May 22, 2020
हररोज विचलित करने वाली तस्वीरों से साबका
रूबी सरकारकोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए देशभर के लोगों को लगभग 8-10 सप्ताह से महामारी से बचाने के लिए घरों में बैठाये गए । इस बीच श्रमजीवी भारतीयों का भयानक सच दुनिया के सामने उजागर हुआ है। रोज कमाने-खाने वाले लगभग 8 करोड़ स्त्री-पुरुष बेघर होने को मजबूर हुए। ये मजदूर शहरों से अपने गांव की ओर भागते दिखे। उनकी दुनिया में ंअंधेरा छा गया है। उनका मेहनताना, उनके कार्य , उनका बोनस, पेंशन सब कुछ जैसे खत्म हो गया। लगभग दो माह बीतने बाद भी मजदूरों की घर वापसी का सिलसिला जारी है। कुछ मजदूरों को तो सरकार वापस ला रही है, लेकिन बहुत सारे मजदूर ऐसे भी हैं, जो अपनी जान जोखिम में डालकर पैदल, साइकिलों, मोटर-साइकिलों, ऑटो, लोडिंग-आटो, छोटे या बड़े ट््रकों से बेबस -बेहाल घर पहुंचने को बेताब हैं। इनकी यह हालत इसलिए भी है, क्योंकि लॉकडाउन शुरू के बाद ज्यादातर नियोक्ताओं ने उनकी सुध नहीं ली। बचे-खुचे पैसों, राषन, सामाजिक-संगठनों के द्वारा साझा किये जा रहे भोजन, राषन के भरोसे अब तक जैसे-तैसे काटते रहे। जब वह भी संभव न रह गया तो ‘मरता, क्या न करता‘ की तर्ज पर जैसे भी हुआ निकल पड़े । इनके जेबों में पैसे तक नहीं। जहां जो मिल जाता है, खा लेते हैं।
इनमें वे भी शामिल हैं, जो बुंदेलखण्ड से पलायन कर महानगरों में मजदूरी को गये थे। आंकड़ों के मुताबिक बुंदेलखंड के जिलों से लगभग 70 फीसदी ग्रामीण परिवारों कां कम से कम एक सदस्य पलायन पर जाता है। यही मजदूर लॉकडाउन के चलते बुन्देलखण्ड में वापस अपने घर को लौट रहे है । आंकड़े बताते है, कि बुन्देलखण्ड के जिलों में लॉकडाउन के दौरान लगभग 7 लाख से अधिक मजदूर अपने घर वापस आये है, इसमें सबसे ज्यादा छतरपुर में 80 हजार, टीकमगढ़ में 75 हजार इसके अलावा झांसी में 70 हजार, जालौन में 45 हजार, ललितपुर में 40 हजार, हमीरपुर में 50 हजार, महोबा मेेें 45 हजार मजदूर शामिल हैं।
बुंदेलखण्ड में पहुंचने के लिए यातायात की दृष्टि से झांसी प्रमुख केन्द्र है, जहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर थके चेहरे, जख्मी पांव , भूखे पेट के साथ मजदूर पहुंच रहे हैं। इतने पेट, इतनी भूख मिटा पाना सरकार के लिए नामुमकिन है, इसलिए नीति आयोग ने एक पत्र जारी कर सभी स्वयं सेवी संगठनों से इनकी मदद करने को कहा और सरकार गैर सरकारी संगठनों को साथ लेकर काम कर रही है। कई संगठनों ने तो असमर्थता व्यक्त कर दी। नाम न छापने की शर्त पर एक संगठन के मुखिया ने बताया, कि नीति आयोग ने सीधे-सीधे एफसीआई के गोदामों से सूखा राषन खरीदकर बांटनेे को कह दिया। लेकिन स्वयं सेवी संगठनों के पास इतने फण्ड नहीं है, कि राषन खरीदकर बांट सके। फिर भी कई ऐसे ही हैं, जो आगे बढ़चढ़ मदद के लिए आगे आये । ऐसी ही संस्था है, ‘परमार्थ समाज सेवी संस्थान‘ जिसने राह चलते मजदूरों एवं अन्य कोरोना वॉरियरों की मदद करने का बीड़ा उठाया। लगभग दो महीने से जिला प्रशासन के साथ समन्वय बनाकर महानगरों से बुंदेलखण्ड अपने घरों को झांसी होकर लौट रहे मजदूरों को तत्कालिक सहायता उपलब्ध करा रही है। उन्हें खाना, फल, सूखा राषन, दबाई, सेनेटाइजर और पेयजल के साथ-साथ हौले-हौले रेंगते हुए जिन मजदूरों के पैरों में छाले पड़ चुके है, उन्हें चप्पलंे भी खरीद कर उपलब्ध करा रही है। इतना ही नहीं, सरकार के सहयोग से वाहनों का प्रबन्ध कर उन्हें गन्तव्य तक पहंुचाने का प्रयास भी कर रही है। परमार्थ के साथ सभी को कोविड-19 से बचे रहने के लिए लगातार हाथ धोने, आपस में भौतिक -दूरी बनाए रखने और मुंह, नाक ढांके रखने के बारे में भी बता रहे है। संस्थान ने अपना दायरा बढ़ाते हुए उत्तर प्रदेश के लखनऊ, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, जालौन, एटा एवं मध्य प्रदेश के टीकमगढ, छतरपुर, छिंदवाडा तक के ग्रामीणों को कोरोना महामारी के बारे मेें जानकारी दे रही है तथा इन जिलों के प्रत्येक गरीब परिवारों को 15 दिन का रषद सामग्री भी उपलब्ध करा रही है । साथ ही झांसी में सामुदायिक किचन का संचालन कर प्रतिदिन राह चलते लगभग 400 लोगों को खाने का पैकेट बांट रही है। संस्थान के सचिव संजय सिंह बताते हैं, कि वैश्विक संक्रमण काल में उनकी संस्था ने लगभग दो माह में 49 हजार लोगों की मदद की है। इसमेें 7 हजार वे परिवार भी शामिल हैं, जिन्हें 15 दिन का रषद सामग्री उपलब्ध कराया गया है। उन्होंने बताया, कि जिंदगी बचाए रखने की जद्दोजहद किसी अनदेखे विषाणु से संभव मौत के मुकाबले कितनी बड़ी होती है, यह उनके आंखों के सामने से रोज गुजरती है।
इधर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आश्वस्त कर रहे हैं, कि मानक प्रोटोकॉल के तहत सब काम हो रहा है। पैदल चलने वाले मजदूरों पर नजर बनाये रखने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया गया है। पुलिस और एंबुलेंस के साथ-साथ मोबाइल टीम जिलों में घूम रही है और पैदल चल रहे मजदूरों को शेल्टर होम पहुंचाने का काम भी किया जा रहा है.। संक्रमण काल में सभी मिल-जुल कर काम कर रहे हैं। फिर भी आंखों के सामने रोज विचलित कर देने वाली दुर्घटनाएं आ ही जाती है । मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में हैदराबाद से आ रही आम से लदा ट््रक पलटने और उसमें छिपकर आ रहे झांसी और एटा की मजदूरों की मौत हो गई । छतरपुर के पास बक्स्वाहा इलाके में ट्रक पलट गया, पाइप से भरे हुए ट्रक में 30 से ज्यादा मजदूर थे, जिनमें से 6 की मौत हो गई, जबकि 13 को घायलावस्था में बंडा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करवाया गया। ये सभी महाराष्ट्र से उत्तरप्रदेश लौट रहे थे। हादसा छतरपुर के बक्स्वाहा में हुआ, इसलिए मध्यप्रदेष सरकार के प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट ने अधिकारियों को तुरंत प्रभावी कदम उठाने की हिदायत दी। छतरपुर में ही एक अन्य हादसे में 13 मजदूर घायल हो गये। इन हादसों पर मौजूदा सरकार अफसोस के साथ-साथ मुआवजे का एलान भी करती रही। लेकिन उत्तर-प्रदेष और मध्य प्रदेष की सीमा होने के कारण झांसी में मजदूरों का तांता लगा रहा। इन्हें 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक राहत पैकेज से ज्यादा तुरंत रोटी की जरूरत है। हालांकि मध्यप्रदेष सरकार का कहना है, कि राज्य में प्रवासी मजदूरों को आर्थिक सहायता पहुंचाने की योजना शुरू की गई है। इसके लिए जिला कलेक्टरों को दिशा निर्देश भी जारी कर दिया गया है, कि मजदूरों की जानकारी इकट्ठा कर उनके भोजन, दवा आदि के लिए तत्काल उनके खाते में एक हजार रूपये डाला जाये। इसका लाभ उन प्रवासी मजदूरों को भी मिल रहा है,जो मप्र के मूल निवासी होने के साथ योजना के लागू होने की दिनांक तक अन्य राज्यों में प्रवासी मजदूर हों। लेकिन पन्ना जिले के ग्राम पंचायत सिमराखुर्द के रामलाल और कृपाल पटेल बताते हैं, कि दो वर्ष बाद लौटे परिवारों को त्वरित कोई लाभ नहीं मिल रहा है। जिनके पास राषन कार्ड नहीं है उन्हें पीडीएस से भी खाद्यान्न नहीं मिल रहा है। इसके साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों के अभाव में बाहर से लौटने के बाद उनके स्वास्थ्य की जांच नहीं हो पा रही है। इसी जिले के ग्राम पंचायत अतरहाई के सम्मेरा बताते हैं, कि इस जिले में लगभग 40 हजार मजदूर पलायन से लौटे हैं, परंतु उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है। बात सिर्फ पन्ना जिले की नहीं है, बल्कि बुंदेलखण्ड के कई इलाकों मंे वापस घर लौटे मजदूरों की लगभग यही कहानी है।
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