Tania
Pallavi
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Shradha Joshi
Archana Sahai
किशोरों के लिए कितना सुरक्षित है भोपाल शहर
रूबी सरकार
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने एक साल की देरी के बाद 2017 के आंकड़े जारी किए । जिसके मुताबिक देशभर में संज्ञेय अपराध के 50 लाख केस दर्ज हुए, जो 2016 से 3.6 फीसदी ज्यादा है। अकेले अपहरण के मामले 9 फीसदी बढ़े हैं।
देश में ऐसा संभवत: पहली बार हुआ कि हर साल जारी होने वाले एनसीआरबी के आंकड़े एक साल बाद जारी हुआ है। एनसीआरबी देश की कानून व्यवस्था, सामाजिक दशा और सोच को काफी हद तक तटस्थता के साथ बयान करते रहे हैं। एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) सरकार द्वारा 1986 में गठित एक ऐसी संस्था है, जो देश भर से अपराध के आंकड़े एकत्र कर विश्लेषण के साथ उन्हें करती रही है। इसका गठन राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिश पर किया गया था।
इन आंकड़ों में बच्चें के अपहरण के मामले में मध्यप्रदेश पहले पायदान पर है, जबकि मासूमों से ज्यादती के 3 हज़ार , 82 मामले दर्शाये गये हैं। जबकि
यूनिसेफ पिछले 6 सालों से मध्यप्रदेश सरकार के साथ मिलकर किशोरों एवं युवाओं का सशक्तिकरण: सुरक्षित शहर पहल नामक अभियान चला रहा है और इस मुहीम में कई स्वयं सेवी संस्थाएं भी जुड़ी हुई है, जो बच्चों और किशोरों को अपने साथ जोड़कर काम कर रही है। इन 6 सालों के प्रयास के बाद किशोरों में इस मुद्दे को लेकर कितनी समझ बनीं , यह जानने की कोशिश की, तो सुरक्षित शहर के रास्ते आने वाली चुनौतियों का कुछ हद तक पता चला।
19 वर्षीय मयूर गजभिये का कहना था, कि अक्सर किशोर अपनी पढ़ाई के बजाय प्रेम के चक्कर में पड़कर अपनी जिंदगी बर्बाद कर देते हैं । यह अधिकतर झुग्गी बस्तियों में होता है। यह भी देखने में आता है, कि लड़के और लड़की के उम्र में काफी अंतर है और कभी-कभी तो लड़की नाबालिग होती है और घर से भाग जाती है, इससे माता-पिता को समाज में शर्मिदा होना पड़ता है। मयूर राहुल नगर स्थित झुग्गी बस्ती का रहने वाला है। वह 12वीं कक्षा का विद्यार्थी है, जबकि उसकी छोटी बहन सिमरन बीए प्रथम वर्ष की छात्रा है। राहुल ने बताया, कि वह 11वीं और 12वीं में अनुतीर्ण होकर छोटी बहन से पिछड़ गया, लेकिन पढ़ाई की ललक अब भी उनमें है । राहुल अभी उदय संस्था से जुड़कर बस्ती को हर दृष्टि से सुरक्षित बनाने की दिशा में काम कर रहा है। उसने कहा, कि इससे पहले वह बचपन और एका संस्था से जुड़कर काम कर चुका है। उसे यह काम अच्छा लगता है। बस्ती में जब भी कोई अनैतिक काम होते देखता है, तो सीधे संस्था या पुलिस को सूचित करता है। राहुल के अनुसार बस्ती में 20 फीसदी बच्चे ही स्कूल जाते हैं, जबकि 80 फीसदी बच्चे काम पर जाते हैं या फिर नुक्कड़ में बैठकर लड़कियों पर फब्तियां कसते हैं । उसने कहा, प्रत्येक स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ युवाओं को जागरूक करने का कक्षा भी चलती चाहिए, इससे बहुत सारे अपराध अपने आप कम हो जायेंगे।
इसी तरह बाल पंचायत की 15 वर्षीय तानिया जाटव ने बताया, कि उसके मोहल्ले के सट्रीट लाईट अक्सर बंद होने के कारण किशोरियों के साथ छेडख़ानी की घटनाएं होती है। इसकी शिकायत उसने पार्षद बाबूलाल यादव से की हैै। तानिया ने कहा, हमारे बस्ती में कई-कई दिनों तक पानी नहीं आता और टेंकर मंगवाना पड़ता है। चूंकि घर के बड़े काम पर निकल जाते है, इसलिए स्कूल छोड़कर पानी भरने का काम हमलोगों को करना पड़ता है, जिसके चलते अक्सर हम पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। सुरक्षित शहर के लिए नलों में पानी आना ज़रूरी है, ताकि हमारी पढ़ाई न छूटे। ईश्वर नगर बस्ती की तानिया ने बताया, कि अधिकतर बस्तियों में बच्चों के खेलने के लिए मैदान नहीं है और जहां है, वहां नशा करने और जुआ खेलने वालों का जमावड़ा रहता है। इससे बच्चे सड़क पर खेलते हैं और दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं।
बाल पंचायत की ही 15 वर्षीय पल्लववी मोहबे ने बताया, कि उसने आगे बढ़कर छेडख़ानी करने वालों को जेल भेजवाया है, लेकिन अफसोस है, कि मुल्जि़म बाद में जेल से छूट जाते है। इससे समाज में गलत संदेश जाता है। उसने कहा, घर के पीछे रेल लाइन है, जहां शाम होते ही अंधेरा छा जाता है और बस्ती की औरतें काम से शाम को जब घर लौटती हैं, तो उनके साथ छेडख़ानी जैसी घटनाएं होती है। इसकी शिकायत कई बार नगर निगम से की गई है।
इन्हीं में से एक होनहार किशोरी नरगिस है, जो पिछले कई सालों से आरंभ संस्था से जुड़कर काम कर रही है। कई बार उसके काम को समाज और स्कूल में भी सराहना मिली है और वह सम्मानित भी हुई है । एमएलबी कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा नरगिस ने बाल पंचायत के ज़रिये कई बाल श्रमिकों को मालिक के चंगुल से मुक्त करवाया है। साथ ही अपने प्रयास से उसने बाल विवाह रोका है। उसके पंचायत में अभी 6 वॉर्ड के 3 सौ से अधिक किशोर जुड़े हैं। संख्या अधिक होने से उसे हर गलत काम रोकने में सफलता मिलती है।
गौरतलब है, कि एनसीआरबी बीते 30 वर्षो से ये आंकड़े हर साल जारी करता रहा है, बिना यह देखे या सोचे कि केन्द्र में सत्ता किसकी है। किसी सरकार ने भी इन आंकड़ो में कोई अड़ंगा इसलिए नहीं लगाया, क्योंकि उनकी मान्यता यह रही, कि आंकड़ों से डरने के बजाए, खुले मन से उसे स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि आंकड़ों का राजनीतिक सत्ता से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। वे अपनी सचाई खुद बयान करते हैं।
कई चुनौतियां हैं सुरक्षित शहर के रास्ते
दरअसल, जब हमलोगों ने किशोरों की असुरक्षा को समझने की कोशिश की , तभी असुरक्षा के प्रमुख जिम्मेदार तत्वों को पहचाना। भोपाल के 15 वार्डो में एक अध्ययन किया, तो पता चला, कि सुरक्षित शहर के रास्ते स्कूल, अधोसंरचना, स्वास्थ्य एवं पोषण,बाल श्रम, बाल विवाह, नशा, बाल हिंसा तथा मूलभूत जरूरतों की कमी से उभरी कई चुनौतियां हैं। सबसे ज्यादा नगर निगम, स्वस्थ्य और शिक्षा से जुड़ी समस्याएं सामने आईं। अगर सरकार इन्हें चिन्हित कर योजनाबद्ध तरीके से काम करें, तो यह शहर किशोरों के लिए अवश्य सुरक्षित शहर होगा।
अर्चना सहाय
आरंभ संस्था
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हर काम में पुलिस को दोष देना अनुचित
सुरक्षित शहर के लिए सभी विभागों का समन्वय होना जरूरी है। हर काम के लिए पुलिस तत्पर रहती है। वीआईपी ड्यूटी, गश्त लगाना, शिकायतों का निपटारा यानी समाज की हर समस्या को पुलिस गंभीरता से लेती है और उसे सुलझाने का हर संभव प्रयास करती है। लेकिन जैसे- नशा, गुटका, स्ट्रीट लाइट, पानी, शिक्षा व स्वास्थ्य ऐसे कुछ मुद्दे हैं, जो अन्य विभागों से संबंधित है। अगर आंगनबाड़ी के पास शराब की दुकान है, तो यह आबकारी विभाग को देखना चाहिए। इसी तरह स्ट्रीट लाइट नगर निगम को, स्कूल अधोसंरचना स्कूल को, गुटका गुमाश्ता लाइसेंस के बाद बेचा जाता है। पुलिस को हर मर्ज की दवा समझना ठीक नहीं। बहुत सारे मसले समुदाय स्तर भी सुलझाया जा सकता है।
श्रद्धा जोशी
महिला अपराध शाखा
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