Ruhan Nagra
32 हजार परिवार पुनर्वास से वंचित और प्रधानमंत्री बांध भरने से खुश
सरदार सरोवर में जल स्तर 138.68 मीटर तक बढ़ाने का विरोध में एक हज़ार आंदोलनकारियों का प्रदर्शन
रूबी सरकार
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 360 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बड़वानी जिले में सरदार सरोवर में जल स्तर 138.68 मीटर तक बढ़ाने का विरोध पिछले 25 अगस्त से अनवरत जारी है।
बिना पुनर्वास डूब के खिलाफ आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रहीं मेधा पाटकर नर्मदा घाटी के विस्थापित प्रतिनिधियों के साथ अनिश्चितकालीन अनशन बैठीं, तो 5वें दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सुश्री पाटकर से अनशन समाप्त करने का आग्रह किया । हालांकि प्रभावितों के पुनर्वास की ठोस योजना के अभाव में उन्होंने मुख्यमंत्री का आग्रह अस्वीकार कर दिया । सुश्री पाटकर ने कहा, कि केन्द्र और गुजरात सरकार की हठधर्मी के कारण मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में हजारों परिवार नीतिगत पुनर्वास के बिना डूब का सामना करने को मजबूर हैं। केन्द्र सरकार की एजेंसी नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) जलस्तर बढ़ाने के आदेश से जान बूझकर किसान-आदिवासी, केवट-कहार, पशुपालक, कुम्हार, भूमिहीन मजदूरों को बिना पुनर्वास उजाडऩे का प्रयास कर रही है।उन्होंने कहा, केवल मध्यप्रदेश में ही 32 हजार प्रभावितों का नीति अनुसार पुनर्वास शेष है। महाराष्ट्र और गुजरात के भी सैकड़ों परिवारों का पुनर्वास शेष है। इस तरह डूब क्षेत्र में निवासरत लाखों लोगों का जीवन जोखिम में डालना अस्वीकार्य है।
हालांकि मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने आंदोलन के साथ संवाद की प्रक्रिया प्रारंभ की है । उन्होंने 2 बार एनसीए को इस संबंध में पत्र भी लिखा। लेकिन जलस्तर बढ़ाने वाली गुजरात सरकार और जलस्तर बढ़ाने का आदेश देने वाली एनसीए ने इस सुनियोजित तरीके से की जा रही व्यापक जनहत्या के प्रयास पर कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं दी है।
सुश्री मेधा ने कहा, कि केन्द्र और गुजरात सरकार का इस मानवीय त्रासदी पर मौन रहना असंवेदनशीलता की हद है। लेकिन प्रधानमंत्री ने इस हद को भी पार कर दिया। उन्होंने ट्वीट कर सरदार सरोवर का जलस्तर 134 मीटर पर पहुंचने का जश्न मानया और देशवासियों से भी इस मनोहारी दृश्य का आनंद लेने को कहा। प्रधानमंत्री का यह ट्वीट बिना पुनर्वास डुबोए जा रहे नर्मदा घाटी के 32 हजार परिवारों के जख्म पर नमक छिड़कने के समान है। मेधा ने कहा, कि देश के प्रधानमंत्री से ऐसे गैरजिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा नहीं थी।
मेधा ने मांग की है, कि जब तक समस्त 32 हजार प्रभावितों का नीति अनुसार पुनर्वास पूर्ण न हो जाए, तब तक सरदार सरोवर का जलस्तर 122 मीटर पर स्थिर रखा जाए। साथ ही एनसीए द्वारा बांध को पूर्ण जलाशय स्तर 138.68 मीटर तक भरने की दी गई अनुमति को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक समस्त प्रभावितों का पुनर्वास न हो जाए तथा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के प्रभातिवों का संपूर्ण नागरिक सुविधाओं और आजीविका के साधन उपलब्ध करवा कर डूब के पहले पुनर्वास किया जाए। इसके अलावा पुनर्वास से संबंधित सभी आंकड़ों और दस्तावेजों को वेबसाईट पर सार्वजनिक किया जाए ताकि नए भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सके। गुजरात सरकार से पुनर्वास, पर्यावरण संरक्षण तथा अन्य खर्चों की वसूली की जाए।
उन्होंने कहा, कि अब तो मध्यप्रदेश सरकार ने पिछली सरकार द्वारा जारी झूठे आंकड़ों में सुधार कर प्रभावित गांवों की संख्या 178 स्वीकार कर ली है। इससे उन हजारों परिवारों को उनके हक मिलने की संभावना है ,जिन्हें गैरकानूनी तरीके से वंचित कर दिया गया था। इस बीच सरकार और आंदोलनकारियों की एक बैठक हुई, जिसमें आंदोलन की ओर से नर्मदा घाटी में डूब क्षेत्र की गंभीर स्थिति का वर्णन करते हुए रणवीसिंह तोमर ने सरदार सरोवर के गेट्स खोलने की मांग रखी। मेधा पाटकर, अतिरक्त मुख्य सचिव गोपाल रेड्डीजी तथा आयुक्त पवनकुमार शर्मा के बीच गुजरात और केन्द्र के 138.68 मीटर तक पानी ले जाने की जिद पर चर्चा हुई। इसमें मध्यप्रदेश शासन के अंतर्राज्यीय मोर्चे पर, पूरी हकीकत बयां करने को कहा गया। साथ ही भ्रष्टाचार पर हुई झा आयोग की 7 साल की पहले की जांच रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर होते हुए भी उस पर चर्चा न होने पर अफसोस जताया गया। आंदोलन की मांग है कि उस पर त्वरित कार्रवाई हो।
सरदार सरोवर बांध विस्थापितों पर अध्ययन करने आई अमेरिका स्थित सिविल सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशन ने भी केंद्र और गुजरात सरकार से की सरदार सरोवर बांध के गेट खोलने की मांग की । अमेरिका में स्थापित यूनिवर्सिटी नेटवर्क फॉर ह्यूमन राइट्स ने अपनी एक अध्ययन रिपोर्ट 'वेटिंग फॉर दी $फ्लडÓ को पत्रकारों से साझा करते हुए कहा, कि नर्मदा के किनारे रहने वाले आदिवासी समुदायों पर भारत के सरदार सरोवर बांध का मानव अधिकार प्रभाव को दर्शाता है। प्रभावित क्षेत्रों में कई हफ्तों की यात्राओं और बांध के पानी सो डूबने के खतरे के तहत में रहने वाले आदिवासी समुदायों के साथ साक्षात्कारों पर आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है।
नेटवर्क की एक्सीक्यूटिव डायरेक्टर रूहान नागरा ने कहा, कि सरदार सरोवर जलाशय में हाल ही में हुई जल स्तर की तेज वृद्धि एवं भारत सरकार के जलाशय को अधिकतम स्तर तक भरने की जि़द के कारण हम बेहद चिंतित हैं, क्योंकि कई हज़ार परियोजना प्रभावित परिवारों को अभिी तक पुनर्वास नहीं किया गया है। नेटवर्क सिफारिश करता है, कि भारत सरकार सरदार सरोवर बांध के गेट खोलें और जल स्तर को 122 मीटर तक घटाएं, ताकि भारत सरकार अपने संवैधानिक एवं अंतराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों केा निभाकर 138 मीटर जलमग्र चिह्न के अंतर्गत रहने वाले सारे बांध परियोजना प्रभावित परिवारों को पहचाने और उनकी शर्तों के लिहाज करते हुए उन्हें पर्याप्त मुआवजा दें और उनका पुनर्वास करें।
यूनीवर्सिटी नेटवर्क के एक्सेक्यूटिव डिरेक्टर रूहान नागरा ने कहा ,सरदार सरोवर जलाशय में हाल ही में हुई जल स्तर की तेज वृद्धि एवं भारत सरकार के जलाशय को अधिकतम स्तर तक भरने की जि़द के कारण हम बेहद चिंतित हैं, क्यों कि कई हज़ारों परियोजना-प्रभावित परिवारों को अभी तक पुनर्वासित नहीं किया गया हैं । यूनिवर्सिटी नेटवर्क की सिफारिश है , कि भारत सरकार सरदार सरोवर बांध के गेट खोलें और जल स्तर को 122 मीटर तक घटाए ताकि भारतीय सरकार अपने संवैधानिक एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों को निभाकर 138.मीटर जलमग्न चिह्न के अंतर्गत रहने वाले सारे बांध परियोजना प्रभावित परिवारों को पहचाने और उनकी शर्तों का लिहाज़ करते हुए उन्हें पर्याप्त मुआवज़ा दे और उनका पुनर्वास करें।
वेटिंग फॉर दी फ्लड -(बाढ़ के इंतजार में ) नामक यह रिपोर्ट बांध प्रभावित आदिवासियों पर भारत सरकार एवं बांध अधिकारियों द्वारा किए गए अत्याचारों के 4 तरह के दस्तावेज तैयार किया है। इस रिपोर्ट में यह दस्तावेज किया गया है, कि प्रत्येक अत्याचार यह दर्शाता हैं कि भारतीय कानूनी शासन एवं अंतरराष्ट्र्रीय मानवाधिकार कानून को अनदेखा करके भारत सरकार ने आदिवासि समुदायों के प्रति अपने दायित्वों का गंभीर उल्लंघन किया है।
2017 की गर्मियों में सरकार और बांध अधिकारियों ने बांध के जलमग्न क्षेत्र में कई आदिवासी परिवारों को अपने घरों को ध्वस्त करने के लिए मुआवजे के अधूरे वादों, धमकियोंए और उत्पीडऩ का इस्तेमाल किया। परंतु इन में से कई परिवारों को अपने नए घर के निर्माण के लिए भूमि नहीं मिली हैं, जिसके कारण यह परिवार जलमग्न क्षेत्र छोडऩे में असमर्थ रहे हैं और वे अपने पूर्व घरों के खंडहर के पास अस्थायी घरों में आश्रय लेने के लिए विवश हो गए हैं। जबरन बेदखली पर्याप्त आवास जैसे मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन है।
यूनाइटेड नेशंस के इंडिजेनस पीपल के अधिकारों की घोषणा के तहत भारत के दायित्वों का उल्लंघन करते हुए सरकार और बांध अधिकारी बांध के जलमग्न क्षेत्र में आदिवासी समुदायों के पारंपरिक भूमि अधिकारों को पहचानने में व्यवस्थित रूप से असफल रहे हैं। इस वजह से जिन परिवारों के पास अपने पैतृक कृषि भूमि के लिए औपचारिक शीर्षक नहीं हैंए उन्हें अपने इस डूबने.वाली भूमि के लिए मुआवजे की मांग करने का कोई आधिकारिक रास्ता नहीं है।
फरहा ने कहा, भारत को किसी भी पुनर्वास योजना को शुरू करने से पहले आदिवासी समुदायों को साथ रखने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। फरहा ने कहा, कि पुनर्वास और पुनस्र्थापन केवल उन मामलों में ही हो सकता है, जहां समुदायों को खतरनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा हैं और इन कठिनाइयों को कम नहीं किया जा सकता हैं। आदिवासी समुदायों की पैतृक भूमि पर सरदार सरोवर बांध के प्रभावों के बारे में किसी भी निर्णय में आदिवासी समुदायों को भागीदार बनाना चाहिए। जैसे की अगर पुनर्वास ज़रूरी हो, तो उन्हें पुनर्वास के समय और स्थल के निर्णय में भागेदार बनाना चाहिए था।
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वेटिंग फॉर दी फ़्लड रिपोर्ट के मुख्य बिन्दू
- बांध-प्रभावित आदिवासियों पर भारत सरकार एवं बांध अधिकारियों द्वारा किए गए चार तरह के अत्याचारों का उल्लेख है, जिसमें विशेष रूप से भारतीय कानूनी शासन एवं अंतरराष्ट्र्रीय मानवाधिकार कानून को अनदेखी के साथ-साथ आदिवासी समुदायों के प्रति अपने दायित्वों का गंभीर उल्लंघन है।
- सरकार और बांध अधिकारियों ने मनमाने ढंग से या गलती से सरकार के अधिकारिक परियोजना प्रभावित व्यक्ति सूची में कई आदिवासी परिवारों के नाम छोड़ दिया है इसके कारण इन व्यक्तियों केा अपनी भूमि एवं आजीविका के नुकसान के लिए मुआवजा भी नहीं मिल पा रहा है।
- ज़मीन के लिए भूमि मुआवजे के बजाय सरकार ने मुआवजे के लिए पैसे देने का निश्चय कई आदिवासियों को अकेले भूमि खरीदने के लिए विवश कर दिया, जिसके कारण विस्थापित परिवार , जो कई पीढिय़ों से साथ हरने वाले समुदाय से अलग हो गये।
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