Thursday, June 22, 2023

लॉकडाउन में पोषण वाटिका के फल-सब्जियों से भूख मिटाता शेखरगांव


 Apr 23, 2020

लॉकडाउन में पोषण वाटिका के फल-सब्जियों से भूख मिटाता शेखरगांव

रूबी सरकार
कोरोना वायरल के चलते देश में लॉकडाउन से हर भारतीय प्रभावित है, लेकिन जो सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, वह है- गरीब, मजदूर और कामगार । देश में लॉकडाउन के साथ मानो इनके पेट पर भी लॉकडाउन लग गया हो। उनके पास कोई काम नहीं है। ना कोई आमदानी का जरिया जिससे वह खाना खा सके।
ठीक इसके विपरीत बबीना विकास खण्ड (जिला झांसी) स्थित आदिवासी बाहुल्य एक गांव शेखर। यहां की जल सहेलियों ने परमार्थ समाज सेवी संस्थान के दि श। -निर्देश और सहयोग से वर्ष 2011 में जो पोषण वाटिका का पाठ पढ़ा था। वह अब इनके काम आ रहा है। सिर्फ परिवार नहीं, बल्कि पूरे गांव को इस संक्रमण काल मंे भरपूर पोषण मिल रहा है। यहां के ग्रामीण परिवार आपस में पोषण वाटिका में उगे फल-सब्जियों का आदान-प्रदान  कर रहे हैं।  
दरअसल छत पर बगीचे (टेरेस गार्डन) का चलन जो अब बढ़ रहा है, ग्रामीणों के लिए यह सदियों पुरानी है। वे अपने घर के आंगन में पोषण के लिए साग-सब्जियां उगाया करती थीं। हालांकि बुंदेलखण्ड में जल संकट की समस्या के कारण ग्रामीणों के लिए यह मुश्किल हो गया था, लेकिन जब वर्ष 2011 में परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने जल सहेलियों के समूहों को एकीकृत पानी प्रबंधन परियोजना के माध्यम से संगठित कर जल प्रबंधन और जल साक्षरता के साथ-साथ कुपोषण खत्म करने के लिए पोषण वाटिका बनाने का प्रशिक्षण देना शुरू किया, तो आगे चलकर ग्रामीणों के लिए यह वरदान साबित हुआ।विशेष रूप से इस संक्रमण काल में, जब शहर के लोगों को फल और सब्जी पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सब्जियों की कालाबाजारी हो रही है। ऊंचे-ऊंचे दामों में इसे बेचा जा़ रहा है या फिर जेब में पैसे होने के बावजूद उन्हें सब्जी मिल नहीं रही है, ऐसे में ग्रामीणों के लिए यह पोषण वाटिका वरदान है। आम दिनों में तो जल सहेलियां अपने घरों में हरी सब्जियों पर होने वाले खर्च की बचत करने के साथ ही अतिरिक्त सब्जियां बाजार में ले जाकर बेचती हैं, इससे रोज वह अपनी मुट्ठी में पांच सौ या इससे भी अधिक रूपये घर लेकर आती थी, लेकिन अब इन सब्जियों को वह पूरे गांव में निःशुल्क वितरित कर रही हैं। खासकर टमाटर, पालक, नींबू, हरीमिर्च, बैगन, लौकी, तरोई, कद्दू आदि।  
पार्वती बताती है, कि अगर दूध-दही खराब हो जाये तो वह उनमें पानी मिलाकर टमाटर और कड़ीपत्ता के पौधों में डाल देती हैं। क्यांेकि टमाटर के स्वस्थ फलों के लिए कैल्शियम जरूरी है और इसकी कमी से उनमें नीचे की तरफ कत्थई धब्बे पड़़ जाते हैं ।
उसने कहा, दो कारणों से टमाटर उगाना समझदारी का काम है । पहला, इसका कई तरह से इस्तेमाल होता है और दूसरा इन्हें उगाना आसान है।  नया पौधा उगाने के लिए पके टमाटर के बीजों को सीधे मिट्टी में बो देते हैं । इस समय लोगों को विटामिन- सी की बहुत आवश्यकता है, जो टमाटर में भी भरपूर मात्रा में मिलता है ।हालांकि टमाटर गर्मी झेल लेते हैं, फिर भी शुरूआत में पौधों को तेज धूम से बचाना होता है। गर्मी के दौरान बगीचे को बचाए रखने के लिए वह गमलों को पास-पास  रख देती हैं। इससे छोटे पौधे धूप में झुलसने से बच जाते हैं । पार्वती ने बताया, राई, मेथी, अजवाइन, फली, कद्दू आदि के बीज परमार्थ संस्थान द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं। इनके माइक्रोग्रीन्स पौधे की शुरूआती कोंपलें को जल्दी काटकर इस्तेमाल कर सकते हैं । यह सब्जियां कैमिकल से पूरी तरह मुक्त और इसमें भारी मात्रा में पोषक तत्व भी मिलता है। इन सब्जियों के सेवन से बच्चों का शारीरिक विकास ठीक ढंग से होता है।
सुनीता पाना बताती हैं, कि परमार्थ ने जल सहेलियों को घर में हरी सब्जियां उगाने और नियमित रूप से सेवन करने के लिए प्रेरित किया । सुनीता गर्मियों में पुदीना ज्यादा उगाती हैं, क्योंकि पुदीना के बिना गर्मी का मौसम अधूरा  है वे पुदीना के डंठलों को कभी फेंकती नहीं, बल्कि रिसायकल करती है, वे डेठलों को पहले दो-तीन दिन के लिए पानी में डाल देती हैं, जब उनमें जड़ें निकल आती है, तो 6-7 इंच गहरे और चौड़े बर्तन में रोप देती हैं। वह कहती हैं, कि इसी तरह अगर आप पालक के डेठलों के जड़ में पत्तियां आएंगी । इसके अलावा सुनीता भिंडी, बैगन और मिर्च जैसी सब्जियां भी उगा लेती है ।

जल सहेलियों ने बताया, कि इस समय परमार्थ द्वारा समुदाय स्तर पर सरकार की ओर से संचालित विभिन्न योजनाओं के बारे में जागरूक किया जा रहा है जैसे- सो श ल डिस्टेंसिंग तथा सरकार द्वारा मनरेगा तथा जीरो बैलेंस में भेजी गई धनराशि के संबंध में समुदाय को बताया जा रहा है। संकट काल में यह बातें गांव वालों के लिए बहुत काम की है। सरजूबाई ने बताया, बहुत सारे गांवों में परिवार का मुखिया और बड़े उम्र के महिला -पुरूष श हरों  में काम  करने गये और लॉकडाउन होने की वजह से वे वापस नहीं आ सके। संस्थान द्वारा ऐसे घरों में रा श न किट पहुंचाकर सहयोग किया जा रहा है। हम जल सहेलियां भी हर घर में साग-सब्जियों का आदान -प्रदान कर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, जिससे कोई भूखा न रहे। इसके साथ ही कोरोना संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए परमार्थ से  प्रशिक्षण   प्राप्त करने के बाद हम
सब मिलकर मास्क बना रहे हैं, जिसे परमार्थ द्वारा जरूरतमंदों तक पहंुचाया जा रहा है।
जल-जन जोड़ो के राष्टर््ीय संयोजक संजय सिंह का कहना है, कि जल सहेलियों द्वारा जिस पोषण वाटिका का संचालन किया जा रहा है। वह कुपोषण खत्म करने की दि श।  में एक अहम कदम है। साथ ही यह उनके लिए आजीविका के स्रोत के रूप में उभरा है। यह जल सहेलियोें का एक क्रांतिकारी कदम है, क्योंकि इससे उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ। साथ ही वे पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती भी दी, जिसे धीरे-धीरे समाज ने भी स्वीकार कर लिया।  

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