजिया बताती है, कि ससुराल वाले शुरू से ही दहेज के लिए उसे ताना मारते थे, प्रताडि़त भी करते थे।  पति धमकी के साथ-साथ मार-पीट भी करने लगे थे। यह सब सह ही रही थी, कि अचानक एक दिन ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल  दिया । इसके बाद तिजिया  बच्चे को लेकर मायके आ गयी। उधर पति ने बगैर पहली पत्नी से विवाह विच्छेद किये बिना दूसरी शादी कर ली। जब मुझे यह बात पता चली, तो मैं घबरा गई, लेकिन पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की। कुछ दिनों बाद पति का निधन हो गया। मैं 8 सालों से बच्चे के साथ मायके में रह रही हूं तथा समूह में काम कर अपनी और बच्चे का भरण-पोषण कर रही हूं। हाल ही में मुझे सम्पत्ति का अधिकार कानून के बारे में पता चला। अब मैें पति के सम्पत्ति पर अपना ह$क चाहती हूूं। इसके लिए मैेंने न्यायालय में अर्जी भी दी है।  
तिजिया की ही तरह तहसील बिटिया की रहने वाली 28 वर्षीय सुमंत्रा बाई पुसाम को भी दहेज के लिए पति और सास-ससुर द्वारा प्रताडि़त किया जाता था। सुमंत्रा के साथ भी वहीं सब कुछ हुआ , जो तिजिया के साथ होता था । आखिर में वह अपने मायके आ गयी । 8 साल से वह मायके में रह रही है। सम्पत्ति कानून के बारे में जब उसे पता चला, तो उसने न्यायालय में अर्जी दी और पारिवार न्यायालय के आदेश के बाद पति उसे प्रतिमाह 2 हज़ार रुपये देने को बाध्य हुआ। हालांकि सुमंत्रा इतने में संतुष्ट नहीं हैं और उसने पति के सम्पत्ति पर अपना ह$क पाने का लिए न्यायालय में दोबारा अर्जी दी है। सृजन समाज विकास समिति की अनिता बताती हैं, कि केवल मवई विकास खण्ड में 2 से ढाई सौ एकल महिलाएं हैं, जो पति या पिता की सम्पत्ति हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही हैं।  
दरअसल वर्ष 2016 में भारत सरकार ने एकल महिलाओं के पक्ष में एक अच्छा कदम उठाते हुए एक मसौदा तैयार किया था, जिसमें एकल महिलाओं को एक अलग पहचान के रूप में संबोधित किया गया था। इससे पहले एकल महिला की कोई अलग पहचान नहीं थी। अब स्पष्ट हो गया है, कि इस श्रेणी में सिर्फ विधवाएं नहीं, बल्कि अविवाहित, तलाकशुदा और पति से अलग रहने वाली महिलाएं आती हैं और ऐसी महिलाओं की संख्या मध्यप्रदेश में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 23 लाख है और  इस तबके की संख्या तेजी से बढ़ रहा है। इन सभी महिलाओं को पिता या पति के सम्पत्ति पर पूरा अधिकार है। 
बॉक्स 
एकल महिलाओं को देखने के भारतीय नज़रिये को बदलना होगा
सामाजिक परिस्थितियों में आ रहे बड़े बदलाव के बावजूद एकल महिलाओं को देखने के भारतीय नज़रिये में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आ रहा है। परिवार के घेरे से बाहर महिलाओं को आज भी समाज इज्जत की नज़र से देखना, उनकी निजता का सम्मान करना नहीं सीख पाये हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में लगभग 23 लाख महिलाएं एकाकी जीवन व्यतीत कर रही हैं। एकल महिलाओं के रुप में जीवन यापन कर रही हैं। स्थिति की गम्भीरता जब बढ़ जाती है जब हम आकड़ों का विश्लेषण करते हैं। इससे पता चलता है, कि एकल महिलाओं में10 से 14 साल की  साढ़े 5 हज़ार (5582) लड़कियां विधवा हैं , जबकि 15 से 19 उम्र की लगभग 8 हज़ार (7805) लड़कियां विधवा हंै। ये आंकड़े साफ  दर्शाते हैं, कि समाज में कम उम्र में शादी जैसे अमानवीय कुप्रथा आज भी मौजूद हैं। 
                                                                  

                             अनामिका रॉय                                                            
                            सामाजिक कार्यकर्ता
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कौन हैं एकल महिला 
विधवा, जिनके पति की मृत्यु हो गयी है। 
तलाक शुदा, जिन्होंन ेपारिवारिक स्तर पर तलाक 
           लिया है । 
कानुनी रूप से तलाकशुदा।
अविवाहित महिलाएं जिनकी उम्र 18  या  उससे 
           अधिक है ।
परित्क्यता महिलाएं, जो 3 साल या इससे अधिक समय से 
           पति से दूर रह रही हैं। 
यौनकर्मी,बाछड़ा,बेडिय़ा,नट,सांसी, कंजर समुदाय 
           की वे महिलाएं , जो जातिगत दैहिक शोषण/देहव्यापार में 
           हैं, जिसके परिवार की पहचान उन्हीं के नाम से है।
विकलांग एकल महिलाएं
डायन करार दी गई महिलाएं ।
आपदा के कारण एकल महिलाएं।
सड़क पर अकेली गुजर-बसर करने वाली भिखारी, 
           मानसिक रोगी या वो जिन्हें परिवार और समाज ने 
           बहिष्कार किया है। 
गुमशुदा महिलाएं, जिनके पास कोई भी दस्तावेज 
           नहीं होता।

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