Tuesday, June 20, 2023

... ताकि समाज पानी के महत्व को समझे




 विश्व जल दिवस 22 मार्च के लिए विशेष


 ... ताकि समाज पानी के महत्व को समझे

रूबी सरकार


हर वर्ष के तरह इस वर्ष भी 22 मार्च को विश्व जल दिवस देश भर में तमाम कार्यक्रमों के साथ मनाया जायेगा। इस बार कोरोना संक्रमण के कारण संभवतः अधिकतर कार्यक्रम ऑनलाईन आयोजित हो। कार्यक्रम ऑनलाईन हो या ऑफलाईन समाज को जोड़ना और उन्हें जागरूक करना महत्वपूर्ण है।
वर्ष 2021 के विश्व जल दिवस उत्सव के लिए विषय ‘‘पानी को महत्व देना है‘‘ रखा गया है। वर्ष 1933 से विश्व भर में मनाये जा रहे जल दिवस सिर्फ उत्साह के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
इसकी पृष्ठभूमि पर नजर डाले, तो  वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा द्वारा इस दिन को एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में मनाने का निर्णय किया गया था। ताकि लोगों के बीच जल का महत्व, आवश्यकता और संरक्षण के बारे में जागरुकता बढ़े।   22 मार्च को इस अभियान की घोषणा की गयी थी।

इसे पहली बार वर्ष 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में “पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन” की अनुसूची 21 में आधिकारिक रुप से जोड़ा गया था और पूरे दिन के लिये अपने नल के गलत उपयोग को रोकने और जल संरक्षण में उनकी सहायता प्राप्त करने के साथ ही प्रोत्साहित करने के लिये वर्ष 1993 से इस उत्सव की शुरूआत हुई।

इसके पीछे उद्देश्य यह है, कि वैश्विक जल संरक्षण के वास्तविक क्रियाकलापों को प्रोत्साहन देना है।  प्रति वर्ष यूएन एजेंसी की एक इकाई द्वारा विशेष तौर से इस अभियान को बढ़ावा दिया जाता है। इसमें लोगों को जल मुद्दों के बारे में सुनने व समझाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत से ही विश्व जल दिवस पर वैश्विक संदेश फैलाने के लिये थीम (विषय) का चुनाव करने के साथ ही विश्व जल दिवस को मनाने के लिये यूएन जल उत्तरदायी भी होता है।

भारत में भी पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि और व्यापार सहित जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जल के महत्व की ओर लोगों की जागरुकता बढ़ाने के लिये विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस आयोजनों में कई बार जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने यह संकेत दिये हैं, कि देश और दुनिया के लिए आने वाले संकटों में से जल संकट सबसे बड़ा संकट साबित होने वाला है। इसकी आहट पिछले एक दशक से सुनाई देने लगी है जल संरक्षण और संवर्धन के लिए काम करने वाले लोगों की मान्यता है कि अगर समय रहते नहीं  जागे, तो तीसरे विश्व युद्ध का कारण जल बन सकता है।
बुंदेलखण्ड का उल्लेख करते हुए जल-जन जोड़ो के संयोजक संजय सिंह बताते हैं, कि इस क्षेत्र में जिसके पास जल है, वह सबसे शक्तिशाली है। इस जल संकट को रोकने तथा देश और  गांव की समृद्धि के लिए जल संचयन आवष्यक हैं। भारत को सूखा मुक्त बनाना वर्तमान समय की सबसे बड़ी मांग हैं ,
इस दृष्टि से इस बार का थीम पानी को महत्व देना है, बहुत ही उपयुक्त शीर्षक है।
अफसोस यह है, कि भारतीय राजनीति में कभी भी जल मुख्य मुद्दा नहीं बना। हालांकि मोदी सरकार ने समुदायिक भागीदारी पर जोर देने वाली अटल भूजल योजना शुरू की है । इस योजना की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं  25 दिसम्बर,2019 को पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के मौके पर किया । उनकी घोषणा से कम से कम बुंदेलखण्ड में सूखे की मार झेल रहे समुदायों को काफी उम्मीद है। हालांकि मध्यप्रदेश में अभी प्रथम चरण का काम ही चल रहा है। विभागीय सूत्र बताते हैं, कि कोविड-19 संक्रमण के कारण काम में विलम्ब हो रहा है।
इधर बुंदेलखण्ड में निजी संस्थाओं द्वारा कुछ चंदेलकालीन तालाबों और नदियों को स्थानीय समुदाय को साथ मिलकर पुनर्जीवित करने का काम चल रहा है। संस्था की ओर से समुदाय को श्रमदान के बदले मजदूरी या अनाज देकर उनकी जरूरते पूरी करने की कोशिश भी की जा रही है। लगभग तीन माह पहले बछेंड़ी नदी को समुदाय ने श्रमदान कर पुनर्जीवित करने की कोशिश की है। लेकिन यह कितना कारगर होगा, यह आने वाला समय ही बतायेगा। नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ग्राम पंचायत पनवारी  समुदाय के सदस्यों में से किसी ने एक सप्ताह , तो किसी ने एक माह तक  खंती खोदकर मिट्टी को नदी के किनारे लगाया । लेकिन उनका सारा श्रम कम बरसात से बेकार चला जाता है। वर्ष 2020 में बुंदेलखण्ड के 13 जिलों मंे औसत से कम वर्षा हुई । जबकि इस वर्ष देश में सामान्य मानसून रहा, लगभग पूरे देष ने बाढ़ जैसी विभिषिका देखी , किन्तु बुंदेलखण्ड इस बार भी बारिश  से महरूम रहा । जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के कारण बुंदेलखण्ड में हर दो साल में सूखा पड़ रहा है ।एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखण्ड के 13 जिलों में औसत वर्षा से 40 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले 5 सालों में तो यह गिरावट लगभग 60 फसदी तक दर्ज की गई है। यह क्षेत्र जल को लेकर तनाव वाले क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।
इसका एक कारण यहां अंधाधुंघ पेड़ों की कटाई, अत्यधिक रासायनिक उर्वरक का उपयोग और मिट्टी का कटाव है, जो बुंदेलखण्ड के पारंपरिक जल भण्डारण संरचनाओं और क्षमता को कम किया है। इसके अलावा चट्टानी इलाके में ग्रेनाइट और ऊंचाई वाले क्षेत्र होने से भी मानसून के दौरान प्रभावी भूजल पुनर्भरण में बाधा आती है।
भू-जल भण्डार के लगातार कम होने की चिंता को दूर करने के उद्देश्य से ही कंेद्र सरकार ने विश्व बैंक की सहायता से  अटल भू-जल और अटल टनल जैसी दो नई योजनाएं शुरू की है।
योजना को पूरा करने के लिए सरकार की ओर से समय सीमा 2020-21 से 2024-25  तक 5 साल की अवधि तक निर्धारित की गई है। इसका लक्ष्य , जिन इलाकों में भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है, वहां भूजल के स्तर को ऊपर उठाना है, जिससे किसानों को अपनी आय दोगुना करने में मदद मिले।

                                                                           22 March 2020 Amrit Sandesh Raipur


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