Wednesday, June 14, 2023

अनाज, पेड़-पौधों व जानवरों से बना भूरी बाई का रचना संसार

 





अनाजपेड़-पौधों  जानवरों से बना भूरी बाई का रचना संसार

रूबी सरकार
भारतीय भील कलाकार भूरी बाई को वर्ष 2021 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया । भील जनजाति की संस्कृति को दीवारों और कैनवास पर उकेरने वाली मध्यप्रदेश की भूरी बाई को जब महामहिम राष्ट्रपति ने नई दिल्ली में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया तो उनके चेहरे की चमक देखते ही बनती थी।
कागज और कैनवास पर पेंटिंग करने वाली भील समुदाय की पहली महिला भूरी बाई अपने 1980 के काम का वर्णन करती हुई कहती हैंकि यह एक परिवार है जो होली से लगभग आठ दिन पहले शुरू होने वाले भगोरिया के त्यौहार में शामिल होने जा रहा है। माता-पिता के पांच बच्चे हैंऔर सभी बच्चे रो रहे हैंत्योहार देखने के लिए अड़े हैं। माता-पिता भ्रमित हैंउन्हें आश्चर्य है कि वे सभी बच्चों को कैसे ले सकते हैं। इसलिए वे एक बड़ा लकड़ी का लट्ठा लेते हैंएक सिरा पिता के कंधे पर और दूसरा सिरा माता के कंधे पर रखते हैंऔर बच्चे सभी लट्ठे पर बैठकर भगोरिया देखने जाते हैं।” यह उनकी अद्वितीय दृश्य शब्दावली और पितृसत्तात्मक निर्माणों को तोड़ने के लिए है।

दरअसल आदिवासी कलाकारों ने दुनिया के जितने भी चित्र खींचेवे उनके अनुभवउनकी स्मृतिऔर कल्पना में उपजे थे और उन्हें देखने वाली आंखों से भी यही सब कुछ अभीष्ट था और है।
शिखर सम्मानअहिल्याबाई सम्मानदुर्गावती सम्मान जैसी अनेक राजकीय और राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित भूरीबाई जब-जब सम्मानित हुईतो वह अपने मार्गदर्शक मूर्धन्य कलाकार और कला पारखी जगदीश स्वामीनाथन को याद करना नहीं भूलीं। हमेशा कदम-कदम पर उन्हें याद कर वह भावुक हो उठती हैक्योंकि भूरी उन्हीं की खोज है। भूरी तो मेहनत-मजूरी करने अपने गृह नगर पिटोल गांवझाबुआ से भोपाल आई थीं। भारत भवन के निर्माण के समय भूरी की कला प्रतिभा को स्वामीनाथन ने ही पहचाना तथा चित्र बनाने के लिए उन्हें लगातार प्रेरित भी किया। आर्थिक चिंता से मुक्त होकर भूरी बाई चित्र रचना कर सकेंइसके लिए स्वामीनाथन ने उन्हें अपेक्षित आर्थिक मदद भी की। रचनाशीलता के लिए वातावरण विकसित करने में स्वामीनाथन का योगदान सबके लिए अविस्मरणीय है और भूरी बाई की कलायात्रा में स्वामीनाथन की भूमिका प्रणम्य है।
फरवरी 2016 में भारत भवन की 34वीं वर्षगांठ पर भूरी बाई के चित्रों की एक वृहद प्रदर्शनी लगायी गयी थीप्रदर्शनी में शामिल कलाकृतियां भूरी बाई की भारत भवन के परिप्रेक्ष्य में स्मृति आधारित कलाकृतियांे  को शामिल किया गया था। तभी भूरी से मेरी लम्बी बातचीत भी हुई थी।
दरअसल बचपन में ही भूरीबाई के नाम के आगे लिखमा जोखारी (यानी भील समुदाय इन्हें हर मनुष्य का कर्म लिखने वाली देवी मानता है।) ने जन्म के समय ही लिख दिया था चित्तर काज। लेकिन भूरी बाई और बाकी सारी दुनिया को इस बात का पता चलने में देर लगीं । पहले तो भूरी बाई यही सोचती थीं कि उनके भाग्य में मेहनत मजूरी  सिर पर बोझ ढोना लिखा है।
गांव मोटी बावड़ीजिला झाबुआ के एक मिट्टी की दीवार और सागौन के पत्तों से छवाए गए छप्पर वाले घर में भूरी बाई ने जन्म लिया।  किसी को नहीं पता कि कौन सा वर्ष थाकौन सा महीनाकौन सी तारीख-क्या उस रोज आसमान में बादल थे! या वे खाखर के फूलने के दिन थे! खैर भूरी बाई को जन्म की तारीखमहीनासाल आदि भले ही न मालूम हो लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता हैबस उसके जन्म का मकसद क्या है ! इसे लिखमा जोखारी ने बड़े साफ-साफ शब्दों में लिख दिया था।
छोटी-सी भूरी घर के आंगन में भाई-बहनों के साथ खेलतीपिता पिद्या बवेरिया डागड़े के नीचे बैठे हुक्का पीते रहते। मां लखू बाई आंगन बुहारती। घर के आगे खलिहान में लगे सेमल के पेड़ पर सरकली चिड़िया फुदकती रहती। उसी पेड़ के नीचे पलेंडी पर मां पानी के दो मटके भर कर रख देती। भूरी को याद हैहर साल बिल्ली डागड़ की छत पर ही बच्चे देती थी।
थोड़ी बड़ी हुईतो मां के साथ खेत पर खाना लेकर जाने लगी। भादो के महीने में अनाज पकने पर हर घर में नेवोज पूजा होती है। तब नई फसल की मक्का का ही घाट बनता है। मां आटे से चौक लिखती। खाखर के पत्तों पर मक्के के घाट का नेवोज घर के देवी-देवता को चढ़ाया जाता। उन्हें महुआ की दारू की धार दी जाती। पूजा के बाद ही सारे बच्चों और फिर बड़ों की बारी आती। माता-पिता के पास खेती बहुत कम थीउसके घर का गुजारा मुश्किल से हो पाता था। सो जल्दी ही भूरी और उनकी बड़ी बहन जमींदार के खेत पर निदाई करने जाने लगीं। दिन भर निदाई करने के बाद शाम को एक रुपया जमींदार की तरफ से मिलता था।  लेकिन जमीदार के खेतों में हमेशा काम नहीं मिलता था। ज्यादातर समय दोनों बहनें पीपल के पत्तों का या सूखीजंगल से इकट्ठा  की गई टहनियों का गट्ठर ले दाहोद जाती और वहां उन्हें दो रुपए किलों के मोल से एक आदमी को बेचतीं। गांव से कोई चार-पांच किलोमीटर  की दूरी पर अणास रेलवे स्टेशन से दोनों बहनें सुबह 11 बजे साबरमती एक्सप्रेस पकड़ कर दाहोद पहुंचती और शाम फिर दाहोद से यही ट्रेन पकड़ कर अणास लौटती । दोनों बहनें कड़ी मेहनत करतींतब जाकर घर का खर्च चलता था। बाकी सारे भाई -बहन छोटे थे और पिता कुशल मिस्त्री थेफिर भी दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पाते थे।
पिटोल में दाहोद के एक सेठ की दुकान थीजहां भूरी के पिता की उधारी चलती थी। ऐसी उधारी जो कभी पट नहीं पाती थी। फकरू सेठ के छोटे भाई का घर दाहोद में बनना था और उधारी पटाने की गरज से भूरी बाई के पिता ने अपनी दोनों बेटियों के साथ इस घर के निर्माण का  काम करने दाहोद जाने को राजी हो गए। यही से भूरी बाई का निर्माण कार्यों में भाग लेना शुरू हुआ और फिर दोनों बहनें अपने चाचा के साथ भोपाल मजदूरी करने आ गईं। भूरी बाई जब भोपाल मजदूरी करने आईंतब उनकी उम्र करीब 14 साल थी। इस बीच उसकी शादी भी हुई।
भूरी बाई अपनी बहनननद और गांव के अन्य लोगों के साथ भारत भवन के निर्माण के समय मजदूरी कर ही रही थीकि एक दिन मूर्धन्य चित्रकार स्वामीनाथन की नजर इन लोगों पर पड़ी और उन्होंने पूछाकि तुम लोग किस समाज से हो। क्या तुम अपने समाज की रीति-रिवाज चित्र के जरिये हमें बता सकते हो। चूंकि भील समुदाय घर की दीवारों पर चित्र बनाया करते थेलिहाजा सभी ने उसी तरह के चित्र भारत भवन के पास मंदिर के चबूतरे पर बनाए और हर दिन इन चित्रों के 10 रुपए नगद मिलने लगे। स्वामी जी को भूरी के चित्र बहुत पसंद आये और उन्होंने भूरी के साथ-साथ और भील चित्रकारों को अपने घर बुलाया । 10 चित्र बनाने के बाद इन लोगों को प्रति चित्र 1500 रुपए मिले। भूरी को विश्वास ही नहीं हुआकि आराम से बैठकर चित्र बनाने के लिए कोई उन्हें इतने रुपए देगा। इस तरह भूरी आगे बढ़ती गई। एक दिन उसे पता चलाकि उसे राज्य सरकार का शिखर सम्मान मिला है। शिखर सम्मान मिलने के बाद भूरी बाई को सभी पहचानने लगे और समाज में भी उनकी इज्जत बढ़ गई। देश में कई जगहों से चित्र बनाने के लिए बुलावे आने लगे। अब तक भूरी के बच्चे हो चुके थे। इस बीच वह बीमार पड़ीउसके बचने की उम्मीद नहीं थी। तब वह आदिवासी लोक कला परिषद के तत्कालीन निदेशक कपिल तिवारी से मिलीं और अपनी तकलीफ बताई। श्री तिवारी ने लम्बे समय तक भूरी के इलाज का बंदोबस्त ही नहीं कियाबल्कि बतौर आदिवासी कलाकार उसे नौकरी भी दे दी। इसके बाद से तो भूरी के काम के चर्चे पूरी दुनिया में होने लगे। शिखर सम्मान के बाद वर्ष 2010 में उसे राष्ट्रीय दुर्गावती सम्मान से नवाजा गया । भूरी कहती है कि बचपन से ही आसमान में हवाई जहाज को उड़ता देख उन्हें उसमें बैठने का मन करता था। आखिरकार उनकी यह इच्छा भी पूरी हो गई। आज भूरी बाई अपने बच्चों के साथ रहती है। पति का स्वर्गवास हो चुका है।
कोई 45 साल पहले लिखमा जोखरी ने भूरी बाई के नाम के आगे चित्तर काज लिखा था इसे भूरी बाई ने दिनों-दिन बढ़ती लगन से करती जा रही है। भूरी बाई लाखों आदिवासी कलाकारों की प्रेरणास्रोत हैं। आज राजधानी भोपाल में सैंकड़ों आदिवासी कलाकार छोटे-छोटे गांव से आकर यहां अपनी पेंटिंग्स के जौहर दिखा रही हैंसम्मान और पैसा दोनों उन्हें मिल रहा है।इससे उनके सपने बड़े हो गए हैं। वे सब आत्मनिर्भर हो गई हैं।

भूरी बाई बताती हैं कि बचपन से त्यौहार या शादी-ब्याह के मौके पर वे घर की दीवार पर मुट्ठी को सफेद मिट्टी में डूबा कर ठप्पे बनाती थींजिन्हें सरकला कहते हैं। वे इसके साथ-साथ पेड़-पौधेजानवर भी बनाती थीं। भूरी बाई कहती है कि आज ज ब वह चित्र बनाती हैं तो धरती से पैदा होने वाले इतनी तरह के अनाज पेड़-पौधों के प्रति एक आभार का भाव महसूस करती हैं। चित्रों में यह बनाना एक तरह से उन्हें बचपन में माता-पिता द्वारा नए अन्न की पूजा-करने जैसा लगता है। भूरी काम करते हुए आज भी जगदीश स्वामीनाथन के आर्शीवाद को सतत महसूस करती है और उन्हीं से काम की प्रेरणा पाती हैं ।                                 21 Nov 2021




आदिवासी चित्रकारी में बसा है भूरी बाई का रचना संसार

रूबी सरकार 

भोपालमप्र 


Basti Bureau

https://www.bastibureau.com/18445/


Lens Eye 

https://www.lenseyenews.com/2022/01/03/bhopal-bhuri-bai-world-is-in-aadiwasi-chitrakala/


Ground Report 

https://groundreport.in/tribal-artist-bhuri-bai/


Pravakta.Com 

https://www.pravakta.com/the-world-of-bhuri-bai-is-inhabited-by-tribal-painting/


Gram Taru.Com

https://www.gramtaru.com/2022/01/blog-post.html?m=1


Pratilipi Hindi

https://hindi.pratilipi.com/read/%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80-%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0-ipcorbvsq05a-1941w10264ew6r5


Voice Of Margin

https://www.voiceofmargin.com/%e0%a4%86%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%80-%e0%a4%9a%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ac%e0%a4%b8/?snax_post_submission=success


Youth Ki Awaz

https://www.youthkiawaaz.com/2022/01/know-about-padmashree-bhuri-bai-who-brought-tribal-culture-to-the-table-hindi-article/


Bharat Update 

http://bharatupdate.com/bharatonlinenews/Indian-Bhil-artist-Bhuri-Bai-MadhyaPradesh-Padma-Shri-Award_2548.html


Vichar Suchak Online

https://vicharsuchak.in/55789


Palpal India

https://palpalindia.com/2022/01/04/Kla-Sanskriti-Madhya-Pradesh-Padma-Shri-award-honored-Bhil-tribe-Bhuri-Bai-Indian-Bhil-artist-creation-world-tribal-painting-news-in-hindi.html


Liveaaryavart

https://www.liveaaryaavart.com/2022/01/blog-post_758.html


Adhunik Rajasthan 04 Jan 2022


Vichar Suchak Newspaper 04 Jan 2022


Avadhnama Hindi 05 Jan 2022

https://epaper.avadhnama.com/epaper/edition/3621/avadhnama-hindi/page/6


Hindikunj

https://www.hindikunj.com/2022/01/bhuri-bhai-adivasi-chitrakala-prerna.html


Basti Bureau 05 Jan 2022




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