अदालत के कहने के बावजूद आंगनबाडि़यों में पोषण आहार पर नई नीति नहीं
रूबी सरकारएक दषक से अधिक समय तक प्रदेष की आंगनबाडि़यों में पोषण आहार वितरण में विकेन्द्रीकरण नीति अपनाने के उच्च न्यायालय के आदेष के बाद इस व्यवस्था को स्थानीय स्तर पर स्व सहायता समूहों को सौंपे जाने के प्रयास नहीं हुए। न्यायालय की मंषा के अनुरूप इससे बच्चों को बेहतर और उनकी पसंद का पोषण आहार मिल सकेगा । सर्वोच्च न्यायालय ने 7 अक्टूबर 2004 को निर्देष दिये थे, कि एकीकृत बाल विकास सेवा में ठेका व्यवस्था नहीं होगी । इसकी राषि का उपयोग ग्राम समितियों, स्वयं सहायता समूहों और महिला मण्डलों के जरिये क्रियान्वयन के लिए किया जाएगा । इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को यहष्षपथ पत्र दाखिल करना होगा कि आंगनबाड़ी पोषण आहार को आपूर्ति में ठेकेदारों को ष्षामिल न करने के निर्देष पर उन्होंने क्या कदम उठाये । मध्यप्रदेष उच्च न्यायालय ने भी इस मामले का संज्ञान लिया था। तभी से प्रदेष सरकार पोषण आहार आपूर्ति के लिए नई नीति बनाने की दिषा में काम कर रही है । लेकिन न्यायालय को पात्रता षर्तो से ऐसा प्रावधान भी है कि
इस काम में स्व सहायता समूहों की जगह कंपनियों की घुसपेैठ न हो । लेकिन तत्कालीन सरकार ने नई नीति तो नहीं बनायी,, वरन यह प्रावधान किया, कि यदि पात्र स्व सहायता समूह नहीं मिलता है तो बतौर वैकल्पिक व्यवस्था इसमें कंपनियों के लिए राह निकल आये। पिछले लगभग 10 सालों तक यही खेल चलता रहा । नई सरकार के सामने भी यह चुनौती है। पिछले एक साल से पोषण आहार को लेकर वर्तमान सरकार नई नीति बनाने की दिषा में सिर्फ आदेष ही निकाल रही है । दो माह पूर्व ग्रामीण पंचायत विकास विभाग के प्रमुख सचिव गौरी सिंह ने जब ग्रामीण पंचायत विभाग द्वारा बच्चों को पोषण आहार उपलब्ध कराने में असहमति व्यक्त कर दी थी । अब महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव अनुपम राजन कहते हैं, कि आंगनबाडि़यों में पोषण आहार प्रदाय करने के लिए अब कोई अड़चन नहीं है। मध्य प्रदेष के विभिन्न जिलों के 7 प्लान्ट क्रमषः देवास, धार,, होषंगाबाद, मण्डला, सागर , रीवा और षिवपुरी तैयार हैं। इन्ही प्लान्टों से स्व सहायता समूहों के जरिये आंगनबाडि़यों में पोषण आहार वितरित किया जायेगा ।
सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन बताते हैं, कि यह तो केंद्रीयकृत व्यवस्था है, जो उच्च न्यायालय के आदेष के अनुरूप नहीं है । सरकार को उच्च न्यायालय ने यह कहा था, कि पोषण आहार पर नीति बनाइये । अगर नीति नहीं बनायेंगे, फिर कोई भी सरकार कभी भी एक पत्र जारी कर इसे बदल सकता है । यह सिर्फ सरकारी आदेषों पर चलता रहेगा और कभी भी कोई कंपनी सरकार या अधिकारी को प्रभावित कर सकता है। ऐसा पहले हो चुका है । जब 2008-09 में एमपी एग्रो को यह काम दिया गया था, तब 70 फीसदी शेयर होल्डर उसके पास था और मात्र 30 फीसदी हिस्सा ही निजी कंपनियों के पास था । धीरे-धीरे एमपी एग्रो के पास मात्र 30 फीसदी हिस्सा रह गया और निजी कंपनियां 70 फीसदी के शेयर होल्डर बन गये । यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि पोषण आहार को लेकर कोई नीति नहीं बनायी गयी थी । श्री जैन ने कहा, कि यह सरकारी आदेष निजी कंपनियों से सरकार द्वारा बनायी गई कंपनियों के लिए है। जबकि उच्च न्यायालय ने विकेन्द्रीकरण के लिए कहा है । इसमें एक बात और है, कि बच्चों के लिए पोषण आहार, ईंधन, फोटिफिकेषन, पेकेजिंग पर कितना खर्च होगा और प्रबंधन, परिवहन और वेतन आदि पर कितना । यह स्पष्ट नहीं है । अगर पोषण आहार के बजट से सब खर्च होगा , तो बच्चों के हिस्से में कितना आयेगा। क्योंकि जब एमपी एग्रो के पास यह काम था, उस वक्त 60 फीसदी कर्मचारियों का वेतन महिला , बाल विकास विभाग से आता था ।
उन्होंने कहा, दरअसल पोषण आहार स्थानीय समुदाय द्वारा तैयार किया जाता, तो बेहतर होता और इसे ही विकेंन्द्रीकरण माना जाता । श्री जैन ने कहा, कि ऐसी व्यवस्था बने, जिससे जिले, विकासखण्ड और गांव स्तर पर वास्तविक महिला समूह को काम मिले और समूह के चुनाव की प्रक्रिया पारदर्षी हो तथा हर समूह की विष्वसनीयता समुदाय के स्तर पर भी जांची जाये ।
गौरतलब है, कि प्रदेष में आंगनबाडि़यों के जरिये 6 साल तक के बच्चों , गर्भवती और धात्री महिलाओं को पोषण आहार दिया जाता है । यह काम अब तक तीन बड़ी कंपनियां करती आई । इसकी गुणवत्ता पर भी सवाल उठते रहे । सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने आदेष में गर्म पका हुआ भोजन वितरित करने को कहा है । सरकार ने इस पर यह निर्णय लिया था कि इस व्यवस्था का विकेन्द्रीकरण किया जाएगा। पोषण आहार में विकेद्रीकरण इसलिए जरूरी है,क्योंकि स्थानीय स्तर पर स्वयं सहायता समूहों के हाथ में काम होने पर समुदाय और महिलाएं स्थानीय स्तर पर अपने बच्चों के लिए बनाये जा रहे भोजन की गुणवत्ता और व्यवस्था की निगरानी कर पायेगी ।
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