Thursday, June 15, 2023

पढ़ने-पढ़ाने की जिद ने तमन्ना को बनाया अपने समुदाय के बीच रोल मॉडल




 पढ़ने-पढ़ाने की जिद ने तमन्ना को बनाया अपने समुदाय के बीच रोल मॉडल

रूबी सरकार

मध्यप्रदेश के हरदा जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है  नजरपुरा । इस गांव में अधिकतर पिछड़ी जाति के लोग निवास करते हैं। यहां की कुल आबादी 3 हजार, 940 और 780 घर है।  इनकी आजीविका का स्रोत मेहनत मजदूरी है। कुछ लोगों के पास नाम मात्र की जमीन है, जिस पर वे खेती करते हैं, बाकी तो सब खेतीहर मजदूर ही हैं। इसी गांव का रहने वाला कमल तंवर, जो गांव में सबसे अधिक पढ़ा-लिखा व्यक्ति है और वे  एक सरकारी स्कूल में अतिथि शिक्षक है। कहते हैं न , कि परिवार में एक शिक्षित हो तो सभी में पढ़ने की ललक जाग जाती है। कमल तंवर की 17 वर्षीय एक बेटी तमन्ना तंवर। तमन्ना न सिर्फ खुद पढ़ना चाहती है, बल्कि वह पूरे गांव के बच्चों को शिक्षित देखना चाहती है।
कोविड-19 महामारी के दौरान जब से स्कूल-कॉलेज बंद रहे और बच्चे पढ़ाई से दूर हो रहे थे, तो तमन्ना छटपटाने लगी, कि कैसे इन बच्चों को पढ़ाई से जोड़ कर रखा जाए। क्योंकि बहुत मुश्किल से तो यहां के बच्चे स्कूल जाने लगे थे, एकाएक कोरोना संक्रमण ने वह भी बंद करवा दिया।स्कूलों के बंद रहने के कारण बच्चों पर शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का असर हो रहा है। इस अंतराल में उनकी शिक्षा और सीखने की प्रवृत्ति दोनों प्रभावित हो रही है। बच्चों के भविष्य पर इसका गंभीर असर पड़ेगा। इस क्षति की भरपाई और बच्चों को इस संकट से उबारने के लिए तमन्ना ने सोचा कुछ तो करना चाहिए और कमजोर वर्गों के बच्चों की चिंता समाज को आपस में मिलकर करना होता है। संक्रमण के चलते कमजोर वर्ग के बच्चों में से 50 से 60 फीसदी तक बच्चे पढ़ाई से दूर हो चुके हैं। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते उन्हें भी किसी न किसी काम में लगा दिया गया है और अब ऐसे बच्चों का फिर से स्कूल लौटाना कितना मुश्किल भरा काम होगा। यहां तक कि स्कूल जाने वाली कई बच्चियों की शादी तक कर दी गई है, ऐसी बच्चियां भी शायद ही पढ़ाई की दुनिया में फिर लौट पाएं।कोविड -19 के दौरान डिजिटल माध्यम से नियमित पढ़ाई की क्षतिपूर्ति करने के प्रयास तो हो रहे थे, लेकिन इस माध्यम की पहुंच भी सिर्फ 40 फीसदी छात्रों तक ही है। वह भी शहरों की। बाकी 60 फीसदी बच्चे पढ़ाई से वंचित ही रहे। इसमें भी ग्रामीण और खासकर आदिवासी इलाकों के बच्चों की हालत और अधिक खराब है।

तमन्ना इसी उहापोह में जी रही थी, उसे लग रहा था, कि  कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे बच्चे पढ़ाई से दूर न हो। उसके इस सपनों की उड़ान को पंख मिला, सिनर्जी संस्थान से। जब पिता ने अपनी बेटी की छटपटाहट देखकर उसे सलाह दी,  िक वह घर के एक कमरे को पुस्तकालय बनाकर बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रख सकती है।  इसके लिए एक संस्था है, जो इस काम में उसकी आर्थिक मदद कर सकता है। पिता ने बेटी को केवल बताया ही नहीं, बल्कि अगले ही दिन उसे उस संस्था के प्रबंधकों से मिलाया। बस फिर क्या था, उसे संस्था की ओर से मात्र डेढ़ हजार महीने की एक फेलोशिप मिल गई। तमन्ना के लिए इतना ही काफी था। इस पैसे से वह छोटी-छोटी कहानियों की किताब खरीदकर एक छोटी सी सामुदायिक पुस्तकालय अपने घर के एक कमरे बना डाली। जहां बच्चे आकर स्कूली पाठ्यक्रम के अलावा अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए दुनिया भर की मुद्दों पर चर्चा कर सकें।  पुस्तकालय में किशोरी लड़कियां अपनी रुचि और पसंद के अनुसार अलग-अलग किताबें पढ़ सकती हैं। हालांकि शुरुआत में यह काम उसके लिए आसान नहीं था। वह बहुत झिझकती थी और हमेशा उसका इस बात पर ध्यान रहता था, कि कैसे बात करें और किस बारे में बात करें। लेकिन समय के साथ-साथ वह अपनी योजना और उड़ान टीम के समर्थन से इस चुनौती पर विजय प्राप्त करती चली गई। आज  वह उमंग पाठ्यक्रम के लिए किशोरियों के साथ सत्र लेती है। जबकि वह स्वयं 12वी की छात्रा है।
पुस्तकालय में किताबों की व्यवस्था के लिए अब वह बिना हिचकिचाहट के लोगों से बात करती है। लोगों ने किताब डोनेट करने के लिए आग्रह करती है। जैसे ही वह  अधिक प्रभावी ढंग से बातचीत करने लगी, उसे मदद मिलने लगी। अब उसके पुस्तकालय में गांव के बच्चों से लेकर किशोरी यहां तक बड़ी उम्र की महिलाएं भी आने लगी हैं। उनमें भी पढ़ाई की ललक बढ़ने लगी।
जब कोविड -19 की दूसरी लहर ने भारत को बुरी तरह प्रभावित किया। सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए लोगों ने शारीरिक दूरी बनाए रखना जरूरी हो गया, तब इसका असर तमन्ना की पहल पर भी पड़ा, लेकिन वह पीछे नहीं हटी, बल्कि, 2-3 सप्ताह के अंतराल के बाद, वह सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इसे बनाए रखने के लिए एक नई सोच लेकर आईं। उसने 2 से 5 दिनों तक पढ़ने के लिए अपनी पुस्तकालय की किताबें  घर-घर जाकर बांटने लगी। आज उसके पुस्तकालय में सैकड़ों पुस्तकें हैं। उसकी लाइब्रेरी धीरे-धीरे समृद्ध हो रही है और इसके साथ तमन्ना की उड़ान भी।
तमन्ना अब गांव में युवाओं की प्रेरणास्रोत बन गई है। वह न सिर्फ पढ़ने-पढ़ाने में रुचि रखती थी, बल्कि गांव और पूरे जिले को स्वच्छ और हिंसा मुक्त करने की दिषा में काम कर रही है। वह किशोरियों के साथ होने वाले छेड़छाड़ का खुलकर विरोध करती है। उसके काम में उसके माता-पिता का साथ भी उसे मिलता है। कॉलेज में पढ़ने वाला बड़ा भाई भी उसे सपोर्ट करता है। तमन्ना गांव के लोगों के साथ जागरूकता बैठकें आयोजित करती है। भेदभाव की समझ उसमें विकसित हो चुकी है।  कुल मिलाकर तमन्ना में उड़ान टीम के प्रयास से अभूतपूर्व परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। वह लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाती है। वह स्वयं अब बहुत पढ़ना चाहती है और अपने को निर्णायक भूमिका में देखना चाहती है, जिससे वह गांव में परिवर्तन ला सके।
सिनर्जी संस्थान की समन्वयक प्रियंका कहती हैं, कि  उड़ान फेलोशिप ग्रामीण, आदिवासी और वंचित समुदायों से संबंधित किशोर किशोरियों के साथ 16 से 21 वर्ष की आयु के बीच वाली महिलाओं को दी जाती है। इसका मकसद किशोरियों के भीतर का झिझक खत्म करना । ताकि वह पंख फैलाकर उड़ान भर सके। इससे उनमें आंतरिक परिवर्तन  होते हुए भी देखा जा सकता है। यही किषोरियां आगे चलकर अपने गांवों में सामाजिक परिवर्तन का नेतृत्व करती हैं। अपने समुदायों में कार्य परियोजना बनाती है और उसे लागू करवाती हैं। उनमें सीखने जुनून होना चाहिएं। यदि उन्हें सही मार्गदर्शन और  सीखने के अवसर दिए जाए , तो वह गांवों  में हाशिए पर पड़े समाज को बदलने की इच्छा और क्षमता रखती है। ं। इसलिए, ग्रामीण और आदिवासी समुदायों की युवाओं को उन्नति फाउंडेशन और अजीम प्रेमजी परोपकारी पहल के सहयोग उड़ान फेलोशिप देते हैं।
                                                                             3 oct 2021
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