Monday, June 19, 2023

लॉकडाउन में पेट की खातिर बलात्श्रम के शिकार हुए मजदूर

 


लॉकडाउन में  पेट की खातिर बलात्श्रम के शिकार हुए मजदूर


रूबी सरकार


भारत में बंधुआ मजदूरी 25 अक्टूबर ,1975 से खत्म कर दिया गया है। इस तिथि से गुलामी की प्रथा को कानून द्वारा एक संज्ञेय दण्डनीय अपराध बना दिया गया ।  फिर भी सामंती सोच वाले घरों में गुलामी की यह प्रथा बिना रोक-टोक के जारी है। वे कानून को नजरअंदाज कर मानव तस्करी, जबरन विवाह, बाल विवाह, घरेलू नौकर बनाना, यौन हिंसा, जोखिम युक्त परिस्थितियों में काम करवाना आदि हरकतें बदस्तूर जारी रखे हैं। देश की जिन गंभीर समस्याओं पर मुख्यधारा का मीडिया खामोश रहता है और सरकार उदासीन, इनमें कई समस्याओं में से बंधुआ मजदूरी की समस्या भी एक है। सरकारी घोषणाओं में यह समस्या खत्म हो चुकी है और मीडिया के लिए इसमें कोई सनसनी नहीं रही। इसलिए यह कभी मुद्दा नहीं बनता। किसी व्यक्ति को बंधुआ बनाये जाने के पीछे मुख्य कारण इसका निर्धन होना है। कुछ पैसे वाले जरूरतमंद लोगों को ऋण के जाल में उलझा देते हैं और फिर वह मूल और ब्याज न चुका पाने की स्थिति में बंधुआ बनने को विवश हो जाते हैं। इसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी, महिला और नाबालिग बच्चे होते हैं।  कोरोना महामारी के चलते होने वाले लॉकडाउन के समय यह अधिक देखा गया, जब लोगों के पास काम नहीं था और वे अपनी  और अपने परिवार की जीविका के लिए किसी पूंजीपति से ब्याज पर पैसे उधार लिये थे। ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं...
हाल ही में पिता के गुजर जाने से भोपाल की रहने वाली एक किशोरी एवं उसकी मां आर्थिक रूप से परेशान हुई। मां ने मजबूरी में शिवपुरी निवासी इंदर सिंह गुर्जर पुत्र मोहर सिंह गुर्जर से 15 हजार रुपये उधार लिये, जिसे समय पर चुकता न कर पाने के एवज में इंदर सिंह ने उसकी बेटी को जाल में फंसाने का षड़यंत्र रचा। उसने किशोरी को खेत में काम करवाने के बहाने अपने साथ गांव आकुसी ले गया और उसे अपने घर पर बंधुआ बना लिया। जब इसकी भनक बंधुआ मुक्ति मोर्चा गुना के कार्यकर्ता नरेंद्र भदौरिया को लगी, तो उसने शिवपुरी के कलेक्टर को पत्र लिखा और किशोरी रिहा कराने की गुहार लगाई।  मई महीने के आखिर में प्रशासन ने दबिश डालकर इंदर सिंह के खेत पर बने मकान से उसे मुक्त कराया। मध्यप्रदेश के गुना, छतरपुर, खंडवा, हरदा, शिवपुरी और श्योपुर जिलों में हजारों आदिवासी कथित तौर पर पिछले कई दशकों से बंधुआ मजदूर के रूप में प्रभावशाली लोगों की सेवा कर रहे हैं।  इनमें अधिकतर सहरिया समुदाय से हैं।
बंधुआ मुक्ति मोर्चा के महासचिव निर्मल गोराना ने बताया, कि बंधुआ मजदूरों की पुनर्वास की योजना 2016 के अनुसार उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार से अपील किया था, कि शिवपुरी, गुना अशोकनगर, ग्वालियर, सागर, बीना छतरपुर जैसे जिलों में दशकों से मजदूर बंधुआ बनकर काम कर रहे हैं। सरकार अपनी ओर से सर्वे करवाकर उनकी पहचान करें और मध्य प्रदेश से बंधुआ मजदूरी की गुलामी का कलंक खत्म करें।
श्री गोराना ने बताया, मध्य प्रदेश के गुना जिले में पिछले साल लॉकडाउन के तुरंत बाद विजय सहरिया नामक एक  26 वर्षीय बंधुआ मजदूर को केरोसिन डालकर जलाने की लोमहर्षक घटना सामने आयी थी। मामला गुना के उखावद खुर्द गांव का था। घटना को मजदूर के मालिक ने अंजाम दिया है , जिसने उसे काफी दिनों से बंधुआ बना कर रखा हुआ था।
विजय जहां काम करता था , उसका मालिक राधेश्याम खेत का मालिक था और वह विजय से जबरदस्ती काम लेता था। जब लॉकडाउन से छूट के बाद वह अपने घर जाने की जिद करने लगा, तो राधेश्याम ने विजय को घर नहीं जाने दिया । उसने अपनी मजदूरी मांगी तो उसे मजदूरी तो दी नहीं उल्टा  इतना आग बबूला हो गया, कि उसने विजय पर मिट्टी का तेल डालकर जला दिया।  बुरी तरह झुलस चुके विजय सहरिया ने गुना के जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया।
सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं , बल्कि इसी तरह की घटनाएं लॉकडाउन के दौरान हर प्रदेश में देखने को मिले।  इससे पहले राजस्थान के अजमेर से भारत नाम के ईंट-भट्टे पर काम करवाने के नाम पर बंधक बनाकर रखे गये 21 मजदूरों को इसी संस्था द्वारा मुक्त करवाया गया था। इनमें 11 पुरुष, 4 महिलाएं और 6 बच्चे शामिल थे। सभी अनुसूचित जाति के और आर्थिक रूप से बेहद कमजोर थे। श्री गोराना ने बताया, उत्तर प्रदेश के बांदा व चित्रकूट के कुछ मजदूरों को जब लॉकडाउन के चलते कोई काम नहीं मिल रहा था, तो वे एक दलाल के कहने पर अजमेर के ईंट भट्टे में काम करने गये। लेकिन वहां  मालिक ने उनलोगों को बंधक बनाकर रखा। सबसे अफसोसनाक बात यह है, कि ठेकेदार ने इन मजदूरों के लिए आवास व पेयजल की व्यवस्था भी नहीं की । महिला मजदूरों ने बताया, कि उनके साथ दुर्व्यवहार भी हुआ है। जब संस्था ने प्रषासन के सहयोग से इन्हें मुक्त कराया, तो इनकी हालत काफी दयनीय थी। मालिक ने इन मजदूरों को मजदूरी तो दी नहीं , उल्टे इनके साथ अमानवीय व्यवहार किया।  

इसी तरह छत्तीसगढ़ के महासमुंद और बलौदाबाजार से एक दलाल कुछ युवकों को काम दिलाने के नाम पर तस्करी कर तमिलनाडु ले गये।  जहां मजदूरों को मेहनताना के रूप में केवल खाना मिलता था। मजदूरों कहना है, कि इस काम के लिए दलाल को  12 हजार रुपये प्रतिमाह मालिक की ओर से दिया जाता था।

गौरतलब है कि वर्ष 2018 में वाक फ्री फाउंडेशन  द्वारा जारी वैश्विक दासता सूचकांक में आधुनिक दासता के मामले में भारत विश्व के 167 देशों में से 53 वें स्थान पर रहा, जबकि संख्या के आधार पर भारत में विश्व के सर्वाधिक व्यक्ति यहां बंधुआ का जीवन बिता रहे हैं। हाल फिलहाल ऐसा कोई अध्ययन तो नहीं हुआ है,  परंतु अंदाजा यही लगाया जा रहा है, कि लॉकडाउन में बंधुआ मजदूरों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।

                                                                                    13 June 2021 Amrit Sandesh  Raipur


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