कब पूरा होगा इनके पक्के घर का सपना
रूबी सरकारप्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत प्रारंभ में उन बेघर गरीबों को सरकारी खर्च पर आवास मुहैया कराया जा रहा था, जिनके नाम वर्ष 2011 में हुई आर्थिक-सामाजिक गणना में गरीबों की सूची में थे। वर्ष 2018 में नियमों को शिथिल करते हुए नए निर्देश जारी किये गये थे, जिसमें बेघर परिवारों से ग्राम पंचायतों के माध्यम से प्रस्ताव मंगवाया जाना शुरू हुआ। मकसद यही था, कि कोई बेघर परिवार आवास से वंचित नहीं रहे। लेकिन मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के आष्टा विकास खण्ड में सैकड़ों ऐसे गरीब परिवार हैं, जो आज भी प्रधानमंत्री आवास पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। तमाम कोशिशों के बाद भी इन्हें अब तक प्रधानमंत्री आवास नहीं मिल पाया है, जबकि यह विकासखण्ड राजधाानी से सटे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले के अंतर्गत आता है। यहां सभी परिवारों के पास अंत्योदय कार्ड है। जो यह बताता है, कि सभी परिवार प्रधानमंत्री आवास की पात्रता रखते हैं। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है, कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हितग्राहियों को पक्का मकान मुहैया कराने में सीहोर जिला न केवल मध्यप्रदेश में बल्कि देशभर में पहला स्थान हासिल कर चुका है। बावजूद इसके सैकड़ों अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग परिवार प्रधानमंत्री आवास से वंचित हैं।
मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर वनग्राम निमावरा की कृष्णाबाई बताती है, कि उसके पति का निधन हो गया है और बेटा बाहर मजदूरी करने बाहर जाता है, लिहाजा वह अकेली दिहाड़ी मजदूरी छोड़ आवास के लिए पंचायत का चक्कर काट रही है। उसे हर दिन पंचायत जाकर सिफारिश करनी पड़ती है, उसने कहा, कि इसके लिए उससे रिश्वत की भी मांग की गई थी और उसे मजबूरन रिश्वत देने पड़े, लेकिन आवास अभी तक नहीं मिला। सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा। कृष्णाबाई घास-फूस से बनी बिना-दरवाजे-खिड़की वाली छोटी सी झोपड़ी में रहती है। इसी गांव की ललिताबाई कहती है, सुना है प्रधानमंत्री सबको पक्का मकान दे रहे हैं, परंतु हम झोपड़ी में रह रहे हैं। बारिश के दिनों में झोपड़ी में पानी भर जाता है। हम सब पंचायत सचिव से पूछते हैं, तो वह केवल आश्वासन ही देते हैं। तीन सालों से हमलोग यही कर रहे हैं। इसी गांव का राजन बताता है, कि उसके पिता के नाम 3 साल पहले आवास मिला था, जिसकी पहली किश्त आई थी। उसके बाद एक भी किश्त नहीं आई, लिहाजा आवास अधूरा पड़ा है।
निमावरा ग्राम पंचायत कुरली कला के अन्तर्गत आता है। इस गांव की आबादी लगभग 450 है। गांव में अनुसूचित जाति के 13, अनुसूचित जनजाति के 37 और पिछड़ा वर्ग के 12 परिवार निवास करते हैं। अधिकतर परिवार यहां झोपडि़यों में ही रहते हैं। यहां 65 परिवार हैं, जो प्रधानमंत्री आवास की बांट जोह रहे हैं। इनलोगों का कहना है, कि यहां सरपंच- सचिव की मनमानी हावी है। अति पिछड़ा इस गांव में मूलभूत सुविधाएं नदारत हैं,यहां तक कि आंगनबाड़ी केंद्र न होने से गर्भवती महिलाओं व बच्चों को पोषण आहार तक नहीं मिल पाता है। रोजी-रोटी का कोई जरिया न होने से अधिकतर परिवार पलायन पर राजस्थान के जैसलमेर जाते हैं।
वहीं इसी गांव के पास ग्राम पंचायत बांदरियाहाट के ग्रामीणों को जब प्रधानमंत्री आवास नहीं मिला, तो वे संगठित होकर जिला कलेक्ट्रेट पहुंचकर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा । इसके बाद कार्यवाही करते हुए कलेक्टर ने 26 लोगों के नाम प्रधानमंत्री आवास योजना में जोड़ने के निर्देश दिये। इस प्रचायत में भी अनुसूचित जाति के परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा 75 है, जबकि पिछड़ा वर्ग के 7 एवं 35 परिवार सामान्य जाति के हैं। यहां 65 परिवारों के आजीविका के स्रोत केवल कृषि है। शेष परिवार मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाते हैं।
जसरतबाई बताती है, कि वह झोपड़ी में रहती थी। बरसात में उसे भी तकलीफ होती थी। यहां तक कि मेहमान आने पर उसे घर के बाहर सोना पड़ता था। उसका सपना था, कि उसके पास पक्का घर हो। जब उसे पता चला, कि वह प्रधानमंत्री आवास की हकदार है, तो उसने पहले तो पंचायत में खूब दौड़ भाग की। पंचायत में उससे रिश्वत भी मांगी गई, लेकिन उसने नहीं दी, उल्टे इसकी शिकायत ग्राम स्तरीय महिला मंच से की और उन्हीं के साथ जुड़कर अपनी हक की लड़ाई लड़ने लगी। उसका सपना था कि उसे आवास मिले और वे सम्मान के साथ जी सके। उसे पता चल चुका था कि सूची में उसका नाम जुड़ गया है और प्राथमिकता के आधार पर उसे आवास मिलना तय है। उसने पंचायत जाकर सचिव को चुनौती दे डाली, कि आपको हमारा मकान बनाना पड़ेगा, वरना मैं आपके खिलाफ कार्यवाही करूंगी। जसरतबाई के भीतर यह आत्मविश्वास और साहस संगठन से जुड़ने के बाद आया। वह बेझिझक बोलना सीख गई। अंततः प्राथमिकता के आधार पर उसे आवास मिल गया । आज वह अपने आवास में सम्मान के साथ रह रही है। उसकी बहादुरी देखकर समाज में उसका मान सम्मान भी बढ़ गया।
दरअसल गांव में सरपंच-सचिवों की मनमानी के चलते राजनीतिक और सामाजिक रूप से प्रभावी लोग आवास योजना का जमकर लाभ ले रहे हैं। वहीं असल जरूरत मंदों तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुच पाता। अगर सही ढंग से पड़ताल की जाये , तो कई जिलों में इस तरह स्थिति सामने आयेगी, जहां पात्रता रखने वाले परिवार योजना के लाभ से वंचित है और अपात्र लोगों को पंचायत की मिली भगत से योजना का लाभ मिल रहा है। इसके लिए पात्रता रखने वाले लोगों को जसरतबाई बनना होगा और अपने हक के लिए आगे आना होगा।
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