Jul 15, 2019
आकाशकोट: आश्वासनों से थक चुके आदिवासियों ने खुद बदली तस्वीर
रूबी सरकार
लोग पानी के लिए आकाश की ओर देखते हैं, लेकिन आकाशकोट के लोग धरती और धरती पर शासन करने वाले सत्ताधारियों की ओर देखते हैं। धरती तो फिर भी जैसे-तैसे उनका गुजर चलाती है, लेकिन राजनेता हर चुनाव के पहले उन्हें सिर्फ आश्वासन दे जाते हैं, उनकी इस मूलभूत समस्या के समाधान के लिए कुछ भी नहीं करते। ऐसी स्थिति में लोगों के सामने श्रमदान और समाजसेवी संस्थाओं की मदद से पुरानी जल संरचना ओं को सुधारने-संवारने गहरा करने जैसे विकल्प ही बचते हैं। जिस पर उन्होंने बीते कुछ वर्षों में अभूतपूर्व और उल्लेखनीय कार्य किये हैं।
आकाशकोट पूर्वी मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है। यहां पहाड़ के ऊपर बसे 25 गांवों का क्षेत्र है, जो साल-दर-साल गहराते पेयजल संकट से त्रस्त है और बीते कुछ सालों से तो आकाशकोट के रहवासी सिर्फ और सिर्फ पीने के पानी को लेकर ही संघर्षरत हैं।
आकाशकोट के ग्राम बिरहुलिया के वरिष्ठ नागरिक फूलसिंह बताते हैं, कि यह क्षेत्र पूर्व में विधानसभा नौरोज़ाबाद के अंतर्गत आता था। परिसीमन के बाद इसका नाम बांधवगढ़ विधानसभा हो गया, जिसका सबसे लम्बे समय तक प्रतिनिधित्व ज्ञान सिंह ने किया। वे कई बार विधायक, सांसद व मंत्री रहे। हमारे रिश्तेदार हैं, कई बार आकाशकोट आये हमने हर तरह से उनसे पानी के लिए आरजू -मिन्नत की, लेकिन वे कुछ नहीं करा पाये। वर्तमान में मानपुर से विधायक और पूर्व मंत्री मीना सिंह, पूर्व विधायक अजय सिंह सहित जिले के हर पार्टी के हर बड़े नेता से आकाशकोट के लोग मिले हैं, उनसे बात की है, चिट्ठियां लिखी है। सड़क पर उतरें हैं, लड़े है, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। विधानसभा चुनाव से पूर्व मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके कई मंत्री यहां आकर घर-घर पानी पहुंचाने का वायदा करके गए। चुनाव के बाद नई सरकार के आदिम जाति कल्याण मंत्री ओंकार सिंह मरकाम ने भी घोषणा की, किन्तु किसी भी राजनीतिक घोषणा का क्रियान्वयन नहीं किया गया । आखिरकार श्रमदान से ही कुंओं और जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार हुआ।
इन्हीं 25 गांवों में से सबसे आखिरी गांव करौंदा , जिसकी आबादी 684 है, पानी का मुख्य स्त्रोत 3 कुंएं व 3 हैण्डपम्प हैं, जिससे पूरा समुदाय पीने, नहाने व मवेशियों के उपयोग में लाते हैँ। गांव में प्रत्येक परिवार के पास औसतन 2 एकड़ ज़मीन हैं, लेकिन सिंचाई के साधन कुछ भी नहीं, इसलिए रोजगार के लिए पलायन को मजबूर युवा गांव से बाहर ही रहते हैं और जो गांव में रहते हैं, उन्हें कुंए के पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है, लेकिन जब उसकी दीवार धसक गई, तो सारे पत्थर कुंए के अन्दर गिर गए। जिसके चलते कुंए का पानी गन्दा हो गया । इसके साथ ही कुंआ धसकने का भय लोगों के भीतर ऐसे समा गया, कि उसके पानी का उपयोग ही लोगों ने बंद कर दिया।
गांव की निर्मला सिंह ने बताया, कि कुंए की मरम्मत के लिए कई बार पंचायत में कहा गया, लेकिन पंचायत ने हमेशा पैसा न होने का बहाना बनाकर हाथ खड़े कर दिये। अब गांव वालों को पानी के लिए एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है । उत्तरा सिंह ने बताया, कि पानी के पीछे हमारा दो-तीन घण्टे बर्बाद होते हैं और थकान भी बहुत हो जाती है। राधा बताती हैं, कि पानी ढोने के दौरान घर पर छोटा बच्चा अकेला रहता है।
सब जगह फरियाद करने के बाद जब निराशा हाथ लगी, तो समुदाय ने श्रमदान से कुंआ मरम्मत व सफ ाई करना तय किया और कुंए का निर्माण शुरू हुआ । समुदाय ने कुंए के आस-पास के झाडिय़ों के साथ-साथ कुंए के भीतर की सफ ाई की। इसमें 10 परिवार के लोगों ने 4 दिन काम कर कुं ए की गहरीकरण किया, इसकी मरम्मत क र चारों तरफ गिट्टी बिछाई गई, चबूतरे का निर्माण व प्लास्टर किया गया । प्लास्टर के काम में 12 परिवारों ने 5 दिन तक काम किया । इस काम में निजी स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा सहयोग के रूप में 20 बोरी सीमेंट, 2 ट्रॉली पत्थर, 2 ट्राली रेत और 1 ट्रॉली ईंट दिये गये । इस तरह कुंआ निर्माण का काम पूरा हुआ ।
करौंदा की तरह गांव जंगेला में भी यही प्रक्रिया दोहराई गई। इस गांव की आबादी 556 हैं। यहां 3 टोला क्रमश: दादरा, महुआर और बंधवा टोला हैं। शासन की पहल से गांव में 6 कुंएं, 3 हैडपम्प है एवं 2 छोटे- छोटे तालाब बने हुए है। गांव में एक नाला भी है , जिसमें गर्मियों के दिनों में पानी के स्रोत बंद हो जाते है। जिसके चलते गांव वालों को झिरियों और नाले से गंदा पानी पीकर गुजारा करना पड़ता था। यह गांव बच्चों में कुपोषण के लिए कुख्यात है।
इस बीच समुदाय बैठक कर पानी का संरक्षण करने का संकल्प लिया और झिरिया को कुंए में बदलने के लिए कामों का आपस में बंटवारा किया। इसमें 40 परिवारों ने अपना पूरा समय दिया और देखते ही देखते झिरिया एक कुंआ का रूप ले लिया। युवा समूह के साथी शंभू सिंह बताते हैं, संस्था के सहयोग से यह काम पूरा हुआ। और समय की बचत से बच्चों की देखभाल ठीक से हो जाती है। अब बच्चे स्कूल भी जाने लगे हैं। श्री सिंह ने बताया, यह सारे कार्य जेनिथ यूथ फाउण्डेोशन और दस्तक परियोजना के तहत पूरा हुआ है। जेनिथ यूथ फाउण्डेशन के वीरेन्द्र सिंह ने बताया, कि इस काम में कलेक्टर स्वीरोचिष सोमवंशी ने रुचि ली और प्राथमिकता देकर समुदाय के साथ-साथ शहर के लोगों से भी आर्थिक मदद ली गई। काम बड़ा था और सिर्फ श्रमदान से पूरा करने में मुश्किल आ रही थी, इसलिए कलेक्टर के साथ-साथ खनन विभाग ने भी अपनी मशीन उतार दी । सुखद आश्चर्य था, कि महज 3 दिन की मेहनत से ही तालाब में पानी आ गया । इन सभी सहभागियों को कलेक्टर ने प्रमाण-पत्र प्रदान कर सम्मानित भी किया ।
No comments:
Post a Comment