Monday, June 19, 2023

सरकारी उपेक्षा का शिकार बुंदेलखंड का यह गांव




 

सरकारी उपेक्षा का शिकार बुंदेलखंड का यह गांव

 
रूबी सरकार


आजादी के 73 साल बाद छतरपुर के बक्सवाहा विकासखण्ड का मानकी गांव की दशा आजादी के पहले जैसी ही है। यहां कोई मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। यहां के सहरिया जनजाति आज भी जंगल में पेड़ के नीचे झोपड़ी बनाकर रहते हैं। जंगल पर आश्रित इस विशेष जनजाति के पास न तो पानी है, न स्वास्थ्य सुविधाएं, न शिक्षा और न रोजी-रोटी का इंतजाम है । सरकार की कोई योजनाएं इन तक नहीं पहुंच पाती। दरअसल सरकार इन्हें इंसान ही नहीं  मानती! सरकार चाहती है, कि अगर इन्हें योजनाओं का लाभ चाहिए, तो जंगल से बाहर आना पड़ेगा। ताज्जुब की बात यह है, कि जिनके पास कुछ नहीं है और वे केवल जंगल के सहारे जिंदा है, ऐसे लोग जब जंगल से बाहर समाज की मुख्यधारा में आएंगे, तो उन्हें किन मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। वे कितने असहज हो जाएंगे। यह कोई नहीं सोच रहा। जब जंगल कट जाएंगे, तो फिर वे कहां जाएंगे!  
मानकी गांव में सहरिया जनजाति के तीन सौ झोपड़ीनुमा घर है। पढ़े-लिखे होने के बावजूद किसी युवा के पास कोई नौकरी नहीं है। आधे से अधिक परिवार भूमिहीन है और वे मजदूरी के लिए पलायन करते हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ यहां सिर्फ कागजों पर ही है।  लगभग 800 आबादी वाले इस गांव में तीन हैण्डपम्प है, जो औसत से बहुत कम पानी देते हैं। यह इलाका वर्षा आधारित खेती का है । इसी गांव के नाम पर यहां एक बड़े तालाब का निर्माण कराया गया है , परंतु इस तालाब से निकली नहर का लाभ गांव के समुदाय को नहीं मिलता है, बल्कि दूसरे गांव के लोग इसका लाभ उठा रहे हैं। यहां के सहरिया जब भी इस तालाब से पानी लेने की कोशिश करते हैं, तो पड़ोस के दबंग इन्हें लाठियों से पीटते हैं। कई लोग इस  हिंसक हमले के शिकार भी हुए हैं। जबकि इस तालाब के पानी पर सबसे पहले मानकी गांव के लोगों का हक है, जिनके लिए एक अलग से ही सिंचाई चौनल निकाली जानी थी। लेकिन यहां सामन्तवाद इस कदर हावी है, कि लोग अपने वाजिब हक भी नहीं मांग सकते। ऐसी विषम परिस्थिति में रहने वाले लोगों को सरकार की तरफ से एपीएल कार्ड थमा दिये गये है। यहां के आदिवासी जब भी मुखर होने की कोशिश करते हैं, तो इन्हें सामन्तवाद के अत्याचार का सामना करना पड़ता है । यहां तक कि पड़ोसी गांव के लोग जबरदस्ती उनके सामने ही उनकी फसल तक उजाड़ कर ले जाते हैं।
मानकी बक्सवाहा विकासखंड का सबसे बड़ा आदिवासी गांव है। संरक्षित किये जाने वाला इस समुदाय की स्थिति इतनी खराब है , कि अब तक 30 फीसदी परिवार गांव छोड़कर स्थाई रूप से पलायन कर गये हैं। यहां के 45 वर्षीय पप्पू आदिवासी कहते हैं, कि यहां बहू, बेटियों की आबरू भी सुरक्षित नहीं है। क्योंकि इन्हें सुरक्षित रखने के लिए झोपड़ी में कोई दरवाजा नहीं है और दबंगों और शराबियों का आना-जाना इस गांव में बना रहता है।
 12वीं तक पढ़ाई करने वाले युवा दीपक ने बताया कि उनके गांव की सबसे प्रमुख समस्या रोजगार और आवास की हैं। खुले में रहने से अनहोनी होने का खतरा बना रहता है। दीपक ने बताया, 12 तक पढ़ाई करने के बावजूद उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली। जबकि विशेष जनजाति के लिए इस तरह का प्रावधान है। वह मजदूरी कर गुजारा करते हैं। यहां के समुदाय को  वन भूमि के पटटे तो मिले, लेकिन पानी के अभाव में उस पर खेती करना मुश्किल है। क्योंकि सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाता ।  गांव के बुजुर्ग मेवालाल आदिवासी ने बताया, कि 1974-75 से पहले यहां इतनी तकलीफ नहीं थी। तब बारिश इतनी अधिक हो जाती थी, कि साल भर खाने के लिए अनाज हो जाता था, लेकिन 80 के दशक से पानी की समस्याऐं बढ़ी है। दबंगों का आतंक इतना है,  िक वे खुलेआम इस गांव में आकर शराब का कारोबार करते हैं, जिससे अप्रिय घटना होने का अंदेशा बना रहता है। बारेलाल, द्वारका और राममिलन जैसे कई युवा 12वीं पास हैं और वे गुजरात में मजदूरी करने जाते हैं। बारेलाल बताते हैं, कि सरकारी नियमों के अनुसार 10वीं पास होने के बाद ही उन्हें सरकारी नौकरी मिलना चाहिए था, लेकिन 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी के लिए भटकते रहे। नौकरी तो दी नहीं, ऊपर से हमें जंगल से भगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन के रवैये से दुखी होकर राममिलन ने बताया ,अभी हम जो काम कर रहे हैं, उसके लिए पढ़ाई करने की जरूरत  नहीं थी। परंतु हमारे सामने कोई विकल्प नहीं है। यानी सवाल वहीं अटका हुआ है, कि विकास आखिर किसके लिए हो रहा है! सबसे कमजोर वर्ग तो आज भी उपेक्षित हैं। जबकि सामान्यतः यही प्रचारित जाता है, कि सबसे गरीब, भुखमरी और खेती-किसानी करने वाले समुदाय को ध्यान में रखकर विकास की योजनाएं बनाई जाती है।
कौशल्या खेत मजदूर है। वह बताती है, कि दो सौ रुपये प्रतिदिन मजदूरी के लिए 10-20 की टोली बनाकर यहां की महिलाएं विदिशा, भोपाल, रायसेन जिलों तक कटाई के लिए जाती हैं।  कौशल्या ने कहा, सुना है प्रधानमंत्री सबको कुटी दे रहे हैं। परंतु हमारे पास कोई स्थाई ठौर नहीं है।  

                                                                                  27 JUNE 2021 Amrit sandesh Raipur



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