तेलंगाना की तर्ज़ पर
प्रदेश की जेलों में भी उद्योग स्थापित करने का प्रस्ताव
रूबी सरकार
सिमी के कै़दियों के जेल की दीवार फांदकर भाग जाने की वजह से भोपाल के केंद्रीय कारागार सुर्खियों में आया था, लेकिन यहां कैंदियों द्वारा बनाई जाने वाली कलाकृतियो को समुचित बाज़ार मिले,तो कै़दियों की हुनर की चर्चा भी खूब होगी । यहां एक 19 वर्षीया युवती की शादी लगभग डेढ़ साल पहले एक युवक से माता-पिता द्वारा करा दी गई थी। कुछ ही दिन बाद संदिग्ध परिस्थितियों में उसके पति की हत्या हो जाती है और कानून युवती को आरोपी मानकर उम्र-कै़द की सज़ा सुनाता है। अब वह भोपाल के सेंट्रल जेल में पिछले डेढ़ साल से बंद है- बाहर की दुनिया से दूर । कभी-कभार माता-पिता मिलने आते हैं। ससुराल से अब कोई संबंध नहीं रह गया है, लेकिन जेल के भीतर वह अपना हुनर निखार रही है, ताकि उसकी अपनी पहचान बने। उसने बचपन में मां के साथ बैठकर जो सिलाई- कढ़ाई सीखी थी, वह अब काम आ रही है। वह सुंदर गुडिय़ा बनाती है, उसके लिए कपड़े सिलती है , फिर उसे पहना कर खुश होती है। इसके अलावा वह बैग, फाइल और बच्चों के अत्याधुनिक परिधान भी बना लेती है।
उसकी तरह एक और $कैदी है, जो ड्रेस डिज़ायनर बनना चाहती थी, लेकिन पिता के अचानक दुर्घटनाग्रस्त होने से उसकी ख्वाहिश अधूरी रह गई । पिता की अस्वस्थता और धन का अभाव घर में कलह का कारण बन गये। दुबले पर दो-दो आसाढ़ की तर्ज पर कुछ दिन बाद जल जाने से उसकी नई नवेली भाभी की मौत हो गई। नतीजतन पूरे परिवार को उम्र-कै़द की सज़ा सुना दी गई। जेल में मां और बेटी एक ही बैरक में रहती हैं ,जबकि भाई दूसरे बैरक में। इन्हीं महिलाओं की तरह लगभग 2 दर्जन महिला कै़दी, जो उम्र-कै़द का सज़ा काट रही हंै, जेल में अपने-अपने हुनर का परिचय दे रही हैं। इसी तरह पुरुष कै़दी भी प्रिंटिंग, कालीन और लकड़ी के फर्नीचर, शो-पीस, रॉट आयरन के तरह-तरह के फर्नीचर आदि से अपना हुनर प्रदर्शित कर रहे हैं। जेल प्रशासन से कुशल कारीगरों को 120 रुपये प्रतिदिन और अकुशल कारीगरों को 72 रुपये प्रतिदिन देता है। यह मेहनताना उनके खाते में सीधे भेज दिया जाता है।
इन्हीं कलाकारों के कलाकृतियों को प्रदर्शित और बिक्री के लिए तत्कालीन अतिरिक्त महानिदेशक जेल सुशोवन बनर्जी ने वर्ष 2016 में हस्तशिल्प एम्पोरियम 'कान्हाÓ पुरानी जेल की चार दीवारी के बाहर मुख्य सड़क पर खोला था, जहां इन हुनरमंदों की कलाकृतियां प्रदर्शन एवं बिक्री के लिए रखी गई है। इस एम्पोरियम में राज्य की विभिन्न जेलों के कैदियों द्वारा बनाए गए कलाकृतियों जैसे-चित्रों, कालीन, फर्नीचर, गुडिय़ा, लकड़ी के शिल्प और कई और अन्य चीजें हैं।
श्री बनर्जी ने बताया, कि इस पहल के पीछे हमारा उद्देश्य जनता के सामने कैदियों के कौशल का प्रदर्शन करना था। हम कैदियों के अन्य पहलुओं को उनके हस्तशिल्प के माध्यम से समाज को दिखाना चाहते थे, कि भले ही वे विभिन्न अपराधों में जेल में सजा काट रहे हैं लेकिन उनके पास कौशल है। लाभ कमाना हमारा उद्देश्य नहीं था, बल्कि कैदियों के बारे में जनता धारणा बदलना था। श्री बनर्जी ने बताया, कि बीच में ऐसी एक दुर्घटना घटी, कि सारे अधिकारियों का ध्यान उससे निपटने में लगा रहा और कुछ समय के लिए इस एम्पोरियम को बंद कर दिया गया। धीरे-धीरे सारी कलाकृतियों पर धूल जमने लगी । लेकिन पिछले माह इसे दोबारा शुरू किया गया है।
जेल विभाग के उप महानिरीक्षक संजय पाण्डेय बताते हैं, कि उनके यहां 3 हज़ार से अधिक कैदी हैं। हम इनके भरोसे एक बड़ा उद्योग खड़ा कर सकते हैं, लेकिन बजट का अभाव में ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है। हमारे
पास सामान की मांग आती है,लेकिन पैसे के अभाव में हम ऑर्डर लेने से मना कर देते हैं। सरकार हमें सालाना 5 करोड़ रुपये देती है और हम 7 करोड़ रुपये उन्हें वापस करते हैं। हाल ही में हमारे पास 35 लाख रुपये का ऑर्डर आया था, लेकिन हमारे पास कच्चा माल खरीदने का भी पैसे नहीं थे, इसलिए हमने ऑर्डर वापस कर दिया। हमने कै़दियों को रचनात्मक व सकारात्मक दिशा प्रदान करने की दृष्टि से तेलंगाना मॉडल पर काम करने के लिए सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है। तेलंगाना इन्डस्ट्री डेवलपमेंट बोर्ड के ज़रिये कै़दियों द्वारा निर्मित सामान ग्राहकों को उपलब्ध कराया जाता है। इसी तरह हम भी चाहते हैं, कि जेल में रह रहे कै़दियों के श्रम का सही उपयोग हो। क्योंकि बहुत सारे लोगों का सोच है, कि जनता के टेक्स का पैसा है अपराधियों पर क्यों खर्च किया जाये। इसलिए जेल को एक निश्चित राशि दी जाये, जिससे वहां बन रहे सामानों को एक उद्योग का रूप दिया जा सके। यदि यह प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है, तो हम इन कलाकारों को बड़ा मंच दे पायेंगे ।
गौरतलब हैं कि नये केंद्रीय कारागार भोपाल को आईएसओ प्रमाण-पत्र हासिल है। स्वच्छ पर्यावरण, अच्छी गुणवत्ता का भोजन, चिकित्सा सुविधा, आध्यात्मिक और शरीरिक विकास के लिए पर्यावरण, कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए इस जेल को यह प्रमाण-पत्र दिया गया है।
कारागार में नवाचार करते हुए नये केंद्रीय कारागार के ठीक सामने उच्च्तम न्यायालय के आदेश के बाद 'खुली जेल' बनाया गया है, जहां हम्या के आरोपियों को परिवार के साथ रहने की आज़ादी है।
लगभग 14 साल बाद हत्या के आरोप में उम्र कै़द की सज़ा काट रहे पति के साथ पत्नी रहने आई, तो उसकी आंखों में खुशी के आंसूं छलक पड़े। अपनी भावनाओं को वह रोक नहीं पाई और कहने लगी, भले ही बहुत देर हो चुकी है, लेकिन अब वह मां बन सकेंगी । वह अपना परिवार बढ़ाना चाहती हैं। पति की एक छोटी सी गलती के कारण उसकी दुनिया ही उजड़ गई थी। घटना का उल्लेख करते हुए वह कहती है, कि शादी के कुछ ही महीनों बाद भोपाल स्थित रायल मार्केट के एक झगड़े में एक व्यक्ति की हत्या हो गई, जिसका आरोप उसके पति, जेठ और देवर पर आ गया और अदालत ने तीनों को उम्र $कैद की सज़ा सुना दी। उस वक्त घर की औरतें बदहवाश हो गई थी, क्योंकि घर पर कमाने वाला कोई नहीं था। ऊपर से कानूनी लड़ाई, कोई आसान काम नहीं था, वकीलों की फीस देते-देते घर के सामन बेचने पड़े । अंत में घर की औरतों को ही हिम्मत बांधकर मजदूरी के लिए निकलना पड़ा। 5 साल बाद जब पति पैरोल पर घर आया, तो संतान की इच्छा होने के बावजूद उसने अपने को काबू में रखा । उसने कहा, संतान की चाह किसे नहीं होती, लेकिन खूद की परिवरिश बड़ी मुश्किल से कर पा रही हूं, बच्चे क ी जिम्मेदारी कैसे उठा पाऊंगी। लिहाजा पति के छूटने का इंतज़ार करती रही । इस बीच खुली जेल की अवधारणा ने उसे यह मौका दे दिया और वह पति के साथ दो कमरे के फ्लैट में आकर रहने लगी। उसके फ्लैट के ठीक ऊपर जेठ-जेठानी का फ्लैट है। अब चारों राज़ी -खुशी से यहां रह रहे हैं। नियम के अनुसार सुबह 6 बजे उसके पति और जेठ काम पर निकलते हैं और शाम के ठीक 6 बजे दोनों वापस आ जाते हैं। दोनों नक्काशी वाली जाली बनाने का काम करते हैं। उन्हें अब यह महसूस होने लगा, कि उनकी रिहाई हो चुकी है और वे सामान्य लोगों की तरह ही जी रहे हैं। दोनों को जुर्म का पछतावा है। कहा- ऐसी घटनाएं आवेश में हो जाती है। एक भाईअभी भ्ज्ञी होशंगाबाद जेल में कै़द हैं। छूटने के बाद तीनों नक्काशीदार जाली बनाने का कारखाना खोलने की इच्छज्ञ ज़ाहिर की।
खुली जेल में 8 फ्लैट बनाये गये हैं, जहां 8 विवाहित कै़दियों को परिवार के साथ रहने की आज़ादी दी गई है। ये सभी हत्या के आरोप में उम्र कै़द की सजा काट रहे हैं।
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कैसा है खुली जेल- खुली जेल में एक बड़ा परिसर है, जहां दो कमरों का घर है। इसमें परिवार के साथ रहने का सुख तो है ही, साथ ही दिन भर बाहर काम करने की आज़ादी। जेल अधीक्षक दिनोश नरगावे ने बताया, कि उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के मुताबिक प्रदेश में खुली जेलों का प्रयोग शुरू किया गया है। इन जेलों में अच्छे बर्ताव वाले उन कैदियों को रखा जाता है जिन्हें गंभीर अपराधों में उम्रकैद की सजा सुनायी गयी हो और इस दण्ड की अवधि एक से दो साल में खत्म होने वाली हो। इसका नाम खुली जेल कॉलोनी रखा गया है। इसमें पति-पत्नी के अलावा सजायप्ता व्यक्ति अपने माता-पिता को भी अपने साथ रख सकते हैं। वर्तमान में भोपाल के अलावा होशंगाबाद, जबलपुर, सागर, इंदौर और सतना में खुली जेल शुरू की गई है, भविष्य में मध्यप्रदेश के 51 जिलों में जनभागीदारी से इसे आगे बढ़ाने की योजना है।
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क्या है तेलंगाना मॉडल
तेलंगाना के सगारड्डा जेल को हेरिटेज जेल के रूप में विकसित किया गया है। यहां एक भव्य संग्रहालय बनाई गई है, जहां कै़दियों द्वारा बनाये गये कलाकृतियों को प्रदर्शित एवं बिक्री होती है। आगन्तुक नाम मात्र का शुल्क देकर जेल में भ्रमण करते, ठहरते और खरीदारी करते हैं। यहां आने वालों में लेखक, डॉक्टर, छात्र एवं व्यवसायी सभी शामिल हैं। दिल्ली की तिहाड़ जेल ने भी आम जनता को जेल जीवन का अनुभव करने की अनुमति प्रदान करने का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा है।
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