Monday, June 19, 2023

महामारी में 18 माह से नहीं मिला भोपाल गैस पीड़ित विधवाओं को सामाजिक सुरक्षा पेंशन

 


5 July 2021

महामारी में 18 माह से नहीं मिला भोपाल गैस पीड़ित विधवाओं को सामाजिक सुरक्षा पेंशन

 
रूबी सरकार


कोरोना संक्रमण जैसी वैश्विक आपदा के समय केंद्र व राज्य सरकार गरीब, किसान, श्रमिक वर्गों के लिए आर्थिक पैकेज की अनेक घोषणाएं कर रही है। परंतु इस महामारी में राज्य सरकार संवेदनहीनता का परिचय देते हुए   गैस त्रासदी में दिवंगत हुए व्यक्तियों की निराश्रित विधवाओं को मिलने वाली प्रतिमाह एक हजार रुपये की पेंशन पिछले 18 माह से नहीं दिया है। जिससे ये विधवाएं इस संकट काल में बहुत मुश्किल हालातों से गुजर रही हैं। वह एक-एक पैसे के लिए मोहताज हैं।उन्हें दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पा रही है।  जबकि 80 के पड़ाव में बुढ़ापा और अकेलेपन से जूझ रहीं लगभग पांच हजार विधवाओं का गुजारा इसी पेंशन के भरोसे  है। महामारी से पहले तो ये विधवाएं सड़क पर उतरकर आंदोलन करती थीं, इससे सरकार पर दबाव बनता था। लेकिन कोरोना संक्रमण में सड़क पर आंदोलन बंद है।
दरअसल सामाजिक पुनर्वास योजना के अंतर्गत राज्य शासन के भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग की ओर से इन विधवा महिलाओं को एक हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाती थी। यह पेंशन राशि केंद्र शासन द्वारा  जून 2010 में गठित मंत्री समूह की अनुशंसाओं के आधार पर  स्वीकृत की गई थी। इसके लिए केंद्र सरकार ने 30 करोड़ की राशि  भोपाल कलेक्टर को उपलब्ध कराई  थी।  जिसमें 75 फीसदी अंशदान भारत सरकार का एवं 25 फीसदी राज्य सरकार का अंशदान है। यह पेंशन योजना मई 2011 से प्रारंभ की गई थी । इससे पहले इन विधवाओं  को भरण-पोषण के लिए 750 रुपये प्रतिमाह शासन की ओर से दिया जाता था, लेकिन न्यायालय की तरफ से जब गैस त्रासदी प्रभावितों को मुआवजा देने का आदेश आया और सरकार को इन्हें मुआवजा देना पड़ा, तब सरकार ने इनको  प्रतिमाह दिये जाने वाले 750 रुपये की राशि एकमुश्त काट ली।  जब सरकार के इस फैसले का विरोध शुरू हुआ और प्रभावितों ने पुनः न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, तो  सरकार ने विधवाओं को प्रतिमाह एक हजार रुपये पेंशन देने की घोषणा कर दी। मई 2011 से यह राशि विधवाओं के बैंक खाते में लगी। अचानक बिना कोई कारण बताये सरकार ने वर्ष 2016 के अप्रैल माह से नवम्बर 2017 तक इन पीड़ित विधवा महिलाओं का  गुजारा पेंशन बंद कर दिया । काफी दबाव के बाद सरकार ने इसे दिसम्बर 2017 माह से पुनः प्रारंभ किया, जो कोरोना महामारी से पहले तक जारी था।
कोरोना संक्रमण जैसी वैश्विक आपदा के समय इनका सामाजिक सुरक्षा पेंशन पुनः बंद कर दिया गया, जो जून 2021 तक बंद है। इससे  इन गरीब वृद्ध महिलाओं  के सामने दो वक्त की रोटी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है।  सामाजिक कार्यकर्ता बालकृष्ण नामदेव बताते हैं, कि कोरोना महामारी के संकट के समय केंद्र व राज्य सरकार अन्य कमजोर वर्गों की तरह उनकी मदद करने के बजाय उनकी पेंशन ही रोक दी। अब इस उम्र मंे ये कहाँ जाये! सरकार इन महिलाओं के साथ इस तरह सौतेला व्यवहार क्यों कर रही है! जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं गैस त्रासदी की बरसी पर दिसम्बर 2020 में  त्रासदी का दंश झेल रहीं पांच हजार विधवाओं को आजीवन पेंशन देने की घोषणा को दोहराया था। यहां तक कि 25 अगस्त, 2020 को  रक्षाबंधन के दिन इन विधवा महिलाओं के आवास पर जाकर उनसे अपनी कलाई में राखी बंधवाई और बहनों को वचन दिया , कि वे गैस पीड़ित विधवा कॉलोनी का नाम बदलकर जीवन ज्योति कॉलोनी करेंगे तथा यहां की सुविधाओं के लिए बजट में  5 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि स्वीकृत कर कॉलोनी में बिजली, पानी और अन्य मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त करेंगे, जिससे  यहां की विधवाएं सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें। परंतु  सुविधाएं तो दूर, उल्टे इनका मासिक पेंशन रोककर इन्हें नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर दिया। अब ये गैस पीड़ित लाचार महिलाएं आंसू बहा रही हैं।
हालांकि पहला लॉकडाउन खत्म होते ही ये विधवाएं सड़क पर उतरी थी । फरवरी 2021 में विधानसभा में बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनका दिया हुआ वचन याद दिलाने के लिए खाली थाली और कटोरा लेकर मंत्रालय के गलियारों में भीख मांगी थी। इसका असर भी हुआ और आम बजट में वित्त मंत्री ने गैस पीड़ित विधवाओं के पेंषन लिए अलग से राशि का एलान किया। लेकिन आधा जून बीत गया ,  पीड़ितों के खाते में फूटी कौड़ी भी नहीं आयी। अब तो गैस पीड़ित यही कह रहे हैं, कि मुख्यमंत्री सिर्फ घोषणाएं करते है। काम तो अदालत के डंडे पर होता है।
 90 वर्षीय चिरौंजी बाई बताती हैं, कि बीमार हूं, शरीर साथ नहीं देता, फिर भी अपनी मांगों को लेकर तीन दशक से लगातार धरना-प्रदर्शन कर रही हूं। उम्र के इस पड़ाव में वह अपने नातियों के साथ रहती हैं। बेटी पहले ही बीमारी से गुजर चुकी हैं। वह कहती है, कि दो नाती हैं, जो अधिकतर बीमार ही रहते हैं । उनके पास कोई काम-धंधा नहीं हैं। बीमार आदमी को काम कौन देता है।   पेंशन का ही सहारा था। वह भी दो साल से बंद है। हमारे ऊपर तो मुसीबतों का पहाड़ टूटा है, कैसे गुजारा करें। और तो और सरकार ने बीपीएल राशन कार्ड भी बंद कर रखा है। उन्होंने मुख्यमंत्री से गैस पीड़ित विधवाओं  व गरीब परिवारों के बंद किये गये बीपीएल राशन कार्ड और पेंशन शुरू कर राशन दिलाने का आग्रह किया है।
70 वर्षीय पुनिया बाई अपने दो अस्वस्थ्य बेटों शंकर और पुरुषोत्तम कुशवाहा की परवरिश इसी पेंशन से करती थी। पुनिया ने कहा, बेटों की तबीयत जब ठीक होती है, तो वह इलेक्ट्रिशियन का काम कर लेते हैं। कोविड-19 में यह काम भी बंद है। 85 वर्षीय कमला और 75 वर्षीय  प्रेमबाई , 71 वर्षीय आयशा बी,  जैसी पांच हजार विधवा महिलाओं की लगभग यही कहानी है। सभी के परिवार के सदस्य अस्वस्थ हैं। बुढ़ापे में मां, दादी , नानी बनकर वह बीमार नाती-पोते की देखभाल कर रही है। कमला ने कहा, जीवन बहुत मुश्किल हो गया है। गरीबों की सुनने वाला कोई नहीं है।  
सरकार की संवेदनहीनता का इसके अलावा भी उदाहरण है। पिछले साल लॉकडाउन के समय तीन माह तक प्रदेश के 25 लाख से अधिक वृद्धों ,विधवाओं, , परित्यक्ता महिलाओं एवं विकलांगों को मात्र 600 रुपये सामाजिक सुरक्षा  पेंशन नहीं मिला था।  सामाजिक न्याय विभाग के अनुसार वित्त विभाग द्वारा सामाजिक न्याय विभाग को हितग्राहियों की संख्या के अनुपात में राशि  उपलब्ध नहीं कराई गई थी। जिस  कारण से बैंकों से पेंशन का भुगतान नहीं किया जा सका था। जबकि उच्चतम न्यायालय का केंद्र व राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश है कि  प्रत्येक माह  की 5 तारीख के पूर्व वृद्धावस्था, विधवा पेंशन व विकलांग पेंशन की राशि बैंक खातों में हर हालत में जमा करा दी जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय द्वारा न्यायमूर्ति बीके अग्रवाल की अध्यक्षता में बनाई गई गैस पीड़ितों की निगरानी समिति के सदस्य पूर्णेन्दु शुक्ला कहते हैं,यह कैसी सरकार है! जो इस महामारी में निराश्रित गैस पीड़ितों का सामाजिक सुरक्षा पेंशन रोक देती है।  राज्य सरकार सुशासन का डंका पीटती है, किंतु बेहद अफसोस की बात है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनकी की गई घोषणा याद नहीं रहती। उन्हें याद दिलाने  के लिए निराश्रित पेंशन  भोगियों को मंत्रालय के गलियारों में भीख मांगनी पड़ती है। उन्होंने कहा, कि कोविड-19  से शहर में हुई तीन चौथाई मौतें गैस पीड़ितों की है, जबकि शहर में उनकी आबादी एक चौथाई भी नहीं है, फिर भी उनके शरीर को पहुंची क्षति को अस्थाई बताया जाता है, यह उच्चतम न्यायालय को गुमराह करने वाली बात है।
भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एण्ड एक्शन की प्रमुख रचना ढींगरा कहती हैं, कि गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य में बेहतरी लाने के लिए बने योग केंद्रों में शादियां हो रही हैं। हजारों टन जहरीला कचरा अभी भी फैक्ट्री के अंदर और आस-पास गड़ा है, जिसकी वजह से एक लाख से अधिक लोगों का भूजल प्रदूषित है।

 गौरतलब है, कि भोपाल गैस त्रासदी के 37 वर्ष बाद भी  मुआवजा, इलाज, पेंशन और दोषियों को दण्ड दिये जाने को लेकर दर्जनों जनहित याचिकाएं अलग-अलग अदालतों में विचाराधीन है। शासन की ओर से पीड़ितों को अभी भी न्याय नहीं मिल पा रहा है।  जबकि गैस त्रासदी प्रभावितों में से लगभग 36 हजार से अधिक पीड़ित की मौत हो चुकी है और एक हजार से अधिक गंभीर बीमारियों अर्थात् फेफड़ों, किडनी , लीवर आदि बीमारियों से ग्रसित हैं। लगभग तीन लाख प्रभावित निरंतर बीमार बने हुए हैं, इनमें  गैस त्रासदी के पश्चात पैदा हुए बच्चे भी शामिल हैं। दिसम्बर 1984 के दो और तीन की रात को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की कीटनाशक कारखाने के  टैंक से रिसी 40 टन मिथाईल आयसोसायनेट गैस से यह भयावह हादसा हुआ था। लोगों के जीवन पर इसका असर किसी न किसी रूप में आज भी देखा जाता है। 

Down to earth - 14 June  2021
https://www.downtoearth.org.in/hindistory/pollution/industrial-pollution/bhopal-gas-victim-widows-did-not-get-social-security-pension-for-18-months-in-pandemic-77445

                                                                             20 June 2021 Amrit Sandesh raipur


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