गंजाल-मोरंड बांध के खिलाफ आदिवासियों ने भरी हुंकार
कोई नहीं हटेगा न बांध नहीं बनेगा
मुख्यमंत्री को पुनर्विचार के लिए लिखा पत्र
रूबी सरकार
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद और हरदा जिले में सिंचाई का रकबा बढ़ाने के लिए प्रस्तावित गंजाल मोरंड बांध परियोजना के खिलाफ जिंदगी बचाओ अभियान के बैनर तले आदिवासियों ने अपना विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। प्रदर्शन के दौरान आदिवासियों ने गंजाल मोरंड बांध के खिलाफ नारे लगाते हुए अपनी ताकत दिखाई और सीधे सीधे बांध को रद्द करने की मांग शासन से की है ।
यह एक विडम्बना ही है, कि जब मध्य प्रदेश के धार, अलीराजपुर और बड़वानी जिले 178 गांव सरदार सरोवर बांध के बेक वाटर से अपनी जिंदगी से संघर्ष कर रहे हैं, तब नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) एक और बड़ा बांध बनाने की तैयारी कर रहा है, जो निश्चित ही प्रदेश के हित में नही हैं । बांध के लिए टेन्डर जारी होने के बाद गंजाल और मोरंड के 10 गांव के कोरकू और गोंड अदिवासी बेहद परेशान हैं। उनके सर पर विस्थापित होने की तलवार लटकने लगी है, वह भी तब, जब वे धीरे-धीरे जंगलों में स्थापित होकर अपनी आजीविका और बच्चों की शिक्षा के साथ बेहतर भविष्य के सपने देखने लगे थे। गंजाल के बोथी गांव के आदिवासी प्रेम कासकर ने बताया, कि यहां एक हज़ार से अधिक आदिवासी परिवार पिछले 10-15 सालों में बड़ी मेहनत कर अपनी जिंदगी पटरी पर ला रहे थे, कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनबीडीए) ने बांध का टेन्डर जारी कर हमें उजाडऩे का उपक्रम शुरू कर दिया। प्राधिकरण ने ज़मीन अधिग्रहण का काम भी ठेकेदार को सौंप दिया है। प्रेम ने बताया, कि नर्मदा घाटी से विस्थापित परिवारों का उदाहरण हमारे सामने है। ऐसे में हमें बेरोजगारी के साथ-साथ अपने बच्चों का भविष्य की चिंता भी होने लगी है, क्योंकि समरधा, काथा और मोरघाट में जो सरकारी माध्यमिक स्कूल है , उसमें हमारे बच्चे पढ़ते हैं। वह भी बांध के जद में आ जायेगा, ऐसे में बच्चों की पढ़ाई तो छूट जायेगी।
हालांकि हरदा कलेक्टर ने उन्हें आश्वस्त किया है, कि इस परियोजना से कोई भी गांव , जंगल नहीं डूबेगा और खेती भी नहीं डूबेगी। उनके इस बयान पर आदिवासियों ने उनसे यही बात लिखित में देने को कहा। कलेक्टर ने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को पत्र लिखकर वस्तु स्थिति से अवगत कराने के लिए जानकारी मांगी है, लेकिन आदिवासी इससे संतुष्ट नहीं हुए।
10 से अधिक गांवों का हुआ है सर्वे
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं जिंदगी बचाओ अभियान के सदस्य जगदीश देवड़ा ने कहा, कि एनबीडीए बांध के लिए गंजाल के 4 और मोरंड के 6 गांव अधिग्रहित करने की बात कह रहे हैं, लेकिन बांध के लिए इससे भी अधिक गांव का सर्वे हुआ है। फिलहाल डूब में आने वाले हरदा के 4 गांव बोथी, मौखाल, कायरी और बोरी, होशंगाबाद जिले के मोरघाट, लाई समरधा और कामता तथा बैतूल जिले के जामनगरी, गिरिआडो बताया जा रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में विस्थापित होने वाले गांवों की संख्या अधिक होने से इंकार नहीं किया जा सकता । उन्होंने कहा, 27 हज़ार हेक्टेयर भूमि डूब में जाने की संभावना है। श्री देवड़ा ने कहा, टिमरनी में इमारती लकड़ी का पूरा जंगल भी डूब में चला जायेगा।
आदिवासियों ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
आदिवासियों ने कई बार हरदा, होशंगाबाद और बैतूल जिला कलेक्टरों को आवेदन देकर ह$कीकत जानने की कोशिश की , लेकिन जब कलेक्टरों की ओर से कोई जवाब नहीं दिया, तब ग्रामीणों ने सीधे मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखा , कि जिसमें इस सिंचाई परियोजना पर उनसे पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया है। कोरकू और गोंड आदिवासियों ने मुख्यमंत्री को लिखा, कि इन परियोजनाओं में जो पर्यावरणीय नुकसान होगा,उसकी भरपाई संभव नहीं है । इसके अतिरिक्त भी कई अनसुलझे पहलू हंै, जिनके आधार पर यह पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है, कि बड़े बांधों की लागत की तुलना में लाभ बहुत ही कम है, यह तथ्य कई अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों ने भी विभिन्न रिर्पोटों में स्वीकार किया है। दुनिया के विकसित देश बड़े बांधों की बजाये अन्य विकल्पों पर विचार मंथन कर आगे बढ़ रहे है, इसलिए प्रस्तावित गंजाल एवं मोरंड संयुक्त सिंचाई परियोजना के बारे में एक बार आपकी सरकार पुनर्विचार कर एक बड़े वन क्षेत्र को जलमग्न होने से और सैकड़ों परिवारों को उजडऩे से रोककर एक संस्कृति को बचा सकती है ।
पूरी प्रक्रिया गैरकानूनी
सामाजिक कार्यकर्ता शमारूख़ धारा ने बताया, दरअसल, यह टेन्डर नियमोंं एवं कानूनों का उल्लंघन कर जारी हुआ है। उन्होंने कहा, कि परियोजना प्रस्तावक नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को 17 अक्टूबर, 2012 में टीओआर मिला था, जिसकी वैधता 2 वर्ष की थी, जिसे बढ़ाकर 4 वर्ष किया गया था । परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी के लिए जनसुनवाई और पर्यावरण प्रभाव का आकलन कर निर्धारित समय के भीतर केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को भेजना था । जिसे परियोजना प्रस्तावक एनवीडीए ने आनन-फ ानन में नवम्बर 2015 में इस परियोजना से प्रभावित 3 जिलों में जनसुनवाई कर ली, जिसमें आदिवासियों एवं अन्य समुदायों द्वारा कठोर विरोध के बावजूद इसकी रिपोर्ट के साथ पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट जुलाई 2016 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्तुत कर दी गई। सुश्री धारा ने बताया, कि इस परियोजना में हरदा, होशंगाबाद एवं बैतूल जिले का 2371.14 हेक्टेयर का घना जंगल डूबोया जा रहा है । कानून के अनुसार इतने बड़े पैमाने पर वन भूमि को खत्म करने के लिए वन विभाग की स्वीकृति लेना अनिवार्य है ।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी मार्च 2017 में स्पष्ट कर दिया था, कि इस परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी तभी मिलेगी, जब एनवीडीए को वन विभाग की स्व्ीकृति प्राप्त हो जाएगी । कानून के अनुसार फ ारेस्ट क्लियरेंस की प्रक्रिया शुरू किये बिना पर्यावरणीय मंजूरी के लिए आवेदन करना गैर कानूनी है ।
उन्होंने कहा,सूचना का अधिकार कानून के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार इस परियोजना को न तो पर्यावरणीय मंजूरी मिली है और न ही फ ॉरेस्ट क्लियरेंस मिला है । ऐसे में जब वन एवं पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिली हो, तब नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा बांध के निर्माण के लिए टेन्डर जारी करना कानून का उल्लंघन है ।
पूर्व मुख्यमंत्री ने जल्दबाजी में राशि दोगुनी की
सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्यनिधि ने बताया, कि वर्ष 2012 में जिस परियोजना की लागत लगभग 14 सौ करोड़ बताई गई थी, उसी परियोजना में बिना कोई काम शुरू किये ही पिछली शिवराज सिंह सरकार ने बिना सोचे समझे यह लागत दोगुना करके 2017 में लगभग 28 सौ करोड़ की प्रशासनिक स्वीकृति जल्द बाज़ी में दे दी ।
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