Wednesday, June 14, 2023

यूके में पढ़ाई के बाद हर्षित ने शुरू की अवोकाडो नर्सरी





 यूके में पढ़ाई के बाद हर्षित ने शुरू की   अवोकाडो   नर्सरी


रूबी सरकार


भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। आंकड़ों के लिहाज से भारत दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश है । इतनी बड़ी आबादी  जब कुछ नया सोचते हैं और उस पर अमल करने लगते हैं तो देश की तरक्की के लिए यह शुभ संकेत है। भोपाल का  हर्षित गोधा इन्हीं युवाओं में से एक हैं। जिसने यूके से बीबीए की पढ़ाई के दौरान ही खेती- किसानी के लिए अपना स्टार्टअप शुरू करने का मन बना बनाया। अपने फिटनेस को लेकर सक्रिय रहने वाले हर्षित ने अपने साथ-साथ देश के लोगों की सेहत दुरुस्त करने और खेती को लाभ का धंधा बनाने की दिशा में सोचने लगा ।
दरअसल हर्षित अपनी सेहत के हिसाब से हेल्दी फूड का नियमित सेवन करते हैं । यूके में पढ़ाई के दौरान  हर रोज उसकी थाली में हेल्दी फूड अवोकाडो  जरूर होता था। लेकिन जब वह छुट्टियों में भोपाल आते तो उसे न तो एवोकाडो आसानी से मिल पाता और अगर मिल भी जाए तो उसकी क्वालिटी उतनी अच्छी नहीं होती थी। वह इसी उधेड़बुन में रहने लगा कि भारत में उच्च क्वालिटी का अवोकाडो कैसे उपलब्ध कराई जाए।
इसी बीच उसकी नजर यूके में अवोकाडो के  पैकेट पर पड़ी जिसमें लिखा था कि यह फल इजराइल से आयातित है। उसने सोचा जब इजराइल जैसे  गर्म देश में इस फल की खेती हो सकती है फिर भारत में क्यों नहीं। वह अनुसंधान में लग गया । 2013 में 16 वर्ष में यूके में पढ़ने गया और 2017 में ही उसने किसानों के लिए उन्नत और लाभकारी खेती की बात सोचकर अवोकाडो की नर्सरी का स्टार्टअप शुरू करने का मन बना लिया।  2017 में इंटर्न पूरा करते ही वह इजराइल की ओर रुख किया। इस दौरान उसने इंटरनेट पर अवोकाडो के बारे में काफी जानकारी हासिल कर इससे जुड़ी दुनिया के व्यापारियों और किसानों से संपर्क साध चुका था । हर्षित चूंकि कम उम्र से ही सोलो टूरिज्म में दिलचस्पी लेता रहाइसलिए उसे अकेले इजराइल जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। वहां एक महीना रहकर उसने बकायदा अवोकाडो से जुड़ी हर गतिविधियों का  प्रषिक्षण लिया फिर भोपाल वापस आकर अपनी पुश्तैनी जमीन पर इंडो-इजराइल अवोकाडो नर्सरी स्टार्टअप शुरू किया। वे खुद अपनी कंपनी के निदेशक हैं। उन्नत अवोकाडो के लिए वह अपने साथ  इजराइल से प्रशिक्षक को भी ले आया।
पहले उसने भोपाल में अपनी पुश्तैनी जमीन के तापमान को कूलरपंखेड्रिप इरिगेशन आदि से व्यवस्थित कियामिट्टी की सेहत ठीक की। जिससे एक भी पौधा नष्ट न होने पाए। हालांकि उसे पहले से ही मालूम हो गया था कि अवोकाडो की सबसे अच्छी किस्म के लिए भारत के दक्षिणी भाग का जलवायु उपयुक्त है। फिर भी उसने भोपाल में इसकी बागवानी को उपयुक्त बनाने का जोखिम लिया। पहले परीक्षण के तौर पर उसने इजरायल से 1800 पौधे मंगवाए। उसे डेवलप किया । फिर किसानों को इस फल से होने वाले आमदानी व इसके व्यावसायिक महत्व को समझाया। धीरे-धीरे किसान स्वास्थ्य और व्यावसायिक दृष्टि से अवोकाडो के महत्व को समझने लगे। इस तरह हर्षित के 1800 पौधे किसानों ने खरीद लिए । धीरे-धीरे सोशल मीडिया के जरिए यह बात इतनी फैल गई कि किसान हर्षित को इस पौधे के लिए अग्रिम राषि देने लगे। उसने और हजार पौधे इजराइल से मंगवाए। अब उसकी पूरी नर्सरी अवोकाडो के पौधों से पट चुकी है। सारे पौधों के ग्राहक पहले से ही तैयार है।


 
हर्षित ने बताया कि 2019 में जब उसने अवोकाडो की नर्सरी को डेवलप करना शुरू किया ही था कि 2020 में कोविड-19 की वजह से लॉकडाडन लग गया। इससे इजराइल से पौधों को मंगवाने के लिए सरकार की औपचारिकताएं पूरी करने में काफी समय खर्च हो गया। उसने कहा उसकी नर्सरी का जो डेवलपमेंट इस समय है वह मात्र एक साल का मैदानी परिश्रम है। हर्षित ने कहा पौधों से अवोकाडो फल आने में करीब 4-5 साल का समय लग जाता है। कोई किसानों इतने समय तक इंतजार नहीं कर सकता है इसलिए पौधों की बिक्री शुरू कर दीताकि पैसे का रोटेशन बना रहे। मात्र 25-26 साल का हर्षित खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए तरह-तरह की तरकीब सोचने लगा है। वह बताता है खेती लाभ का धंधा किसान इसलिए नहीं बना पातेक्योंकि  किसान जायदरबी और खरीफ के अलावा कुछ सोच ही नहीं पाता। जब नए-नए प्रोडक्ट पर सोचेंगे और 12 महीना हम खेतों में समय देंगे तभी खेती लाभ का धंधा बन बन सकता है।  


कितना आया लागत


लागत के बारे में हर्षित बताते हैं कि जमीन तो उनके पास थीपौधे के लिए मिट्टी को तैयार करना था। इसमें इजराइल के मेंटोर उनके काम आए। ड्रिप इरिगेशन और सारे खर्च मिलाकर करीब 40 लाख रुपए लगे। उसने बताया कि अवोकाडो की सबसे अच्छी किस्म के लिए भारत के दक्षिणी भाग का तापमान सही है। वहींभोपाल में लगने वाले पौधेगुणवत्ता में दूसरे नंबर पर हैं। फिर भी वह कोशिश कर रहे हैं कि यहां भी उच्च क्वालिटी की अवोकाडो लोगों को कम कीमत पर मिल पाए। वैसे उसका कहना है कि इसकी खपत ज्यादातर मेट्रो शहरों जहां टूरिज्म ज्यादा है वहां होती है। एक एकड़ में करीब डेढ़ से दो किलो तक अवोकाडो मिल पाता है और इस पेड़ की लाइफ से साल की होती है। फिलहाल ये सुपरफूड भारत में बहुत महंगा करीब 800 से लेकर 1200 रुपए प्रति किलो बिकता है। इसका पीक सीजन जनवरी में होता है जब फ्लावरिंग होती है। अगस्त में फसल तैयार हो जाती है।
हर्षित अब युवाओं के प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। विदेश में पढ़ाई करने के बावजूद उसने बागवानी करने का फैसला लिया और न सिर्फ अपने सेहत के बारे में सोचाबल्कि देश और किसानों के बारे में भी सोचा। किसानों को इस नए प्रोडक्ट से जोड़ा।



 ।                                                           July 18] 22 Amrit Sandesh



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