कोरोना से ठीक हुए लोगों के मानसिक विकारों में वृद्धि
रूबी सरकार
पोस्ट कोविड-19 से होने वाले मानसिक विकारों को लेकर पूरी दुनिया में चिंता जताई जा रही है। दुनिया भर में, मनोचिकित्सक इस अप्रत्याशित तूफान से निपटने का तरीका ढूंढने में लगे हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है, कि पहली लहर के दौरान मौतों की संख्या कम थी, लेकिन दूसरी लहर में मौत के आंकड़े बढ़ने के साथ ही लोगों की चिंता, उदासी, तनाव, अवसाद के साथ ही अन्य ष्षारीरिक बीमारियां बढ़ गई है; पोस्ट कोविड वालों के परिजन मनोचिकित्सकों से सलाह ले रहे हैं। यह अकेले मध्यप्रदेश की बात नहीं है। पूरी दुनिया में इस तरह के मरीजों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने भी कोरोना महामारी के दौरान लोगों को मनोवैज्ञानिक राहत प्रदान करने के उद्देश्य से पहल करते हुए एक कॉल सेंटर स्थापित किया है, जहां प्रतिदिन आने वाले 100 कॉल्स में से करीब 10 कॉल्स इसी तरह के लक्षण वाले होते हैं इन लोगों के भीतर नकारात्मकता इस कदर भर गई है, कि इसे खत्म कर पाना मनोचिकित्सकों के लिए काफी चुनौती भरा काम है। यह जिम्मेदारी यहां के पेशेवर मनोचिकित्सकों को दी गई है। मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों में से एक मनोचिकित्सक राहुल शर्मा बताते हैं, कि अब तक 66 हजार से अधिक मामले इसी प्रकार के कॉल्स सेंटर में आते हैं। हालांकि यह सारे कॉल सेंटर की तरफ से किए जाते हैं। वहीं कॉल सेंटर में आने वाले कॉल की संख्या बहुत कम है। इससे साफ पता चलता है कि लोग मानसिक बीमारी को लेकर अभी भी कलंक के मानते हैं। यह कॉल सेंटर पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए बनाई गई है। यहां पीड़ितों के शंका का समाधान होता है। इसलिए बिना देरी किये किसी को भी यहां कॉल करके अपनी परेशानी बताना चाहिए। हम उनकी शंकाओं का उचित समाधान करेंगे।
मनोचिकित्सक राहुल बताते हैं, कि वे हर रोज उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आईडीएसपी से सूची मिलती है, जिसमें से औसतन तीन सौ रोगियों से वे बात करते हैं। लोगों का पहला डर तो यही है, कि कहीं उन्हें दोबारा कोरोना तो नहीं होगा। अगर हुआ तो क्या उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़े पड़ेगा। वे अस्पताल के संसाधनों की कमी से डरे हुए हैं। तीसरी लहर की घबराहट के साथ वे कहते हैं कि कोविड हुआ भी तो क्या वे घर पर रहकर ठीक हो सकते हैं। लोग अस्पताल जाने से डर रहे हैं इसे ठीक करने के लिए सकारात्मक माहौल बनाने की जरूरत है। यह तो सिर्फ राजधानी भोपाल की बात है, जहां बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध है, लेकिन दूर-दराज इलाकों में पोस्ट कोविड की परेषानी को लोग कैसे झेल रहे हैं। वे कॉल सेंटर में फोन करते हैं, कि नहीं इसकी खास जानकारी किसी के पास नहीं है। हालांकि राहुल बताते हैं, कि इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य का एक बड़ा केंद्र राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं पुनर्वास, जो बेंगलुरु में स्थित है और यह संस्थान ऑनलाईन पूरे भारत की मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से जुड़े रहते हैं।
भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ आर एन साहू बताते हैं, कि उनके पास भी आने वाले 100 मरीजों में से 10-12 पोस्ट कोविड-19 के होते हैं। मरीजों के लक्षण का उल्लेख करते हुए डॉ साहू कहते हैं, कि पोस्ट कोविड मरीजों के अंदर इतना ज्यादा भय और भ्रांतियां है, कि लोग कभी-कभी पागलों जैसा व्यवहार करने लगते है। वह डरे-डरे और सिमट कर रहते हैं। उन्हें हमेशा लगता है, कि उनका ऑक्सीजन स्तर कम हो रहा है। हालांकि वे कोविड से बिल्कुल ठीक हो चुके होते हैं। फिर भी वे घर से निकलने से डरते हैं। मजबूरीवश सिर्फ नौकरी के लिए बाहर निकलते हैं। ज्यों की नौकरी से खाली होते हैं, भयानक अवसाद और तनाव से घिर जाते हैं। वे निश्चित में जी रहे हैं। उन्हें हमेशा लगता है , कि उनका ऑक्सीजन स्तर कम हो रहा है। साँसे उखड़ रही है। उसका दम घुट रहा है। नींद पूरी न हो पाने के कारण वे चिड़चिड़े हो रहे हैं। इसके अलावा ऐसे लोगों को भूख नहीं लगती है। उनकी रात में अक्सर नींद टूट जाती है। आंखों में नींद होते हुए भी वे सो नहीं पाते हैं। अपनी परेशानी का हल ढूंढ़ने के लिए वे डॉक्टरों की सलाह के बजाय गूगल में सर्च करके समाधान ढूंढ़ने लगते हैं। जो सबसे खतरनाक है। लगभग इसी तरह की शिकायतें पोस्ट कोविड लोगों में देखी जा रही है। डॉ साहू ने कहा, इसी तरह के लाखों लोग हैं, जो मिलती-जुलती परेशानी से जूझ रहे हैं।
उन्होंने कहा, दरअसल पोस्ट कोविड वालों को फोबिया हो गया है, िक वे मरने वाले हैं। इसके अलावा बेरोजगारी, आर्थिक कठिनाई ने उनकी स्वास्थ्य समस्या को कई गुना बढ़ा दिया है। इतने सारे मरीज नींद से संबंधित और अन्य मानसिक विकारों के साथ हमारे पास आते हैं, जो स्टेरॉयड के उपयोग से प्रेरित होते हैं। सोशल मीडिया पर डेक्सामेथासोन जैसे स्टेरॉयड के उपयोग के लाभों के बारे में संदेश प्रसारित किए जा रहे हैं, जिसका मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मीडिया भी बार-बार तीसरी लहर की रिपोर्ट दिखाकर लोगों के मन में भय पैदा कर रहा है। इसी कारण लोग उत्तेजित हो रहे हैं । मीडिया को भी सकारात्मक खबरों को दिखाना चाहिए।
इलाज का उल्लेख करते हुए डॉ साहू बताते हैं कि सबसे पहले तो परिवार और पीड़ितों की काउंसलिंग की जाती है। अगर जरूरत हो , तो दवाएं दी जाती है। इससे भी पीड़ितों को राहत न मिले, तो मनोचिकित्सा यानी साइकोथेरेपी से उसका इलाज किया जाता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के उप निदेशक डॉ शरद तिवारी बताते हैं, कि “दूसरी लहर शुरू होने के बाद से आशंकाओं में वृद्धि हुई है। हमारी टीमें लगातार लोगों को बुला रही हैं और राहत पहुंचा रही हैं। लोगों की प्रमुख चिंताएं उपचार से संबंधित हैं , वहीं दूसरी लहर में उच्च मृत्यु दर के कारण लोग डरे हुए हैं।
शहर के सलाहकार मनोवैज्ञानिक, डॉ सत्यकांत त्रिवेदी ने कहा, कोविड-19 के बाद से“अवसाद के मामलों में काफी वृद्धि हुई है और इस स्थिति के कारण होने वाले डर अब बदल गए हैं। दूसरी लहर का मुख्य कारण जहां संसाधनों से जुड़ा था, वहीं तीसरी लहर की आशंका से लोग परेशान हैं।
गौरतलब है, कि कोविड-19 की दूसरी लहर में कई संक्रमितों ने डर के कारण अस्पतालों में ही आत्महत्या कर ली थी। भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हो, इसके लिए सरकार पूरी तरह से एहतियात बरत रहे हैं।
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