22 JANUARY 2019
खुद समाज से तिरस्कृत होने के बावजूद अनाथ बेटियों को अपनाया
्ररूबी सरकार
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किन्नरों को 'थर्ड जेण्डरÓ की मान्यता दिये जाने के बावज़ूद समाज उनकी उपेक्षा और तिरस्कार करता है। लेकिन इसके विपरीत किन्नर समुदाय, समाज के प्रति कृतज्ञता भाव रखता है । वह सभ्य समाज द्वारा बदनामी के डर से छोड़ दी गई या सड़क किनारे फेंक दी गई बेटियों को भी अपना लेता है।
ऐसी ही एक किन्नर गुरू सुरैया हैं, जिन्होंने 4 बेसहारा बच्चियों को गोद लेकर न केवल उसकी भलीभांति परवरिश की, बल्कि उनमें से दो की धूम-धाम से शादी भी करवाई।
सुरैया भोपाल स्थित मंगलवारा किन्नर समुदाय की गुरू हैं। उनका सौ लोगों का बड़ा परिवार है, जिनका पूरा खर्चा दान से चलता है। बावजूद इसके उन्होंने 4 अनाथ बच्चियों को गोद लिया। जिनमें से दो बच्चियों की शादी करा चुकी हैं और बच्चियों के भी अपने परिवार बन गये हैं। बा$की दोनों बच्चियां अभी छोटी हैं। एक नर्सरी में तथा दूसरी 6वीं में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई कर रही हैं। सुरैया बताती हैं, पूरी कानूनी कार्रवाई के बाद उन्होंने बच्चियों को गोद लिया है। एक वाकया सुनाते हुए उन्होंने कहा, कि एक बार किन्नर सम्मेलन में भाग लेने वह दिल्ली गई थी, लौटते वक्त ट्रेन में एक पुलिस वाले ने गोद में बच्ची देखकर उसे पकड़ लिया और पूछा- किसका बच्चा चुराकर भाग रही हो। ट्रेन के सारे यात्री इकट्ठा हो गये थे। अफरा-तफरी का माहौल बन गया था। काफी बहस के बाद जब उन्होंने पुलिस को गोद लेने के सारे कागज़ात दिखाये, तब जाकर उन्हें छोड़ा।
सुरैया कहती हैं, कि बिना सरकारी मदद के अपने दान में मिले पैसे से बच्चियां जितना पढऩा चाहे, उन्हें पढ़ायेंगी। सुरैया एक बेटी को डॉक्टर और दूसरी को न्यायाधीश बनाना चाहती हैं। बेटी अल्फिया और आलिया ने भी मां की बात पर सहमति व्यक्त करती हैं। हंसते हुए सुरैया कहती हैं, कि हमारे समाज में खुद को आकर्षक दिखाने की होड़ में कपड़े और ज़ेवरों के लिए बहुत पैसे खर्च करने पड़ते है। फिर भी समाज से मिले हुए दान का कुछ हिस्सा हमलोग कमजोर और उपेक्षित वर्ग के लिए भी खर्च करते हैं। उन्होंने कहा, यूं तो दान देकर कहा नहीं जाता,लेकिन आपको जानना है, इसलिए बता रही हूं। मैंने दो बेटियों की शादी में अन्य सामग्रियों के साथ दोनों को दो मकान भी खरीद कर दिये हैं, जिससे वे अपने छत के नीचे सुख से रह सके। सुरैया कभी-कभार अनाथ आश्रमों ,अस्पताल, स्कूलों में जाकर जरूरतमंदों की मदद करती हैं। जबकि आय पहले से बहुत घटी है। पहले लोग खुशी-खुशी दान देते थे, अब ऐसा नहीं है। महंगाई की मार हम पर भी पड़ी है। लोग हमें देखकर दरवाजा बंद कर देते हैं।
मंगलवारा किन्नर समाज की बसाहट पर वह बताती हैं, कि हमें गोण्ड राजाओं ने यहां बसाया था। कई पीढिय़ों से हम यहां रह रहे हैं। 50 वर्षीय सुरैया कहती हैं, उनका पूरा परिवार इसी शहर में रहता हैं, लेकिन किन्नर समुदाय में शामिल होने के बाद वे अपने परिवार से कभी नहीं मिलीं।
दया और ममता से भरी हुई सुरैया अपने समाज को पढ़ा-लिखा और आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं। उन्होंने कहा, किसी की इच्छा है, तो वह खूब पढ़े, आत्मनिर्भर बनें, लेकिन ऊॅचे पद पर पहुंचकर सिर्फ अपने परिवार की नहीं, बल्कि पूरे किन्नर समाज का भला करे, उन्हें आत्मनिर्भर बनाये । (सुरैया नायक से हुई बाातचीत के आधार पर)
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