केंद्र सरकार की नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूरी तरह से डिजिटलीकरण शिक्षा पर आधारित है। इस समय दूर-दराज ग्रामीण इलाकों के बच्चे, सरकार की चिंता से बाहर हो गये हैं।
कोविड महामारी के दौरान स्कूलों के बंद रहने के कारण बच्चों पर शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का असर हुआ है। करीब दो सालों के इस अंतराल में उनकी शिक्षा और सीखने की प्रवृत्ति दोनों प्रभावित हुई हैं। बच्चों के भविष्य पर इसका गंभीर असर पड़ा है। इस क्षति की भरपाई और बच्चों को इस संकट से उबारने के लिए सरकार के पास कोई विजन नहीं है। इसलिए कमजोर वर्गों के बच्चों की चिंता अब समाज को आपस में मिलकर करनी होगी। क्योंकि सरकार कोई भी हो, वह केवल खास वर्गों की ही चिंता करती है। मध्यप्रदेश सरकार इन दिनों सीएम राइज स्कूल खोलने की तैयारी में है। हर जिले में सीएम राइज स्कूल खोलने के लिए कैबिनेट से इसकी स्वीकृति भी मिल चुकी है। सीएम राइज स्कूल योजना के प्रथम चरण में 259 स्कूल खोले जाएंगे। कैबिनेट ने इस योजना के प्रथम चरण के लिए 6952 करोड़ रु. की मंजूरी दे दी है।
इस स्कूल के शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का लोकार्पण भी एक मई 2020 को हो चुका है। यह कार्यक्रम प्रदेश के शिक्षकों को डिजिटल माध्यमों से उनकी गति अनुसार, सीखने-सिखाने की विधियों व विषयवार कठिन अवधारणाओं पर प्रशिक्षण प्रदान करता है। शिक्षकों की व्यस्तता और दिनचर्या को ध्यान में रखते हुए, प्रशिक्षण मॉड्यूल को छोटा और व्यापक बनाया गया है। डिजिटल प्रशिक्षण का उपयोग शिक्षक मोबाइल और डेस्कटॉप पर आसानी से कर सकते हैं। जबकि इससे अलग राज्य शिक्षा केंद्र के निदेशक धनराज एन राजू एस मानते हैं, कि कोविड में बच्चों की शिक्षा और उनके सीखने की प्रक्रिया पर सबसे बुरा असर पड़ा है। उन्होंने पूरे समाज को इसके लिए आगे आने को कहा है। उन्होंने कहा कि सभी लोगों को स्वेच्छा से बच्चों को पढ़ाने और सिखाने के काम के लिए आगे आना होगा।
अब जिस देश में 15 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से बाहर हो, वहां कुछ खास वर्गों के बच्चों के लिए सीएम राइज स्कूल की परिकल्पना से सब हैरान है। जहां सिर्फ डिजिटलीकरण के माध्यम से पढ़ाई होगी। जबकि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्वयं कहा है, कि क़रीब 25 करोड़ आबादी साक्षरता की बुनियादी परिभाषा के नीचे है. सरकारी, निजी एवं धर्मार्थ स्कूलों, आंगनवाड़ी, उच्च शिक्षण संस्थानों एवं कौशल से जुड़ी पूरी व्यवस्था में 3 से 22 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों एवं युवाओं की संख्या 35 करोड़ है, जबकि देश में इस आयु वर्ग की आबादी 50 करोड़ है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि कम से कम 15 करोड़ बच्चे एवं युवा देश की औपचारिक शिक्षा व्यवस्था से बाहर हैं।
दरअसल केंद्र सरकार की नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूरी तरह से डिजिटलीकरण शिक्षा पर आधारित है। इस समय दूर-दराज ग्रामीण इलाकों के बच्चे सरकार की चिंता से बाहर हो गये हैं। सरकार इन बच्चों के बिना अगले 25 वर्षो में उन लक्ष्यों को हासिल करने का खाका तैयार कर रही है ,जब हम आजादी के 100 वर्ष पूरे करेंगे। परंतु इस नीति में षिक्षा का अधिकार कानून का पूरी तरह उल्लंघन किया जा रहा है और कमजोर वर्गों के बच्चे स्कूल से दूर होते जा रहे हैं। जब कोविड महामारी में 60 फीसदी बच्चे डिजिटलीकरण पढ़ाई के चलते शिक्षा से बाहर हो गये हैं, तो भविष्य में कितने बच्चे शिक्षा से दूर हो जाएंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मध्य प्रदेश का सीएम राइज स्कूल हो या एक्सीलेंस स्कूल यह सब सिर्फ खास वर्गों के कुछ बच्चों के लिए ही संभव होगा।
सीएम राइज स्कूली बच्चों में भेदभाव को बढ़ावा देगा
भारत ज्ञान विज्ञान समिति की उपाध्यक्ष आशा मिश्रा कहती हैं कि शिवराज सिंह चौहान की यह सोच बच्चों में भेदभाव को बढ़ावा देगा। इस तरह विदेशी सोच के साथ कुछ बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाएगी, जबकि बहुसंख्यक बच्चे इस तरह की शिक्षा से बाहर होंगे। उन्होंने कहा, पिछले दिनों बीजीबीएस ने मध्यप्रदेश के कई जिलों में सर्वे कराया तो पाया कि कोविड महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों की पढ़ाई पर किस तरह का नुकसान हुआ है। विशेष रूप से आदिवासी और ग्रामीण इलाकों के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों का, जिनके पास मोबाइल या लेपटॉप तक नहीं है। इसकी भरपाई करना बहुत मुश्किल है। ऐसे बच्चे दोबारा स्कूल नहीं जाना चाहते। इसी कोविड सरकार द्वारा महामारी के दौरान आदिवासी इलाकों के दस हजार, चार सौ स्कूलों को केवल चार हजार स्कूलों में मर्ज कर दिया। यानी करीब साढ़े 6 हजार बच्चे स्कूल से अपने आप बाहर हो गये। बच्चों को शिक्षा चाहिए न कि स्मार्ट स्कूल।
समिति 5 सितम्बर को मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में 50 ऐसे केंद्र स्थापित करने जा रही है, जहां आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे पहली कक्षा से लेकर 8वीं तक निशुल्क शिक्षा प्राप्त सकें। सीहोर के बाद कटनी, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, छतरपुर, राजगढ़ के साथ ही 89 आदिवासी विकासखण्डों में इस तरह का लर्निंग सेंटर खोलने की योजना बना रही है। क्योंकि अब ऐसे बच्चों की चिंता समाज को ही करनी होगी। सरकार तो स्कूलों को मर्ज करने में लगी है।
सरकार की घटिया सोच का नतीजा है सीएम राइज स्कूल
बच्चों के अधिकारों पर लम्बे समय से काम कर रहे रघुराज सिंह बताते हैं कि सीएम राइज स्कूल सरकार की एक घटिया सोच है, क्योंकि इस स्कूल में डेढ़ से दो हजार बच्चों का दाखिला होगा। शेष बच्चे कहां पढ़ने जाएंगे? इस तरह शुरू से ही बच्चे हीन भावना से ग्रसित हो जाएंगे। उन्होंने कहा, मध्यप्रदेश में करीब एक लाख स्कूल है, जहां शिक्षा का अधिकार कानून का पालन नहीं हो रहा है। कहीं पानी नहीं है, तो कहीं शौचालय नहीं है। कई स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं है। कहीं स्कूलों में चाहर दीवार भी नहीं है, तो कहीं खेल के मैदान नहीं है। इन सब पर ध्यान देने के बजाय सरकार कानून से ऊपर नई नीति बनाकर काम करना चाहती है और कानून को कमजोर करना चाहती है।
सरकार हर गांव को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ने की बात कर रही है। लेकिन कोविड में पढ़ाई का डिजिटलीकरण का उदाहरण हमारे सामने है। अब समाज को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए जनभागीदारी के साथ मोहल्ला स्कूलों का इंतजाम कर युवाओं को ऐसे स्कूलों से जोड़ना चाहिए।
उन्होंने कहा, इस समय कोविड संबंधी पूरी सावधानी बरतते हुए स्कूलों को खोलने के साथ ही कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करना होगा, ताकि वे वर्तमान कक्षा में पढ़ने के साथ साथ उस पढ़ाई की भरपाई भी कर सकें जिससे स्कूल न खुल पाने और डिजिटल पढ़ाई के चलते वे शिक्षा से वंचित हो गए हैं।
सामाजिक दूरी का सबसे ज्यादा असर समाज इन बच्चों पर पड़ा है। स्कूल बंद होने और सामाजिक गतिविधियां खत्म हो जाने से वे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह से शिकार हुए हैं। उन्हें फिर से स्कूल तक लाना बहुत बड़ी चुनौती है।
परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते काम पर लग गये बच्चे
भोपाल स्थित अंकुर हायर सेकेण्डरी स्कूल की प्राचार्य गुरू बताती हैं कि उनके स्कूलों में पढ़ने वाले कमजोर वर्ग के बच्चों में से 50 से 60 फीसदी तक बच्चे पढ़ाई छोड़ चुके हैं। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते उन्हें भी किसी न किसी काम में लगा दिया गया है और अब ऐसे बच्चों का फिर से स्कूल लौटना मुश्किल है। इसी तरह स्कूल जाने वाली कई बच्चियों की शादी तक कर दी गई है, ऐसी बच्चियां भी शायद ही पढ़ाई की दुनिया में फिर लौट पाएं।कोविड के दौरान डिजिटल माध्यम से नियमित पढ़ाई की क्षतिपूर्ति करने के प्रयास हुए, लेकिन इस माध्यम की पहुंच भी सिर्फ 40 फीसदी छात्रों तक ही हो पाई। बाकी 60 फीसदी बच्चे पढ़ाई से वंचित ही रहे। इसमें भी ग्रामीण और खासकर आदिवासी इलाकों के बच्चों की हालत और अधिक खराब हो गई है।
12 से 18 माह का ब्रिज कोर्स शुरू हो
यूनिसेफ मध्य प्रदेश के शिक्षा विशेषज्ञ एफ.ए. जामी का कहना है, कि स्कूल बच्चों के लिए सिर्फ पढ़ाई का केंद्र ही नहीं बल्कि उनकी सामाजिक दुनिया और अन्य गतिविधियों का भी केंद्र होते हैं। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई का जो नुकसान हुआ है उसके लिए 12 से 18 माह का एक ब्रिज कोर्स तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, सरकार और समाज को अभी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए जनभागीदारी के साथ मोहल्ला स्कूलों का इंतजाम कर युवाओं को ऐसे स्कूलों से जोड़ने की बात होनी चाहिए। शिक्षा को निशुल्क बनाने और शिक्षकों के खाली पद तत्काल भरे जाने चाहिए। स्कूल न खुलने के कारण मध्याह्न भोजन से वंचित रहने वाले बच्चों के लिए घर तक भोजन पहुंचाने और उनके टीकाकरण पर भी जोर दिये जाने की जरूरत है। उन्होंने बच्चों के साथ साथ शिक्षकों और अभिभावकों को भी मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत बनाने के लिए स्कूलों में मनोचिकित्सकों की सेवाएं लेने या फिर शिक्षकों को इसकी ट्रेनिंग देने का भी सुझाव दिया।
12 sep 2021 Amrit Sandesh, Raipur
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