Nov 26, 2019
तेजी से बढ़ रहा मनोरोग
प्रदेश में 75 फीसदी युवा मनोरोग से ग्रसित
रूबी सरकार
10वीं की छात्रा 17 वर्षीय शीला (काल्पनिक नाम) को अचानक सरदर्द शुरू हुआ। धीरे-धीरे उसके व्यवहार में भी परिवर्तन होने लगा। रह-रह कर वह गाने व नाचने लगती। परिजनों ने पहले सोचा, कि वह ज्यादा खुश है, लेकिन असामान्य व्यवहार बढ़ते देख उसे डॉक्टर के पास इलाज के लिए ले गये, लेकिन डॉक्टर मर्ज समझे बिना उसका इलाज करते रहे। जब वह ठीक नहीं हुई, तो लगभग एक साल बाद किसी के कहने पर उसे मनोरोग विशेषज्ञ प्रो.(डॉ.) आरएन साहू के अस्पताल ले आये। शीला यहां पिछले सप्ताह ही आई है। अब उसका इलाज डॉ. साहू के अस्पताल में चल रहा है । धीरे-धीरे वह सामान्य हो रही है। जब इस संवाददाता ने उससे बात की, तो उसने बताया, कि उसके पैरों और सर में बहुत दर्द होता है। वह पढ़-लिखकर आईपीएस अधिकारी बनना चाहती है। इरादा तो था, फिल्मों में काम करने का, लेकिन इस वक्त वह तकलीफ में है, इसलिए अब सिनेमा में काम करना मुश्किल है। डॉ. साहू ने बताया, कि शीला दरअसल बायपोलर से पीडि़त है। पिछले 2 साल से सिरदर्द था। परिजन उसे जिस डॉक्टर के पास ले गये थे, वहां उसका सही मर्ज पकड़ में नहीं आया। वरना वह अभी तक शायद ठीक हो जाती। शीला की मां कहती हैं, कि एक साल पहले पिता का निधन हुआ है, इसलिए वह सदमें में आ गई, लेकिन डॉ. साहू ऐसा नहीं मानते, उनका कहना है, कि चूंकि पिता के गुजरने से पहले से ही वह सिरदर्द से परेशान थी, इसलिए इसे सदमें से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि सही समय पर सही उपचार मिलने से मरीज ठीक होता है।
उसकी मां ने बताया, कि शीला गुस्सा बहुत करती है। कभी-कभी मारने को दौड़ती है। कई-कई बार बाथरूम जाती है, खाना उठाकर फेक देती है। डॉ. साहू ने बताया, कि सही आचरण न करना एक तरह से मनोरोग के लक्षण है और इस तरह के लोगों को समाज में भेदभाव का शिकार होना पड़ता है।
डॉ. साहू ने बताया, कि उनके पास रोज़ कम से कम 90 मरीज आते हैं और अधिकतर ठीक भी हो जाते हैं। उन्होंने अपने एक मरीज बृजेश दुबे का उल्लेख करते हुए बताया, कि लोकप्रिय गेम शो कौन बनेगा करोड़पति के सीजन-9 में अशोक नगर जिले (मध्यप्रदेश) के निवासी श्री दुबे ने 14 सवालों का सही जवाब देकर एक करोड़ रुपये का इनाम जीता था। जबकि उसका इलाज अब भी चल रहा है। बृजेश 18 साल की उम्र में मानसिक रोग से ग्रसित हुआ और तभी से डा. साहू की देखरेख में उसका इलाज चल रहा है। इलाज के दौरान ही वे एम-वे कंपनी में मैनेजर रहे। डॉ. साहू के अनुसार मनोरोग अक्सर अनुवांशिक होते है। लेकिन मनोरोग होने का जोखिम तनाव, मौजूदा गैर संक्रमक रोग जैसे - कैंसर, कोई दर्दनाक अनुभव जैसे- हिंसा, बलात्कार, युद्ध, मादक पदार्थ के इस्तेमाल जैसे कारणों से बढ़ जाते है। अलग-अलग मनोराग के अलग-अलग लक्षण होते है जैसे-सिज़ोफेनिया में पीडि़त व्यक्ति को तरह-तरह की आवाज़े सुनाई देता है, उसका व्यवहार असामान्य हो जाता है। अधिक चिंता से भय और भ्रम की स्थिति में रहता है, अत्यधिक अवसाद में अनिद्रा, अतिनिद्रा जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। यहां तक कि वह अपना ध्यान भी सही तरीके नहीं रख पाते, रोजमर्रा के काम में भी पीडि़त को दिक्कते आती है। कभी-कभी तो आत्महत्या या दूसरों को नुकसान पहुंचाने की बारे में सोचने लगते है।
परिवर्तनशील समाज के चलते बढ़ रहा मनोरोग
डॉ. साहू ने कहा, कि समाज एक परिवर्तनशील व्यवस्था है । इसका सबसे ज्यादा प्रभाव युवाओं के दिमाग में पड़ रहा है। इससे जीवन तनावग्रस्त हो रहा है। ऐसे में युवा नशा करने लगते हैं। बच्चों के मृत्यु के आंकड़ों पर गौर करें, तो इसके पीछे बड़ा कारण मानोरोग है।
प्रदेश में मादक पदार्थ सेवन करने वालों की संख्या अधिक
डॉ. साहू ने कहा, कि मादक पदार्थ के सेवन में मध्यप्रदेश का देश में 5वां स्थान है और यहां की 2 फीसदी आबादी गंभीर मानसिक रोग से प्रभावित है। इसी तरह लगभग 10 फीसदी सामान्य मनोसिक रोग और लगभग 35 फीसदी अपने जीवन काल में मानसिक रोग से प्रभावित होते हैं। डॉ. साहू ने बताया, कि यह महिलाओं में ज्यादा होता है तथा 4 में से 3 व्यक्ति किसी न किसी रूप में मानोरोग से ग्रसित होते हैं। 24 की उम्र से पहले लगभग 75 फीसदी, 14 साल से पहले 50 फीसदी किशोर मनोरोग से ग्रसित हो रहे हैं। इससे आर्थिक क्षति बहुत ज्यादा है और 10 आर्थिक क्षति के कारणों में चौथा कारण मानसिक रोगों से हुए नुकसान का है।
भ्रांतियां दूर कर जागरूकता फैलाये
उन्होंने कहा, अभी भी इसे लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां है, लोग नकारात्मक सोचते है, इसे छिपाते हैंं या जादू-टोना , भूत-प्रेत मानकर इलाज करते है। अधिकतर तो आज भी इसे कलंक मानते हैं और इलाज के लिए डरते हैं। जबकि समुचित उपचार के लिए सही सोच और भ्रांतिया दूर कर जागरूकता फैलाने की जरूरत है। मनोरोगियों को स्वास्थ्य समस्याओं से पीडि़त अन्य लोगों की तरह माना जाना चाहिए और उनके आस-पास के वातावरण को पुनर्वास और समुचित उपचार तथा समाज को उनकी भागीदारी के अनुकूल बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्ष 2020 तक भारत की 20 फीसदी जनसंख्या किसी ना किसी तरह के मानसिक रोगों से पीडि़त होगी। जबकि देश में सिर्फ 9 हज़ार मनोरोग चिकित्सक हैं। सरकार पिछले एक दशक से इस फ ासले को कम करने की समस्या का सामना कर रही है।
गौरतलब है, कि भारत सरकार ने वर्ष 1982 में मानसिक रोग के भारी बोझ को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) की शुरुआत की और इसी कार्यक्रम में वर्ष 1996 में जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को जोड़ा। वर्ष 2003 में दो योजनाओं राज्य मानसिक अस्पतालों का आधुनिकीकरण और सरकारी मेडिकल कॉलेजों जनरल अस्पताओं में मनोचिकित्सा विंग का उन्नयन को शामिल किया। जनशक्ति विकास योजना वर्ष 2009 में इस कार्यक्रम का हिस्सा बनी।
10 अक्टूबर वर्ष 2014 को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति की घोषणा की गयी तथा भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 लाया गया। फिर भी देश में अब तक मात्र 40 केंद्र बने हैं और मध्यप्रदेश में केवल 2 अस्पताल, 220 बिस्तर वाला ग्वालियर में और 55 बिस्तर वाला अस्पताल इंदौर में हैं। यहां तक कि बजट आबंटन और स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी भी अब तक नहीं बनीं, जिसमें उप सचिव रैंक के एक व्यक्ति को सीईओ बनाया जाना है। इसके अलावा इससे निपटने के लिए लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के साथ-साथ महिला एवं बाल विकास विभाग, गृह विभाग, सामाजिक न्याय विभाग का आपसी सामंजस्य भी होना आवश्यक है । साथ ही स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी में 16 लोगों की नियुक्ति भी शेष है।
बॉक्स
नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे में दर्ज मध्यप्रदेश के आंकड़ों के अनुसार एक करोड़, 2 लाख लोग शराब पीते हैं। इस तरह मादक पदार्थ के सेवन के मामले में मध्यप्रदेश देश में पहले 5वें पायदान पर है। 31 लाख लोग शराब से संबंधित समस्याओं के लिए डॉक्टरों या अन्य से मदद मांगते हैं। डेढ़ लाख से अधिक हशीश (मारीजुआना)जैसी समस्याओं से जूझते हैं। लगभग 4 लाख लोग अफीम तथा 50 लाख लोग इनहेलर का इस्मेमाल करते हैं।
(स्रोत: भारत में मादक पदार्थ के दुरुपयोग का परिमाण 2019)
No comments:
Post a Comment