देश का पहला श्रमोदय आवासीय विद्यालय
रूबी सरकार
देश में श्रमिकों का जीवन बद से बदतर है, जबकि आज़ादी के बाद से ही देश की सभी सरकारों द्वारा कल्याणकारी योजनाओं और सुधारात्मक कानून के ज़रिए श्रमिकों के जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में प्रयास किया जाता रहा है। लेकिन कोई क्रांतिकारी बदलाव देखने को नहीं मिला है। श्रमिक वर्ग भारतीय समाज के सबसे दुर्बल अंग बन चुका है। यह वर्ग आर्थिक दृष्टि से अति निर्धन तथा सामाजिक दृष्टि से अत्यंत शोषित है । ये गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारने को विवश हैं। अधिकांश श्रमिक भूमिहीन तथा पिछड़ी, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों से हैं। इनके बिखरे हुए एवंं असंगठित होने के कारण किसी भी राज्य में इनके सशक्त संगठन नहीं बन सके हैं। मध्यप्रदेश निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल पिछले कुछ सालों से असंगठित श्रमिकों का दस्तावेजीकरण शुरू किया है। इसके लिए मण्डल ने उनका पंजीकरण कर उसके फण्ड से लाखों पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए एक अनूठा प्रयास किया। उनके बच्चों के लिए एक विशाल श्रमोदय आवासीय विद्यालय बनवाया, जो देश का पहला ऐसा विद्यालय है, जहां सभी जाति और वर्ग के श्रमिकों के बच्चे एक साथ रहकर पढ़ाई करते हैं। सितम्बर 2018 से इस विद्यालय में श्रमिकों के बच्चों का दाखिला शुरू हुआ था। एक साल में इसके बहुत अच्छे परिणाम निकलकर सामने आये।
पठारी गांव (विदिशा जिला ) की 16 वर्षीय सुरभि साहू गणित विषय के साथ इसी विद्यालय में 12वीं की छात्रा हैं। होनहार छात्रा सुरभि इंजीनियर बनना चाहती हैं। पिता रामकृष्ण साहू को नहीं मालूम था, कि वह अपनी बेटी की जि़द कैसे पूरी कर पायेंगे। क्योंकि सुरभि के अलावा रामकृष्ण के दो बेटे हैं, जिनमें से एक शुभम अभी कर्नाटक नवोदय विद्यालय में और दूसरा गांव में 9वीं में पढ़ रहा है। जब उन्हें निर्माण श्रमिकों के बच्चों के आवासीय विद्यालय के बारे में पता चला, तो उन्होंने अपनी बेटी का दाखिला इस स्कूल में करवा दिया।
इसी तरह 10वीं की छात्रा 12 वर्षीय पूर्वी साहू, जो बारा गांव (छतरपुर जिला) की रहने वाली है। पूर्वी जिंदगी में पहली बार अपनी बहन शिल्पी के साथ अपने गांव से दूर पढऩे आयी है। पूर्वी इससे पहले अपने गांव में शासकीय विद्यालय में पढ़ाई कर रही थी। पूर्वी के पिता रामबाबू साहू को इस विद्यालय के बारे में पता चला, तो उन्होंने दोनों बेटियों को यहां पढऩे भेज दिया। प्रारंभ में तो बेटियों ने इतनी दूर आने से मना कर दिया था, लेकिन पढ़ाई की अहमियत को समझते हुए पिता की बात मान ली। । पूर्वी कहती है, कि शुरू.-शुरू में अकेलापन खल रहा था, किन्तु यहां सभी विद्यार्थियों का हाल एक जैसा था, सबने पहली बार घर से दूर रहकर पढऩे आये हैं, इसलिए धीरे-धीरे सभी एक-दूसरे को भावनात्मक सहारा देने लगे। इस तरह सभी की उदासी धीरे-धीरे समाप्त हो गई और हम आपस में घुल मिल गये। शिल्पी ने बताया, प्रत्येक माह के तीसरे रविवार को विद्यालय के शिक्षक घर पर फोन लगाकर बात करने का मौका देते हैं और आखिरी रविवार अभिभावकों स्वयं आकर विद्यालय में अपने-अपने बच्चों से मिलते हैं। साथ ही सभी विद्यार्थियों को स्वयं के खर्चे के लिए 200 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। पूर्वी डॉक्टर बनने का सपना देख रही है, तो उसकी बहन शिल्पी इंजीनियर बनने का । पूर्वी 7 भाई-बहनों में चौथे नम्बर पर है। दो भाई क्रमश: 7वीं और 8वीं में गांव के शासकीय विद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं। बड़ी दो बहनों की शादी हो चुकी हैं और छोटी बहन घर पर हैं।
दरअसल वर्ष 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने आवास में श्रमिक पंचायत बुलाई थी। जिसमें यह निकलकर आया था, कि उनके बच्चों का कोई भविष्य नहीं है। वह भी जिंदगीभर पहले माता-पिता के साथ, फिर स्वयं श्रमिक ही बना रहेगा। तब उन्होंने श्रमिकों के बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय खोलने का मन बनाया। 15 एकड़ में फैले इस भवन में बालक और बालिकाओं के लिए अलग-अलग छात्रावास हैं। इसके साथ ही शिक्षकों के लिए भी विद्यालय परिसर में आवास है। छात्रों के लिए खेल के मैदान और भोजन के एक बड़ा सा मेस हैं। पढ़ाई के लिए सर्वसुविधायुक्त कक्ष के साथ-साथ प्रयोगशालााएं भी हैं। विद्यालय में 6वीं से 12वीं तक ही पढ़ाई होती है। वर्तमान में इस स्कूल में 762 विद्यार्थी हैं, जिनमें 368 बालिका एवं शेष लड़के हैं। भोपाल के अलावा ग्वालियर, जबलपुर और इंदौर में भी पिछली सरकार ने श्रमोदय आवासीय विद्यालय निर्माण करवाया था। मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ भी इस विद्यालय से इतने प्रभावित हुए, कि उन्होंने भी रीवा, छतरपुर और रतलाम जिलों में श्रमोदय विद्यालय प्रारंभ करने की घोषणा की है। इसी तर्ज पर अपने-अपने राज्यों में विद्यालय शुरू करने के लिए देशभर के अधिकारी यहां आ रहे हैं। झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के अधिकारी इस मॉडल को अपनाने के लिए विद्यालय का भ्रमण कर चुके हैं।
हालांकि इस विद्यालय का विधिवत उद्घाटन अभी तक नहीं हुआ है। वर्तमान श्रम मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया ने कहा, कि शीघ्र ही इस विद्यालय का उद्घाटन मुख्यमंत्री कमलनाथ के हाथों होगा। उन्होंने कहा, कि जब एक परिवार का बच्चा अपने बाल्यकाल में मजदूरी में लग जाता है, तो उसके परिवार और समाज का भविष्य अंधेरे में पड़ जाता है और यह समस्या बढ़ते-बढ़ते बाल शोषण की गंभीर समस्या के रूप में परिवर्तित हो जाता है। बच्चो के अधिकारों की सुरक्षा के यह जरूरी है, कि वह पढ़े और आगे बढ़े। इसके लिए यह विद्यालय मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा, कि प्रदेश में ढाई करोड़ श्रमिक है, लेकिन अभी तक सारे श्रमिकों को पंजीकृत नहीं हुआ है और यह क्रम जारी है।
हालांकि सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् अनिल सद्गोपाल बच्चों के लिए अलग.अलग तरह के स्कूलों को बच्चों के साथ भेदभाव और संविधान के खिलाफ मानते हैं। उन्हांने बतायाए कि अलग.अलग नाम से विद्यालय संविधान के विपरीत है। संविधान इसकी इजाज़त नहीं देता । संविधान में सभी को समान शिक्षा की बात कही गई है। उन्होंने कहाए कि वर्ष 1960 में तो केंद्र सरकार ने 10वीं तक मुफ्त शिक्षा प्रदान करने की बात भी कही थी। उनके अनुसार अभी तक जितनी भी सरकारें आईंए सभी ने शिक्षा के जरिये बच्चों को वर्गों में बांटने की कोशिश की है। देश में 7 सौ से अधिक नवोदय विद्यालय है। एक हज़ारए 2 सौ केंद्रीय विद्यालय ए स्मार्ट स्कूलए एक्सीलेंस स्कूल तथा ज्ञानोदय आवासीय स्कूलए मुस्लिम मदरसे, दिल्ली में शीला दीक्षित ने प्रतिभा विद्यालय अलग से बनाया। हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शिक्षा व्यवस्था देखने अन्य राज्यों के प्रतिनिधि आ रहे हैं। पूरे देश में एक ही तरह के स्कूल बनेंए जहां सभी जाति.धर्मए सम्प्रदाय के बच्चे एक साथ एक ही तरह की शिक्षा प्राप्त करे। इस तरह की कल्पना किसी सरकार के पास नहीं है। देश की 85 फीसदी आबादी बहुजन हैंए इनमें आदिवासीए मुस्लिमए पारधिए पिछड़ी जाति सभी शामिल हैं। सरकार इस बहुजन को शिक्षा के माध्यम से जाति और सम्प्रदाय को बांटने की कोशिश कर रही हैं। जबकि अमेरिकाए भूटान जैसे देशों में ठीक इसके विपरीत सभी के लिए एक ही तरह के स्कूल हैं। भूटान के युवराजा और मजदूरों के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं। अमेरिका में तो 12वीं तक की शिक्षा मुफ्त है। वहीं भारत में अधिकारी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। क्योंकि छठवें और 7वें वेतनमान के प्रावधानों के अनुसार उनके बच्चों की फीस आयकर में माफ हो जाती है। इसके जरिए एक तरह से निजी स्कूलों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
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अभी केवल 12 लाख मजदूर हैं पंजीकृत
उप श्रमायुक्त और निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल के सचिव एलपी पाठक बताते हैं, कि राज्य सरकार ने श्रमिकों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। इसी कड़ी में पंजीकृत श्रमिकों के प्रतिभाशाली बच्चों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से श्रमोदय आवासीय विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इन विद्यालयों में एक हजार से एक हज़ारए 2 सौ विद्यार्थियों के पढऩे की व्यवस्था की गई है। प्रदेश में लगभग ढाई करोड़ श्रमिकों में से केवल 12 लाख श्रमिक ही पंजीकृत हैं। इस विद्यालय में दाखिले के लिए श्रमिकों का पंजीकृत होना आवश्यक है। इस तरह श्रमिकों का डाटा भी सरकार के पास तैयार किया जा रहा है, जिससे योजना बनाने और उसका लाभ श्रमिकों को आसानी से मिल सके। यह भवन निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल के फण्ड से बना है।
मेस में स्थानीय महिलाओं को दिया रोजगार
मेस संचालक विपुल शर्मा बताते हैंए कि शहर से दूर स्थापित आवासीय विद्यालय में आस.पास गांव के लोगों को रोजगार मिल रहा है। मेस में प्रतिदिन 762 विद्यार्थियों ए46 शिक्षकए 6 अधिकारी और 60 अन्य कर्मचारियों के लिए खाना बनता है। जिसके लिए कुल 42 कर्मचारियों को नियुक्त किया गया हैंए जो 3 काउन्टरों के माध्यम से पंक्तिबद्ध विद्यार्थियों को खाना परोसते हैं। विपुल ने कहाए मेस के खाने से कोई बीमार न पड़ेए यह सबसे बड़ी चुनौती रहती हैए जिसे गांव की महिलाएं बेहतर ढंग से निभा रही हैं। महिलाओं ने इन बच्चों को अनुशासित ढंग से खाना लेने और कुर्सी.मेज पर बैठकर खाने का तरीका भी सिखाया । इतनी बड़ी संख्या में बच्चों को अनुशासित रखना भी एक चुनौती है। यहां प्रतिदिन के मेन्यू के हिसाब से खाना पकाया जाता है।
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